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फेक न्यूज के दौर में विश्वसनीय हैं अखबार

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in इन दिनों सोशल मीडिया पर फेक न्यूज की भरमार है. यह भेद कर पाना बेहद कठिन है कि कौन-सी खबर सच है, कौन-सी खबर फर्जी है. व्हाट्सएप के दौर में सुबह से शाम तक खबरों का आदान प्रदान होता है और पता ही नहीं चलता कि कितनी […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
इन दिनों सोशल मीडिया पर फेक न्यूज की भरमार है. यह भेद कर पाना बेहद कठिन है कि कौन-सी खबर सच है, कौन-सी खबर फर्जी है. व्हाट्सएप के दौर में सुबह से शाम तक खबरों का आदान प्रदान होता है और पता ही नहीं चलता कि कितनी तेजी से फेक न्यूज के आप शिकार हो गये और आपने उसे आगे बढ़ा कर कितने और लोगों को प्रभावित कर दिया. एक और मुश्किल है कि इसके स्रोत का पता ही नहीं चलता है. यह फॉरवर्ड होती हुई आप तक पहुंचती है.
फेक न्यूज की समस्या इसलिए भी बढ़ती जा रही है कि देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है. चुनावी मौसम में तो इनकी बाढ़ आ गयी है. अभी भारत की 27 फीसदी आबादी यानी लगभग 35 करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं. चीन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोग भारत में हैं.
हाल में ऐसी कई खबरें आयीं हैं, जब लोगों को गुमराह करने वाली खबरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गयीं. हाल में फेसबुक, ट्विटर और वॉट्सएप पर हेमामालिनी की दो तस्वीरें वायरल हुई थीं. एक में वह हेलीकॉप्टर से उतरती हुई दिख रही हैं और दूसरी में खेत में गेहूं की फसल काट रही हैं.
दोनों तस्वीरों के साथ वायरल था कि ‘मोदी जी पर गर्व है. महिला किसानों को हेलीकॉप्टर दिये जा रहे हैं, जिससे वे खेत तक पहुंच रही हैं.’ पड़ताल में पाया गया कि ये दोनों तस्वीरें इस साल की नहीं हैं. हेलीकॉप्टर वाली तस्वीर 2015 की है और दूसरी तस्वीर 2014 की. दोनों तस्वीरों को मिला कर फेक तस्वीर तैयार की गयी.
इन दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें एक व्यक्ति कांग्रेस और राहुल गांधी की कड़ी आलोचना करता दिखाई दे रहा है.
दावा किया जा रहा है कि व्यक्ति वाराणसी संसदीय क्षेत्र से पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के प्रत्याशी अजय राय हैं, जबकि यह सही नहीं है. पड़ताल में पता चला कि यह वीडियो भोपाल के कारोबारी अनिल बूलचंदानी का है.
कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया में एक और खबर जोर-शोर से चली थी कि अगर कोई वोट नहीं डालेगा, तो उसके बैंक अकाउंट से 350 रुपये कट जायेंगे. प्रमाण के रूप में अखबार की एक फेक न्यूज नत्थी कर दी गयी थी. इस फेक न्यूज ने अनेक लोगों को विचलित कर दिया. बाद में स्पष्टीकरण आया कि ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है. सोशल मीडिया पर पिछले दिनों एक और पोस्ट वायरल हुई थी, जिसमें कहा जा रहा था कि पहली जून से सभी बैंक हर शनिवार को बंद रहेंगे.
दावा किया जा रहा था कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने सभी बैंकों को सिर्फ पांच दिन काम करने की मंजूरी दे दी है. बैंकों के कामकाज का समय सोमवार से शुक्रवार तक समय सुबह 9:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक रहेगा. इस फेक न्यूज को एक न्यूज चैनल की ब्रेकिंग न्यूज के रूप में पेश किया गया था. बाद में आरबीआइ को इसका खंडन करना पड़ा.
ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनमें फेक न्यूज को तथ्यों के आवरण के साथ लपेट कर पेश किया गया, ताकि आम व्यक्ति उस पर भरोसा कर ले. इनके अलावा ऐसी भी खबरें फैलायी जाती रही हैं, जिनसे जातिगत और धार्मिक वैमनस्यता फैलने का खतरा उत्पन्न हो गया है. ऐसी कई घटनाएं हैं, जिनमें सोशल मीडिया की खबर ने इलाके में तनाव फैला दिया है. दरअसल, भारत सोशल मीडिया कंपनियों के लिए एक बड़ा बाजार है. विभिन्न स्रोतों से मिले आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में व्हाट्सएप के एक अरब से अधिक सक्रिय यूजर्स हैं. इनमें से 16 करोड़ भारत में ही हैं.
फेसबुक इस्तेमाल करने वाले भारतीयों की संख्या लगभग 15 करोड़ है और ट्विटर अकाउंट्स की संख्या 2 करोड़ से ऊपर है. लगभग 40 करोड़ भारतीय आज इंटरनेट सेवाओं का लाभ उठा रहे हैं. हमें करना यह चाहिए कि कोई भी सनसनीखेज खबर की एक बार जांच अवश्य करें. मैं जानता हूं कि यह करना आसान नहीं है. इससे कैसे निबटा जाए, यह अपने आप में बड़ी चुनौती है.
दूसरी ओर अखबारों की ओर नजर दौड़ाएं. आज भी ये सूचनाओं के सबसे विश्वसनीय स्रोत हैं. अखबार अपनी छपी खबर से पीछे नहीं हट सकता है.
अखबार की खबरें काफी जांच पड़ताल के बाद प्रकाशित की जाती हैं. अखबारों के खिलाफ एकतरफा फैसला सुनाने वाले आपको बहुत-से लोग मिल जायेंगे, लेकिन यह भी जानना जरूरी है कि पत्रकार कितनी कठिन परिस्थितियों में अपने काम को अंजाम देते हैं.
कुछ समय पहले श्रीनगर में राइजिंग कश्मीर के संपादक शुजात बुखारी की आतंकवादियों ने गोली मार कर हत्या कर दी. त्रिपुरा में पिछले साल दो पत्रकारों की हत्या कर दी गयी थी. बेंगलुरु में गोरी लंकेश की हत्या तो चर्चित रही ही है. मप्र के भिंड इलाके में रेत माफिया और पुलिस का गठजोड़ उजागर करने पर एक पत्रकार को ट्रक से कुचल कर मार दिया गया था. यह कोई दबा-छुपा तथ्य नहीं है कि मीडियाकर्मियों को कई तरह के दबावों का सामना करना पड़ता है. इसमें राजनीतिक और सामाजिक, दोनों दबाव शामिल हैं.
इतने दबावों के बीच आप अंदाज लगा सकते हैं कि खबरों में संतुलन बनाये रखना कितना कठिन कार्य होता है. प्रभात खबर की बात करें, तो हमने सबसे अधिक घपले-घोटाले उजागर किये हैं, जिसके कारण कई पूर्व मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों तक को जेल तक जाना पड़ा है. यही वजह है कि हाल में मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल द्वारा आयोजित इंडियन रीडरशिप सर्वे, 2019 की पहली तिमाही का परिणाम आया है, जिसमें टोटल रीडरशिप में प्रभात खबर 1 करोड़ 41 लाख पाठकों के साथ हिंदी अखबारों में देश का 5वां सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला अखबार बन गया है. सभी भाषाओं के अखबारों में प्रभात खबर 10वें स्थान पर है. झारखंड में करीब 48 लाख पाठकों के साथ प्रभात खबर अन्य अखबारों की तुलना में राज्य का सबसे बड़ा अखबार बना हुआ है.
ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन की जुलाई-दिसंबर, 2018 की रिपोर्ट के आधार पर भी प्रभात खबर झारखंड का नंबर वन अखबार है. बिहार में प्रभात खबर 88 लाख 20 हजार पाठकों के साथ राज्य का दूसरा सबसे पढ़ा जाने वाला अखबार है. पिछले सर्वेक्षण की तुलना में वर्ष 2019 की पहली तिमाही के सर्वेक्षण के आधार पर बिहार में 6 लाख 10 हजार नये पाठक जुड़े हैं. एवरेज इश्यू रीडरशिप, 2019 की पहली तिमाही के अनुसार पश्चिम बंगाल के हिंदी अखबारों में प्रभात खबर 1 लाख 65 हजार पाठकों के साथ दूसरे स्थान पर है. प्रभात खबर ही नहीं अन्य अनेक अखबारों के पाठकों की संख्या लगातार बढ़ रही है. यह दिखाता है कि अखबार आज भी खबरों के सबसे विश्वसनीय स्रोत हैं.

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