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राम की अयोध्या वापसी

तरुण विजय पूर्व सांसद, भाजपा हिंदू पर्व विजय के उत्सव हैं. यह बात मन में गहरे तब उतरेगी, जब पूजा, देव-देवियों को मनाना व्यक्तिगत मन्नतों और कामनाओं के पूरा होने से परे देखना शुरू करें. जब माता जानकी, साक्षात् मर्यादा-स्वरूपिणी, का रावण जैसे ब्राह्मण और अतिविद्वान ने अपहरण किया और आग्रह तथा परामर्श के बाद […]

तरुण विजय
पूर्व सांसद, भाजपा
हिंदू पर्व विजय के उत्सव हैं. यह बात मन में गहरे तब उतरेगी, जब पूजा, देव-देवियों को मनाना व्यक्तिगत मन्नतों और कामनाओं के पूरा होने से परे देखना शुरू करें. जब माता जानकी, साक्षात् मर्यादा-स्वरूपिणी, का रावण जैसे ब्राह्मण और अतिविद्वान ने अपहरण किया और आग्रह तथा परामर्श के बाद भी वह नहीं माना, तो शस्त्रधारी राम ने जनसंगठन के माध्यम से आक्रमण कर रावण का हनन किया था और सीता को वापस लाये थे.
राम खाली हाथ नहीं लौटे थे. राम ने लंका पर आक्रमण के लिए क्षमा भाव नहीं दिखाया था.हिंदुओं ने हजारों वर्ष की परंपरा- दीपावली और दशहरा- विजय के उत्सव के रूप में मनाना भी कभी नहीं छोड़ा. हिंदू होने का अर्थ नि:शस्त्र, बेजान होकर दुष्ट के अन्याय को सहन करते जाना नहीं है. हिंदू होने का अर्थ है पश्चाताप विहीन दुष्ट पर आक्रमण कर उसे दंड देना, उसका अंत करना, उसके प्रति दया नहीं दिखाना. विजय का त्योहार मनाने के लिए चाहिए पथ का निर्धारण, शत्रु की स्पष्ट पहचान, जन-संगठन द्वारा शक्ति संचय और आक्रमण की तैयारी.
सत्तर वर्ष किसी राष्ट्र की आयु में बिंदु का सहस्त्रांश भी नहीं होते. पर, हिंदुओं की स्थिति देखिये. पाकिस्तान में अपमानित, असुरक्षित और दूसरे दर्जे का नागरिक. बांग्लादेश में खालिदा जिया शासन की तुलना में आज बेहतर स्थिति होगी, लेकिन हिंदू होने के नाते उस पर आघात, भेदभाव, अपमान, दुर्गा-पूजा पंडालों का यत्र-तत्र ध्वंस, अपहरण की घटनाएं होती ही हैं.
म्यांमार के रोहिंग्या हिंदू अलगाववादी आतंकी मुस्लिमों के प्रहारों का शिकार होकर शरणार्थी बने. मैं स्वयं गत सप्ताह उनके बीच था. बांग्लादेश में शरणार्थी के रूप में पलायन को मजबूर रोहिंग्या हिंदू स्त्रियां शिविरों में भी इतना डर है कि अनेक सिंदूर लगाना भी छोड़ बैठी हैं. कश्मीर से पलायन, म्यांमार से पलायन, यह पलायन कब से हिंदू की पहचान बनने लगी? क्या शरणार्थी होना हिंदू होने का एक स्वीकार्य परिणाम हो गया है!
याद करना होगा राजनीति में लाला लाजपत राय, वीर सावरकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी को, जिन्होंने स्पष्ट बेलाग रूप में हिंदू रक्षा और हिंदू हित को अपने जीवन में मुख्य स्थान दिया. अगर हिंदू के बारे में क्षमा भाव से बोलेंगे, सेकुलर दबाव में रहेंगे.
मिलीजुली भाषा का इस्तेमाल करेंगे, तो हिंदू की बात करना दिखावा मात्र होगा. स्वामी श्रद्धानंद प्रखर, असमझौतावादी हिंदू थे, जिन्होंने शुद्धि आंदोलन द्वारा मुसलमान बन चुके हजारों हिंदुओं को वापस आर्य बनाया. वे योद्ध संन्यासी कहलाये. उन्होंने सही बात पर मुसलमानों का समर्थन भी किया. वे पहले हिंदू संन्यासी थे, जिन्हें जामा मस्जिद, दिल्ली में हजारों मुसलमानों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया. वीर सावरकर और डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी हिंदू महासभा की प्रखर हिंदुत्व राजनीति के नक्षत्र थे. उन्होंने हिंदू हित पर कभी समझौता नहीं किया, लेकिन हिंदू समाज में व्याप्त अंधविश्वास, कुरीतियों, पाखंड एवं छुआछूत पर कड़े प्रहार भी किये. आर्य समाज की पाखंड खंडिनी पताका और सावरकर का पतित पावन मंदिर आंदोलन हिंदू समाज को वीर बनानेवाला था, पर आज हिंदू जातिभेद एवं पाखंड पर बोलनेवाला कोई नहीं दिखता. बल्कि, जातिभेद बढ़ रहा है और अनुसूचित जातियों पर होनेवाले अन्याय व अत्याचार की घटनाओं पर प्राय: चुप्पी साधे रखना ‘सही’ माना जाता है.
वह हिंदू नहीं, जो समय की धार को बदलने का साहस न रखे. वह विवेकानंद-वाणी, जिसने वीर हिंदू पैदा किये, हिंदू कापुरुषता और भीरूता को झकझोरा. यह पुस्तकों और भाषणों का विषय नहीं, व्यवहार का आदर्श मानक है.
भारत में बीसियों सालों से आंतरिक सुरक्षा का अर्थ घर के भीतर आतंकी युद्ध का सामना करना हो गया है. क्यों? सीमा पर सीमा के भीतर हमारे जवानों की शहादत दशकों से रोजमर्रा की सामान्य खबरों में शुमार हो गयी है, क्यों?
इसका जवाब आंकड़ों में नहीं, निर्णायक इच्छाशक्ति में ढूंढना होगा. ईर्ष्या, विद्वेष, कटुता, शत्रु से पहले भीतरी नापसंद तत्वों का खात्मा, यह हिंदू समाज की सामान्य विशेषताएं बन गयी हैं. तरक्की, रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली, पानी मात्र से नहीं, राष्ट्रीय चिति-समाज की आत्मा के सशक्तिकरण से मापी जाती है.
उत्तर पूर्वांचल का लगातार बढ़ता ईसाईकरण, कश्मीरी हिंदू शरणार्थियों की सुरक्षित, ससम्मान वापसी, जम्मू-कश्मीर के दूसरे झंडे को खत्म करना हमारी चिंता और चिंतन के राडार पर कहां आते हैं?
हाल ही में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाइ कुरैशी ने कहा कि भारत में मुसलमानों की स्थिति अन्य अनेक मुस्लिम देशों के मुसलमानों से बेहतर है और भारत में हिंदू बहुसंख्यक होने के कारण ही लोकतंत्र फल-फूल रहा है.
यह बात ध्रुव सत्य है. लेकिन, कम ही ऐसे मुस्लिम होंगे, जो इस सत्य को स्वीकार करते होंगे. भारत में हिंदुओं की स्थिति का मजबूत रहना अन्य तमाम अल्पसंख्यक समाजों के हित में है, वरना वे भी पड़ोसी मुस्लिम देशों की तरह असहिष्णुता और दहशत का शिकार हो जायेंगे.
गरीबी और आंसुओं का कोई रंग नहीं होता, कोई मजहब नहीं होता. हिंदू-मुस्लिम दुख-दर्द अलग-अलग बांटे नहीं जा सकते. एक ऐसा देश जहां हर नागरिक दुखों से भरा होगा, समृद्धि का खुशी-खुशी उपभोग करे, ऐसा सशक्त भारत ही ‘रामजी का भारत’ होगा.
दीपावली शुभ हो. राम की अयोध्या वापसी शुभ हो. उनकी अयोध्या वापसी के साथ-साथ उन मूल्यों और संकल्पों की हमारे हृदय के भीतर पैठी अयोध्या में भी वापसी हो, जिनसे भारत व्याख्यायित होता है. तभी अयोध्या वापसी के दीयों की रोशनी सार्थक होगी!

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