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प्रदूषण मुक्त हो दीपावली

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक प्रभात खबर अधिकतर परिवारों की कोशिश होती है कि दीपावली पर कुछ नये सामान की खरीदारी की जाये. इस सूची में कपड़े तो हैं ही, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक सामान की खरीदारी का चलन बढ़ गया है. मैं रांची रहता हूं, लेकिन परिवार के अनेक सदस्य दिल्ली-एनसीआर में रहते […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक
प्रभात खबर
अधिकतर परिवारों की कोशिश होती है कि दीपावली पर कुछ नये सामान की खरीदारी की जाये. इस सूची में कपड़े तो हैं ही, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक सामान की खरीदारी का चलन बढ़ गया है.
मैं रांची रहता हूं, लेकिन परिवार के अनेक सदस्य दिल्ली-एनसीआर में रहते हैं, जिनमें 83 वर्षीय मां भी शामिल हैं. उनके लिए दीपावली से लेकर फरवरी- मार्च का समय कड़ी परीक्षा का दौर होता है. इस दौरान क्या उपाय नहीं किये जाते. प्रदूषण कम करने वाले पौधे, नेबुलाइजर से लेकर छोटे ऑक्सीजन सिलिंडर तक की व्यवस्था की गयी है.
इस दौरान उन्हें एलर्जी से बचाव के इंजेक्शन पहले ही लगवा दिये जाते हैं. लेकिन, हवा इतनी प्रदूषित है कि कोई उपाय कारगर साबित नहीं होता. हालांकि पिछले वर्ष भी यह बात उठी थी कि हवा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए एयर प्यूरिफायर खरीद लिया जाये और इस बार तो यह तय कर लिया गया था कि धनतेरस पर हवा साफ करने के लिए एयर प्यूरिफायर ही खरीदा जायेगा. लेकिन, भला हो सुप्रीम कोर्ट का, जिसने दीपावली पर दिल्ली- एनसीआर में पटाखों पर प्रतिबंध लगाकर हमें थोड़ी राहत दे दी है. परिवार अपने फैसले पर पुनर्विचार कर रहा है और धनतरेस से जुड़े घरेलू पारंपरिक सामान की खरीद का विचार बना रहा है.
जैसा कि हम आप जानते हैं कि हाल में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पटाखों की बिक्री एक नवंबर, 2017 से दोबारा शुरू हो सकेगी. इस फैसले से यह पता चलेगा कि पटाखों के कारण प्रदूषण पर कितना असर पड़ता है. लेकिन, पिछले कुछ दिनों में मैंने देखा कि सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक अभियान चलाया जा रहा है जिसकी शुरुआत जानेमाने लेखक चेतन भगत ने की है. सबसे चिंताजनक बात है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को धार्मिक रंग देने की कोशिश की गयी है.
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि उन्हें दुख है कि कुछ लोग हमारे आदेश को सांप्रदायिक और राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं. पटाखों पर प्रतिबंध सीमित समय के लिए है और केवल देश के एक हिस्से दिल्ली एनसीआर में है. साथ ही एक नवंबर से उनकी बिक्री फिर शुरू हो जायेगी. चेतन भगत मुंबई में रहते हैं और मुझे नहीं लगता है कि उन्हें हाल के वर्षों में दिल्ली की दीपावली देखने का मौका मिला है. मुझे इस मौके पर पुरानी कहावत याद आती है- जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर परायी.
दिल्ली में यह स्थिति पिछले कई वर्षों से है और इसके खिलाफ दिल्ली-एनसीआर के सभी स्कूलों में पिछले कई वर्षों से ‘पटाखों को कहें ना’ जैसा अभियान जोर-शोर से चल रहा है और उसका असर भी हुआ है. लेकिन, ऐसे बहुत से महानुभाव और उनके परिवारजन हैं जिन पर इसका कोई असर नहीं हुआ. उनके पटाखे बोरों में आते हैं और उनके लिए रात की समयसीमा का भी कोई मायने नहीं है. हालांकि रात 10 बजे से सुबह छह बजे के बीच पटाखों के उपयोग पर पाबंदी है और यह नियम पूरे देश में लागू है. दीपावली पर कुछ अच्छे अभियान भी चले हैं. चीनी झालर की जगह मिट्टी के दिये जलाने का अभियान चला था.
हम सब इसके समर्थन में हैं, समाचार माध्यमों ने भी इसका साथ दिया है. इस मुहिम को और व्यापक करने की जरूरत है ताकि इसका फायदा हमारे कुम्हार भाइयों को मिल सके और हम पारंपरिक तरीके से दीपावली मना सकें. एक तर्क दिया जा रहा है कि कोर्ट के फैसले से पटाखा कारोबारियों को एक हजार करोड़ का नुकसान होगा. एक तो पूरे देश में पटाखों पर प्रतिबंध नहीं है, दूसरे यह देखना होगा कि लोग इसकी कितनी बड़ी कीमत चुका रहे हैं.
गुजरात में शराबबंदी लागू है, राज्य को प्रतिबंध के कारण करोड़ों के राजस्व का नुकसान होता है लेकिन यह लोगों के स्वास्थ्य और समाज की खुशहाली के मुकाबले कुछ भी नहीं है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी शराब पर पाबंदी लगायी. तर्क दिया जा सकता है कि इससे कारोबारियों को करोड़ों का नुकसान हुआ, लेकिन व्यापक जनहित में यह एक अहम फैसला है, हमें अपनी राय बनाते वक्त इस पक्ष को भी ध्यान में रखना होगा. पटाखों पर प्रतिबंध से यदि लोगों के स्वास्थ्य और जान की रक्षा होती है तो इसके आगे एक हजार करोड़ की रकम कुछ भी नहीं है.
यह सही है कि दिल्ली के प्रदूषण के लिए केवल पटाखे जिम्मेदार नहीं है, इसमें अन्य कारकों का भी योगदान है. लेकिन दीपावली के दौरान पटाखों का प्रदूषण बढ़ाने में भारी योगदान रहता है. आइए देखते हैं कि हाल के दिनों में दिल्ली में रियल टाइम एयर क्वॉलिटी इंडेक्स का क्या हाल रहा है. प्रदूषण को पीएम लेवल से मापते हैं. ये हवा में मौजूद वे कण होते हैं जिनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है. ये सांस के साथ शरीर में जाकर गले में खराश, जकड़न और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं.
इन्हें एम्बियंट फाइन डस्ट सैंपलर यानी पीएम 2.5 से मापते हैं. सबसे ज्यादा प्रदूषण का स्तर पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार इलाके में दर्ज किया गया. आनंद विहार में पीएम 2.5 का स्तर जहां औसतन 307 माइक्रोग्राम/घनमीटर के आसपास था जो कि सामान्य स्तर 60 से पांच गुना ज्यादा है, वहीं आनंद विहार में पीएम 10 का स्तर सबसे ज्यादा 870 दर्ज किया गया. यह सामान्य स्तर 100 से लगभग 9 गुना ज्यादा रह रहा है. आपको बता दूं कि बिहार और झारखंड के बड़ी संख्या में लोग पूर्वी दिल्ली के ही इलाके में रहते हैं.
सबसे कम प्रदूषण स्तर पीएम 2.5 का लेवल 158 माइक्रोग्राम/घनमीटर के करीब रहा, जो सामान्य स्तर से लगभग तीन गुना ज्यादा और खतरनाक है. ऐसे में सबसे कम प्रदूषण स्तर पर भी दिल्ली में हवा जहरीली है. पुराने आंकड़ों पर नजर डालें तो दीपावली के आसपास दिल्ली की आवोहवा रहने लायक नहीं रह जाती है.
आप स्थिति की गंभीरता का इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि इन दिनों देश में फुटबॉल का अंडर 17 फीफा विश्व कप का आयोजन चल रहा है. आयोजकों ने दिल्ली में दीपावली से पहले चार मैच ही कराने का फैसला किया ताकि दीपावली के बाद संभावित प्रदूषण से खिलाड़ियों को बचाया जा सके. इसलिए किसी के कहने-सुनने और ट्वीट से राय न बनाएं. दीपावली साफ सफाई का भी त्योहार है. आइए हम सब मिलकर दीपावली पर खुशी के दीये जलायें और इस मौके पर पूरे साल अपने आसपास साफ-सफाई और अपनी नदियों-तालाबों को प्रदूषण मुक्त रखने का संकल्प लें.

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