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आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक प्रभात खबर पिछले दिनों दो बड़ी चिंताजनक घटना सामने आयी. लखनऊ की एक घटना में एक स्कूली बच्ची ने स्कूल में छुट्टी के लिए एक अन्य स्कूली बच्चे को जान से मारने की कोशिश की. इसके पहले हरियाणा के गुरुग्राम में दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले एक छात्र की हत्या के […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक
प्रभात खबर
पिछले दिनों दो बड़ी चिंताजनक घटना सामने आयी. लखनऊ की एक घटना में एक स्कूली बच्ची ने स्कूल में छुट्टी के लिए एक अन्य स्कूली बच्चे को जान से मारने की कोशिश की.
इसके पहले हरियाणा के गुरुग्राम में दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले एक छात्र की हत्या के आरोप में स्कूल के ही 11वीं के एक छात्र की गिरफ्तारी ने पूरे देश को चौंका दिया था. दूसरी घटना में हरियाणा के यमुनानगर में 12वीं के छात्र ने लाइसेंसी रिवॉल्वर से अपने प्रिंसिपल की गोली मार कर हत्या कर दी. खबरों के अनुसार आरोपी छात्र प्रिंसिपल की डांट से नाराज और क्षुब्ध था.
ताजा मामले में लखनऊ के एक स्कूल में पहली कक्षा के बच्चे पर चाकू से हमले के मामले में पुलिस ने सातवीं कक्षा की एक छात्रा को हिरासत में लिया है. कक्षा सात की इस छात्रा ने कक्षा एक के छात्र को चाकू से हमला कर लहूलुहान कर दिया था. अस्पताल में होश आने पर छात्र ने जब आपबीती बतायी तो सभी के होश उड़ गये. बच्चे ने बताया कि वह अपनी कक्षा में जा रहा था, तभी दीदी ने उसे रोक कर उसका नाम पूछा. इसके बाद वह उसे बाथरूम में ले गयी. इसके बाद दीदी ने उसे पीटना शुरू कर दिया. फिर दुपट्टे से उसके हाथ बांधे और दुपट्टे का एक सिरा उसके मुंह में ठूंस दिया.
इसके बाद उसने चाकू से उस बालक पर ताबड़तोड़ वार किये. बच्चे ने बताया कि उसे गिड़गिड़ाते देख छात्रा मुस्कुराते हुए बोली कि तुम्हें मारा नहीं तो स्कूल में छुट्टी कैसे होगी. छात्रा उसे मरा हुआ समझकर वहां से चली गयी. होश आने पर उसने बाथरूम के दरवाजे पर लात मारनी शुरू की. खुशकिस्मती से उस वक्त सिक्योरिटी इंचार्ज वहां से गुजर रहे थे. आवाज सुनकर उन्होंने दरवाजा खोला और उसे अस्पताल पहुंचाया. वक्त से अस्पताल पहुंचने के कारण बच्चे की जान बच पायी.
ये घटनाएं बेहद चिंताजनक हैं और युवाओं के साथ संवादहीनता की स्थिति को उजागर करती हैं. यह इस बात को भी विचार करने को मजबूर करती हैं कि अभिभावक और स्कूल बच्चों की पढ़ाई पर तो काफी ध्यान देते हैं, लेकिन उनकी क्या मनोदशा है, उसको लेकर कोई चिंता नहीं की जाती है.
सीबीएसई ने सभी स्कूलों को निर्देशित किया था कि बच्चों से संवाद के लिए काउंसेलर होने चाहिए, ताकि संवादहीनता की स्थिति न आये. लेकिन मौजूदा स्थिति यह है कि हम बच्चों में क्या परिवर्तन हो रहा है, उसके आकलन में नाकामयाब साबित हो रहे हैं. एक स्कूली बच्चा हत्या की योजना बना ले और मां-बाप और स्कूल के अध्यापक-अध्यापिकाओं को इसका आभास तक न हो, यह चिंताजनक स्थिति है.
ऐसा देखा गया है कि अभिभावक और स्कूल केवल पढ़ाई पर ही ध्यान देते हैं, बच्चों के अन्य कार्यकलापों की अनदेखी कर देते हैं. लेकिन पढ़ाई को लेकर सर्वे करने वाली संस्था ‘प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन’ ने हाल में अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘असर’ यानी एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट जारी की है.
यह रिपोर्ट चौंकाने वाली है. इस रिपोर्ट के अनुसार प्राथमिक स्कूलों की हालत तो पहले से ही खराब थी और अब जूनियर स्तर का भी हाल कुछ ऐसा होता नजर आ रहा है. ‘असर’ की टीमों ने देश के 24 राज्यों के 28 जिलों में सर्वे किया. इसमें 1641 से ज्यादा गांवों के 30 हजार से ज्यादा युवाओं ने हिस्सा लिया. सर्वे के लिए देश के करीब 35 संस्थानों के दो हजार स्वयंसेवकों की भी मदद ली गयी. ‘असर’ ने इस बार 14 से 18 वर्ष के बच्चों पर ध्यान केंद्रित किया.
सर्वे में पाया गया कि पढ़ाई की कमजोरी अब बड़े बच्चों यानी 14 से 18 साल के बच्चों में भी देखी जा रही है.सर्वे के अनुसार 76 फीसदी बच्चे पैसे तक नहीं गिन पाते. 57 फीसदी को साधारण गुणा-भाग नहीं आता. भाषा के मोर्चे पर स्थिति बेहद चिंताजनक है. अंग्रेजी तो छोड़िए 25 फीसदी अपनी भाषा धाराप्रवाह बिना अटके नहीं पढ़ पाते. सामान्य ज्ञान और भूगोल के बारे में बच्चों की जानकारी बेहद कमजोर पायी गयी. 58 फीसदी अपने राज्य का नक्शा नहीं पहचान पाये और 14 फीसदी को देश के नक्शे के बारे में जानकारी नहीं थी. सर्वे में करीब 28 फीसदी युवा देश की राजधानी का नाम नहीं बता पाये. देश को डिजिटल बनाने का जोर-शोर से प्रयास चल रहा है लेकिन 59 फीसदी युवाओं को कंप्यूटर का ज्ञान नहीं है.
इंटरनेट के इस्तेमाल की भी कुछ ऐसी ही स्थिति है. लगभग 64 फीसदी युवाओं ने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल ही नहीं किया है. प्राथमिक की तरह यदि माध्यमिक स्तर के विद्यार्थी भी बुनियादी बातें नहीं सीख रहे हैं, तो यह बात गंभीर होती स्थिति की ओर इशारा करती है. दरअसल, 14 से 18 आयु वर्ग के बच्चे कामगारों की श्रेणी में आने की तैयारी कर रहे होते हैं, यानी इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. यदि इन युवाओं को समय रहते तैयार नहीं किया गया, तो जान लीजिए इसका असर भविष्य में देश के विकास पर पड़ेगा. इनकी संख्या अच्छी खासी है. देश में मौजूदा समय में 14 से 18 साल के बीच के युवाओं की संख्या 10 करोड़ से ज्यादा है.
मेरी हमेशा से दिलचस्पी बच्चों के मनोवैज्ञानिक अध्ययन में रही है. जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इस विषय पर लिखने की कोशिश करता हूं. मुझे लगता है कि इस विषय पर लगातार लिखा जाना चाहिए. मुझे जब भी अवसर मिलता है, मैं युवाओं को जानने समझने का प्रयास करता हूं. मैंने महसूस किया है कि पुरानी पीढ़ी युवा मन को समझ नहीं पा रही है.
हम उनसे बिल्कुल कट गये हैं. माता पिता और बच्चों में संवादहीनता की स्थिति है. मेरा मानना है कि बच्चा, शिक्षक और अभिभावक तीन महत्वपूर्ण कड़ी हैं. इनमें से एक भी कड़ी ढीली पड़ने पर पूरी व्यवस्था गड़बड़ा जाती है. ऐसे भी देखा गया है कि बच्चे से माता-पिता कुछ भी कहने से डरते हैं कि वह कहीं कुछ न कर ले. दूसरी ओर अध्यापकों के सामने समस्या है कि वह बच्चों को कैसे अनुशासित रखें. इसमें कोई शक नहीं कि नयी पीढ़ी के बच्चे अत्यंत प्रतिभाशाली हैं.
साथ ही हमें यह बात हमें स्वीकार करनी पड़ेगी कि बच्चों में बहुत बदलाव आ गया है. अब जिम्मेदारी आपकी है कि नयी परिस्थिति से जितनी जल्दी हो सके सामंजस्य बिठाएं, ताकि बच्चों के साथ संवादहीनता की स्थिति न आने पाए.

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