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Friday, March 29, 2024

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कृषि आय बढ़ाने की हो पहल

देविंदर शर्मा कृषि अर्थशास्त्री delhi@prabhatkhabar.in इस वक्त देश में मुख्यत: मांग घटने और निवेश कम होने की वजह से आर्थिक सुस्ती आयी है. ऐसा माना जा रहा है कि ग्रामीण इलाकों में लोगों की आय में गिरावट आयी है, जिसके कारण ग्रामीण इलाकों में मांग कम हो गयी है. इसलिए लोगाें को ज्यादा उम्मीद है […]

देविंदर शर्मा
कृषि अर्थशास्त्री
delhi@prabhatkhabar.in
इस वक्त देश में मुख्यत: मांग घटने और निवेश कम होने की वजह से आर्थिक सुस्ती आयी है. ऐसा माना जा रहा है कि ग्रामीण इलाकों में लोगों की आय में गिरावट आयी है, जिसके कारण ग्रामीण इलाकों में मांग कम हो गयी है. इसलिए लोगाें को ज्यादा उम्मीद है कि इस बार के आम बजट में खेती पर ज्यादा ध्यान दिया जायेगा. अर्थशास्त्रियों की यह बात सच है, लेकिन मेरा मानना है कि यह स्थिति हाल-फिलहाल के सालों में नहीं बनी है. लंबे अरसे से हम सब इस बात की अनदेखी करते आ रहे हैं.
करीब दो दशक से कृषि आय में कमी जारी है. मुझे यह समझ में नहीं आता कि हमारे अर्थशास्त्रियों को अभी क्यों ग्रामीण मांग में कमी दिख रही है, जबकि दो दशक से कृषि आय में कमी जारी है. दरअसल, अर्थशास्त्रियों को यह अब इसलिए नजर आ रहा है, जब हमारी जीडीपी में गिरावट आ गयी है.
अगर जीडीपी में गिरावट नहीं आयी होती, तो यही अर्थशास्त्री इस बात को नहीं मानते कि कृषि आय में अरसे से कमी जारी है. आंकड़ों पर गौर करें, तो जीडीपी जब छह प्रतिशत से ऊपर थी, तब भी ग्रामीण मांग कमजोर थी. मतलब साफ है कि लोग सचाई की अनदेखी कैसे करते हैं.
इसी तरह से आंकड़ों की बाजीगरी भी की जाती रही है, जबकि किसान की हालत दिन-प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है. ऐसे में मेरा यही मानना है कि अर्थव्यवस्था के सारे घटकों को लेकर अर्थशास्त्रियों की सोच बहुत कमजोर है, और वे देश की सच्चाई को देखने में भी असमर्थ हैं. यह मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि 35 देशों की एक अंतर्सरकारी आर्थिक संगठन ओइसीडी (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) का शोध कहता है कि भारत में साल 2000 और 2016 के बीच में किसानों को 45 लाख करोड़ का नुकसान हुआ.
ओइसीडी यह बात इसलिए मानता है, क्योंकि किसानों को उनकी फसल का जो उचित दाम मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला, जिसके चलते हर साल 2.5 लाख करोड़ रुपये भारतीय किसानों का नुकसान हुआ. बड़ी विडंबना है कि हमारे देश के अर्थशास्त्रियों और मीडिया ने इस बात पर कोई चिंता जाहिर नहीं की. दरअसल, उनको यह कोई बड़ा संकट लगा ही नहीं. लोग यह मानकर चलते हैं कि किसान मजबूरी में जीने के लिए ही पैदा हुआ है. अब इस बजट में मजबूर किसानों के लिए क्या कुछ किया जायेगा या ऐसे ही चलता रहेगा, इसे देखा जाना बाकी है.
नीति आयोग की एक रिपोर्ट कहती है कि साल 2011-12 और 2015-16 के दौरान कृषि क्षेत्र में सालाना वास्तविक आय में वृद्धि आधा प्रतिशत (0.44) से भी कम थी. नीति आयोग फिर कहता है कि साल 2017-18 के बीच में 0.44 प्रतिशत से घटकर शून्य के आसपास पहुंच गया.
इसका मतलब साफ है कि साल 2000 से लेकर आज तक किसानों की आय या तो जस की तस रही, या फिर और भी नीचे चली गयी. लेकिन तमाशा देखिये कि हमारे देश के अर्थशास्त्रियों को यह पता ही नहीं चला. पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि के आसपास घूमती है, इसलिए अगर कृषि क्षेत्र की इस तरह अनदेखी होगी, तो ग्रामीण आय कैसे बढ़ेगी और फिर ग्रामीण मांग कैसे बढ़ेगी?
महज इतनी सी बात बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों को अगर समझ में नहीं आती, तो फिर वे देश की गिरती अर्थव्यवस्था को कैसे बचा पायेंगे, यह आज एक बहुत बड़ा प्रश्न बनकर हमारे सामने खड़ा है. देश की कृषक जनता यानी आधी से ज्यादा जनता को तो हमने अर्थव्यवस्था से ही अलग किया हुआ है. ऐसे में उनकी आय की कौन सोचे? इसलिए बजट से यह उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार कृषि क्षेत्र के लिए कुछ बड़ा कदम उठाये, वरना तो कृषि क्षेत्र और भी कमजोर हो जायेगा.
आर्थिक सर्वेक्षण 2016 यह कहता है कि देश के 17 राज्यों यानी आधे देश में किसानों की सालाना आय मात्र 20 हजार रुपये से कम है. यानी 16-17 सौ रुपये महीने में किसान परिवार गुजारा करता है.
इतने कम रुपये में कोई एक गाय भी नहीं पाल सकता, फिर सोचनेवाली बात है कि किसान अपना परिवार कैसे पालता होगा? क्या हमारे अर्थशास्त्रियों ने यह कभी सोचा? जहां एक किसान की मात्र 16-17 सौ रुपये महीने की आमदनी होगी, वहां मांग क्या होगी? मैं समझता हूं कि कुछ भी नहीं. वहां किसान जी कैसे रहा है, यही सोचनेवाली बात है. यही वजह है कि किसान अब खेती करना नहीं चाहते और ज्यादा परेशान होते हैं तो आत्महत्या तक कर लेते हैं. देश के अन्नदाता के साथ यह हाल है और इसकी जिम्मेदार राजनीति ही है.
आइएमएफ तक कह रहा है कि भारत में ग्रामीण मांग गिरने से जीडीपी में गिरावट आयी है. और अगर भारत की जीडीपी गिरेगी, तो दुनिया की जीडीपी भी गिरेगी. इसका मतलब साफ है कि आइएमएफ को भी यह नहीं पता था कि भारत की ग्रामीण आय तो कबसे कमजोर हालत में है. यह विडंबना है कि भारत की जब जीडीपी गिरी है, तब सबकी आंखें खुलने लगी हैं, नहीं तो इसके पहले किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था.
यह बात तो सभी मानते हैं कि जब ग्रामीण आय बढ़ेगी, तभी मांग भी बढ़ेगी. मैं अरसे से मांग करता आ रहा हूं कि किसानों की आय सुनिश्चित की जानी चाहिए. पीएम किसान सम्मान निधि योजना इसमें एक बड़ी भूमिका निभा सकता है. इसके जरिये किसानों की आय सुनिश्चित किये जाने की पहल बजट में दिखनी चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
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