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कट्टरता की चपेट में श्रीलंका

डॉ गुलबिन सुल्ताना रिसर्चर, आईडीएसए gulbin.sultana@gmail.com बीते 21 अप्रैल को ईस्टर के मौके पर श्रीलंका में गिरजाघरों और होटलों को निशाना बनाकर दहशतगर्दों ने कई बम धमाके किये. सैकड़ों लोगों की जान चली गयी और अनेक घायल हुए. हालांकि, एक आत्मघाती की पहचान की गयी है, लेकिन अभी ठोस जानकारियों का पता चलना बाकी है. […]

डॉ गुलबिन सुल्ताना
रिसर्चर, आईडीएसए
gulbin.sultana@gmail.com
बीते 21 अप्रैल को ईस्टर के मौके पर श्रीलंका में गिरजाघरों और होटलों को निशाना बनाकर दहशतगर्दों ने कई बम धमाके किये. सैकड़ों लोगों की जान चली गयी और अनेक घायल हुए. हालांकि, एक आत्मघाती की पहचान की गयी है, लेकिन अभी ठोस जानकारियों का पता चलना बाकी है.
दुनिया के लिए नासूर बन चुका आइएस ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है. धमाकों के बाद भी जिस तरह से भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद किये गये, उससे यह किसी छोटे आतंकी समूह का काम नहीं लग रहा था. जांच अब भी चल रही है और कई चीजों को लेकर सिर्फ अनुमान ही लगाये जा रहे हैं. हमले के बाद दरअसल, श्रीलंका सरकार ने यह आशंका जतायी थी कि इस घृणित कार्य में वहां के एक स्थानीय संगठन नेशनल तौहीद जमात का हाथ हो सकता है.
इस उग्रवादी संगठन पर श्रीलंका सरकार काे इसलिए शक लाजमी भी है, क्योंकि काफी पहले (बीते 4 अप्रैल को ही) श्रीलंका की आधिकारिक सुरक्षा एजेंसी को इस संबंध में खूफिया सूचना मिली थी कि कोई ऐसा हमला हो सकता है. भारत ने भी श्रीलंका को अतिरिक्त सावधानी बरतने के लिए कहा था और आशंका जाहिर की थी कि कोलंबो में अवस्थित भारतीय दूतावास पर हमला हो सकता है.
तमाम खूफिया सूचनाओं और एलर्ट के बाद भी इतना बड़ा हमला हो गया और सैकड़ों लोग मारे गये, तो निश्चित रूप से यह एक बड़ी सुरक्षा चूक कही जा सकती है.
इससे यह बात तो जाहिर है कि श्रीलंकाई अधिकारियों ने इस एलर्ट को गंभीरता से नहीं लिया होगा और शायद सोचा भी नहीं होगा कि इस तरह कई जगहों पर इतने बड़े-बड़े हमले हो सकते हैं. हालांकि, जरा-सी खुफिया सूचना पर भी उन्हें तैयार हो जाना चाहिए था और ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा व्यवस्था को मुस्तैद कर देना चाहिए था. क्योंकि सूरक्षा में चूक का मतलब ही है कि हम कई महत्वपूर्ण जिंदगियों से हाथ धो बैठेंगे.
श्रीलंका में मुस्लिमों की आबादी आठ-नौ प्रतिशत के करीब है. श्रीलंकाई मुसलमान उग्र नहीं होते, इन्हें वहां काफी उदारवादी स्वभाव का माना जाता है. लेकिन, बीते कुछ समय से जिस तरह से पूरे दक्षिण एशिया में कट्टरता बढ़ रही है, जगह-जगह कुछ लोग उग्रवाद का सहारा लेने लगे हैं.
श्रीलंका भी इससे अछूता नहीं रहा है और हाल के वर्षों में कुछ लोगों के आइएस में जाने की भी खबरें आयीं. लेकिन यह संख्या दशमलव में है. श्रीलंका में धार्मिक समुदायों के आपसी नोकझोंक के बावजूद कट्टरता कम रही है, लेकिन वहां पर अगर नेशनल तौहीद जमात जैसे संगठनों का उभार हो रहा है, तो यह समझनेवाली बात है कि वहां भी आतंकवाद ने अपनी जड़ें जमानी शुरू कर दी हैं.
हालांकि, इस संगठन के बारे में भी किसी के पास कोई ज्यादा जानकारी नहीं है कि आखिर इसका काम क्या है. करीब तीन साल पहले श्रीलंका सरकार को इसकी जानकारी मिली थी. दरअसल, उन दिनों श्रीलंका में मुस्लिमों और बौद्धों के बीच तनाव के मामले आते रहे हैं. उस दौरान नेशनल तौहीद जमात ने कुछ बौद्ध स्मारकों को निशाना बनाया था, सिवाय इसके इस संगठन ने किसी हिंसात्मक कार्य को अंजाम नहीं दिया था. इसलिए सरकार ने इसे लेकर कोई सक्रियता नहीं दिखायी.
किसी भी बड़े हमले के बाद वहां के स्थानीय छोटे-बड़े कट्टर संगठनों की ओर उंगली उठती है कि उनका हाथ हो सकता है. लेिकन, हमारे शोध यह कहते हैं कि एक स्थानीय संगठन तब तक इतने बड़े हमले को अंजाम नहीं दे सकते, जब तक कि उसके पीछे किसी बड़े अंतरराष्ट्रीय संगठन का हाथ न हो. स्थानीय स्तर पर किसी छोटे संगठन द्वारा आत्मघाती हमले की संभावना बहुत ही कम मानी जाती है.
अगर एकबारगी यह मान भी लिया जाये, जैसा कि श्रीलंका की सरकार ने आशंका जतायी थी, कि नेशनल तौहीद जमात ने ही हमला किया होगा, तो भी यह समझना मुश्किल है कि इतने बड़े हमले का जो स्वरूप है, उसे इस छोटे से संगठन ने कैसे तैयार किया?
इसलिए नेशनल तौहीद जमात को लेकर यह संदेह बलवती होती है कि किसी बड़े अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन ने इसके कंधे पर बंदूक रखकर चलायी होगी. और अब आइएस के जिम्मेदारी ले लेने के बाद यह बात साबित भी हो गयी है. दरअसल, श्रीलंका में स्थानीय उग्रवादी संगठन आपस में भले एक-दूसरे से लड़-भिड़ लेते हैं, लेकिन वहां की पुलिस व्यवस्था से वे कभी टकराव मोल नहीं लेते हैं. इस बात की अपनी कुछ वजहें जरूर होंगी, जिसका अध्ययन से ही पता चल पायेगा.
यहां एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि श्रीलंका में बीते सालों में बौद्धों और मुस्लिमों के बीच तनाव चल रहा था. लेकिन, हमला हुआ गिरजाघरों और होटलों में, वह भी ईसाइयों के पर्व ईस्टर के दिन. इसलिए सवाल उठ रहा था कि श्रीलंका में कोई मुस्लिम संगठन गिरजाघरों पर हमला क्यों करेगा?
गिरजाघर ईसाइयों से संबंधित है, तो वहीं उन होटलों में ज्यादातर विदेशी नागरिक मौजूद थे. विदेशी नागरिकों में सबसे ज्यादा भारत के नागरिक इस हमले में हताहत हुए हैं.
तो मीडिया में आयी खबर के मुताबिक, इसका जवाब यह निकलकर आया है कि जिम्मेदारी लेते हुए आइएस ने न्यूजीलैंड में हुए मस्जिद में हमले का बदला लिया गया है. हालांकि, श्रीलंका सरकार ने इंटरपोल की मदद भी मांगी है और कई अन्य देशों ने भी मदद की पेशकश की है. इसकी बड़ी जांच जरूरी है, क्योंकि तब और भी कई बातें दुनिया के सामने आयेंगी.

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