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शाहीनबाग से प्रभावित होकर पार्क सर्कस में चल रहा महिलाओं का आंदोलन !

कोलकाता : ऐसा मुद्दा जिस पर देशभर में विपक्षी पार्टियों की ओर से आंदोलन हो रहा हो, इन सबके बीच उस मुद्दे पर केवल महिलाओं का लगातार आंदोलन, कम ही देखने को मिलता है. दिल्ली के शाहीनबाग में महिलाओं के आंदोलन की ही तर्ज पर यहां पार्क सर्कस में भी सीएए के खिलाफ महिलाओं का […]

कोलकाता : ऐसा मुद्दा जिस पर देशभर में विपक्षी पार्टियों की ओर से आंदोलन हो रहा हो, इन सबके बीच उस मुद्दे पर केवल महिलाओं का लगातार आंदोलन, कम ही देखने को मिलता है.

दिल्ली के शाहीनबाग में महिलाओं के आंदोलन की ही तर्ज पर यहां पार्क सर्कस में भी सीएए के खिलाफ महिलाओं का आंदोलन चल रहा है. बगैर किसी राजनीतिक बैनर के इस आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभा रहीं उज्मा आलम कहती हैं कि उनका आंदोलन तब तक चलेगा, जब तक सीएए वापस नहीं लिया जाता.

पुरुषों की बजाय महिलाओं द्वारा आंदोलन किये जाने के बाबत वह कहती हैं कि केंद्र सरकार हमेशा महिलाओं को ‘बेचारी’ के तौर पर पेश करती है, लेकिन वह यह बताना चाहती हैं कि महिलाएं बेचारी नहीं हैं, बल्कि अपने हक के लिए लड़ सकती हैं. इसलिए महिलाओं ने धरने पर बैठने का फैसला किया. इसमें पुरुष भी उनकी मदद कर रहे हैं. यह संविधान का मुद्दा है और इसमें केवल मुस्लिम ही नहीं, अन्य सभी धर्मों की महिलाएं भी शामिल हैं.

आंदोलन में सक्रिय तौर पर जुड़ी आफरीन जमां कहती हैं कि आमतौर पर महिलाएं होम मेकर होती हैं, पुरुष काम पर चले जाते हैं. यदि हक की लड़ाई के लिए महिलाएं सामने आती हैं, तो इससे बेहतर क्या हो सकता है. वह स्वयं को शाहीनबाग आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी से भी प्रभावित बताती हैं. सीएए का मुद्दा संवैधानिक संकट का मुद्दा है. धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं हो सकता.

पैसे देकर चलाया जा रहा आंदोलन !

उधर फैशन डिजाइनर व भाजपा नेत्री अग्निमित्रा पॉल ने कहा कि उनका दृढ़ विश्वास है कि शाहीनबाग आंदोलन की तरह ही यहां भी धरने पर बैठने के लिए पैसे दिये जा रहे हैं. आंदोलन करनेवाली महिलाओं में जानकारी का अभाव होने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि सीएए नागरिकता देने का कानून है. इस संबंध में श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर महात्मा गांधी व मनमोहन सिंह तक ने कहा था कि यदि पड़ोसी देशों में हिंदुओं को समस्या होती है, तो उन्हें भारत में नागरिकता दी जाये.

आंदोलन करनेवाली महिलाओं से वह पूछना चाहती हैं कि तीन तलाक के मुद्दे पर भाजपा ने पहल की थी, इस मुद्दे पर उन महिलाओं ने क्यों नहीं आंदोलन किया? इस संबंध में कानून बनने के बाद भी भाजपा का धन्यवाद देने की उन्होंने क्यों नहीं सोची? क्या आंदोलन करनेवाली महिलाएं नहीं चाहतीं कि भारत से घुसपैठिये निकाले जायें? घुसपैठिये क्या उनकी संतानों का हक नहीं छीन रहे?

उन्होंने कहा कि आंकड़ों के मुताबिक देश में दो करोड़ घुसपैठिये हैं, जिनमें एक करोड़ पश्चिम बंगाल में ही हैं. इनमें से 70 फीसदी तृणमूल समर्थक हैं. अग्निमित्रा पाल ने आंदोलन के पीछे तृणमूल का हाथ होने का आरोप लगाते हुए कहा कि उसे पता है कि उसकी सत्ता 2021 में जा रही है, इसलिए अपने वोट बैंक को बचाने की कोशिशों में वह जुटी हुई है.

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