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व्यवस्था को सुदृढ़ करने की जरूरत

II विराग गुप्ता II एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट viraggupta@hotmail.com कुछ महीने पहले ही सुप्रीम कोर्ट में पाॅक्सो मामलों में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि मौत की सजा से अपराधों का समाधान नहीं हो सकता है. उन्नाव और कठुआ रेप मामलों में देशव्यापी राजनीतिक असंतोष को भांपकर सरकार ने यू-टर्न लेते हुए 12 […]

II विराग गुप्ता II
एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
viraggupta@hotmail.com
कुछ महीने पहले ही सुप्रीम कोर्ट में पाॅक्सो मामलों में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि मौत की सजा से अपराधों का समाधान नहीं हो सकता है. उन्नाव और कठुआ रेप मामलों में देशव्यापी राजनीतिक असंतोष को भांपकर सरकार ने यू-टर्न लेते हुए 12 साल तक की बच्चियों से दुष्कर्म के दोषियों को फांसी की सजा के लिए अध्यादेश जारी कर दिया.
राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद अध्यादेश को तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया गया है, पर इसके प्रावधानों को छह महीने के भीतर संसद के माध्यम से कानून में बदलना होगा. विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति, पुलिस और अस्पतालों की व्यवस्था में सुधार तथा एकल खिड़की की स्थापना के लिए राज्यों को ही कार्रवाई करनी होगी. बच्चियों से दुष्कर्म मामलों की सुनवाई के लिए विशेष फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन के लिए संबंधित राज्य के हाइकोर्ट का अनुमोदन चाहिए होगा.
रेप से पीड़ित बच्चियों की सहायता के लिए चलाये जा रहे वन-स्टाॅप सेंटर की देश के सभी जिलों में स्थापना के प्रावधान व्यावहारिक धरातल पर कितना खरा उतरेंगे, इसका आकलन आनेवाले समय में ही होगा.
अनेक राज्यों ने मृत्युदंड के लिए पाॅक्सो कानून में संसोधन की बजाय सिर्फ आइपीसी में बदलाव के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजे थे. निर्भया कांड के बाद जस्टिस जेएस वर्मा कमेटी की सिफारिशों के अनुसार सरकार द्वारा कानून लाया गया था, लेकिन इस बार अध्यादेश के लिए विधि आयोग से भी आवश्यक परामर्श नहीं किया गया.
निर्भया मामले में भी देशव्यापी आक्रोश के बाद अपराध कानूनों में बदलाव करके रेप के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान किया गया था. एक अध्ययन के अनुसार, पाॅक्सो कानून के तहत दर्ज मामलों में अदालत के फैसलों के लिए औसतन 20 साल इंतजार करना पड़ सकता है. निर्भया मामले में एक आरोपी ने आत्महत्या कर ली, पर बाकी अभियुक्तों को अब भी फांसी मिलना बाकी है.
उन्नाव और कठुआ मामलों की हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाइयां हो रही हैं और दूसरी ओर निर्भया मामले के बाद दायर अनेक पीआइएल पर अभी तक फैसला ही नहीं हुआ है. निर्भया मामले के बाद प्रोमिला शंकर की पीआइएल में बहस के दौरान मैंने यौन अपराधियों के डाटाबेस बनाने की मांग की थी, जिसे इस अध्यादेश के माध्यम से छह साल बाद मंजूरी दी गयी है.
सख्त कानूनों के बावजूद, देश में हर 15 मिनट पर एक बच्चा यौन अपराध का शिकार होता है. निर्भया मामले में जनांदोलन के बाद सरकार बदलने के बावजूद दिल्ली में रेप मामलों में भारी बढ़ोतरी हुई है. रेप को रोकने की व्यवस्था पर बहस करने की बजाय स्वाति मालीवाल द्वारा मौत के कानून के लिए एक और राजनीतिक अनशन कितना कारगर होगा?
दिल्ली सरकार ने रेप के मामलों को रोकने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर कई लाख सीसीटीवी लगाने की योजना बनायी, परंतु रेप के 94 फीसदी मामलों में आरोपी परिचित, पड़ोसी या परिवार से जुड़े व्यक्तियों को सीसीटीवी से कैसे रोका जा सकता है? मासूम बच्चों से रेप करनेवाले अधिकांश आरोपी किशोर होते हैं, जिन्हें कानून के अनुसार मौत की सजा नहीं दी जा सकती.
निर्भया कांड के बाद यह साबित हुआ कि रेप मामलों के अधिकांशः आरोपी पोर्नोग्राफी तथा रेप वीडियो के आदी होते हैं. सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के बावजूद केंद्र सरकार इंटरनेट में पोर्नोग्राफी कंटेंट और वीडियो को रोकने में विफल रही है. छोटे बच्चों से यौन अपराधों की जांच के दौरान सबूतों को जमा करना पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है.
ऐसे मामलों में आरोपों को सिद्ध करने के लिए केवल पीड़ित का बयान और मेडिकल रिपोर्ट ही होती है. देश में फाॅरेंसिक लैब्स की बड़े पैमाने पर कमी है. कठुआ मामले में दो मेडिकल रिपोर्ट और रेप के प्रमाणों पर विवाद आनेवाले समय में ऐसे मामलों में कानून के दुरुपयोग को बढ़ावा दे सकता है.
दिल्ली में हालिया हुए घटनाक्रम में रेप मामले को दबाने के लिए माता-पिता ने आरोपी से 20 लाख का सौदा कर लिया. नेशनल लाॅ यूनिवर्सिटी, दिल्ली द्वारा किये गये अध्ययन के अनुसार, मृत्युदंड के मामलों में अधिकांश आरोपी गरीब और अशिक्षित होते हैं.
देश में बड़े पैमाने पर बच्चों की खरीद-फरोख्त के सौदागरों का गिरोह क्या आनेवाले समय में रेप के फर्जी मामलों को बढ़ावा नहीं देगा? सुप्रीम कोर्ट में दहेज उत्पीड़न तथा एससी-एसटी कानून के दुरुपयोग से बेजा गिरफ्तारियों को रोकने के लिए अनेक दिशा-निर्देश जारी किये, जिन पर अब कानूनी विवाद है. रेप के विरुद्ध अनेक सख्त कानून हैं, पर उनका पालन नहीं होता, इसलिए उन्नाव और कठुआ में कानून नहीं, बल्कि व्यवस्था विफल हुई है.
व्यवस्था को सुदृृढ़ करने की बजाय, सख्त कानून लाने से भ्रष्टाचार और मुकदमेबाजी के मामले बढ़ेंगे. नये अध्यादेश में अग्रिम जमानत के प्रावधान को निरस्त करने से क्या एक और उत्पीड़क कानून का सृजन किया जा रहा है?
भारत में मौत की सजा के सख्त प्रावधान के बावजूद उन अपराधों में कमी नहीं दिखती है. पिछले कई सालों में सिर्फ सात लोगों को फांसी हुई है, तो फिर फांसी की सजा के प्रावधान से रेप के बढ़ते मामलों पर कैसे लगाम लगेगी?

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