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न काहू की जीत, न काहू की हार

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in किसी भी लोकतांत्रिक देश में जब भी कोई चुनौती आती है, तो उस दौरान उसके सत्ता प्रतिष्ठानों की परीक्षा होती है. लोकतंत्र का भविष्य इससे तय होता है कि ये प्रतिष्ठान कितने मजबूत हैं. इसमें सबसे महत्वपूर्ण हैं अदालतें और उसमें भी सर्वोपरि है सुप्रीम कोर्ट. समय समय […]

आशुतोष चतुर्वेदी

प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in
किसी भी लोकतांत्रिक देश में जब भी कोई चुनौती आती है, तो उस दौरान उसके सत्ता प्रतिष्ठानों की परीक्षा होती है. लोकतंत्र का भविष्य इससे तय होता है कि ये प्रतिष्ठान कितने मजबूत हैं. इसमें सबसे महत्वपूर्ण हैं अदालतें और उसमें भी सर्वोपरि है सुप्रीम कोर्ट. समय समय पर हमारे अन्य सत्ता प्रतिष्ठानों पर भले ही सवाल उठते रहे हों लेकिन सर्वोच्च न्यायालय पर हमारा भरोसा नहीं डगमगाया है. इसकी वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अनेक ऐतिहासिक फैसले दिये हैं और लोकतंत्र की गरिमा को कायम रखा है.
इसकी लंबी चौड़ी फेहरिस्त है. अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला इसी कड़ी में आता है. यह इच्छा शक्ति का कमाल है कि जाते जाते सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने दशकों से चल रहे अयोध्या विवाद का निराकरण कर दिया. यह विवाद इसलिए इतना लंबा खिंचा, क्योंकि कोई भी इस विवाद में हाथ डालने को तैयार नहीं था.
सुप्रीम कोर्ट ने 40 दिनों तक लगातार सुनवाई की और पूरी पीठ निर्धारित समय से अधिक बैठी और शनिवार को अवकाश के दिन अदालत ने सर्वसम्मति से अपना फैसला सुना दिया. इस फैसले का भावार्थ है- न तो किसी की जीत हुई है और न किसी की हार हुई है. एक विवाद था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब राम मंदिर का निर्माण हो सकेगा. दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ का भूखंड आवंटित करने का निर्देश दिया है.
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बेहद संवेदनशील और 100 साल से भी अधिक पुराने इस विवाद का निबटारा कर दिया है और वह भी सर्वसम्मति से. उल्लेखनीय है कि इस फैसले में किसी भी न्यायाधीश की राय अलग नहीं थी. जस्टिस गोगोई के अलावा संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने दशकों पुराने विवाद का अंत कर दिया.
विवाद में उलझे रहने के बजाये देश को मौका दिया है कि वह अब आगे का रुख कर सके. संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट गठित किया जाना चाहिए. पीठ ने 2.77 एकड़ की विवादित भूमि का अधिकार रामलला विराजमान को सौंप दिया है. राम लला इस मामले में एक वादी हैं. हालांकि यह भूमि केंद्र सरकार के रिसीवर के कब्जे में ही रहेगी. सुप्रीम कोर्ट से पहले इस मामले में इलाहाबाद हाइकोर्ट ने 2010 में अपना फैसला सुनाया था.
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया था और यह जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान के बीच बराबर बांटने का आदेश दिया था जिस पर तीनों ही पक्ष सहमत नहीं थे. हाइकोर्ट के इस फैसले को चुनौती दी गयी थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है.
अयोध्या की विवादित जमीन के मालिकाना हक को लेकर कानूनी लड़ाई सन् 1885 में शुरू हुई थी. लेकिन इस मामले में हिंदू पक्ष ने रामलला विराजमान को भी एक पक्ष बनाने का फैसला 1989 में किया था. पहली बार हाइकोर्ट के एक रिटायर्ड जज जस्टिस देवकी नंदन अग्रवाल, भगवान राम के प्रतिनिधि के तौर पर अदालत में पेश हुए थे और भगवान का दावा कोर्ट के सामने रखने की कोशिश की थी. 1885 में अयोध्या के एक स्थानीय निवासी ने 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद के ठीक बाहर स्थित चबूतरे पर एक मंदिर बनाने की इजाजत मांगी थी.
अयोध्या के लोग इस जगह को राम चबूतरा कहते हैं. लेकिन उन्हें मस्जिद के बाहर के चबूतरे पर मंदिर बनाने की अनुमति नहीं मिली. आप अंदाज लगा सकते हैं कि तब से यह विवाद सुर्खियों में रहा है और अब जाकर इसका समाधान निकला है.ऐसा माना जाता है कि अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी. अयोध्या सरयू नदी के तट पर बसी है.
कई शताब्दियों तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा है. अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर है. यह हिंदुओं के अलावा जैन और बौद्ध धर्म के अनुनायियों का भी प्रमुख केंद्र है. जैन मत के अनुसार यहां चौबीस तीर्थंकरों में से पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था. ये सभी तीर्थंकर श्रीराम के इक्ष्वाकु वंश से थे. सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग ने यहां की यात्रा की थी.
उसके अनुसार यहां अनेक बौद्ध मंदिर थे और बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षु रहते थे. मौजूदा विवाद को देखें तो ऐसा उल्लेख है कि मुगल बादशाह बाबर के एक सिपहसालार मीर बाकी ने 1528 में बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया था. हिंदू पक्ष का दावा था कि यह जगह भगवान राम की जन्मभूमि है और यहां पहले एक मंदिर था जिसे तोड़ कर मस्जिद बनायी गयी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी खाली जगह पर नहीं किया गया था. विवादित जमीन के नीचे एक ढांचा था और यह इस्लामिक ढांचा नहीं था. हालांकि, कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाने की भी पुख्ता जानकारी नहीं है.
भारतीय लोकतंत्र की यह खूबसूरती है कि यह धार्मिक समरसता और विविधता में एकता की मिसाल है. अयोध्या की ही मिसाल लें, तो पायेंगे कि यहां लोग हमेशा से सद्भाव से रहते आये हैं.
इतने वर्षों से विवाद चला लेकिन अयोध्या में स्थानीय लोगों के बीच कोई सांप्रदायिक संघर्ष नहीं हुआ है. यह भारत की बहुत बड़ी पूंजी है और यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि इसे बचा कर रखें. साथ ही हम सब को यह बात स्पष्ट होनी चाहिए कि आर्थिक हो या फिर सामाजिक किसी भी तरह की प्रगति शांति के बिना हासिल करना नामुमकिन है.
इसलिए यह हम सबके हित में है कि अपने सामाजिक ताने-बाने को हर कीमत पर बनाये रखें. हमें चौकन्ना रहना होगा कि कहीं चंद लोगों के कारण माहौल खराब न हो जाए. यह सही है कि प्रशासन मुस्तैद है लेकिन हम आपको भी अपना दायित्व निभाना होगा. शहर का अमन चैन बिगाड़ने वाले लोग कहीं और से नहीं आते हैं, वे हमारे आसपास के ही लोग हैं. शहर के जागरूक नागरिक होने के नाते आपका कर्तव्य है कि ऐसे लोगों को टोकें और आगाह करें कि वे माहौल खराब न करें.
दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि सोशल मीडिया खासकर व्हाट्सएप अक्सर अफवाहों को हवा देता है. ऐसे संदेशों को कतई न फैलाएं. अगर आपका कोई परिचित ऐसा करता नजर आता है, तो उसे टोकें. यह जान लीजिए हिंसा की एक घटना न केवल आपके शहर बल्कि प्रदेश और देश का माहौल खराब कर सकती है. हमें अपने देश के सामाजिक सौहार्द को हर कीमत पर बनाये रखना होगा.

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