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स्थिति से जूझने की जरूरत

अजीत रानाडे सीनियर फेलो, तक्षशिला इंस्टीट्यूशन editor@thebillionpress.org इस सप्ताह दो मुख्य कीमतें खबरों की सुर्खियां बनीं. एक तो सर्वशक्तिमान डॉलर की कीमत, जबकि दूसरी पेट्रोल एवं डीजल की. ये दोनों चीजें हमारी अर्थव्यवस्था के लिए सबसे अहम मूल्य-संकेतक बन गयी हैं. भारत में इन ईंधन तेलों का भारी टोटा है, क्योंकि हमारा घरेलू उत्पादन हमारी […]

अजीत रानाडे
सीनियर फेलो,
तक्षशिला इंस्टीट्यूशन
editor@thebillionpress.org
इस सप्ताह दो मुख्य कीमतें खबरों की सुर्खियां बनीं. एक तो सर्वशक्तिमान डॉलर की कीमत, जबकि दूसरी पेट्रोल एवं डीजल की. ये दोनों चीजें हमारी अर्थव्यवस्था के लिए सबसे अहम मूल्य-संकेतक बन गयी हैं. भारत में इन ईंधन तेलों का भारी टोटा है, क्योंकि हमारा घरेलू उत्पादन हमारी जरूरत के पंचमांश को ही पूरा कर पाता है.
हमें हमेशा ही डॉलरों की बहुत कमी बनी रहती है, क्योंकि हम निर्यातों से जो डॉलर कमाते हैं, वे हमारे आयातों के लिए पूरे नहीं पड़ते. थाईलैंड, चीन, मलेशिया जैसे कुछ देशों के पास जरूरत से ज्यादा डॉलर हैं, क्योंकि उनके निर्यात उनके आयातों से अधिक होते हैं. विडंबना यह है कि हमारे लिए डॉलरों की कमी तो तेल की कमी यानी उसके आयात से ही पैदा होती है. इस वर्ष हमारा तेल आयात बिल 120 अरब डॉलर से भी ज्यादा तक जा सकता है. नतीजतन, डॉलर की दर में 68 रुपये से 72 रुपये की फिसलन इस बिल में 48 हजार करोड़ रुपये का इजाफा कर देगी.
ईरान से हमारे तेल आयात का भुगतान रुपयों में होने की वजह से हमारे लिए डॉलरों की कुछ बचत हो जाती है, पर ट्रंप प्रशासन हम पर दबाव दे रहा है कि हम ईरान से यह आयात रोक दें. इसलिए हमें तेल की मांग में ही कमी लाने के उपाय करने होंगे, जैसे तेल के बदले इथिनॉल का इस्तेमाल करना.
हमारे यहां भी अगले 12 वर्षों के दौरान तेल में क्रमशः 12 प्रतिशत इथिनॉल के मिश्रण का फैसला किया गया है. पर यहां भी एक खतरा है. इथिनॉल ईंख से निकलता है, जिसकी फसल को पर्याप्त पानी की दरकार होती है. यदि इसके चलते हमें ईंख का उत्पादन बढ़ाना पड़ा, तो यह हमारा जल संकट भी बढ़ा देगा.
भारत पहले से ही जीवाश्म ईंधनों, खासकर पेट्रोल, डीजल और कोयले पर बहुत ऊंचे कर लगा चुका है. कुछ सीमा तक तो ये भारी कर भी इनका बेजा इस्तेमाल रोकते हैं और उस हद तक ये कर नेक नीयत ही कहे जायेंगे.
यह दूसरी बात है कि सभी जीवाश्म ईंधनों पर ये कर समान दर से लगाये जाने चाहिए थे, जो नहीं किये गये हैं. भारत अभी विकास के जिस दौर से गुजर रहा है, उसमें तेल ऊर्जा के हमारे उपयोग में अधिक कमी की उम्मीदें नहीं हैं. अतः तेल की चढ़ती कीमतों के प्रति हमारी प्रतिक्रिया यही होनी चाहिए कि हम इसका साहस से मुकाबला करें, उम्मीद करें कि ईरान से तेल का आयात जारी रहेगा, नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा बढ़ायें एवं पेट्रो-उत्पादों की कीमतें बाजार से संबद्ध रखें.
यही बिंदु हमें विदेशी विनिमय के मुद्दे पर पहुंचा देता है. वैश्विक पूंजी प्रवाह के साथ हमारी खुली अर्थव्यवस्था के संदर्भ में हम अपनी मुद्रा पर सीमित नियंत्रण ही रख सकते हैं.
मुद्रा पर व्यापार (आयात तथा निर्यात) के प्रवाह की बजाय पूंजी (जो स्टॉकों एवं बांडों का पीछा करती है) के प्रवाह का कहीं अधिक प्रभाव पड़ता है और पूंजी प्रवाह भावनाओं तथा भीड़ के व्यवहार से प्रभावित होने के लिए कुख्यात है. इसके अलावा, एक गिरती मुद्रा की बजाय एक चढ़ती मुद्रा को नियंत्रित करना अधिक आसान होता है. रुपया 68 से 72 तक खिसक चुका है और आगे इसके कुछ और खिसकने का अंदेशा बना हुआ है.
मुख्य चिंता चालू खाते के बढ़ते घाटे (आयातों के निर्यातों से अधिक होने) को लेकर है, जो इस वर्ष जीडीपी के तीन प्रतिशत को पार कर जा सकता है. आयातों में इजाफा हो रहा है, जबकि निर्यातों में मजबूती नहीं आ पा रही है.
इसकी वजह केवल सोने और तेल का आयात ही नहीं, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं तथा कोयले का आयात भी है. चालू खाता नकारात्मक होने के बावजूद भारत का भुगतान संतुलन सकारात्मक है, क्योंकि पूंजी प्रवाह का आगमन चालू खाते के घाटे से अधिक है. मगर छह वर्षों में पहली बार अब पूंजी खाता लगभग 30 अरब डॉलर का नकारात्मक संतुलन प्रदर्शित करेगा. इसका अर्थ यह है कि हमारे पास विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, विदेशी ऋणों, निजी इक्विटी प्रवाह और स्टॉक एवं बांड बाजार प्रवाह का आगमन पर्याप्त नहीं है. यही कारण है कि वित्त मंत्री ने पूंजी प्रवाह के प्रोत्साहन हेतु कई कदमों की घोषणा की है.
ये सब सुधार के कदम हैं और ये किये ही जाने चाहिए, पर अहम यह है कि गैर-आवश्यक वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगा आतंक के संकेत न दिये जायें. कमजोर रुपये ने पहले ही से आयातों को कम आकर्षक बना रखा है. उस अर्थ में नीचे आता रुपया नकारात्मक चालू खाते के लिए एक स्व-सुधारक तंत्र ही है. सबसे मुख्य यह है कि हम निर्यातों पर काफी ध्यान दें. क्यों न उन्हें जीएसटी की शून्य दर का लाभ दिया जाये?
चमड़ा उद्योग तथा गोमांस के निर्यात को गोरक्षा मुहिम से हानि पहुंची है. उन्हें पुनर्जीवित करने की जरूरत है. पर्यटन भी काम नहीं कर रहा है.
तेल तथा विनिमय दर के प्रति हमारी प्रतिक्रिया आतंकित होने की नहीं होनी चाहिए, क्योंकि विदेशी विनिमय के एक अच्छे भंडार, नीची मुद्रास्फीति दर तथा एक प्राप्त होने योग्य राजकोषीय लक्ष्य के साथ हमारी वृहत स्थिति अपेक्षतया मजबूत है. हड़बड़ी में की गयी प्रतिक्रिया का परिणाम निवेशकों के पलायन, रुपये में तेज गिरावट तथा एक स्वचालित अधोगामी चक्र में प्रकट होगा. इसलिए सहज रहने तथा स्थिति से जूझने की जरूरत है.
(अनुवाद: विजय नंदन)

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