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शक्ति-सुख की प्रदाता हैं दुर्गा

तरुण विजय पूर्व सांसद, भाजपा हमेशा सुनता रहा कि जिसने बंगाल में दुर्गा पूजा नहीं देखी, उसने क्या भारत देखा! पर वस्तुत: इस बार चमत्कार यह हुआ कि 26 सितंबर की सुबह एक मित्र ने कहा वह बारिशाल (बांग्लादेश) दुर्गा पूजा के लिए जा रहा है. मन में तरंग उठी. कोलकाता से खुलना होते हुए […]

तरुण विजय
पूर्व सांसद, भाजपा
हमेशा सुनता रहा कि जिसने बंगाल में दुर्गा पूजा नहीं देखी, उसने क्या भारत देखा! पर वस्तुत: इस बार चमत्कार यह हुआ कि 26 सितंबर की सुबह एक मित्र ने कहा वह बारिशाल (बांग्लादेश) दुर्गा पूजा के लिए जा रहा है. मन में तरंग उठी. कोलकाता से खुलना होते हुए ढाका की पूजा देखी जाये. बांग्लादेश उच्चायुक्त सैयद मुअज्जम अली को इमेल भेजा.
वे पुराने मित्र हैं. बारह बजे उनका फोन आया- शुभो पूजा! जरूर आइये. वीजा हो गया, रात्रि कोलकाता उड़ान का टिकट बनावाया मध्य रात्रि 1:30 बजे तक पहुंच भी गया. पूरा कोलकाता जागा हुआ था, मानो सारी दुनिया बंगाल में शक्ति पूजा के रूप देखने उमड़ आयी हो. स्त्री, पुरुष, बच्चे सब पैदल और हर तरह के वाहनों पर.
इस बार विशेषकर बाहुबली थीम वाली दुर्गा पूजा का पंडाल खास आकर्षण का केंद्र था. शत्रु हारे, आततायी का अंत हो, मर्यादा की प्रतिष्ठा के बाद जन-जन धनधान्य से परिपूर्ण आनंदमय सुखमय जीवन बिताये, यही मां दुर्गा के महिषासुरमर्दिनी रूप का संदेश है. इसी स्वरूप को करोड़ों लोग हर साल बार-बार देखना चाहते हैं. उसे पूजते हैं, क्योंकि शक्ति का वही रूप हमारे लिए रक्षा-कवच तथा खुशियों का वाहक है.
बंगाल दस दिन सोता नहीं. सुरक्षित, निर्भय हिंदू परिवार रातभर एक पूजा मंडप से दूसरे में जाते हैं. एक क्षेत्र के बड़े दो-चार मंडप देखने में ही सात-आठ घंटे लग जाते हैं. इस दिन कोई दायरा नहीं, भेद नहीं. एक-एक मंडप कला, प्राचीन तथा आधुनिक सौंदर्यबोध, मुक्त प्रयोगधर्मिता, कल्पना और अध्यात्म के अनोखे मिलन का अद्भुत नजारा प्रस्तुत करता है.
यह मुक्तता और उदारदम्य कलाधर्मिता ही सांस्कृतिक हिंदू समाज का ऐसा वैशिष्ट्य है, जो अन्यत्र पाया ही नहीं जाता. कोलकाता अपने उच्च श्रेणी के दुर्गा पंडालों के लिए विश्वविख्यात है, लेकिन इन पंडालों के बाहर और उनकी ओर जानेवाले मार्गों पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के शासन में हिंदुओं ने जेहादी मुसलमानों के भीषण आघात सहे, उन्होंने मुहर्रम के दिन दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर प्रतिबंध तक लगाया, मानो हिंदू भारत में नहीं, बल्कि सऊदी अरब में रह रहे हों. क्या दुर्गा पूजा के दिन वे मुहर्रम पर प्रतिबंध लगाने का भी सोच सकती थीं? भला हो सर्वोच्च न्यायालय का जिसने वह शासनादेश रद्द कर दिया.
गंतव्य तक पहुंचते-पहुंचते साढ़े तीन बज गये थे. बॉर्डर पर बांग्लादेश से हिंदू मित्र लेने आ रहे थे. भारत के सीमा क्षेत्रों को मैं राष्ट्रीय पावन तीर्थ मानता हूं. अपना तिरंगा, सीमा सुरक्षा बल के चुस्त जवान, सीमा पार करते स्वदेशी-विदेशी एक रोमांच देते हैं. यहां हमारे जवानों ने स्वागत किया.
पर बांग्लादेश की सीमा में वहां के स्वागत कक्ष तथा वातावरण ज्यादा कलात्मक है. भव्य स्तंभों पर रबींद्रनाथ ठाकुर और काजी नजरुल इस्लाम के संयुक्त चित्र मन आनंदित कर गये. सीमा शुल्क कार्यालय के बाहर हिंदू धार्मिक परंपरा के बाउल गायकों के चित्र हैं, जिन पर लिखा है- बांग्लादेश : सांस्कृतिक धाराओं की भूमि. एक स्तंभ पर शेख मुजीबुर्रहमान और शेख हसीना वाजिद के प्रस्तर पर उत्कीर्ण चित्र हैं.
भारत के सीमा आव्रजन, कस्टम और सीमा सुरक्षा बल के कार्यालयों में न तो भारत के राष्ट्रपति के चित्र हैं, न प्रधानमंत्री के. गंदगी अपार है. कम से कम हम बंगाल के सीमांत पर आनेवाले स्वदेशी-विदेशी अभ्यागतों को सुंदर, साफ और प्रेरक वातावरण तो दे ही सकते हैं.
जेस्सोर, कालीगंज, बालीशोर जैसे क्षेत्रों से मित्रगण गाड़ी लेकर आये हुए थे. उद्देश्य था बारह घंटे में बारह दुर्गा पूजा मंडप देखना. कोलकाता में हिंदू बहुसंख्या में हैं, वहां दुर्गा पूजा का अलग रूप होगा ही. पर बंगाल में हिंदू ब्राह्मण मुख्यमंत्री हिंदू समाज की धार्मिक आस्था पर मुस्लिम वोट बैंक के लिए आघात करते हुए भी हिंदू त्योहार का राजनीतिक फायदा उठाने से नहीं चूकतीं. बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, उन पर जमाते इस्लामी तथा अन्य जेहादी दल हमले करते हैं- वे कैसे दुर्गा पूजा मनाते हैं, यह जानने की इच्छा से मैं बांग्लादेश आया था.
पहली दुर्गा पूजा हमें जेस्सोर जिले के केरालकटा ठाकुर बाड़ी में देखने को मिली. सैकड़ाें हिंदू वहां एकत्र थे. मंदिर में दुर्गा सप्तशती का पाठ हो रहा है था, इस्कान द्वारा हरे कृष्ण आंदोलन साहित्य, बांग्ला शिल्प के सुंदर नमूने, माटी के लक्ष्मी, गणेश, दुर्गा, सरस्वती, शिव के चित्र और बांग्लादेशी क्रिकेट टीम के नायकों के चित्र भी थे.
बंगाल में नवरात्रों के समय यानी पूजा के त्योहार को भव्य और शानदार भोजन, मिष्ठान के साथ मनाते हैं- उत्तर भारतीयों की तरह व्रत नहीं रखते. उनके भोजन में ‘पोद्देर इलिश’ यानी पद्मा नदी (यहां गंगा को पद्मा कहते हैं) की हिलसा मछली बहुत चाव से परोसी जाती है. मैं तो देहरादून से आया उत्तर भारतीय- व्रत पर था. पर शाम में मैंने भी मां को प्रणाम कर निरामिष यानी दाल चावल और ‘लंका’ यानी हरी मिर्च के साथ भोजन किया और मिष्टी दोई खाया.
हम दिन भर और रात एक बजे तक विभिन्न दुर्गा उत्सवों में शामिल हुए- वह स्वयं में एक रोमांचक, आनंदी कथा है. सातखिरा के पास बहुत कठिन स्थिति में पूजा मंडप लगाकर आस्था का उत्सव मनाते डरे हुए, पीड़ित हिंदुओं से भी मिला.
दो दिन पहले ही उनका दुर्गा मंडप मुस्लिम कट्टरवादियों ने तोड़ा, शिव-दुर्गा की प्रतिमा ध्वस्त कर दी थी. भारत के हिंदू कभी यह महसूस ही नहीं कर पाते कि हिंसक और शत्रुतापूर्ण बहुसंख्यक इस्लामी समाज में हिंदुओं का हिंदुओं की तरह रहना कितना कठिन होता है. बांग्लादेश के हिंदुओं का कहना है कि उन्हें भारत में हिंदुओं पर जेहादी हमलों, मंदिरों के अपवित्रीकरण तथा पश्चिम बंगाल में हिंदू घरों के ध्वस्त होने के समाचारों पर विश्वास नहीं होता. हिंदू बहुसंख्यक भारत में हिंदू पर हमले होंगे, तो बांग्लादेश के हिंदुओं को कैसा लगेगा? ममता बनर्जी तथा अन्य सेकुलर हिंदू जब रोहिंग्या मुस्लिमों को वोटबैंक के लिए आश्रय प्रदान करते हैं, तो बांग्लादेशी हिंदू कहता है- क्या वे कभी बांग्लादेशी हिंदुओं की पीड़ा पर भी बोलते हैं?
बहरहाल बांग्लादेश के अनेक जिलों में दुर्गा पूजा के जो शानदार और भव्य रूप देखने को मिले, वह वहां के जेहादी तत्वों की घृणा तथा आक्रामकता के सामने हिंदुओं की धर्मनिष्ठा और अवामी लीग सरकार द्वारा हिंदुओं के प्रति रक्षा-भाव का परिणाम है.
दुर्गा शक्ति और सुख की प्रदाता हैं. दुर्गा अष्टमी और दशहरा सबको सुख-वैभव दे तथा आतंकवादी, जेहादियों के कहर से संपूर्ण उपमहाद्वीप के हिंदू मुक्त हों, तभी दुर्गा पूजा सार्थक होगी.

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