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सांप्रदायिक चश्मे से न देखें संस्कृत को

आरके सिन्हा सदस्य, राज्यसभा rk.shore.s.nha@sansad.n.c..n देश का वातावरण इस हद तक विषाक्त हो चुका है कि अब संस्कृत भाषा को भी सांप्रदायिकता के चश्मे से देखा जा रहा है. अब केंद्रीय विद्यालयों में प्रतिदिन सुबह होनेवाली प्रार्थना पर भी निशाना साधा जा रहा है. कहा जा रहा है कि यह संस्कृत प्रार्थना धर्मनिरपेक्ष भारत में […]

आरके सिन्हा

सदस्य, राज्यसभा

rk.shore.s.nha@sansad.n.c..n

देश का वातावरण इस हद तक विषाक्त हो चुका है कि अब संस्कृत भाषा को भी सांप्रदायिकता के चश्मे से देखा जा रहा है. अब केंद्रीय विद्यालयों में प्रतिदिन सुबह होनेवाली प्रार्थना पर भी निशाना साधा जा रहा है. कहा जा रहा है कि यह संस्कृत प्रार्थना धर्मनिरपेक्ष भारत में नहीं होनी चाहिए. वह दिन दूर नहीं है, जब केंद्रीय विद्यालय के ध्येय वाक्य पर भी सवाल खड़े किये जायेंगे.

केंद्रीय विद्यालयों की स्थापना तब हुई, जब मोहम्मद करीम छागला देश के शिक्षा मंत्री थे. उन्होंने ईशावास्योपनिषद् के श्लोक ‘हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्, तत्त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये’ से ही केंद्रीय विद्यालयों का ध्ययेवाक्य ‘तत्वंपूषण अपावर्णु’ को चुना, जिसका अर्थ है- सत्य जो अज्ञान के पर्दे से ढंका है, उस पर से पर्दा उठा दो.

इस प्रार्थना के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दाखिल हुई है. इंडोनेशिया की जलसेना का ध्येय वाक्य ‘जलेष्वेव जयामहे’ यानी ‘जल में ही जीतना चाहिए’ है. जब इस्लामिक देश को संस्कृत से परहेज नहीं है, तब भारत में संस्कृत की प्रार्थना पर ऐतराज क्यों? भारतीय सेना के तीनों अंगों के ध्येय वाक्य भी संस्कृत में हैं. तो क्या ये सब सांप्रदायिक हैं?

दरअसल, देश में जनता का सेकुलरिज्म की ओवरडोज पिलायी जा रही है. देशभर में 1,128 केंद्रीय विद्यालय हैं, जिनमें एक जैसी यूनिफॉर्म और एक जैसा ही पाठ्यक्रम है. यह दुनिया की सबसे बड़ी स्कूल चेन है. रोज लगभग 12 लाख बच्चे यही प्रार्थना करते हैं. पिछले साढ़े पांच दशकों में करोड़ों छात्र केंद्रीय विद्यालय से यही प्रार्थना से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं. क्या याचिकाकर्ता ने भारत के करोड़ों नागरिकों की भावना पर ठेस नहीं पहुंचायी है?

क्या इसके लिए आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए? इन स्कूलों ने देश को एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं दी हैं. इसे शुरू करने के मूल में विचार भी यही था, ताकि सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को कर्मियों के ट्रांसफर की स्थिति में नये शहर में जाने पर केंद्रीय विद्यालय में दाखिला आसानी से मिल जाये.

केंद्रीय विद्यालयों में प्रार्थनाएं वेदों और उपनिषदों से हैं. इसे पूरे विश्व में सभी ने स्वीकार किया है. हमारे मूल संविधान में भी रामायण, महाभारत और उपनिषदों के श्लोकों और चित्रों को ही समाहित किया गया है.

इसको दोनों सदनों की लाइब्रेरी और दिल्ली के तीन मूर्ति लाइब्रेरी में भी देखा जा सकता है. मूल प्रति का कवर कमल के पुष्पों के कोलाज से बना है. प्रथम पृष्ठ पर मोहन-जोदड़ो का रेखाचित्र है. प्रत्येक पृष्ठ को प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बसु ने रामायण और महाभारत के प्रसंगों की चित्रकारी से पृष्ठ के दोनों ओर के सुंदर बॉर्डर तैयार किये हैं.

अच्छी बात है कि बीजद के सांसद बी मेहताब ने पिछले सप्ताह लोकसभा में पूछा कि क्या संस्कृत में कुछ बोलना सेकुलर नहीं है? उन्होंने केंद्रीय विद्यालयों में संस्कृत की प्रार्थना को अनिवार्य करने पर निचले सदन में कुछ लोगों के विरोध करने के बाद यह मुद्दा उठाया.

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि केंद्रीय विद्यालयों में होनेवाली प्रार्थना हिंदुत्व को बढ़ावा देती है. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के काल में 15 दिसंबर, 1963 को केंद्रीय विद्यालय संगठन स्थापित हुआ था. उस वक्त महान शिक्षाविद् मोहम्मद करीम छागला देश के शिक्षा मंत्री थे. जिस प्रार्थना को सांप्रदायिक माना जा रहा है, उसे सन् 1963 से ही सभी केंद्रीय विद्यालयों में गाया जा रहा है.

इससे शिक्षकों या विद्यार्थियों को तो कोई आपत्ति नहीं हुई. केंद्रीय विद्यालयों में की जानेवाली प्रार्थना है- ‘असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतमगमय’ अर्थात् ‘(हमें) असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो.’ इस प्रार्थना में हिंदू या हिंदुत्व कहां से आ गया है?

केंद्रीय विद्यालय के प्रतीक चिह्न पर एक ध्येयवाक्य है, ‘तत्त्वं पूषन्नपावृणु.’ यह ध्येय वाक्य यजुर्वेद के ईशावास्योपनिषद् के 15वें श्लोक से लिया गया है. जो ध्येयवाक्य सत्यदर्शन पर आधारित हो, उसे हिंदुत्वादी कहने का अर्थ है कि बाकी सभी असत्यवादी हैं.

राष्ट्रगान में संशोधन की मांग भी उठती रही है. तो क्या राष्ट्रगान में अधिनायक की जगह मंगल शब्द होना चाहिए? क्या राष्ट्रगान से सिंध शब्द के स्थान पर कोई और शब्द जोड़ा जाये? ऐसी बेकार बातें क्यों की जाती हैं.

साल 2005 में संजीव भटनागर ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें सिंध भारतीय प्रदेश न होने के आधार पर जन-गण-मन से निकालने की मांग की थी. इस याचिका को 13 मई, 2005 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आरसी लाखोटी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सिर्फ खारिज ही नहीं किया, बल्कि संजीव भटनागर की याचिका को ‘छिछली और बचकानी मुकदमेबाजी’ मानते हुए उन पर दस हजार रुपये का दंड भी लगाया था.

केंद्रीय विद्यालयों की प्रार्थना पर आपत्ति से साफ है कि देश में कुछ शक्तियां देश को खोखला करने की दिशा में संलग्न हैं. संस्कृत भारतीय उपमहाद्वीप की अतिप्राचीन, समृद्ध और महत्वपूर्ण भाषा है. आधुनिक भारतीय भाषाएं जैसे, हिंदी, मराठी, सिंधी, पंजाबी, नेपाली आदि संस्कृत से ही उत्पन्न हुई हैं. इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है. बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं. इतनी समृद्ध भाषा को सांप्रदायिक कहनेवाला इंसान सामान्य तो नहीं ही होगा!

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