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‘मीटू’ का सही अर्थ

कुमार प्रशांत गांधीवादी चिंतक k.prashantji@gmail.com बीते दिनों मोदी सरकार के उस मंत्री का इस्तीफा हो गया, जिसका निष्कासन होना चाहिए था. जो काम जब अौर जिस तरह होना चाहिए, वह तभी अौर उसी तरह नहीं होता है, तो वह अर्थहीन भी हो जाता है अौर श्रीहीन भी. विदेश राज्यमंत्री मुबश्शिर जावेद अकबर (एमजे अकबर) का […]

कुमार प्रशांत
गांधीवादी चिंतक
k.prashantji@gmail.com
बीते दिनों मोदी सरकार के उस मंत्री का इस्तीफा हो गया, जिसका निष्कासन होना चाहिए था. जो काम जब अौर जिस तरह होना चाहिए, वह तभी अौर उसी तरह नहीं होता है, तो वह अर्थहीन भी हो जाता है अौर श्रीहीन भी. विदेश राज्यमंत्री मुबश्शिर जावेद अकबर (एमजे अकबर) का मामला जिस वक्त फूटा अौर उसे गंधाने के लिए जिस तरह छोड़ दिया गया, चालबाजियों, काइयांपने में लपेटकर जिस तरह उसका बचाव करने की कोशिश की गयी, जिस तरह अकबर के विदेश में होने को अाड़ बनाया गया अौर देर से स्वदेश लौटते ही जिस तरह अौर जिस तेवर से अकबर ने उन सारी कभी की अपनी सहकर्मी महिलाअों पर जुबानी हमला किया, जरा कोई बताये कि उससे किसे क्या हासिल हुअा?
क्या प्रधानमंत्री की निजी अौर सरकारी छवि में रत्तीभर नैतिक इजाफा हुअा? क्या अकबर की अपनी छवि थोड़ी भी धुल सकी? क्या सत्ता के ऊंचे अासनों पर किसी संयोगवश पहुंच गये लोगों को यह सारा प्रकरण थोड़ा भी सावधान कर सका?
क्या किसी में भी पश्चाताप का कोई भाव, किसी स्तर पर भी जागा? चालाकी अौर काइयांपने का यह दांव इस बार सफल नहीं हो सका, तो अगली बार ज्यादा चालाकी अौर काइयांपने से काम करेंगे, यही भाव सर्वत्र बना. विदेश में कायर चुप्पी साधे अौर यहां पहुंचते ही दहाड़ती धमकी देते अकबर को जैसे ही संकेत मिला कि अब उनका सरकारी कवच वापस लिया जा रहा है, वे भीगी बिल्ली की तरह गायब हो गये. क्या इससे अकबर की शान बढ़ी?
हम इसी तस्वीर का रुख जरा बदलकर देखें. जैसे ही अकबर पर यह अारोप लगा, वहीं विदेश से ही अकबर ने कहा होता कि मैं अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री को भेजता हूं (क्योंकि वे जानते थे; अौर जानते हैं कि जो कुछ कहा जा रहा है, वह सही है- भले वे उसे तब भी अौर अब भी गलत न मानते हों) अौर प्रधानमंत्री कहते कि अकबर भारत के कूटनीतिक प्रतिनिधि बनकर विदेश गये हैं, सो हम उन्हें तत्काल प्रभाव से बर्खास्त नहीं करते हैं, लेकिन भारत की धरती पर पांव रखते ही वे मंत्री नहीं रह जायेंगे, तो क्या संदेश जाता?
अचानक ही संबंधों का यह जो बदबूदार परनाला बहा दिया गया है, वह सहम जाता. दूसरे सारे बेपर्दा अपराधी सर झुकाकर पीछे हट जाते अौर ‘मीटू’ की ताकत स्थापित हो जाती! गैरतहीन राजनीति का यह जो दौर देश में चलाया गया है, उसे धक्का लगता अौर मोदी सरकार के सारे विवेकशून्य भोंपू ठिठक जाते.
राजनीतिक, अार्थिक, लोकप्रियता अादि की शक्ति से मत्त हुई यह भीड़ सहम जाती. लेकिन, जब राजनीति ‘उमा भारती ब्रांड’ हो कि जो सार्वजनिक तौर पर पूछ सकने की निर्लज्जता रखती हो कि यौनशोषण जब किया था अकबर ने, तब वे मंत्री थोड़े ही थे कि अाज हम उन्हें उसकी सजा दें, तो फिर जो हुअा वही ठीक हुअा.
‘मीटू’ अब महज एक शब्दभर नहीं है, एक नया सहचारी भाव हमारे जमाने में दाखिल हुअा है. इसका मतलब यही नहीं है कि लड़कियां अागे अाकर बताएं कि कब, कहां, कैसे, किसने उनका यौनशोषण किया.
मीटू का यह भी अर्थ है कि हम पुरुष अागे अाकर कहें कि अपनी नासमझी में, शक्ति के अपने उन्माद में, लड़कियों का सही मतलब नहीं समझने अौर मर्द होने का गलत मतलब समझने के कारण अाज या कल या बीस बरस पहले मैंने ऐसी गर्हित हरकत की थी, जिसकी माफी मांगने अौर उसकी सजा भुगतने के लिए मैं सामने अाता हूं. यह हुअा मीटू का पूरा सांस्कृतिक मतलब! यह चूंकि पश्चिम से चलकर हमारे यहां अाया है इसलिए इतना एकांगी अौर सपाट बना दिया गया है. इसे पुरुषों की पहल से परिपूर्ण कर हम पश्चिम को वापस भेजें, तो उन्हें भारतीय संदर्भ की समझ होगी.
हमें समझना यह है कि गलत क्या है? क्या स्त्री-पुरुष के बीच का अाकर्षण गलत है? क्या किसी के लिए मन में प्यार का उमड़ना गलत है?
अाकर्षण में फिसल जाना भी स्वाभाविक नहीं है क्या? फिसलन किसकी तरफ से हुई, यह फिसलनेवालों के बीच का मामला है, हमारे लिए यह जानना काफी होना चाहिए कि फिसलन हुई. फिसलनेवाले को हाथ बढ़ाकर उठाते हैं, न कि गड्ढे में ढकेलते हैं. जो ढकेले वह समाज नहीं है, विवेकहीन भीड़ है. दो वयस्क स्त्री-पुरुष या दो वयस्क स्त्रियां या पुरुष अापसी सहमति व रजामंदी से, निजी जीवन में जो भी रिश्ता बनाते व चलाते हैं, उसमें दखल देने का अधिकार किसी का भी नहीं है.
धारा 497 को समाप्त करते हुए अदालत ने भी तो यही कहा न कि यह अधिकार उसका भी नहीं है.यह सारी बात पलट जाती है, जब इसमें जबर्दस्ती का तत्व जुड़ जाता है- िफर वह जबर्दस्ती तख्त की हो कि तिजोरी की, या तलवार की. नाना पाटेकर या ऐसे ही दूसरे सब नानाअों को लगता है कि वे लोकप्रियता से मिली अपनी ताकत को तलवार बना लें अौर फिर जो चाहें करें. फिल्मी दुनिया तो टिकी ही इसी खोखली ताकत के सहारे है न! अापसी सहमति व इकरार से जिये जा रहे जीवन में कुछ भी अनैतिक नहीं होता है.
अगर उसमें कुछ भी अनैतिक या असभ्य या अमानवीय हुअा, तो वह दोनों में से किसी को, कभी भी नीचे गिराता हुअा, अपमानित करता हुअा लगेगा ही अौर उसी दिन उस अस्वस्थ रिश्ते का अंत हो जायेगा. मीटू अगर स्त्री अौर पुरुष में इतना विवेक जगाता हो, तो तमाम अकबरों को हम शहीद का दर्जा दे देंगे.

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