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प्यार का उत्कृष्ट संस्करण

श्रीप्रकाश शर्मा प्राचार्य, जवाहर नवोदय विद्यालय, मामित spsharma.rishu@gmail.com चीन की एक बहुत पुरानी लोक गाथा है. कहते हैं कि किसी समय वहां संयोग से तीन नेत्रहीन दोस्तों की मुलाकात हुई. उन दोस्तों में आपस में बातें होते-होते यह चर्चा चल पड़ी कि इस धरती पर हाथी बड़ा ही विचित्र जीव होता है. किंतु तत्क्षण ही […]

श्रीप्रकाश शर्मा
प्राचार्य, जवाहर नवोदय विद्यालय, मामित
spsharma.rishu@gmail.com
चीन की एक बहुत पुरानी लोक गाथा है. कहते हैं कि किसी समय वहां संयोग से तीन नेत्रहीन दोस्तों की मुलाकात हुई. उन दोस्तों में आपस में बातें होते-होते यह चर्चा चल पड़ी कि इस धरती पर हाथी बड़ा ही विचित्र जीव होता है. किंतु तत्क्षण ही वे तीनों यह सोचकर उदास हो गये कि दुर्भाग्यवश नेत्रहीनता के कारण वे सभी मित्र हाथी को देख नहीं सकते हैं.
कहा जाता है कि ठीक उसी समय उस रास्ते से एक व्यापारी अपने हाथियों के झुंड के साथ गुजर रहा था. इन तीनों नेत्रहीन दोस्तों की बातों को उस व्यापारी ने सुन लिया और उसने कहा, ‘तुम लोग नाहक परेशान हो रहे हो. तुम्हें आंखें ना हुईं तो क्या हुआ, मैं तुम्हें हाथी को देखने में मदद करूंगा, फिर तुम लोग खुद जान जाओगे कि हाथी कैसा जानवर होता है.’
तीनों नेत्रहीन व्यापारी के साथ चल पड़े. हाथी के ठहरने की जगह पर वे सभी रुक गये. सभी ने बारी-बारी से हाथी के विभिन्न अंगों को स्पर्श किया. पहले ने हाथी के दोनों पावों को स्पर्श किया तथा अपने मित्रों से कहा है कि हाथी तो बिना शाखाओं वाला पेड़ सरीखा है. दूसरे ने सूंड़ को थाम लिया और उसे सांप समझने की गलती कर बैठा. तीसरे ने कान छुआ और हाथ से हवा करनेवाला पंखा समझ बैठा. तीन मित्र, हाथी एक और निष्कर्ष तीन, पर तीनों निष्कर्ष हकीकत से कोसों दूर.
सच पूछिये तो ‘प्यार’ के बारे में व्याप्त गलतफहमी इस कहानी की दुविधा से कम विचित्र नहीं है. भाव एक, उद्गार एक, लहर एक, तरंग एक, संवेदना एक और प्यार करनेवाले लोग अलग-अलग. और उनके प्यार के प्रति दृष्टिकोण भी बिलकुल भिन्न-भिन्न.
क्या आपने कभी किसी गूंगे से पूछा है कि गुड़ का स्वाद कैसा होता है? वह बेचारा गूंगा कभी भी गुड़ के मिठास को शब्दों में अभिव्यक्त नहीं कर पाता है.
गुड़ के मिठास के एहसास को महज उसकी आंखों में ही पढ़ा जा सकता है, उसके चेहरे के भाव-भंगिमाओं में ही महसूस किया जा सकता है. सच्चे प्यार का एहसास भी किसी गूंगे के इसी गुड़ के मिठास की तरह मन में घुलता रहता है, जिसे न तो शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है और न ही उपहारों का रूप दिया जा सकता है.
क्या आपने कभी शीतल मंद बयार के झोंके को देखा है? फूलों में व्याप्त खुशबू को भी किसी ने नहीं देखा है. आम्र मंजरियों की खुशबू मन को सराबोर कर देती है.
कुदरत की ये सभी नेमतें सिर्फ महसूस की जा सकती हैं. फिर प्यार के बारे में क्या कहा जा सकता है? क्या प्यार का कोई रंग-रूप तथा आकार होता है? भ्रमर तथा मकरंद से भरे फूलों के मध्य कशिश को क्या नाम देंगे आप? आग की लौ की तरफ अनायास खींचनेवाले पतंगों में समर्पण के भाव को क्या कहेंगे आप? अपनी मां को देखकर एक शिशु के नैसर्गिक मुस्कान के भाव में छुपे मातृत्व तथा ममता के भाव को किन शब्दों में अभिव्यक्त किया जा सकता है?
कहते हैं प्यार त्याग होता है. प्यार बलिदान होता है. प्यार समर्पण होता है. तो एक बड़ा प्रश्न यह उठता है कि मानव के दिल में उठनेवाले इन अंतर्निहित भावों को हम सामनेवाले की आंखों में तैर रहे भावों में क्यों नहीं पढ़ पाते हैं?
कहा जाता है कि जो एहसास लबों पर आते-आते रुक जाये, वही एहसास सच्चा और वही प्यार पवित्र होता है. प्यार को अभिव्यक्त करने के लिए जब किसी शब्द तथा उपहार के सहारे की जरूरत पड़ने लगे, तो निश्चित तौर पर यह मानिये कि आज तक हमने प्यार में छुपे तिलिस्म को समझने में बड़ी भूल की है.
जिस प्यार को उपहार तथा नाम देने की आवश्यकता होने लगे, उसे हम कुछ और तो कह सकते हैं, लेकिन प्यार बिल्कुल नहीं कह सकते हैं. सोने-चांदी के तराजू पर तौले गये दिलों के वे अनमोल भाव प्यार कम व्यापार अधिक होते हैं.
प्यार का जो एहसास आंखों के कोर में टिक जाता है और बाहर निकलने में वह शब्दों की विवशता का शिकार हो जाता है, तो समझिये कि वही सच्चा प्यार है.
जिस वैश्वीकृत दुनिया के रंगीन आधुनिक माहौल में आज हम जी रहे हैं, उसमें यह स्वीकार करने में हमें कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि हम पश्चिमी सभ्यता, मॉडर्न लाइफ स्टाइल तथा हाइब्रिड संस्कृति का आंख मूंदकर अनुसरण कर रहे हैं, और इसके फलस्वरूप हमारे दर्शन, दस्तूर तथा सोच के ढंग में युगांतकारी तब्दीलियां आयी हैं. सूचना क्रांति के इस संक्रमण काल में प्यार-मुहब्बत की अभिव्यक्ति में भी अजीबो-गरीब परिवर्तन हुए हैं.
सुर्ख लाल गुलाब के फूलों, चॉकलेटों तथा महंगे उपहारों के आदान-प्रदान के चलन में प्यार की अभिव्यक्ति की आत्मा का दम घुटता जा रहा है. भावों की स्वाभाविकता की खूबसूरती खत्म-सी होती जा रही है तथा इसी के साथ आगाज हो रहा है तथाकथित प्यार को खरीदने के मीना बाजार का.
इस सर्वविदित दुनियावी सत्य से कदाचित इनकार नहीं किया जा सकता है कि विपरीत लिंगियों के प्रति आधुनिक प्यार का भाव दैहिक आकर्षण होता है, जिसमें मन की सात्विकता तथा व्यवहार की लोकधार्मिकता का नितांत अभाव होता है.
आज आवश्यकता इस बात की है कि उस तन के आकर्षण में तथा प्यार की अभिव्यक्ति में मन के भटकाव को रोका जाये और अश्लील हरकतों में तथाकथित सच्चे प्यार को प्रदर्शित करने की बजाय प्यार के उस उत्कृष्ट संस्करण की तलाश की जाये, जहां तन से तन के मिलन की बजाय मन से मन के मिलन के जादू से पूरी कायनात सराबोर हो जाये.

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