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प्रचंड गर्मी और बढ़ता जल संकट, देश के 10 राज्यों में तापमान 44 डिग्री से पार

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in इन दिनों आसमान से जैसे आग बरस रही है. एक ओर तो प्रचंड गर्मी का प्रकोप है, तो दूसरी ओर हमारे गांव, कस्बे और शहर पानी की कमी से जूझ रहे हैं. चापाकल सूखने लगे हैं. कूपों का जल स्तर गिर गया है. गर्मी के साथ-साथ पेय […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
इन दिनों आसमान से जैसे आग बरस रही है. एक ओर तो प्रचंड गर्मी का प्रकोप है, तो दूसरी ओर हमारे गांव, कस्बे और शहर पानी की कमी से जूझ रहे हैं. चापाकल सूखने लगे हैं. कूपों का जल स्तर गिर गया है. गर्मी के साथ-साथ पेय जल का भारी संकट भी उत्पन्न हो गया है.
इन दिनों लगभग आधा देश प्रचंड गर्मी की चपेट में है. देश के 10 राज्यों में तापमान 44 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया है.
इनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र के अनेक शहर शामिल हैं. राजस्थान के श्रीगंगानगर में पारा 49.6 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया, जो 75 साल का सर्वाधिक तापमान है. इससे पहले वहां 30 मई, 1944 को अधिकतम तापमान 49.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था. राजस्थान के ही चुरू में तापमान 48.5 और बीकानेर में 46.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. मौसम विभाग को राजस्थान के 27 जिलों में तीन दिन के लिए रेड अलर्ट जारी करना पड़ा है.
झारखंड में भी कई इलाकों में गर्मी चरम पर है. पलामू और गढ़वा जिलों में पारा 46 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया. उधर, बिहार में भी गर्मी का प्रकोप जारी है. पटना, गया और भागलपुर सहित कई शहर तपते रहे. पटना में अधिकतम तापमान ने मई माह के तीन साल के रिकॉर्ड को तोड़ दिया. पटना का तापमान 43.6 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा, जबकि गया का तापमान 44.2 डिग्री सेल्सियस रहा. मौसम विभाग के आंकड़े के अनुसार बिहार में पिछले तीन सालों में मई महीने में इतनी गर्मी नहीं पड़ी थी.
उप्र में प्रयागराज में तापमान 48 के पार पहुंच गया. वाराणसी में 46 डिग्री तापमान को पार कर गर्मी ने कई वर्षों का रिकाॅर्ड तोड़ दिया. राजधानी दिल्ली में 46.8 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया, जो पिछले कई वर्षों का अधिकतम तापमान है. दक्षिण भारत के तेलंगाना में लू और भीषण गर्मी से 22 दिनों में 17 लोगों की मौत हो चुकी है.
मौसम विभाग का अनुमान है कि इस बार तापमान पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ सकता है. दूसरी ओर इस बार मॉनसून कमजोर है और एक हफ्ते देरी से छह जून तक केरल पहुंचेगा. इसके बाद ही राहत मिलने की उम्मीद है. मान लें कि यह प्राकृतिक आपदा है, पर इसमें हमारा-आपका भी योगदान है. हमने जंगल उजाड़ दिये और उनकी जगह क्रंकीट के जंगल खड़े कर दिये. उसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
कुछ समय पहले जलवायु परिवर्तन को लेकर एक चेतावनी सामने आयी थी. नासा के मुताबिक, 2018 में वैश्विक तापमान 1951 से 1980 के औसत तापमान से 0.83 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा. 1880 के बाद से धरती की सतह का औसत तापमान तकरीबन एक डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है.
नासा का कहना है, यह गर्मी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन, ग्रीनहाउस गैसों और पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ के कारण उत्पन्न हुई है. जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने इस समस्या को गंभीर कर दिया है. जो कार्बन डाइऑक्साइड पेड़ पौधे सोख लेते थे, वह अब वातावरण में घुल रही है.
दूसरी ओर, ब्रिटिश मौसम वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगले पांच साल पिछले 150 वर्षों के मुकाबले सर्वाधिक गर्म रहेंगे. 2014 से 2023 के दशक में पांच साल सर्वाधिक गर्म रहने के आसार हैं. आपने यदि गौर किया हो कि पिछले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मियां लंबी और सर्दियां छोटी होती जा रही हैं. इसका सीधा असर खेती-किसानी पर पड़ता है. पैदावार में कमी आ जाती है.
इधर, कम बारिश और प्रचंड गर्मी के कारण जलस्तर तेजी से नीचे खिसक रहा है. चापाकलों से पानी निकलना बंद हो गया है. बड़ी संख्या में आहर, नहर, पोखर, तालाब और कुएं सूख रहे हैं.
समस्या कम वर्षा की ही नहीं है, जल संचयन की भी है. मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में पिछले 13 वर्षों से औसत बारिश 800 मिमी से थोड़ी अधिक हो रही है, जबकि डेढ़ दशक पहले 1200 से 1500 मिमी बारिश होती थी. बारिश में कमी होने से सिंचाई व पेयजल के लिए ग्राउंड वाटर पर निर्भरता बढ़ी है.
साथ ही कम बारिश होने से जमीन के अंदर कम पानी जा रहा है. बिहार के 19 जिले- बेगूसराय, भोजपुर, बक्सर, पूर्वी चंपारण, गया, गोपालगंज, जहानाबाद, कटिहार, मधेपुरा, मुजफ्फरपुर, नालंदा, नवादा, पटना, पूर्णिया, समस्तीपुर, सारण, सीतामढ़ी, सीवान और वैशाली क्रिटिकल जोन में हैं यानी इन जिलों में भूजल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है. कमोबेश यही स्थिति झारखंड की भी है. झारखंड में औसतन 1400 मिलीमीटर बारिश होती है, जो किसी भी पैमाने पर अच्छी बारिश मानी जायेगी, पर बारिश का पानी बह कर निकल जाता है, उसके संचयन का कोई उपाय नहीं है. इसके कारण जल संकट उत्पन्न हो रहा है.
कुछ समय पहले केंद्रीय जल आयोग ने जलाशयों के गिरते जलस्तर पर चिंता व्यक्त की थी. पिछले एक दशक में जलाशयों में औसत जल संग्रहण में 20% की कमी आ गयी है. हमने तालाबों को पाट दिया है. शहरों में उनके स्थान पर बहुमंजले अपार्टमेंट्स खड़े हो गये हैं. दो दशक पहले तक बिहार में लगभग ढाई लाख तालाब थे, पर आज इन की संख्या घट कर लगभग 90 हजार रह गयी है.
डेढ़ लाख के अधिक तालाबों का अस्तित्व समाप्त हो गया. नतीजा यह हुआ कि शहरों का जलस्तर तेजी से घटने लगा. साथ ही हमने जल संरक्षण के उपाय करने जाने कब के छोड़ दिये हैं. बस्ती के आसपास तालाब, पोखर आदि बनाये जाते थे, पर हमने तालाब मिटा दिये और जल संरक्षण का काम छोड़ दिया. जहां पानी उपलब्ध है, वहां हम उसके इस्तेमाल में सावधानी नहीं बरतते हैं, उसे फिजूल में बहाते हैं. शहरों में यह समस्या अधिक गंभीर है. मौजूदा परिस्थिति में यह अपराध से कम नहीं है.
मौजूदा जल संकट तो हमारी-आपकी देन है और अब भी अगर हम नहीं चेते, तो वह दिन दूर नहीं कि पानी के लिए हम सब लाइन में खड़े नजर आयेंगे. महाराष्ट्र में तो यह स्थिति आ गई है. राज्य के ज्यादातर हिस्सों में भूजल नहीं है और वहां टैंकरों के माध्यम से पानी पहुंचाया जा रहा है. मौजूदा मंत्रिमंडल के गठन में मोदी सरकार ने नये जल शक्ति मंत्रालय सृजित कर एक अच्छी पहल की है. इस मंत्रालय की जिम्मेदारी राजस्थान के गजेंद्र सिंह शेखावत को कैबिनेट मंत्री बना कर सौंपी गयी है.
ऐसे वक्त में, जब लगभग पूरा देश पानी की कमी की समस्या से जूझ रहा है, जल शक्ति मंत्रालय और मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की चुनौती बड़ी है. इस समस्या का कोई अल्पकालिक समाधान नहीं है. जल संचयन के माध्यम से कमी से निबटने के दीर्घकालिक उपाय करने होंगे. साथ ही लोगों को पानी की बर्बादी रोकने और जल संचयन के प्रति जागरूक बनाना होगा.

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