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कब तक जपेंगे क्रिकेट की माला

आशुतोष चतुर्वेदी ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in प्रधान संपादक, प्रभात खबर खेल के क्षेत्र में कई नयी उपलब्धियां सामने आयीं, लेकिन हम भारतीयों की दिक्कत यह है कि हम खेलों में क्रिकेट से आगे कभी सोचना ही नहीं चाहते. यह सही है कि क्रिकेट की उपलब्धियों पर हम गर्व कर सकते हैं और स्पष्ट कर दूं कि मैं क्रिकेट […]

आशुतोष चतुर्वेदी
ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
खेल के क्षेत्र में कई नयी उपलब्धियां सामने आयीं, लेकिन हम भारतीयों की दिक्कत यह है कि हम खेलों में क्रिकेट से आगे कभी सोचना ही नहीं चाहते. यह सही है कि क्रिकेट की उपलब्धियों पर हम गर्व कर सकते हैं और स्पष्ट कर दूं कि मैं क्रिकेट के कतई खिलाफ नहीं हूं, लेकिन यह तथ्य हमारी शर्मिंदगी को कम नहीं कर सकता कि हम अन्य खेलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कहीं नहीं ठहरते हैं.
यह दुखद है कि किसी अन्य खेल में हमारी कितनी भी शानदार उपलब्धि हो, हम उसका जश्न तक नहीं मनाते. इंग्लैंड के खिलाफ दूसरा टेस्ट चल रहा है और आपको अपने आसपास ऐसे लोग बड़ी संख्या में मिल जायेंगे, जो मैच का आंखों देखा हाल सुना देंगे और हार-जीत का विश्लेषण भी कर देंगे.
हाल में विश्व कप फुटबॉल समाप्त हुआ और इसको देखने और पढ़ने वाले लोग भारत में बड़ी संख्या में थे. अखबारों ने इस पर विशेष आयोजन किये और लाखों लोगों ने टीवी पर मैचों का आनंद उठाया, लेकिन यह सवाल जोर-शोर से नहीं उठा कि स्विजरलैंड और स्वीडेन जैसे देश फुटबॉल विश्व कप तक पहुंच सकते हैं, तो इतनी बड़ी जनसंख्या वाला भारत क्यों नहीं क्वालीफाइ कर पाता? लेकिन जब फुटबॉल के क्षेत्र में दो उपलब्धियां सामने आयीं, तो इसको लेकर खामोशी थी, कोई जश्न का माहौल नहीं था. भारत की अंडर-16 फुटबॉल टीम ने शानदार प्रदर्शन किया.
जॉर्डन के अम्मान में आयोजित पांच देशों की अंडर-16 चैंपियनशिप में यमन की मजबूत टीम को 3-0 से करारी शिकस्त दी. इससे पहले भारत ने इराक पर जीत हासिल कर तहलका मचा दिया था. किसी भारतीय फुटबॉल टीम की इराक के खिलाफ किसी भी फॉर्मेट में यह पहली जीत थी. इसके पहले भारत ने अंडर-16 के पहले मैच में जॉर्डन को 4-0 से पराजित किया था.
दूसरी ओर स्पेन के वेलेंशिया में आयोजित कोटिफ कप में भारत ने छह बार फीफा अंडर-20 वर्ल्ड कप का खिताब जीतने वाली अर्जेंटीना की टीम को 2-1 से हरा दिया. भारत में ज्यादातर लोग विश्व फुटबॉल को अर्जेंटीना और ब्राजील से ही जोड़ते हैं. भारत की किसी टीम ने मेसी के देश को फुटबॉल में हरा दिया. यह हम सबके लिए बड़ी उपलब्धि है. अर्जेंटीना के खिलाफ जीत से निश्चित रूप से हमारे युवा खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ा होगा. इससे जाहिर होता है कि भारतीय युवा फुटबॉल खिलाड़ियों में दमखम है.
कुछ दिनों पहले भारतीय फुटबॉल के जाने माने खिलाड़ी सुनील छेत्री को एक भावुक वीडियो के माध्यम से लोगों से फुटबॉल मैच देखने की अपील करनी पड़ी. कुछ समय पहले भारत ने अंडर-17 फीफा विश्व कप का आयोजन कर एक अच्छी पहल की थी, लेकिन यह भी सच्चाई है कि भारत में खिलाड़ियों से ज्यादा खेल संघों के सिर फुटव्वल की खबरें सुर्खियां बनती हैं.
हालांकि टाटा जैसे कई कॉरपोरेट घराने फुटबॉल को बढावा देने के लिए आगे आये हैं और उससे उम्मीद बंधी है, लेकिन कई और कॉरपोरेट घरानों के आगे आने की जरूरत है.
हमारे प्रसार के तीनों राज्यों झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में फुटबॉल खूब खेली जाती है. हाल में झारखंड से अच्छी खबर आयी कि पहली बार राज्य के 15 युवा फुटबॉलरों का चयन नेशनल कैंप के लिए किया गया. इन 15 फुटबॉलरों में से पांच का अंडर-19 के लिए, जबकि 10 का अंडर-15 के लिए चयन किया गया है.
फुटबॉल फेडरेशन की योजना फीफा अंडर-17 वर्ल्ड कप क्वालीफिकेशन 2019, एशियाई खेल और ओलिंपिक के लिए टीम तैयार करना है. इसी के तहत प्रतिभा खोज अभियान पूरे देश में चल रहा था. राष्ट्रीय शिविर के लिए झारखंड से एकसाथ 15 खिलाड़ियों का चयन होना एक अच्छी खबर है. इसमें खूंटी, गुमला, और जामताड़ा जैसी छोटी जगहों के भी नवयुवक शामिल हैं. आनेवाले दिनों में ये फुटबॉलर ही देश का प्रतिनिधित्व करेंगे. दुनियाभर में ज्यादातर श्रेष्ठ खिलाड़ी निम्न मध्यवर्ग से आते हैं.
मैं हिमा दास का जिक्र करना चाहूंगा. ग्रामीण और गरीब पृष्ठभूमि से आयी 18 वर्षीया इस धाविका ने हाल में फिनलैंड में आयोजित विश्व जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीता. हिमा दास ट्रैक प्रतियोगिता में भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाली पहली एथलीट बन गयीं, लेकिन हिमा के जीतने के बाद गूगल में लोग उनके प्रोफाइल को खोजने के बजाय उनकी जाति को ढूंढने में लगे थे. इससे दुखद बात और क्या हो सकती है?
कई बार संसद से भी अच्छी खबरें मिलती हैं. हाल में मणिपुर में 524 करोड़ रुपये की लागत से देश के पहले राष्ट्रीय खेलकूद विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रावधान वाले एक विधेयक को संसद की मंजूरी मिल गयी है.
लोकसभा में यह विधेयक पहले ही पारित हो चुका था. इस खेलकूद विश्वविद्यालय में खेलों के समस्त आयामों को संचालित किया जायेगा. इसके क्षेत्रीय केंद्र देश में विभिन्न राज्यों और विदेशों में भी खोले जा सकेंगे. इनमें खिलाड़ियों, रेफरियों और अंपायरों को भी प्रशिक्षण दिया जायेगा. यह एक अच्छी पहल है और उम्मीद है कि इससे नये खिलाड़ियों को आगे आने में मदद मिलेगी.
लेकिन आपने अब तक एक और खबर पर गौर नहीं किया कि 18 अगस्त से इंडोनेशिया में एशियाई खेल शुरू होने जा रहे हैं, जिनमें भारत के 572 खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं. ये 36 खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करेंगे.
होता यह है कि चार साल बाद जब ओलिंपिक अथवा एशियाई खेल होते हैं, तभी हम सब यह सवाल उठाते हैं कि हम बड़ी संख्या में पदक क्यों नहीं जीत पाते हैं? भारत ने 2014 में हुए एशियाई खेलों में 11 स्वर्ण, 9 रजत और 37 कांस्य, कुल 57 पदक जीते थे. चीन, जापान और दक्षिण कोरिया एशिया के खेल क्षेत्र की महाशक्तियां मानी जाती हैं.
इस बार भारत भी पूरे दमखम के साथ उतर रहा है तथा खिलाड़ियों का प्रदर्शन और बेहतर होने की उम्मीद की जा रही है. हम आशा करते हैं कि एशियाई खेलों में खिलाड़ियों की उपलब्धियों को हम सब सराहेंगे और उन्हें प्रोत्साहित करेंगे. दरअसल, हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारे खेल संघों पर नेताओं ने कब्जा कर रखा है. देश में खेल संस्कृति पनपे, इसके लिए खेल प्रशासन पेशेवर लोगों के हाथ में ही होना चाहिए, लेकिन हुआ इसके उलट.
नतीजतन अधिकांश खेल संघ राजनीति का अखाड़ा बन गये. खेल संघों में फैले भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और निहित स्वार्थों ने खेलों और खिलाड़ियों का भारी नुकसान किया है. यही वजह है कि हम आज भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कहीं नहीं ठहरते. हमारे देश में प्रतिभा की कमी नहीं है. यदि बेहतर माहौल तैयार किया जाये और उचित प्रक्रिया द्वारा चयन किया जाये, तो हम खेलों के हर क्षेत्र में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं.

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