26 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

अपरिपक्वों को किनारे करें मोदी

प्रभु चावला एडिटोरियल डायरेक्टर द न्यू इंडियन एक्सप्रेस prabhuchawla @newindianexpress.com दूरी परिप्रेक्ष्य देती है, फिर विश्लेषण और प्रवृत्ति की प्राप्ति होती है. पिछले सप्ताह महाराष्ट्र ने एक विचित्र राजनीतिक गठबंधन देखा और उसके बाद मुंबई में औद्योगिक कुलपिता राहुल बजाज का चिड़चिड़ा वक्तव्य आया. तृणमूल कांग्रेस ने उपचुनाव में तीन बड़ी जीत हासिल कर मृत्युलेख […]

प्रभु चावला
एडिटोरियल डायरेक्टर
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस
prabhuchawla
@newindianexpress.com
दूरी परिप्रेक्ष्य देती है, फिर विश्लेषण और प्रवृत्ति की प्राप्ति होती है. पिछले सप्ताह महाराष्ट्र ने एक विचित्र राजनीतिक गठबंधन देखा और उसके बाद मुंबई में औद्योगिक कुलपिता राहुल बजाज का चिड़चिड़ा वक्तव्य आया. तृणमूल कांग्रेस ने उपचुनाव में तीन बड़ी जीत हासिल कर मृत्युलेख लिखनेवालों को हैरान कर दिया.
अचानक वातावरण में बदलाव की गंध पसर गयी, जिसने भय- कथित या वास्तविक- से ताजा छुटकारा का संकेत दिया. सर्वज्ञाता प्रख्यात लोगों ने घोषित कर दिया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का करिश्मा व नियंत्रण कमजोर पड़ रहे हैं. महाराष्ट्र के लज्जाजनक प्रयोग ने निःसंदेह यह सिद्ध किया है कि केंद्र की पकड़ पहले जैसी नहीं है.
बंगाल में भाजपा की अपमानजनक हार ने उसकी घटती लोकप्रियता को इंगित किया है. बजाज के शाब्दिक हमले में तिहरा निशाना था, जिसने सत्ता की तिकड़ी- गृह मंत्री, वित्त मंत्री और वाणिज्य मंत्री- को फटकार दिया. इसने भारत के दुबके हुए कॉरपोरेट जगत को हौसला दिया है.
फिर भी उनकी आवाज एक अकेली आवाज है. यही बात उपचुनाव के नतीजों के साथ है. हालांकि ऐसी घटनाएं नेता के संस्थागत प्राधिकार पर शायद ही असर डालती हैं, पर उसके सर्वज्ञ और अचूक होने के बारे में संदेह पैदा कर देती हैं तथा सत्ता के कथित अहंकार के विरुद्ध लोगों के क्रोध को प्रतिबिंबित करती हैं.
बंगाल के लालदुर्ग सह धर्मनिरपेक्षता के दायित्वहीन ठीहे से लोकसभा में 18 सीटें जीतने के बाद से भाजपा उत्साह में है. विधानसभा चुनाव में एक साल से कुछ ही अधिक समय बचा है. ऐसे में तृणमूल की भारी जीत ने भगवा अहं में सुराख कर दिया है. इससे इंगित होता है कि छह माह में ही लोग भाजपा से दूर जा रहे हैं. इसने धन, बल व लोगों की ताकत को झोंक दिया था. वरिष्ठ केंद्रीय नेता राज्य में जरूरत से ज्यादा रह रहे थे.
भाजपा के दिल्ली से थोपे हुए सौम्य शहरी प्रचारकों का ग्रामीण बंगाल से अनभिज्ञ होना इस झटके का एक कारण हो सकता है. पार्टी का वृहत संख्याबल स्वाभाविक और गतिशील सांगठनिक वृद्धि का परिणाम नहीं है.
बड़े पैमाने पर दलबदल और देशभर से जुटाये गये कथित बांग्लाभाषी अभिमानी बुद्धिजीवियों की रैलियों के कारण पार्टी बड़ी दिखने लगी है. मोदी-शाह के मंत्र का जाप मतदाताओं को भरोसे में नहीं ले सका. द्वितीय श्रेणी के भाजपा नेताओं व पार्टी में अभी आये लोगों के अभिमान और अज्ञान से ऐसी स्थिति पैदा हुई, जिसे टाला जा सकता था.
पिछले सप्ताह मुंबई के एक सम्मेलन में, जहां धनिक व ताकतवर लोग जुटे थे, ऐसा ही तनावपूर्ण असंतोष अभिव्यक्त हुआ. वहां जुटे लोग देश के सकल घरेलू उत्पादन का 40 फीसदी से ज्यादा पैदा करते हैं, लेकिन उनमें नीतियों या माहौल के बारे में खुले तौर पर बोलने के साहस की कमी थी.
प्रधानमंत्री और वरिष्ठ मंत्रियों तक सहज पहुंच न होने के कारण वे परिणामों व भय के बारे में गुपचुप रूप से ही बोलते रहे, कभी खुलेआम कुछ नहीं कहा. बजाज ने इस नियम को बिना लाग-लपेट के यह कहते हुए तोड़ दिया कि ‘हमारा कोई भी औद्योगिक मित्र इसके बारे में नहीं बोलेगा, लेकिन मैं यह साफ तौर पर कहूंगा…
आप अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद, हमें यह भरोसा नहीं है कि अगर हम खुलेआम आपकी आलोचना करेंगे, तो आप इसे पसंद करेंगे.’ साफ तौर पर भारत के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण पद पर बैठे शाह के उत्तर में उनके तेवर से अलग नरमी थी- ‘मैं नहीं समझता कि आपके सवाल पूछने के बाद कोई विश्वास करेगा कि लोग डरे हुए हैं.’ उन्होंने आगे कहा कि ‘किसी चीज से डरने की जरूरत नहीं है और अगर आप कह रहे हैं कि ऐसा माहौल है, तो हमें इसे बेहतर बनाने के लिए कोशिश करने की जरूरत है.’
यह भरोसा अगले ही दिन टूट गया, जब भाजपा ने बजाज को ट्रोल करना शुरू कर दिया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ट्वीट किया कि ऐसी बातों से राष्ट्रीय हित को नुकसान पहुंचा सकता है. पार्टी और सरकार के उनके सहकर्मियों का भी रवैया ऐसा ही था, जिससे संकेत गया कि नेतृत्व आलोचना को बर्दाश्त करने की मनःस्थिति में नहीं है. अपने विरोधियों पर सीधे बोलने से प्रधानमंत्री परहेज करते हैं.
पिछले सप्ताह मनमोहन सिंह ने पहले ही बजाज की भावनाओं को अभिव्यक्त किया था, जब उन्होंने कहा था कि ‘हमारे विभिन्न आर्थिक सहभागियों में गहन भय और अविश्वास है’. मोदी या उनकी पार्टी ने सिंह के इस हमले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
मोदी के प्रशंसक महसूस करते हैं कि या तो उन्हें गलत सूचनाएं दी जाती हैं या जमीनी सच्चाई से उन्हें अंधेरे में रखा जाता है, जिसकी वजह से उनके भरोसे और प्रभाव में कमी आयी है. उदाहरण के लिए, मोदी-शाह को महाराष्ट्र के विफल अभियान के लिए दोष दिया जा रहा है.
न केवल मोदी को राज्य सरकार के टिकाऊ न होने और कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस में टूट होने के बारे में अविश्वसनीय रिपोर्ट दी गयी, बल्कि उन्हें एक विशेष कानून को इस्तेमाल करने और भोर में राष्ट्रपति को जगाने के लिए उकसाया भी गया, ताकि राष्ट्रपति शासन को हटाकर शपथ दिलायी जा सके. न केवल प्रधानमंत्री कार्यालय और गृह मंत्रालय द्वारा राष्ट्रपति को दी गयी रिपोर्ट सही नहीं निकली, बल्कि इसने नौकरशाही की स्थिति पर भी गंभीर सवाल खड़ा किया है.
वित्तीय रूप से महत्वपूर्ण महाराष्ट्र को गंवाने से इस संक्रामक सोच को भी मजबूती मिली है कि भाजपा अपने राज्यों को बचाने में अक्षम है. बीते छह साल में कई जीतों के बावजूद वह राजस्थान व छत्तीसगढ़ भी गंवा चुकी है. उसे तेलंगाना व आंध्र प्रदेश में भी कुछ हासिल नहीं हुआ. उसने कर्नाटक में दलबदल से सत्ता पायी है. हरियाणा की सरकार भी चुनाव बाद गठबंधन से बन सकी. झारखंड, बिहार, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु के आगामी चुनाव में भी जीत पर संदेह है.
ब्रांड मोदी की अपराजेयता और हार को जीत में बदलने की विशेषता रखनेवाले शाह के रणनीतिक दमखम को बरबाद करने के लिए विपक्ष प्रयासरत है. फडणवीस और खट्टर मोदी के अपने चुने लोग थे, जिन्होंने उन्हें निराश किया है. राज्य-स्तर पर मजबूत नेतृत्व के अभाव में विपक्ष मोदी शक्ति को काटता-छांटता रहेगा, ताकि उनके उस महल को गिराया जा सके, जिसे उन्होंने अपने वचन और संकल्प से बनाया है. नये समूह के लिए कोलकाता और मुंबई शुरुआती छिलके हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें