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टुकड़े-टुकड़े हो बिखरी मर्यादा

नवीन जोशी वरिष्ठ पत्रकार साल 2014 का आम चुनाव नरेंद्र मोदी ने परिवर्तन, सुशासन, विकास, अच्छे दिन और भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध के नारे से लड़ा था. यूपीए-2 की विफलताओं और घोटालों से आजिज जनता ने बड़ी आशा से मोदी के नेतृत्व में भाजपा को विजय दिलवायी. उसके बाद बिहार और उत्तर प्रदेश विधानसभा के […]

नवीन जोशी

वरिष्ठ पत्रकार

साल 2014 का आम चुनाव नरेंद्र मोदी ने परिवर्तन, सुशासन, विकास, अच्छे दिन और भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध के नारे से लड़ा था. यूपीए-2 की विफलताओं और घोटालों से आजिज जनता ने बड़ी आशा से मोदी के नेतृत्व में भाजपा को विजय दिलवायी.

उसके बाद बिहार और उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में मोदी ने खूब चुनाव प्रचार किया. जब गिरिराज सिंह तथा संगीत सोम से लेकर अमित शाह तक अनर्गल प्रलाप के अलावा सांप्रदायिक रंग वाले भाषण दे रहे थे, तब मोदी ने चुनाव सभाओं में अपने को काफी संतुलित रखा.

लेकिन, गुजरात का चुनाव प्रचार समाप्त होते-होते मोदी को क्या हो गया? ‘हूं विकास छूं, हूं गुजरात छूं’ से शुरू प्रचार देश के खिलाफ साजिश के अनर्गल आरोपों, गुजरात के चुनाव में पाकिस्तानी सांठ-गांठ की कल्पित कथा, पाकिस्तानियों को अपने सफाये की सुपारी देने के अजब इल्जाम, नीच जाति के बखान, पूजा के लिए नमाज की तरह बैठने के किस्से, नाना-दादी पर लांछनों, आदि-आदि में क्यों बदल गया?

क्यों हमारे प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के उन अंकुशहीन नेताओं की तरह अमर्यादित भाषा बोलने लगे, जिनकी जिह्वा पर कुछ लगाम लगाने की अपील अक्सर उनसे की जाती रही?

शालीन रहनेवाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अगर अत्यंत आहत होकर कहा कि ‘मोदीजी हर संवैधानिक पद पर कालिख पोतने की अपनी अदम्य इच्छा से जो नजीर पेश कर रहे हैं, वह बहुत खतरनाक है’ और उनसे माफी मांगने की मांग के साथ ‘जिस पद पर वे बैठे हैं उसके अनुरूप परिपक्वता और गरिमा-प्रदर्शन’ की अपील की है, तो क्या गलत किया? भाजपा के वरिष्ठ मंत्री अब बचाव में भांति-भांति के तर्क दे रहे हैं.

जिस निजी भोज-चर्चा में पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व उपराष्ट्रपति, पूर्व सेनाध्यक्ष, पूर्व राजनयिक और पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री के साथ चंद वरिष्ठ पत्रकार शामिल रहे हों, उसे गुजरात चुनावों से जोड़कर पाकिस्तानी दखल और एक मुस्लिम (अहमद पटेल) को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने की पाकिस्तानी साजिश में कांग्रेस के शामिल होने का आरोप लगाकर प्रधानमंत्री ने निश्चय ही अपने पद की गरिमा गिरायी है.

उन्होंने पाकिस्तान को यह कहने का मौका दे दिया कि ‘चुनाव अपनी क्षमता से जीतें, अपनी चुनावी बहसों में हमको न घसीटें और भारत के प्रधानमंत्री थोड़ा सयानापन दिखाएं.’

निश्चय ही प्रधानमंत्री को ये आपत्तिजनक बातें कहने के लिए वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर के निंदनीय बयान ने उकसाया, किंतु ऐसे किसी विरोधी नेता के बयान से प्रधानमंत्री पद पर बैठे नेता का मर्यादा भूल जाना क्या कहलायेगा? फिर, ‘नीच आदमी’ को ‘नीच जाति का आदमी’ बना देना, उसे ‘गुजराती अस्मिता’ से जोड़कर ‘गुजरात और गुजराती का अपमान’ बताकर चुनावी सभाओं में ‘वोट से बदला लेने’ के लिए ललकारना क्या प्रधानमंत्री को शोभा देता है?

पिछले दिनों प्रधानमंत्री हफ्ते में पांच दिन गुजरात में सघन चुनाव-प्रचार में जुटे रहे. जैसे-जैसे प्रचार का समय बीतता गया, उनकी वाणी असंतुलित होती गयी और उसी तेजी से विकास के दावे और वादे भी नदारद होते गये. कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में अपने मुवक्किल की तरफ से रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई टालने की दलील क्या दी, मोदी जी ने उसे भी कांग्रेस के खिलाफ चुनावी मुद्दा बना लिया. राहुल के नाना और दादी के किस्से तो वे सुना ही रहे थे. राहुल की ताजपोशी पर अय्यर ने औरंगजेब का जिक्र क्या किया, मोदी उनके बयान का आधा हिस्सा लेकर ‘कांग्रेस के औरंगजेब राज’ तक पहुंच गये.

नोटबंदी से ‘कालेधन और भ्रष्टाचार की कमर तोड़ने’ और जीएसटी के ‘साहसी फैसले’ का जिक्र करना वे गुजरात में क्यों भूल गये? अपने तीन साल के शासन की उपलब्धियां गिनाना भी उनसे नहीं हो पाया.

वे कांग्रेस पर इस कदर हमलावर हो गये कि राहुल ने तंज कर डाला कि ‘मोदीजी, आप तो कांग्रेस को खत्म करने का दावा करते हैं, फिर हर समय कांग्रेस की ही बात क्यों करने लगे?’ भाजपाई बागी शत्रुघ्न सिन्हा ने पूछा कि ‘आदरणीय, क्या किसी भी कीमत पर चुनाव जीतने के लिए अपने राजनीतिक विरोधियों के विरुद्ध बिल्कुल नयी, अप्रमाणित और अविश्वसनीय कथाएं गढ़ना बहुत जरूरी हो गया है?’ मोदी के अविश्वसनीय आरोपों पर भाजपा के सहयोगी दल जद (यू) के पवन वर्मा को कहना पड़ा कि यह ‘कुछ ज्यादा ही हो गया’.

विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस की हौसला अफजाई करता हुआ यह तथ्य भी गुजरात चुनाव प्रचार से निकला है कि राजनीति के लिए अनुपयुक्त ठहराये जा रहे राहुल गांधी कहीं बेहतर, जिम्मेदार और शालीन नेता बनके उभरे हैं, जबकि अजेय-सा माने जा रहे नरेंद्र मोदी की छवि अपने ही कारण धुंधली हुई है. स्वयं उनके कई समर्थकों ने उनके बयानों पर आश्चर्य प्रकट किया है.

संयोग है कि इसी हफ्ते राहुल कांग्रेस अध्यक्ष भी बने हैं. मोदी की तुलना में राहुल ने ज्यादा संयम और जिम्मेदारी वाले बयान दिये. जब मोदी कांग्रेस पर अजब-गजब आरोप लगा रहे थे, तब राहुल कह रहे थे कि ‘हम प्रधानमंत्री पद का सम्मान करते हैं, इसलिए प्रधानमंत्री की मर्यादा के विपरीत कुछ नहीं कहेंगे. हम उन्हें प्यार से हरायेंगे.’ बड़बोले अय्यर को कांग्रेस से निलंबित करने का राहुल का फैसला भी काफी सराहा गया. इससे भी मोदी पर जवाबी दबाव बना. हालांकि सांप्रदायिक-घृणा-जनित हत्याओं पर भी प्रधानमंत्री मौन ही रहे.

गुजरात चुनाव का नतीजा चाहे जो हो, उसने राजनीतिक मतभेदों को निजी वैमनस्यता, अनर्गल-अविश्वसनीय आरोपों तथा संवैधानिक पदों के मर्यादा-भंग के निम्न-स्तर तक पहुंचाया.

ध्यान रहे, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों में मर्यादा और परस्पर सम्मान हर हाल में बनाये रखने का अलिखित लोकतांत्रिक नियम है. नेताओं को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए, वर्ना 2019 आते-आते भारत विश्वगुरु नहीं, हंसी का ही पात्र बनेगा.

‘अंधा युग’ में धर्मवीर भारती की पक्तियां याद आती हैं- ‘टुकड़े-टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा, इसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है. पांडव ने कम, कौरव ने कुछ ज्यादा. यह रक्तपात अब कब समाप्त होना है.’ मर्यादा का यह रक्तपात गुजरात में ही थम जाये तो अच्छा. संविधान हमारे नेताओं को सदबुद्धि दे!

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