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चुनाव आयोग : शक्ति तो अब भी है

रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार ravibhushan1408@gmail.com भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को जिस ‘स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव’ को लेकर की गयी थी, उस पर सत्रहवें लाेकसभा चुनाव में कई प्रश्न-चिह्न लग रहे हैं. चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों, अभ्यर्थियों के लिए मार्गदर्शन के लिए जिस ‘आदर्श आचार संहिता’ का निर्माण किया था, […]

रविभूषण

वरिष्ठ साहित्यकार

ravibhushan1408@gmail.com

भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को जिस ‘स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव’ को लेकर की गयी थी, उस पर सत्रहवें लाेकसभा चुनाव में कई प्रश्न-चिह्न लग रहे हैं.

चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों, अभ्यर्थियों के लिए मार्गदर्शन के लिए जिस ‘आदर्श आचार संहिता’ का निर्माण किया था, उसका इस चुनाव में जितना उल्लंघन हुआ है, उतना पहले नहीं हुआ था. ‘आदर्श आचार संहिता’ में आचरण, सभाएं और जुलूस के संबंध में स्पष्ट निर्देश हैं.

‘साधारण आचरण’ के अंतर्गत साफ शब्दों में यह कहा गया है- ‘किसी दल या अभ्यर्थी को ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए, जो विभिन्न जातियों और धार्मिक या भाषायी समुदायों के बीच विद्यमान मतभेदों को बढ़ाये या घृणा की भावना उत्पन्न करे या तनाव पैदा करे.’ आचार संहिता का उल्लंघन अब सामान्य बात है. धर्माधारित और जाति केंद्रित राजनीति में एक-दूसरे के धर्म और जाति पर हमले करके ही वोट बटोरे जाते रहे हैं. राजनीति तो धर्म और जाति के सहारे चल कर ही आचार संहिता की धज्जियां उड़ाती हैं.

मुख्य चुनाव आयुक्त सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समकक्ष है. दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन (12 दिसंबर, 1990 – 11 दिसंबर, 1996) के पहले आचार संहिता केवल कागजों में थी, जिसे उन्होंने कड़ाई और सख्ती से लागू किया था. उनके समय यह कहा जाता था कि भारतीय राजनेता केवल दो से डरते हैं- ईश्वर से और शेषन से.

राजीव गांधी की हत्या के बाद शेषन ने तत्कालीन सरकार से बिना पूछे ही लोकसभा चुनाव स्थगित करा दिये थे. चुनाव आयोग को उन्होंने शक्तिसंपन्न बनाया. उसकी स्वायत्तता बहाल की और इस संवैधानिक संस्था को पूरी गरिमा प्रदान की. उन्होंने चुनाव आयोग को सरकार का पिछलग्गू नहीं रहने दिया. चुनाव आयोग भारत सरकार का हिस्सा नहीं है.

दो अगस्त, 1993 को शेषन ने सत्रह पृष्ठों का एक आदेश जारी किया था कि सरकार जब तक चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती, तब तक देश में कोई भी चुनाव नहीं कराया जायेगा. के गोविंदन दुट्टी लिखित उनकी जीवनी ‘शेषन- ऐन इंटीमेट स्टोरी’ पढ़ कर उनके महत्वपूर्ण अवदान को जाना जा सकता है. चुनाव आयोग को ‘सेंटर-स्टेज’ में लाने का श्रेय केवल शेषन को है. एक इंटरव्यू में उन्होंने राजनेताओं को नाश्ते में खाने की बात कही है.

भारत के 23 मुख्य चुनाव आयुक्तों में शेषन के बाद 12वें मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह (14 जून, 2001 – 7 फरवरी, 2004) का नाम विशेष महत्वपूर्ण है. गुजरात नरसंहार (फरवरी-मार्च 2002) के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार पर लगे आरोपों के कारण आठ महीने पहले ही जुलाई 2002 में गुजरात विधानसभा भंग कर दी थी.

अक्तूबर 2002 में चुनाव कराने की मांग चुनाव आयोग ने अस्वीकार कर दी. अन्य दो आयुक्तों- टीएस कृष्णमूर्ति और बीबी टंडन की सहमति से ही चुनाव आयोग ने यह निर्णय लिया था. इस निर्णय की नरेंद्र मोदी ने आलोचना की.

साल 2002 में ही 20 अगस्त को वडोदरा के नजदीक बोडेली की एक जनसभा में उन्होंने लिंगदोह पर आक्रमण किया, उन्हें ‘इटालियन’ कहते हुए यह आरोप लगाया कि ईसाई होने की वजह से वे एक दूसरी ईसाई सोनिया गांधी की मदद के लिए गुजरात में चुनाव टाल रहे हैं. इस पर लिंगदोह ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी.

यह कहा था कि उनका कोई धर्म नहीं है और अनेक समस्याओं के लिए ‘धर्म’ ही जिम्मेदार है. लिंगदोह ने घृणित, बिगड़े और विवादस्पद राजनीति की बात कही थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने मोदी की अनुचित भाषा और टिप्पणी की आलोचना की थी.

अब चुनाव आयोग की दयनीय दशा यह है कि सुप्रीम कोर्ट उसे याद दिला रहा है कि वह शक्तिहीन नहीं है. चुनाव आयोग की निष्क्रियता के कारण ही शारजाह (संयुक्त अरब अमीरात) के एक अनिवासी भारतीय योग शिक्षक हरप्रीत मनसुखानी ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर कोर्ट से चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने का अनुरोध किया.

आचार संहिता का उल्लंघन हो रहा था और चुनाव आयोग शांत था. सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गयी कार्रवाई के संबंध में पूछने पर उसने अपने को ‘शक्तिहीन’ बताया, जबकि संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत आयोग के पास ‘अधिकारों का भंडार’ है. सुप्रीम कोर्ट की डांट पर चुनाव आयोग की नींद टूटी और उसने योगी आदित्यनाथ, मायावती, आजम खान और मेनका गांधी पर 72 और 48 घंटे की भाषण देने और रैली करने पर रोक लगायी, जिसे योगेंद्र यादव ने ‘सामने से सांड आने पर मक्खी मारने’ जैसा कहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन किया है, पर चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की है. नरेंद्र मोदी केंद्रित फिल्म, वेब सीरीज और नमो चैनल पर चुनाव आयोग का रवैया ढीला-ढाला रहा है.

पूर्व नौकरशाहों ने राष्ट्रपति को लिखे अपने पत्र में चुनाव आयोग की ‘साख का संकट’ की बात कही है. इस समय संवैधानिक संस्थाएं बुरी तरह हिल रही हैं. पिछले आम चुनाव में चुनाव आयोग ने गुजरात प्रशासन को नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने को कहा था. उस समय मुख्य चुनाव आयुक्त बीएस संपत थे. अभी 2 दिसंबर, 2018 से मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा हैं.

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