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कॉरपोरेट बांड बाजार का विकास

निशिकांत दुबे सांसद, लोकसभा delhi@prabhatkhabar.in केंद्र सरकार ने 2024 तक पांच लाख करोड़ डॉलर यानी लगभग 350 लाख करोड़ रुपये की नॉमिनल सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की उपलब्धि का बड़ा लक्ष्य तय किया है. सतत दीर्घावधि पूंजी मुहैया कर ऋण बाजारों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि में एक बड़ी भूमिका निभायी है. आज 2.76 लाख […]

निशिकांत दुबे
सांसद, लोकसभा
delhi@prabhatkhabar.in
केंद्र सरकार ने 2024 तक पांच लाख करोड़ डॉलर यानी लगभग 350 लाख करोड़ रुपये की नॉमिनल सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की उपलब्धि का बड़ा लक्ष्य तय किया है. सतत दीर्घावधि पूंजी मुहैया कर ऋण बाजारों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि में एक बड़ी भूमिका निभायी है.
आज 2.76 लाख करोड़ डॉलर या लगभग 193 लाख करोड़ रुपये की वर्तमान जीडीपी के साथ भारत सरकार पर 91 लाख करोड़ रुपये (जीडीपी का 47 प्रतिशत) के बकाया ऋण तथा यहां के कॉरपोरेट क्षेत्र पर 31 लाख करोड़ रुपये (जीडीपी का 16 प्रतिशत) के बकाया ऋण मौजूद हैं.
भविष्य में, हमारी विकासात्मक महत्वाकांक्षा की पूर्ति में बांड बाजार की भूमिका अहम होनेवाली है. इसके लिए भारत में जीडीपी की तुलना में कॉरपोरेट बांड के ज्यादा बड़े अनुपात की आवश्यकता होगी, जो कुछ अन्य अर्थव्यवस्थाओं, जैसे- चीन (19 प्रतिशत), मलेशिया (44 प्रतिशत), दक्षिण कोरिया (74 प्रतिशत) तथा अमेरिका (123 प्रतिशत) के निकट पहुंचता हो.
भारत ने अपने यहां कॉरपोरेट बांड बाजार के विकास में खासी प्रगति की है. चालू कॉरपोरेट बांड की राशि वित्तीय वर्ष 2014 में 15 लाख करोड़ रुपये (जीडीपी का 13 प्रतिशत) से बढ़कर अब 31 लाख करोड़ रुपये (जीडीपी का 16 प्रतिशत) तक पहुंच चुकी है.
क्रिसिल का अनुमान है कि वित्तीय वर्ष 2023 तक कुल अनुमानित बांड आपूर्ति बढ़कर 55 से 60 लाख करोड़ रुपये यानी तत्कालीन 350 लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था के 16-17 प्रतिशत का स्पर्श कर लेगा. आरबीआइ एवं सेबी के विनियमन हस्तक्षेपों सरीखे विविध बाजार सुधार इस दिशा में की जा रही कटिबद्ध कोशिशों के प्रतीक हैं.
नवोन्मेष, मूल्य खोज, तरलता तथा पारदर्शी बांड मूल्यांकन को बढ़ावा देकर म्यूचुअल फंडों ने भारत में कॉरपोरेट बांड बाजार के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इससे संबद्ध अन्य अपरिहार्य मुद्दों को संबोधित करते हुए सभी हितभागियों की सहभागिता को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है कि हम कॉरपोरेट बांड बाजार में गहराई लाने के लिए एक रोडमैप तय करें.
एक संस्थागत तथा विनियामक ढांचे के अंतर्गत, मजबूत तथा कुशल वित्तीय बाजारों हेतु सभी उत्पाद श्रेणियों, अवधियों एवं निवेशकों के लिए तरलता की उपलब्धता अहम होती है. निवेश के रूप में कॉरपोरेट बांड की मांग प्रोविडेंट फंडों, बीमा फंडों, म्यूचुअल फंडों तथा पेंशन फंडों जैसे संस्थागत निवेशकों तक ही सीमित है, क्योंकि अब तक के बांड निर्गतों में खुदरा निवेशकों का अनुपात केवल तीन प्रतिशत ही है.
तरलता में वृद्धि हेतु एक सरलीकृत एक्सचेंज ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म द्वारा विभिन्न निवेशकों को आकृष्ट किये जाने की आवश्यकता है. मर्चेंट बैंक, निजी संपदा एवं प्रोडक्ट वितरकों जैसे निकायों की भूमिका में सुधार लाकर व्यक्तिगत एवं कॉरपोरेट बचतों को भी इस ओर लाया जा सके. निजी निर्गतों के अंकित मूल्य को वर्तमान 10 लाख रुपये से कम कर तथा एचएनआइ श्रेणी को भी प्रतिभागिता की अनुमति देकर निवेशक आधार को और व्यापक बनाया जा सकता है.
इसके अलावा मार्केट मेकिंग तथा ट्रेडिंग क्षमता के अभाव में अभी अधिकतर निवेशक ‘खरीदो और रखे रहो’ श्रेणी में ही जमे हैं, जिसका नतीजा नगदी के प्रवाह एवं मात्रा की न्यूनता में सामने आता है.
क्यूआइबी, ब्रोकरों, मर्चेंट बैंकरों तथा निवेश बैंकों को मार्केट मेकिंग के लिए नियुक्त किया जा सकता है, ताकि वे सभी तरलता मुहैया कर सकें. बाजार बनानेवालों के लिए नगदी तक पहुंच को भी निर्धारित किया जाना चाहिए, जो अभी बैंकों को उपलब्ध है.
आपूर्ति पक्ष में, 2017-19 की अवधि में वित्त एवं इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों का सम्मिलित हिस्सा कुल कीमत का 90-92 प्रतिशत था, जबकि विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा इसके एक प्रतिशत से भी कम था. बीते दो सालों में कुल बकाया में सबसे अधिक भरोसेमंद बांडों का हिस्सा आधे से अधिक था. कॉरपोरेट कर्ज में निजी वित्तीय कंपनियों का हिस्सा 2015-16 से 2017-18 के बीच 47 प्रतिशत था.
कुल लेन-देन का एक-तिहाई सिर्फ शीर्ष के 25 देनदारों द्वारा किया गया था. बड़े कॉरपोरेट की वित्तीय जरूरत के 25 प्रतिशत के लिए बांड जारी करने का सेबी का नियम स्वागतयोग्य है, लेकिन बिना बड़े निवेशक आधार और तरलता के यह प्रयास अपने उद्देश्यों को पाने में असफल रह सकता है. सरकार, नियामकों और बाजार के भागीदारों को मिल-जुलकर कोशिश करना चाहिए.
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने 2018 में त्रि-पक्षीय कॉरपोरेट बांड रेपो प्लेटफॉर्म की शुरुआत की थी, लेकिन इसमें ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम और कुछ वित्तीय कॉरपोरेट ही भाग ले सके थे. ऐसा ही एक प्लेटफॉर्म बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के तहत चल रहा है. बांड निर्गत करनेवालों की सूची में भरोसेमंद इकाइयों की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है. सरकार द्वारा गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं के लिए क्रेडिट में कुछ बढ़त और सेबी द्वारा न्यूनतम निवेश में छूट सही कदम हैं.
बाजार के भागीदार विभिन्न पहलुओं के भरोसेमंद होने के बिना निवेश के लिए इच्छुक नहीं होते. हर विकसित बाजार में प्रचलित क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप भारत में अभी शुरू होना है.
सरकार द्वारा समर्थित ऐसे संस्थान, जो किसी संभावित घाटे की स्थिति में निवेशकों के लिए बीमा उपलब्ध कराये, से इस बाजार को विकसित किया जा सकता है और वित्तीय व्यापार को नयी गति दी जा सकती है. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की वित्तीय जरूरत और निवेशकों के लिए समुचित पूंजी प्रबंधन के लिए ऐसे संस्थानों की मांग उद्योग जगत द्वारा भी उठायी गयी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित 100 लाख करोड़ रुपये की आधुनिक बुनियादी ढांचा सुविधाओं की स्थापना आर्थिक वृद्धि की बढ़ोतरी तथा रोजगार सृजन के अलावा भारत को पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था में परिणत करने में सहायक होगी. मगर इसकी मुख्य बाधाओं के निराकरण हेतु सरकारी हस्तक्षेप जरूरी है, जिनमें अनुबंध प्रवर्तन, तेज विवाद समाधान एवं विनियामक अनिश्चितता शामिल हैं.
बुनियादी ढांचे में इस स्तर के निवेश हेतु बड़े पैमाने पर निजी पूंजी को वापस लाना होगा. वर्ष 2016-17 की बजट घोषणाओं में सम्मिलित क्रेडिट एनहेंसमेंट फंड अवसंरचना कंपनियों को समर्थ बना सकता है, जो अधिकांश पूंजी मांग का प्रतिनिधित्व करती हैं. इससे बांड बाजार तक उनकी पहुंच बढ़ सकती है और इसमें रिजर्व बैंक के नियमों से भी लाभ होगा.

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