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बिहार में बाढ़ की त्रासदी

देवेश कुमार बिहार भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष निखिल आनंद वरिष्ठ पत्रकार बिहार में अगस्त के मध्य में आये बाढ़ से 19 जिलों के लगभग डेढ़ करोड़ लोग प्रभावित हुए. इस बाढ़ के आने के ठीक पहले ही राज्य की महागठबंधन राजनीति में आये भूचाल के कारण सत्ता समीकरण में जो परिवर्तन हुआ, उसका हैंगओवर फिलहाल […]

देवेश कुमार

बिहार भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष

निखिल आनंद

वरिष्ठ पत्रकार

बिहार में अगस्त के मध्य में आये बाढ़ से 19 जिलों के लगभग डेढ़ करोड़ लोग प्रभावित हुए. इस बाढ़ के आने के ठीक पहले ही राज्य की महागठबंधन राजनीति में आये भूचाल के कारण सत्ता समीकरण में जो परिवर्तन हुआ, उसका हैंगओवर फिलहाल मौजूद है.

पूर्व के महागठबंधन सरकार में शामिल राजनीतिक दलों की एक-दूसरे के प्रति अपने आग्रहों एवं पूर्वाग्रहों को लेकर बयानबाजी की मसरूफियत बाढ़ की त्रासदी के दौर में बनी रही, जो राजनीति की सरगर्मी को बढ़ाये हुए थी. 2005 में जदयू-भाजपा गठबंधन की सरकार बनने के बाद भाजपा कार्यकर्ता जो उत्साह दिखा रहे थे, वही उत्साह इस बार 2017 में भी गठबंधन सरकार की वापसी के समय मौजूद था. इसके मूल में लालू यादव को बिहार की सत्ता से हटाने की खुशी भी थी.

लेकिन, भाजपा कार्यकर्ता इस बार सत्ता प्राप्ति के उत्साह से परे संगठनात्मक रुझान में ज्यादा दिखे. अमूमन सत्ता प्राप्ति के बाद राजनीतिक दलों के ओहदेदारों व कार्यकर्ताओ का मंत्रियों एवं पावर कोरीडोर में चक्कर लगाने के लिए भीड़ जुटाना मुख्य काम हुआ करता है.

लेकिन, सत्ता में होने के बावजूद पार्टी कार्यकर्ताओं का संगठनात्मक कार्यों में संलिप्त होना बिहार में भाजपा की नयी खासियत बनकर उभरी है. यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा की राजनीति में 2014 के बाद हो रहे देशव्यापी बदलाव का स्वाभाविक परिणाम है.

इस साल अगस्त के पहले हफ्ते में अचानक आयी बाढ़ की विभीषिका ने समूचे उत्तर बिहार को अपनी चपेट में ले लिया था, जब इन इलाकों की सभी नदियां जलप्लावित हो गयी थीं.

बिहार भाजपा ने सबसे पहले मुख्यमंत्री राहत कोष में 11 लाख रुपये का चेक मुख्यमंत्री- बिहार को सौंपा और ‘आपदीय राहत एवं सेवाएं विभाग’ की देख-रेख में बिहार भाजपा मुख्यालय में एक 24×7 संचालित होनेवाला ‘बाढ़ पीड़ित सहायता केंद्र’ की स्थापना की, जिसका संपर्क नंबर 0612- 2504529 सार्वजनिक किया गया. इस दौरान छोटे-छोटे चेकों के माध्यम से कुल 69 लाख 68 हजार 837 रुपये की राशि बिहार भाजपा के आपदा राहत कोष को लोगों ने सहृदयता दिखाते हुए डोनेट किया. खास बात यह कि भाजपा संगठन की यह त्वरित कवायद बिहार सरकार और प्रशासन की बाढ़ के दौरान राहत सहायता गतिविधियों से अलग थी.

यही नहीं, बिहार के बाढ़ग्रस्त इलाकों के खासकर निकटवर्ती जिलों एवं अन्य दूर-दराज के जिलों से भी भाजपा संगठन ने राहत सामान से भरी सैकड़ों की संख्या में गाड़ियां भेजी गयी हैं.

बाढ़ प्रभावित इलाकों में सहायता के लिए हजारों कार्यकर्ता इन इलाकों में राहत-कार्य में भागीदारी निभाने गये. इस बार के बाढ़ में बिहार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री सहित सभी मंत्रीगण बाढ़ग्रस्त इलाकों का लगातार जायजा लेकर जनहित में प्रशासन को लगातार निर्देशित करने में लगे रहे. प्रधानमंत्री मोदी ने बाढ़ की स्थिति की जानकारी होते ही बिहार के बाढ़ पीड़ितों के लिए सेना एवं एनडीआरएफ की टीम, राहत एवं रसद सामग्री को वायुसेना के जहाज एवं हेलीकॉप्टर की सहायता से अविलंब प्रभावित इलाकों में भिजवाया.

यही नहीं, प्रधानमंत्री ने बाढ़ग्रस्त इलाकों का दौरा करने के बाद बिहार को 500 करोड़ रुपये की तत्काल राहत की घोषणा के अलावा बाढ़ में हताहत हुए लोगों के परिजनों के लिए 2 लाख और घायलों के लिए 50 हजार रुपये की सहायता की घोषणा की थी, जो बिहार सरकार द्वारा हताहत हुए लोगों के लिए 4 लाख की सहायता के अलावा है.

29 अगस्त, 2017 को बिहार कैबिनेट की बैठक में बाढ़ पीड़ितों के अनुदान के लिए 1,935 करोड़ रुपये की घोषणा की गयी है. इसके अलावा प्रधानमंत्री के निर्देश पर केंद्रीय टीम अलग-अलग समूहों में बिहार में बाढ़ से नुकसान की क्षति-पूर्ति और जरूरतों का आकलन कर सहयोग करने की प्रक्रिया में लगी है.

जैसे-जैसे बाढ़ का पानी कम हो रहा है, बिहार के बाढ़ प्रभावित इलाकों में माहौल अब ठीक हो रहा है. लेकिन, लोगों के घर-परिवार, अन्न, पशुधन आदि की क्षति-पूर्ति का आकलन व भरपाई होने के बाद आम जनजीवन के व्यवस्थित होने में जरूर वक्त लगेगा. बिहार की वर्तमान राजनीति में जुबानी जंग और सरकार-प्रशासन की गतिविधियों से परे जाकर बिहार भाजपा संगठन की जन-सरोकार की कवायद प्रभावित करनेवाली है.

आज के सूचना क्रांति वाले प्रचार युग में सत्ता में मौजूद किसी भी राजनीतिक दल के संगठन का जमीन से जुड़कर काम कर पाना चुनौती है, जो बिहार में भाजपा की नयी रणनीति का हिस्सा भी है. निःसंदेह ऐसे ही नये तेवर और कलेवर से राजनीति की संस्कृति बदलती है, जिस पर चलना आज किसी भी राजनीतिक दल के लिए आसान नहीं है.

जाहिर सी बात है कि बिहार के आगामी चुनावों में जनता सरकार के कामकाज को ध्यान में तो रखेगी ही, पार्टी संगठनों का जमीनी धरातल पर जन-सरोकार भी वोट को खासा प्रभावित करेगा, जिसके अभियान में भाजपा अभी से जुट गयी है.

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