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भारत-चीन कारोबार का परिदृश्य

डॉ जयंतीलाल भंडारी अर्थशास्त्री jlbhandari@gmail.com दुनिया के अर्थशास्त्री भारत-चीन कारोबार के संबंध में दो बातें रेखांकित कर रहे हैं. एक, पिछले दो दशक में पहली बार वित्त वर्ष 2018-19 में चीन के साथ भारत के व्यापार घाटे में कमी आना भारत के विदेश व्यापार के लिए अच्छा है. दो, चीन ने भारत के साथ द्विपक्षीय […]

डॉ जयंतीलाल भंडारी
अर्थशास्त्री
jlbhandari@gmail.com
दुनिया के अर्थशास्त्री भारत-चीन कारोबार के संबंध में दो बातें रेखांकित कर रहे हैं. एक, पिछले दो दशक में पहली बार वित्त वर्ष 2018-19 में चीन के साथ भारत के व्यापार घाटे में कमी आना भारत के विदेश व्यापार के लिए अच्छा है.
दो, चीन ने भारत के साथ द्विपक्षीय कारोबार की अहमियत को गहराई से समझा है. यही कारण है कि भारत द्वारा चीन के ओबीओआर प्रोजेक्ट का बहिष्कार करने की घोषणा के बाद चीन के विदेश ने 19 अप्रैल को कहा कि चीन भारत के साथ एक विशेष सम्मेलन आयोजित करके दोनों देशों के कारोबार संबंधों को गतिशील करने का प्रयास करेगा.
हाल में प्रकाशित भारत-चीन व्यापार के आंकड़ों के मुताबिक, 2018-19 में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार करीब 88 अरब डॉलर रहा. यह बात महत्वपूर्ण है कि पहली बार भारत, चीन के साथ व्यापार घाटा 10 अरब डॉलर तक कम करने में सफल रहा है.
भारत का व्यापार घाटा करीब 52 अरब डॉलर रहा. पिछले कई वर्षों से चीन के साथ लगातार छलांगे लगाकर बढ़ता हुआ व्यापार घाटा भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया था. चीन के बाजार तक भारत की अधिक पहुंच और अमेरिका व चीन के बीच चल रहे मौजूदा व्यापार युद्ध के कारण पिछले वर्ष भारत से चीन को निर्यात बढ़कर 18 अरब डॉलर पर पहुंच गया, जो वर्ष 2017-18 में 13 अरब डॉलर था. चीन से भारत का आयात भी 76 अरब डॉलर से कम होकर 70 अरब डॉलर रह गया.
वर्तमान में चीन भारतीय उत्पादों का तीसरी बड़ा निर्यात बाजार है. वहीं चीन से भारत सबसे ज्यादा आयात करता है. दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार 2018-19 में बढ़कर करीब 88 अरब डॉलर पर पहुंच गया. चीन से भारत मुख्यत: इलेक्ट्रिक उपकरण, मेकेनिकल सामान, कार्बनिक रसायनों आदि का आयात करता है. वहीं भारत से चीन को मुख्य रूप से, खनिज ईंधन और कपास आदि का निर्यात किया जाता है.
पिछले एक दशक के दौरान चीन ने भारतीय बाजार में तेजी से अपनी पैठ बढ़ाई और अपने सामान का प्रवाह लगातार बढ़ाया, लेकिन 2018-19 में पहली बार चीन से होनेवाले आयात में कमी आयी. अब अप्रैल 2019 में चीन के साथ द्विपक्षीय कारोबार में व्यापार घाटे को कम करने के लिए भारत ने 380 उत्पादों की सूची चीन को भेजी है, जिनका चीन को निर्यात बढ़ाया जा सकता है. इनमें मुख्य रूप से बागवानी, वस्त्र, रसायन और औषधि क्षेत्र के उत्पाद शामिल हैं.
देश और दुनिया के अर्थशास्त्रियों का मत है कि वर्ष 2018 की शुरुआत से ही जहां भारत व चीन के बीच अधिक कारोबार की संभावनाएं बढ़ती गयीं, वहीं भारत से चीन को निर्यात बढ़ने और भारत का चीन के साथ व्यापार असंतुलन कम होने का नया परिदृश्य भी दिखायी दिया है. वर्ष 2018 में भारत-चीन के बीच ऐसी महत्वपूर्ण वार्ताएं हुईं, जिसने भारत से चीन को निर्यात बढ़ाने तथा भारत-चीन के बीच व्यापार असंतुलन कम करने में प्रभावी भूमिका निभायी है.
वहीं, 27 मई, 2018 को भारत ने चीन के सॉफ्टवेयर बाजार का लाभ उठाने के लिए वहां दूसरे सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) गालियारे की शुरुआत की. आईटी कंपनियों के संगठन नैसकॉम ने कहा कि चीन में दूसरे डिजिटल सहयोगपूर्ण सुयोग प्लाजा की स्थापना से चीन के बाजार में घरेलू आईटी कंपनियों की पहुंच बढ़ गयी.
एक ओर भारत द्वारा व्यापार घाटा कम करने के लिए चीन से वाणिज्य वार्ता को आगे बढ़ाना होगा, वहीं दूसरी ओर इस समय चीन के बाद भारत के लिए दुनिया का नया कारखाना बनने का जो मौका दिखायी दे रहा है, उसे पकड़ना होगा. भारत के पास कुशल पेशेवरों की फौज है. आईटी, सॉफ्टवेयर, बीपीओ, फार्मास्युटिकल्स, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक, केमिकल्स एवं धातु क्षेत्र में दुनिया की जानी-मानी कंपनियां हैं, आर्थिक व वित्तीय क्षेत्र की शानदार संस्थाएं हैं.
इसलिए अब भारत के विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत बनाना होगा. भारत को दुनिया का नया कारखाना बनने के लिए युवाओं के कौशल विकास, ऊंचे उत्पादन स्तर तथा विकास की तेज रफ्तार पर ध्यान देना होगा. शैक्षणिक दृष्टि से पीछे रहनेवाले युवाओं को कौशल विकास से प्रशिक्षित करना होगा और उन्हें रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रमों से शिक्षित करना होगा.
चीन से मुकाबला करने के लिए भारत को कम लागत पर गुणवत्तापूर्ण उत्पादन करनेवाले देश के रूप में पहचान बनानी होगी. हमें अपनी बुनियादी संरचना में व्याप्त अकुशलता एवं भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करना होगा. चीन की तरह भारत को भी गुड गवर्नेंस की स्थिति बनानी होगी.
प्रतिस्पर्धा में सतत सुधार तथा वित्तीय मानदंडों के प्रति जवाबदेही पर ध्यान देना होगा. भारत में बुनियादी ढांचे और महंगे ऋण के अलावा कारोबारी माहौल, श्रम की बढ़ती लागत और लॉजिस्टिक के मोर्चे पर दिक्कतों को दूर करना होगा. हम आशा करें कि वर्ष 2018-19 में भारत का निर्यात बढ़ने और भारत में चीन से आयात घटने का जो परिदृश्य उभरा है, वह आगामी वर्षों में भी जारी रहेगा.
आशा करें कि जब चीन ओबीओआर प्रोजेक्ट पर आगे बढ़कर दुनिया के डेढ़ सौ देशों को संगठित करके अपनी कारोबारी ताकत बढ़ा रहा है, तब भारत भी ओबीओआर से दूरी बनाकर अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया के साथ अपनी कारोबारी ताकत को मजबूत करेगा तथा चीन के बाजार में गुणवत्तापूर्ण भारतीय उत्पादों के निर्यात को बढ़ायेगा.

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