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बिरसा मुंडा की सबसे ऊंची मूर्ति समय पर बनाना चुनौती

अनुज कुमार सिन्हा 11 अक्तूबर, 2018 का वह एक ऐतिहासिक क्षण, जब रांची के पुरानी जेल परिसर में बिरसा मुंडा की देश की सबसे बड़ी प्रतिमा (साै फीट ऊंची) बनाने के लिए शिलान्यास हाेता है. यह वही स्थान है जहां बिरसा मुंडा काे अंगरेजाें ने कैद कर रखा था आैर जहां उन्हाेंने 9 जून 1900 […]

अनुज कुमार सिन्हा

11 अक्तूबर, 2018 का वह एक ऐतिहासिक क्षण, जब रांची के पुरानी जेल परिसर में बिरसा मुंडा की देश की सबसे बड़ी प्रतिमा (साै फीट ऊंची) बनाने के लिए शिलान्यास हाेता है.

यह वही स्थान है जहां बिरसा मुंडा काे अंगरेजाें ने कैद कर रखा था आैर जहां उन्हाेंने 9 जून 1900 काे अंतिम सांस ली थी. एक एेतिहासिक स्थल. बिरसा मुंडा काे आदिवासी समाज में भगवान का दर्जा प्राप्त है. देश-दुनिया उन्हें बड़ा सम्मान देती है. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े आदिवासी नायक, जिन्हाेंने अंगरेजाें के खिलाफ जाेरदार संघर्ष किया.

राज्यपाल द्राैपदी मुर्मू आैर मुख्यमंत्री रघुवर दास के लिए भी वह क्षण गाैरव का, जब उन्हाेंने शिलान्यास किया. अब सबसे बड़ी चुनाैती है बिरसा मुुंडा की प्रतिमा काे समय पर बना देना. कई आैर चुनाैतियां आयेंगी. ध्यान रहे कि देश भर में यह बिरसा मुंडा की सबसे ऊंची प्रतिमा हाेगी. अभी ताे साै फीट की बात हाे रही है. झारखंड काे सीख लेनी हाेगी गुजरात से, जहां इसी 31 अक्तूबर काे सरदार पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा का अनावरण हाेगा. यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा हाेगी. यह समय पर बनी है क्याेंकि याेजना ढंग की थी, मॉनिटरिंग कड़ी थी. खुद प्रधानमंत्री इस पर नजर रखे हुए थे. झारखंड में भी बिरसा मुंडा की प्रतिमा काे अगर समय पर (एक साल में बनाने की घाेषणा हुई है) बनाना है ताे पूरी ताकत लगानी हाेगी.

अच्छे आैर जुनूनी अफसराें काे जिम्मा देना हाेगा. बार-बार याेजना बदलने, ताेड़-फाेड़ करने से एक साल ताे क्या पांच साल में भी मूर्ति नहीं बनेगी. पिछले ढाई-तीन साल से रांची जेल परिसर में सिर्फ प्रयाेग हाे रहे हैं. दाे साल पहले अफसराें ने सबसे ऊंचा तिरंगा फहराने के लिए रांची पहाड़ी में जाे प्रयाेग किया, उससे रांची पहाड़ी बर्बाद हाे गयी. रक्षा मंत्री काे बुलाया गया था. आज स्थिति यह है कि वहां सिर्फ लाेहे का ढांचा है, तिरंगा नहीं दिखता. इतना बड़ा मजाक करने के लिए दाेषी काैन था, आज तक पता नहीं चला. आगे झारखंड में ऐसा न हाे, इसी बात काे ध्यान में रखना हाेगा.

एक साल का समय बहुत ज्यादा नहीं हाेता. अभी यह भी याेजना नहीं है कि मूर्ति किस धातु की हाेगी, काैन बनायेगा. प्राेजेक्ट आखिर है क्या? किसकी-किसकी मूर्ति लगेगी, कैसा हाेगा संग्रहालय, क्या शाेधार्थी के लिए रेफरेंस सेक्शन भी हाेगा, यह सब साफ नहीं है. बिरसा मुंडा से जुड़ी यादें दुनिया में जहां-जहां हैं, उन्हें एकत्र करना हाेगा. सारा कुछ जल्द तय करना हाेगा. इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि अफसर इसे कितनी गंभीरता से लेते हैं.

यह झारखंड की संवेदना से जुड़ा प्राेजेक्ट है. आज आदिवासी समाज के सभी दिग्गजाें आैर शहीदाें के वंशजाेें का रांची जेल परिसर में जुटना इस बात का प्रमाण है. बिरसा मुंडा की बड़ी प्रतिमा डुंबारी हिल (अंतिम संघर्ष), उलिहातू (जन्म स्थली), राउरकेला, जमशेदपुर (बिरसानगर), खूंटी, रांची के बिरसा चाैक आदि स्थानाें पर लगी हुई है, लेकिन अब जाे प्रतिमा बनने जा रही है, वह इससे कई गुणी ज्यादा ऊंची हाेगी, साै फीट.

इसलिए आकर्षण आैर श्रद्धा का केंद्र भी यह स्थान हाेगा. हजाराें लाेग देश-राज्य से देखने आ सकते हैं. इसकी तैयारी करनी हाेगी. यहां झारखंड के अन्य शहीदाें सिदाे-कान्हू, बाबा तिलका माझी, नीलांबर-पितांबर, टाना भगत आदि की भी प्रतिमाएं लगेंगी. युद्ध में पराक्रम दिखानेवाले झारखंड के शहीदाें के लिए भी इसमें जगह हाेगी. संग्रहालय हाेगा. ऐसा प्रयास हाेगा कि जाे भी यहां आये, उसे शहीदाें, वीराें आैर झारखंड की संस्कृति की पूरी जानकारी मिल जाये. बड़ा काम है. इसमें समय लगेगा.

बड़ा संकट हाेगा यहां तक पहुंचने में. कुछ लाेग सवाल कर रहे हैं कि बिरसा मुंडा की बड़ी प्रतिमा जेल परिसर की जगह ऐसी जगह बननी चाहिए जहां सड़कें चाैड़ी हाें. ये साेच गलत है. जहां बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस ली थी, प्रतिमा ताे उसी परिसर में बननी चाहिए. कहीं आैर क्याें बने? हां, वहां आने-जाने में जाे परेशानियां आ सकती हैं, उसका निदान खाेजे.

सही बात है कि इस प्रतिमा काे देखने के लिए वहां लाेग आयेंगे. पास में ही बड़ा टावर बनाने की बात हाे रही है, वहां भी भीड़ हाेगी, पार्क हाेगा, ताे लाेगाें की भीड़ हाेगी ही. ऐसे में वहां जाने के लिए सड़काें काे चाैड़ा करना हाेगा ही. अभी ताे लालपुर चाैक से सर्किट हाउस जाना वैसे भी सबसे कठिन काम है. एक फ्लाइआेवर की बात हुई थी, वह दब गयी. सरकार हिम्मत करे आैर कचहरी चाैक से लालपुर हाेते कांटाटाेली तक एक फ्लाइओवर बनाये ताे समस्या सुलझ जायेगी. जिसे जेल परिसर में जाना है, वह सीधे फ्लाइआेवर से आये, वहां से जेल परिसर के लिए रास्ता बन सकता है.

यह मान कर चलना हाेगा कि जेल परिसर अगले वर्ष से पर्यटन स्थल के ताैर पर विकसित हाेगा. अगर लाेगाें काे वहां आने में दाे-तीन घंटे लग जायेंगे ताे वे आने से बचेंगे. बेहतर हाेगा सर्कुलर राेड के ट्रैफिक के लिए पहले ही याेजना बन जाये. पैसे खर्च हाेंगे, लेकिन रास्ता तभी निकलेगा. यह चुनाैती भरा आैर साहस का प्राेजेक्ट है.

इसे हर हाल में चुनाव के पहले सरकार पूरा करना चाहेगी. बिरसा मुंडा किसी एक जाति, धर्म आैर दल के नहीं थे. वह सर्वमान्य लीडर थे. स्वतंत्रता सेनानी थे. यह प्रतिमा उन्हीं के प्रति सम्मान है आैर इस प्राेजेक्ट काे समय पर पूरा करने में हर वर्ग, हर व्यक्ति काे तन-मन से लग जाना चाहिए. इसमें काेई दाे राय नहीं कि अगर झारखंड के सभी लाेग, अफसर, जनप्रतिनिधि लग जायें, 24 घंटे (तीन शिफ्ट में) में काम हाे ताे एक साल के बजाय नाै जून के पहले यह मूर्ति बन कर तैयार हाे सकती है.

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