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जोखिम में दूरसंचार की कामयाबी

अजीत रानाडे सीनियर फेलो, तक्षशिला इंस्टीट्यूशन editor@thebillionpress.org भारत की दूरसंचार (टेलीकॉम) क्रांति ने पूरे विश्व की तारीफ हासिल की है. एक समय तो यह सबसे तीव्र गति से वृद्धि करने वाला विश्व में सबसे कम लागत का क्षेत्र था, जो सबको समावेशी विकास के अवसर प्रदान कर रहा था. एयरलाइंस या बिजली के मामले में, […]

अजीत रानाडे
सीनियर फेलो, तक्षशिला इंस्टीट्यूशन
editor@thebillionpress.org
भारत की दूरसंचार (टेलीकॉम) क्रांति ने पूरे विश्व की तारीफ हासिल की है. एक समय तो यह सबसे तीव्र गति से वृद्धि करने वाला विश्व में सबसे कम लागत का क्षेत्र था, जो सबको समावेशी विकास के अवसर प्रदान कर रहा था.
एयरलाइंस या बिजली के मामले में, सुदूरवर्ती इलाकों तक सेवाएं पहुंचाने हेतु सरकार को सेवाप्रदाताओं के लिए बाध्यकारी प्रावधान तय करने पड़ते हैं. मगर दूरसंचार के साथ उसे ऐसा नहीं करना पड़ता, जिसके लिए इस प्रावधान के अंतर्गत कर्णांकित सब्सिडी निधि बगैर उपयोग के बची ही रह गयी, क्योंकि उसकी जरूरत ही नहीं पड़ी. अब इस निधि का उपयोग डिजिटल इंडिया पहल के अंतर्गत सभी गांवों तक ऑप्टिक फाइबर संपर्क जोड़ने में किया जा रहा है.
भारत में दूरसंचार क्रांति वस्तुतः नीति-निर्माताओं एवं बिजनेस स्कूलों द्वारा अध्ययन के लिए एक चौंकानेवाला मामला प्रस्तुत करती है.
1990 के दशक के शुरुआती सालों से यह क्रांति मुख्यतः निजी क्षेत्र के निवेशों, उनकी उद्यमी ताकत तथा जोखिम लेने की तैयारी से ऊर्जा पाती रही है. काबिलेगौर है कि यह उपलब्धि उदारीकरण के शुरुआती सिलसिले में की गयी कुछ अहम भूलों के बावजूद प्राप्त की गयी, जिन्होंने दूरसंचार में निजी क्षेत्र को दिवालियेपन की कगार पर ही पहुंचा दिया.
यही वजह थी कि वर्ष 1999 में प्रधानमंत्री वाजपेयी नीत सरकार ने स्पेक्ट्रम के लिए तयशुदा फीस की जगह राजस्व-साझा मॉडल को अपनाया. इस कदम से यह उद्योग अचानक ही जी उठा तथा शब्दशः उड़ चला. फिर तो अगले एक दशक तक इसने सभी कीर्तिमान ध्वस्त करते हुए ग्राहकों, निवेशों की विराट वृद्धि के साथ ही उपयोग शुल्कों में उत्तरोत्तर तीव्र गिरावट दर्ज करायी.
मगर अभी इस क्षेत्र की स्थिति तथा इसका वित्तीय स्वास्थ्य इस गुलाबी तस्वीर के बिल्कुल उलट है. इस मैदान मे निजी क्षेत्र के तीन (रिलायंस जियो, एयरटेल एवं वोडाफोन आइडिया) तथा सार्वजनिक क्षेत्र के दो (बीएसएनएल एवं एमटीएनएल) प्रमुख किरदार मौजूद हैं, जबकि तीन प्रमुख निजी कंपनियां (एयरसेल, टाटा डोकोमो एवं आरकॉम) न सिर्फ बंद हो चुकी हैं, बल्कि पिछले डेढ़ वर्षों के दौरान लगभग एक लाख रोजगार भी छिन चुके हैं.
इस क्षेत्र की कुल ऋण राशि 7.5 लाख करोड़ रुपये की सीमा का स्पर्श कर रही है. दकियानूसी अनुमान से भी इस क्षेत्र का सालाना ब्याज भार 80 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा है, जो उसकी चालू आय से भी आगे निकल एक भीषण चिंता की वजह बन चुका है. खासकर निकट भविष्य में ही 5जी सेवाओं की शुरुआत के आलोक में अभी इस क्षेत्र में बड़े निवेशों की जरूरत है.
पर प्रति उपयोगकर्ता राजस्व (जो लाभदायकता का सर्वोत्तम संकेत है) सितंबर 2016 के 121 रुपये से घटकर दिसंबर 2018 में 70 रुपये मात्र रह गया है. यह एक और बात है कि इन अत्यंत नीची दरों की वजह से इंटरनेट के उपयोग में भारत विश्व में सौवें पायदान से भी नीचे के स्तर से छलांग लगा वर्तमान में विश्व के शीर्ष तीन किरदारों में शामिल हो चुका है, जहां कुल 1.1 अरब ग्राहकों में से 40 प्रतिशत अपने फोन में इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं.
इस क्षेत्र की वित्तीय मुश्किलों का मतलब यह है कि इसमें न सिर्फ भविष्य के निवेशों हेतु मुनाफे का टोटा है, बल्कि सरकार के राजकोषीय लाभ में भी तेज गिरावट हो रही है. सरकार को भुगतान किया गया राजस्व हिस्सा इस क्षेत्र के स्वर्णिम युग के एक लाख करोड़ रुपयों से वर्तमान में महज 30 हजार करोड़ रुपयों तक जा गिरा है.
ऐसी स्थिति में इस क्षेत्र के पास इसके अलावा और कोई उपाय शेष नहीं है कि वह लागतों, निवेशों, सेवाओं, एवं संभवतः ग्राहकों की तादाद में भी कटौती करने पर उतर जाये.
दूरसंचार डिजिटल भारत का आधार है. बैंकिंग, पूंजी बाजार एवं बीमा समेत संपूर्ण वित्तीय सेवाएं दूरसंचार की बुनियाद पर ही टिकी होती हैं. मनोरंजन, इ-गवर्नेंस, टेलीमेडिसिन, ऑनलाइन इ-कॉमर्स जैसी सभी अहम सेवाएं एक स्वस्थ तथा सबल दूरसंचार क्षेत्र पर आधारित हैं.
इसलिए, यह बहुत जरूरी है कि हम इस क्षेत्र को हद से ज्यादा जोखिम में न डालें. यह क्षेत्र पहले से ही 18 प्रतिशत की ऊंची जीएसटी दर के अलावा 30 हजार करोड़ रुपयों के उपयोग न किये गये बड़े इनपुट कर साख से युक्त है. दूरसंचार पर समग्र संचयी कराधान लगभग सिगरेट के ही समान है! इतनी ज्यादा अहमियत का एक क्षेत्र यकीनन ऐसे बर्ताव का हकदार तो नहीं.
जब अगले कुछ वर्षों में भारत पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, तो इस अर्थव्यवस्था का क्रमशः बढ़ता हुआ हिस्सा डिजिटल अर्थव्यवस्था से ही आयेगा. इसके हकीकत में बदलने के लिए दूरसंचार क्षेत्र का स्वस्थ तथा फायदेमंद होना आवश्यक है.
सरकारी विनियामकों, नीति निर्माताओं तथा वित्तप्रदाताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस क्षेत्र में आज की गलाकाट प्रतियोगिता और उपयोग दरों के निहायत ही गैरफायदेमंद हदों तक उतर आने से परे इसकी लाभप्रद वृद्धि का स्वस्थ मार्ग प्रशस्त हो सके. वरना वह दिन दूर नहीं, जब भारत की दूरसंचार कामयाबी के किस्से इसकी तवारीख के पन्नों में ही सिमट कर रह जायेंगे.
(अनुवाद: विजय नंदन)

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