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संविधान, न्यायपालिका और मंदिर

रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार ravibhushan1408@gmail.com पिछले गुरुवार (18 अक्तूबर) को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर के रेशमी बाग मैदान में अपने वार्षिक विजयादशमी संबोधन में सात मुख्य मुद्दों (अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, सबरीमला मंदिर में स्त्रियों के प्रवेश, अर्बन नक्सल, नोटा, बाबर, पाकिस्तान की नयी सरकार और चीन) की बात कही. […]

रविभूषण

वरिष्ठ साहित्यकार

ravibhushan1408@gmail.com

पिछले गुरुवार (18 अक्तूबर) को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर के रेशमी बाग मैदान में अपने वार्षिक विजयादशमी संबोधन में सात मुख्य मुद्दों (अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, सबरीमला मंदिर में स्त्रियों के प्रवेश, अर्बन नक्सल, नोटा, बाबर, पाकिस्तान की नयी सरकार और चीन) की बात कही. इन सात मुद्दों में से अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण विशेष प्रमुख है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में इसकी सुनवाई एक सप्ताह बाद आरंभ होनेवाली है.

जब मंदिर निर्माण और जमीन का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, तब संघ प्रमुख का यह कथन कितना न्यायोचित है कि सरकार संसद में कानून बनाकर अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करे? अभी तक राम जन्मभूमि स्थल का आबंटन नहीं हुआ है. अयोध्या जमीन मामले के चार मुख्य पक्षकार हैं- रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और हिंदू महासभा. तीस सितंबर, 2010 के इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले को सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई, 2011 को इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले पर रोक लगाकर यथास्थिति बहाल की थी. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने के पहले अध्यादेश लाकर राम मंदिर के निर्माण की बात करना क्या संविधान और न्यायपालिका के विरुद्ध नहीं है?

लोकतंत्र के सभी स्तंभ कमजोर हो चुके हैं. उन्हें और कमजोर करना लोकतंत्र और संविधान के ही नहीं, देश के भी हित में नहीं है. सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि वह इस मामले पर देश के भूमि कानून के अनुसार सुनवाई करेगा, न कि आस्था, विश्वास, धर्म व मान्यता के आधार पर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए कानून से अधिक महत्वपूर्ण धर्म और आस्था है. मोहन भागवत के अनुसार, मंदिर निर्माण से ‘देश में सद्भावना एवं एकात्मता का वातावरण’ कायम होगा. उन्होंने राम मंदिर के निर्माण में संघ को ‘सहयोगी’ बताया है. मोहन भागवत ‘स्वगौरव’ की दृष्टि से राम मंदिर का निर्माण आवश्यक मानते हैं. उन्होंने ‘सामाजिक धैर्य की एक सीमा’ की भी बात कही. और यह भी कहा कि ‘सांप्रदायिक राजनीति करनेवाली कट्टरपंथी ताकतें रोड़े अटका रही हैं.’ अब यह तो आप सब समझते हैं कि सांप्रदायिक राजनीति कौन कर रहा है.

मोहन भागवत ने स्पष्ट कहा कि- ‘संघ हिंदू समाज को संगठित व अजेय सामर्थ्य संपन्न बनाना चाहता है और इस कार्य को वह संपूर्णत: संपन्न करके रहेगा.’ भागवत ने ‘भारत माता को विश्वगुरु पद पर स्थापित करने के लिए भारत के भाग्य रथ को अग्रसर’ करने का आह्वान भी किया. उन्होंने जिस ‘स्वगौरव’ की बात कही है, वह ‘हिंदू गौरव’ के अलावा और कुछ भी नहीं है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राम जन्मभूमि आंदोलन का प्रमुख सहयोगी संगठन है. प्रवीण तोगड़िया ने बहुत पहले मोहन भागवत और सरकार से मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की बात कही थी. उत्तर प्रदेश में भाजपा की अप्रत्याशित जीत के बाद संघ के विचारक एमजी वैद्य ने यह कहा था कि राम मंदिर निर्माण के लिए ही भाजपा को उत्तर प्रदेश में जनादेश प्राप्त हुआ है.

वहीं, फरवरी 2018 में आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर ने यह कहा था कि कोर्ट से अयोध्या-विवाद का हल नहीं निकलेगा. विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय संगठन मंत्री दिनेश चंद्र ने बीते मार्च महीने में यह कहा था कि राम मंदिर के खिलाफ फैसला स्वीकार नहीं किया जायेगा. उत्तर प्रदेश के कोऑपरेटिव मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा का यह कथन लोगों को याद होगा- ‘मंदिर हमारा आराध्य है. मंदिर बनेगा. मंदिर बनाने के लिए हम लोग संकल्पबद्ध हैं… सुप्रीम कोर्ट में है तभी तो, सुप्रीम कोर्ट भी तो हमारा ही है न. सुप्रीम कोर्ट भी हमारा है, न्यायपालिका भी हमारी है, विधानपालिका भी हमारी है, यह देश भी हमारा है, मंदिर भी हमारा है.’

बीते 18 अक्तूबर को शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने भी राम मंदिर बनाने की बात कही. मोहन भागवत ने ‘न्यायालय के लंबे प्रकरण’ की बात कही है- ‘राम जन्मभूमि पर शीघ्रतापूर्वक राम मंदिर बनना चाहिए. सरकार कानून बनाकर मंदिर बनाये. इस बारे में हमारे संतन आत्मा जो भी कदम उठायेंगे, उसके साथ हम हैं.’ जदयू ने भागवत के इस संदेश पर सही प्रतिक्रिया व्यक्त की है.

देश संत-महात्माओं से चलेगा या कानून से? एक ओर संसद में कानून बनाने की बात और दूसरी ओर न्यायपालिका की अनदेखी! मोहन भागवत के कथन के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनता से राम मंदिर निर्माण की तैयारियां करने को कहा है.

क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बिना राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए? क्या ऐसे उद्गार इसलिए व्यक्त नहीं किये जा रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनेवाली है, पांच राज्यों (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम) में चुनाव हैं और 2019 का लोकसभा चुनाव भी अासन्न है? हम सबके लिए पहले संविधान महत्वपूर्ण है, लोकतंत्र महत्वपूर्ण है, जिसकी रक्षा किसी भी कीमत पर की जानी चाहिए.

आस्था से न जीवन चलता है, न देश. नियम, कायदे-कानून के बिना जो समाज और राष्ट्र बनेगा, उसकी कल्पना की जा सकती है कि वह कैसा होगा. संसद संविधान के प्रति जवाबदेह है, न कि धर्म, आस्था और संघ के प्रति.

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