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केरल में बाढ़ की विभीषिका

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in दक्षिणी राज्य केरल पिछले 100 साल की सबसे विनाशकारी बाढ़ से जूझ रहा है. केरल में अच्छी बारिश होती है, लेकिन इस बार जैसी तबाही की बारिश हुई है, वैसी पहली कभी नहीं हुई थी. पूरा राज्य भारी बारिश और बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित है. हर […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
दक्षिणी राज्य केरल पिछले 100 साल की सबसे विनाशकारी बाढ़ से जूझ रहा है. केरल में अच्छी बारिश होती है, लेकिन इस बार जैसी तबाही की बारिश हुई है, वैसी पहली कभी नहीं हुई थी. पूरा राज्य भारी बारिश और बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित है. हर तरफ तबाही का मंजर है.
वहां अब तक लगभग 350 से अधिक जानें जा चुकी हैं. दो सौ से अधिक लोगों की तो पिछले 10 दिन में मौत हो गई है. फसल व संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचा है. राज्य में बिजली, पानी, रेल और सड़क व्यवस्था सब ठप है. सड़कें पानी में डूब गयी हैं. दूर-दराज के इलाकों में लोग घरों की छतों या फिर पेड़ों पर फंसे हुए हैं. उम्मीद की जा रही है कि इन लोगों तक जल्द मदद पहुंच पायेगी. सारे रास्ते बंद हैं, जिसके कारण राज्य में खाने-पीने के सामान की आपूर्ति नहीं हो पा रही है.
स्कूल कॉलेज बंद हैं और परीक्षाएं स्थगित कर दी गयीं हैं. लगभग सवा तीन लाख लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं. राज्य के 14 में से 13 जिलों में बाढ़ के कारण रेड अलर्ट जारी कर दिये गये हैं. पेरियार नदी के किनारे स्थित कोच्चि हवाई अड्डे तक पानी पहुंच गया है और वहां से उड़ानें फिलहाल स्थगित हैं. पलक्कड, वायनाड और कोच्चि जिलों ने कभी ऐसी किसी आपदा का सामना ही नहीं किया था. मौसम विभाग ने आगामी कुछ दिनों में मूसलाधार बारिश की चेतावनी दी है, जिसके कारण बाढ़ की स्थिति और चुनौतीपूर्ण हो सकती है.
वैसे तो हर साल केरल में देश के अन्य राज्यों की तुलना में अधिक बारिश होती है, लेकिन इस बार औसत से लगभग 37 फीसदी अधिक बारिश हुई है. अधिक पानी के कारण केरल सरकार को मुल्लापेरियार, चेरुथोनी, इदुक्की, इदामलयार सहित सभी छोटे-बड़े 27 बांध खोलने पड़ गये हैं. इस वजह से खेतों में पानी भर गया है और केरल की इलायची, रबड़, कॉफी और अन्य मसालों की मौसमी फसलें तबाह हो गयीं हैं.
प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि हर तरफ पानी-ही-पानी है, खेत तो नजर ही नहीं आ रहे हैं. सेना के जवान कोझिकोड और वायनाड में फंसे लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए छोटे-छोटे पुलों का निर्माण कर रहे हैं. थल, वायु और नौसेना के साथ एनडीआरएफ की टीमें दिन रात बचाव और राहत कार्य में जुटी हैं और हर बार की तरह सराहनीय कार्य कर रही हैं, लेकिन केरल में जैसी चिंताजनक स्थिति है, उसकी पूरी तस्वीर प्रमुखता से सामने नहीं आ पा रही है.
अखबारों और हिंदी टीवी चैनलों को देखकर केरल की बाढ़ की विभीषिका का अंदाजा नहीं लगता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल का दौरा किया है और 500 करोड़ रुपये की सहायता की घोषणा की है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास और अन्य अनेक मुख्यमंत्री केरल की मदद के लिए आगे आये हैं.
केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन का कहना है कि इससे पहले केरल के लोगों को कभी ऐसे हालात का सामना नहीं करना पड़ा है. उन्होंने सभी देशवासियों से मुख्यमंत्री सहायता कोष में मदद की अपील की है. संकट की इस घड़ी में हम सब को मदद के लिए आगे आना चाहिए.
अपने देश में पर्यावरण की अनदेखी आम बात है. केरल में भारी बारिश और बाढ़ से वह इलाका अधिक प्रभावित हुआ है, जिसे इकोलॉजी पैनल ने पर्यावरण की दृष्टि से संवदेनशील घोषित किया हुआ है. इस पैनल के प्रमुख जाने माने परिस्थितिविज्ञानी माधव गाडगिल हैं और उनकी अध्यक्षता वाली समिति ने सिफारिश की थी कि एक लाख 40 हजार किलोमीटर लंबे पश्चिमी घाट को तीन हिस्सों में बांट दिया जाए और यहां पर्यावरण संरक्षण के कड़े उपाय किये जाएं.
समिति ने कुछ इलाकों में खनन और निर्माण पर सख्त प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी. यह रिपोर्ट 2011 में केरल सरकार को सौंपी गयी थी, जिसे राज्य सरकार ने पूरी तरह खारिज कर दिया था. अगर हम अपने आसपास देखें, तो हम पायेंगे कि नदी के किनारों पर अवैध कब्जे हो रहे हैं और उनके आसपास इमारतें खड़ी होती जा रही हैं. इसके कारण नदी के प्रवाह में दिक्कतें आती हैं.
वैसे तो जलवायु परिवर्तन के दंश को पूरे देश को झेलना पड़ रहा है. ज्यादा बारिश होने के कारण कर्नाटक, उत्तराखंड, हिमाचल, असम और ओडिशा के लोगों को भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ा है, तो दूसरी ओर झारखंड और बिहार में बारिश कम हुई है. झारखंड के बड़े इलाके में धान का रोपा नहीं हो पाया है और जहां रोपा हो भी गया है, वहां कम बारिश के कारण संकट उत्पन्न हो गया है. समस्या केवल कम या अधिक बारिश की नहीं है. बारिश होती भी है, तो हम जल संरक्षण नहीं करते हैं. तालाब पाट दिये गये हैं. उनके स्थान पर बहुमंजले अपार्टमेंट्स और मॉल खड़े हो गये हैं. झारखंड की ही मिसाल लें.
यहां साल में औसतन 1400 मिलीमीटर बारिश होती है, लेकिन बारिश का पानी बहकर निकल जाता है. इसे चेक डैम अथवा तालाबों के जरिये रोक लिया जाये, तो साल भर खेती और पीने के पानी की समस्या नहीं होगी. होता यह है कि मॉनसून में तो अच्छी बारिश होती है, लेकिन गर्मी के मौसम में जल संकट उत्पन्न हो जाता है. बिहार में महज 20 साल पहले तक लगभग ढाई लाख तालाब थे.
आज इनकी संख्या घटकर लगभग 90 हजार रह गयी है. शहरों के तालाबों पर भूमाफियाओं की नजर पड़ गयी और डेढ़ लाख के अधिक तालाब काल कलवित हो गये. उनके स्थान पर इमारतें खड़ी हो गयीं. नतीजा यह हुआ कि शहरों का जलस्तर तेजी से घटने लगा. दरभंगा जैसे शहर में, जहां बहुत कम गहराई पर पानी मिलता होता था, जलस्तर दो सौ फीट तक पहुंच गया. यही स्थिति दूसरे शहरों की भी है. बिहार के तालाबों में सैकड़ों किस्म की मछलियां होती थीं.
वह खत्म हो गयीं. बिहार जैसे जल संसाधन संपन्न राज्य में हर जगह आंध्र प्रदेश से लायी गयी मछलियां बिकने लगीं.हम लोग गांवों में जल संरक्षण के उपाय करते थे, वे हमने करने कब के छोड़ दिये हैं. बस्ती के आसपास जलाशय- तालाब, पोखर आदि बनाये जाते थे. जल को संरक्षित करने की व्यवस्था की जाती थी, लेकिन हमने जल संरक्षण का काम छोड़ दिया. एक और चिंताजनक खबर है.
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण देश का औसत तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ रहा है. इसका सीधा असर खेती-किसानी पर पड़ेगा और पैदावर कम हो जायेगी. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि देश का एक डिग्री तापमान बढ़ने से पैदावार में तीन से सात फीसदी की कमी आ जाती है.
पिछले साल के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया था कि मौसम के खराब मिजाज के कारण खेती-किसानी को 62 हजार करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ा था. यह जान लीजिए कि पर्यावरण का मसला सीधे तौर से खाद्य सुरक्षा से जुड़ा है. इसलिए इसकी अनदेखी की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.

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