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भारत-अफ्रीका संबंध मजबूत

डॉ सुमित झा अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल के दौरान भारत ने अफ्रीका के साथ संबंधों को बेहतर करने के लिए अपनी विदेश नीति में बुनियादी परिवर्तन किया है. दो से छह अक्तूबर तक राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की जिबूती और इथियोपिया की यात्रा को इसी संर्भ में देखा जा […]

डॉ सुमित झा
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार
मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल के दौरान भारत ने अफ्रीका के साथ संबंधों को बेहतर करने के लिए अपनी विदेश नीति में बुनियादी परिवर्तन किया है. दो से छह अक्तूबर तक राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की जिबूती और इथियोपिया की यात्रा को इसी संर्भ में देखा जा रहा है.
कोविंद न केवल जिबूती का दौरा करनेवाले भारत के पहले राष्ट्रपति बने, बल्कि 45 सालों में पहली बार भारत का कोई राष्ट्रपति इथियोपिया की यात्रा पर गया था. 2015 में यमन से भारतीयों को सुरक्षित निकालने में सहायता के लिए राष्ट्रपति कोविंद ने जिबूती को धन्यवाद दिया तथा इथियोपिया के अब्बा विवि में उन्होंने इसका जिक्र किया कि अफ्रीका महादेश हमेशा से ही भारतीय विदेश नीति में एक विशेष महत्व रखता रहा है.
ऐतिहासिक रूप से भारत और अफ्रीका के बीच घनिष्ठ राजनीतिक-सांस्कृतिक संबंध रहे हैं. हालांकि, भारत के द्वारा इस महादेश के साथ संबंध बेहतर करने का गंभीर प्रयास 1990 के दशक में शुरू किया गया. 2008 में इंडिया-अफ्रीका फोरम समिट के गठन के साथ यह बात स्पष्ट हो गयी कि तेजी से बदलती क्षेत्रीय और वैश्विक आर्थिक, सुरक्षा एवं अन्य आपसी हितों की वजह से दोनों पक्ष आपसी संबंध को एक नयी दिशा देना चाहते हैं.
भारत में जब अक्तूबर 2015 में तीसरे इंडिया-अफ्रीका फोरम समिट की बैठक हुई, तब इसमें पहली बार अफ्रीका के 54 देश सहित 40 राष्ट्रों और सरकार के प्रमुखों ने भाग लिया. जुलाई 2016 में प्रधानमंत्री मोदी चार अफ्रीकी देशों की यात्रा पर मोजंबिया, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया और केन्या गये. इससे पहले, तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी घाना, आइवरी कोस्ट और नांबिया तथा उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी मोरक्को और ट्युनीशिया की यात्रा पर गये थे.
निश्चित रूप से, आर्थिक और व्यापारिक क्षेत्र भारत-अफ्रीका के मजबूत संबंध का एक प्रमुख आधार रहा है. भारत और अफ्रीका के बीच व्यापार 71 मिलियन डॉलर से ज्यादा पहुंचने के साथ, दोनों पक्षों ने आपसी व्यापार को 2020 तक 500 मिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा है. भारत अफ्रीका में निवेश करनेवाला पांचवां सबसे बड़ा देश है.
भारत ने अफीका को सात बिलियन ऋण सुलभ ब्याज पर दिया है और विभिन्न विकास की परियोजनाओ के लिए 8.5 बिलियन डॉलर देने की प्रतिबद्धता भी जतायी है. एक ओर जहां भारत से अफ्रीका के देशों में निर्यात में वृद्धि हुई है, वहीं अफ्रीका महादेश में चल रहा औद्योगीकरण और शहरीकरण की प्रक्रिया को देखते हुए नयी दिल्ली इस क्षेत्र को भारत के सामान निवेश टेक्नोलॉजी आदि के लिए एक उपयुक्त बाजार के रूप में देखता है. श्रम लागत कम होने एवं आर्थिक लाभ की अधिक संभावना होने की वजह से भारत के सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की अनेक कंपनियां अफ्रीकी देशों में निवेश कर रही हैं.
केवल इथियोपिया में 540 भारतीय कंपनियों ने 4.8 बिलियन का निवेश किया है. इससे अफ्रीका महादेश के विकास में तेजी आयेगी, वहीं इसका सकारात्मक प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी होगा. भारत का यह भी मानना है कि अफ्रीकी देशों के साथ आर्थिक संबंध को मजबूत करने से इस महादेश में चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभाव को रोकने में मदद मिलेगी. यह बात इससे और स्पष्ट होती है कि चीन के बेल्ट रोड पहल के विकल्प के रूप में भारत-जापान के सहयोग से एशिया-अफ्रीका विकास गलियारा बनाया जा रहा है.
हिंद महासागर में सुरक्षा को सुनिश्चित करने में भी भारत को अफ्रीका का सहयोग आवश्यक है. जिबूती की भौगोलिक स्थिति विशिष्ट है, क्योंकि यह लाल सागर और हिंद महासागर के संगम पर स्थित है, जो अफ्रीका को एशिया से जोड़ता है.
जिबूती की आधारिक संरचना में तेजी से निवेश करने के साथ ही चीन अपने सामरिक हित को भी साध रहा है. भारत के द्वारा जिबूती के साथ रिश्ते को मजबूत करने के पीछे चीन एक प्रमुख कारण है.
अफ्रीका में कच्चे तेल, गैस, कोयला, हाइड्रोकार्बन एवं कई महत्वपूर्ण खनिज के प्रचुर भंडार हैं. दूसरी ओर, भारत ऊर्जा संकट से जूझ रहा है. अपनी 70 प्रतिशत ऊर्जा जरूरतों को भारत आयात से पूरी करता रहा है. भारत हाइड्रोकार्बन आयात करनेवाला दुनिया का सबसे बड़ा देश है. अत: नयी दिल्ली का मानना है कि दक्षिण अफ्रीका भारत की ऊर्जा समस्याओं को हल करने और आर्थिक विकास को गति देने में एक विशेष भूमिका निभा सकता है.
अफ्रीकी देशों के साथ बेहतर संबंध से अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में भारत का कद ऊंचा होगा, खासकर सुरक्षा परिषद् में, जहां भारत स्थायी सदस्यता के लिए अन्य देशों से समर्थन पाने का प्रयास कर रहा है.
अफ्रीका में रह रहे 2.7 बिलियन भारतीय समुदाय के लोगों के साथ रिश्ते को मजबूत करना भी मोदी सरकार की प्राथमिकता है. राष्ट्रपति कोविंद की यात्रा से भारत-अफ्रीका संबंध को नयी ऊर्जा मिली है और उम्मीद है कि आनेवाले समय में दोनों पक्षों के आपसी रिश्ते और मजबूत होंगे.

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