36.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

वैश्विक पटल पर दम दिखाता भारत

डॉ अश्वनी महाजन एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू ashwanimahajan@rediffmail.com हाल में आयोजित जी-20 सम्मेलन में डेटा के मुक्त प्रवाह के संबंध में अमेरिका, जापान एवं अन्य विकसित देशों के दबाव को दरकिनार करते हुए भारत ने इस संबंध में कोई बातचीत न करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि देशहित के मामलों में वह कोई समझौता नहीं […]

डॉ अश्वनी महाजन

एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू

ashwanimahajan@rediffmail.com

हाल में आयोजित जी-20 सम्मेलन में डेटा के मुक्त प्रवाह के संबंध में अमेरिका, जापान एवं अन्य विकसित देशों के दबाव को दरकिनार करते हुए भारत ने इस संबंध में कोई बातचीत न करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि देशहित के मामलों में वह कोई समझौता नहीं करेगा. यह भारत की उभरती ताकत का भी प्रदर्शन है.

गौरतलब है कि विकसित देश दबाव बना रहे थे कि भारत डेटा के मुक्त प्रवाह हेतु सहमति देते हुए इस समझौते पर आगे बढ़े. लेकिन भारत ने दो टूक यह स्पष्ट कर दिया कि व्यापार के मसलों पर तो बातचीत हो सकती है, लेकिन जहां तक डेटा के मुक्त प्रवाह जैसे मुद्दे हैं, उन्हें भारत माननेवाला नहीं है.

गौरतलब है कि आज गूगल, फेसबुक, व्हाॅट्सएप जैसी कंपनियां ही नहीं, कई विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां भी विभिन्न प्रकार की निजी एवं व्यावसायिक जानकारियां (डेटा) भारत में न रखते हुए, विदेशी सर्वरों में रखती हैं. यदि वर्तमान व्यवस्था जारी रहती है, तो डेटा पर इन कंपनियों का ही स्थायी अधिकार हो जायेगा.

कुछ दिन पहले जब अमेरिकी विदेश मंत्री माईक पॉम्पियो भारत आये, तो माना जा रहा था कि यह भारत पर अमेरिका का दबाव डालनेवाला कदम है.

लेकिन पॉम्पियो बिना किसी कड़वी बात किये भारत-अमेरिका के प्रगाढ़ रिश्तों की बात करके वापस चले गये.

पिछले कुछ समय से भारत ने इन विदेशी कंपनियों पर दबाव बनाया हुआ है कि इस डेटा को भारत में रखें और उसे बाहर न ले जायें. विदेशी पेमेंट एवं कार्ड कपंनियों पर भारतीय रिजर्व बैंक ने शर्त लगायी है कि वे अपना डेटा 24 घंटे के भीतर भारत में वापस लायें. इसी प्रकार गूगल समेत अन्य प्लेटफाॅर्मों का भी डेटा भारत में रखने के लिए आदेश दिये जा रहे हैं.

प्रस्तावित ई-कॉमर्स पाॅलिसी में भी डेटा का महत्व समझते हुए, विदेशी ई-कॉमर्स कपंनियों पर शिकंजा कसने की तैयारी हो रही है कि वे अपने ग्राहकों का तमाम डेटा भारत में ही रखें, ताकि वह डेटा अन्य भारतीय ई-कॉमर्स एवं अन्य फर्मों को एक समान उपलब्ध हो सके और प्रतियोगिता में किसी फर्म को इसलिए फायदा न हो पाये कि उसके पास डेटा है. भारत का यह रुख अमेरिका को विचलित कर रहा है, क्योंकि इससे उसकी कंपनियों के एकाधिकार को चुनौती मिल रही है.

पिछले काफी समय से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीन के अलावा भारत के साथ भी व्यापार युद्ध छेड़ते हुए हैं. भारत काफी संयम रखे रहा.

शायद इसे भारत की कमजोरी समझा गया. लेकिन जब अमेरिका ने 5 जून, 2019 को भारत से ‘जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज’ (जीएसपी) वापस लेने की घोषणा की, तो भारत ने भी जवाबी कार्यवाही करने का फैसला ले लिया और 20 जून, 2019 को 1.4 अरब डाॅलर मूल्य के अमेरिकी सामानों पर टैरिफ बढ़ाकर संदेश दे दिया कि वह अमेरिका की अनुचित कार्रवाइयों का समुचित जवाब देने में सक्षम है.

गौरतलब है कि जीएसपी के तहत अमेरिका प्राथमिकता के आधार पर भारत के कुछ उत्पादों पर शून्य या अत्यंत कम आयात शुल्क लगाता रहा है. हालांकि, जीएसपी हटाने की चर्चा होती रही है, जबकि भारत के अमेरिका के कुल निर्यातों (83.2 अरब डाॅलर) में जीएसपी द्वारा प्रभावित निर्यात मात्र 5.6 अरब डाॅलर के ही हैं. इसके समाप्त होने के बाद भी ये निर्यात बहुत अधिक प्रभावित होनेवाले नहीं हैं. हालांकि जीएसपी हटाने का कूटनीतिक एवं सांकेतिक महत्व जरूर था.

पिछले कुछ समय से ईरान के तेल बेचने पर अमेरिका ने एकतरफा प्रतिबंध लगाये हुए हैं. यह अमेरिकी दादागिरी की रणनीति का उदाहरण है. गौरतलब है कि बैंकिंग व्यवस्था पर अमेरिकी दबदबे के कारण, अमेरिका की मर्जी के खिलाफ, बैंक लेन-देन कठिन है. अमेरिका हमेशा अपनी कंपनियों के हित साधन के लिए काम करता है और दूसरे देशों की सरकारों पर दबाव बनाता रहता है.

भारत में कई अमेरिकी कंपनियां काम करती हैं, जिनके कार्यकलाप भारतीय हितों के अनुरूप नहीं हैं. कुछ समय पहले अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाया था कि वह अपने पेटेंट कानूनों में बदलाव कर अमेरिकी फार्मा कंपनियों को पेटेंट अवधि के बाद भी उसकी दवा कंपनियों को दोबारा पेटेंट करने की अनुमति दे. अमेरिका यह भी दबाव बना रहा था कि भारत अपने कानूनों में बदलाव कर बीज, पादप और जीवन के भी पेटेंट को अनुमति दे.

अमेरिका को नहीं भूलना चाहिए कि उसके आर्थिक एवं सामरिक हितों की दृष्टि से भारत एक महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था है. अमेरिका द्वारा भारत को निर्यात करनेवाली एक बड़ी मद पेट्रोलियम तेल और गैस है, जो 4.5 अरब डाॅलर के बराबर है, जिसके बढ़ने की संभावना है. दूसरी तरफ अमेरिका द्वारा भारत को अगले सात सालों में 300 बोईंग विमान बेचे जाने हैं, जिनकी कुल लागत 39 अरब डाॅलर है. इसके अतिरिक्त अमेरिका से बड़ी मात्रा में रक्षा सौदे भी हो रहे हैं. इसलिए आनेवाले वर्षों में अमेरिका के साथ व्यापार का सरप्लस घाटे में बदल सकता है.

जब पोखरण विस्फोट के समय अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगा दिये थे, तो भारत ने उसकी परवाह तक नहीं की थी. आज भी भारत व्यापार व्यापार युद्ध अथवा अमेरिकी प्रतिबंधों की धमकियों में आनेवाला नहीं है. अमेरिका अगर भारत के ईरान से तेल खरीदने के संकल्प, रूस से एस-400 मिसाइल की खरीद और भारत द्वारा व्यापार अवरोधों के नाम पर भारत पर विशेष तहकीकात जैसे फैसले लेता है, तो उसे समझना पड़ेगा कि इससे भारत झुकनेवाला नहीं है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें