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Thursday, March 28, 2024

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दर्द में भी लोगों को हंसाने का नाम है ‘जोकर’

अजय विद्यार्थी, कोलकाता : कहता है जोकर, सारा जमाना, आधी हकीकत, आधा फसाना चश्मा उतारो, फिर देखो यारों, दुनिया नयी है, चेहरा पुराना….यह प्रसिद्ध फिल्म निर्माता और निर्देशक राज कपूर की 1970 में निर्मित हिंदी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ के गाने के बोल हैं. यह भारत में जोकर समुदाय पर बनी बेहतरीन फिल्मों में से […]

अजय विद्यार्थी, कोलकाता : कहता है जोकर, सारा जमाना, आधी हकीकत, आधा फसाना चश्मा उतारो, फिर देखो यारों, दुनिया नयी है, चेहरा पुराना….यह प्रसिद्ध फिल्म निर्माता और निर्देशक राज कपूर की 1970 में निर्मित हिंदी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ के गाने के बोल हैं. यह भारत में जोकर समुदाय पर बनी बेहतरीन फिल्मों में से एक है, जिसमें राजकपूर ने बड़ी संजीदगी से ‘राजू जोकर’ की भूमिका निभायी थी. हालांकि फिल्म रिलीज हुए 50 साल हो गये हैं.

सर्कस में जानवरों के प्रदर्शन पर प्रतिबंध से इसके अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है, लेकिन टीवी के कार्टून शो व कंप्यूटर गेम्स के इस दौर में भी सर्कस में जोकर का किरदार आज भी न केवल जिंदा है, बल्कि दर्शकों को सर्वाधिक आकर्षित करनेवाला और लोकप्रिय चरित्र है. सर्कस का शो समाप्त होने के बाद जोकर के साथ सेल्फी लेते दर्शक आसानी से देखे जा सकते हैं, जो इसकी लोकप्रियता को प्रमाणित करता है.
जोकर का काम सर्कस में हंसाने का होता है.
जोकर को देखते ही बच्चे हंसने लगते हैं. इंसानों के चेहरे खिल जाते हैं, लेकिन जोकर सिर्फ हंसाता नहीं है. कभी-कभी रुलाता भी है और हमें वास्तविकता से परिचय कराता है. चेहरे पर सफेद रंग लगाये या लाल चेहरे वाले ढीले-ढीले कपड़े पहने और अपने रोचक संवादों से दर्शकों का दिल जीतने की कला में जोकर माहिर होते हैं. शहर के टाला पार्क में चल रहे अजंता सर्कस में लगभग दो दशक से जोकर का किरदार निभा रहे मुर्शिदाबाद, फरक्का के 52 वर्षीय रफीकुल इस्लाम कहते हैं : अल्लाह ने ऐसी कद-काठी दी थी. कहीं भी मेरे लिए कोई काम नहीं था.
जहां भी जाता था. लोग मेरा केवल मजाक उड़ाते थे. परिवार बढ़ा, तो रोजी-रोटी की चिंता भी बढ़ी. अंतत: मैंने सर्कस का सहारा लिया और पिछले लगभग 20 वर्षों से जोकर का किरदार निभा रहा हूं. कोशिश रहती है कि दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान बिखेर सकूं.
कुछ क्षण ही सही, उन्हें हंसा सकूं. जब उन्हें हंसता देखता हूं, तो दिल खुश हो जाता है. लेकिन सभी को हंसानेवाले और खुशियां देनेवाले जोकर की खुद की जिंदगी तंगहाली और दर्द से भरी होती है. दुख हो या दर्द या कोई परेशानी हो, उसे अपना किरदार निभाना ही पड़ता है. दर्द में भी लोगों को हंसाना पड़ता है.
रफीकुल बताते हैं
जोकर का किरदार निभा कर किसी तरह से परिवार के लिए दो जून की रोटी जुटा पाता हूं, लेकिन तंगहाली बनी ही रहती है. घर में पत्नी है, बच्चे हैं. मेरे बेटे करीम का कद भी नहीं बढ़ा. कुछ वर्ष पहले ही उसने भी मेरे साथ सर्कस में जोकर का किरदार निभाना शुरू किया है.
जोकर का किरदार निभा रहा करीम कहता है
मैं क्या करूं, जहां जाता था, लोग मजाक उड़ाते थे, लेकिन यहां कोई मेरा मजाक उड़ानेवाला नहीं है. मैं खुद ही दूसरों का और खुद का मजाक उड़ाता हूं और लोगों को हंसाता हूं. इसमें बहुत आनंद आता है. हाल में ही करीम की शादी हुई है. यह पूछे जाने पर क्या वह अपने बच्चे को भी जोकर बनाना चाहता है, करीम कहता है : अल्लाह, न करे, ऐसी नौबत आये.
कलाकारों ने ही जिंदा रखा है सर्कस को
अजंता सर्कस के मैनेजिंग डॉयरेक्टर रवि कुमार कहते हैं कि वे लोग वर्षों से सर्कस चला रहे हैं. कोलकाता में 29 जनवरी तक सर्कस चलेगा. उसके बाद पांच फरवरी से बिहार के किशनगंज में आयोजित मेले में चले जायेंगे. पहले की तरह लोगों में सर्कस का अब क्रेज नहीं है, लेकिन कलाकारों की कलाबाजियों ने सर्कस को जिंदा रखा है और इन कलाकारों में जोकर की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है. दर्शकों के बीच जोकर आज भी काफी लोकप्रिय हैं और सर्कस में जोकर एक अहम किरदार है.
वह न केवल लोगों का मनोरंजन करता है, बल्कि इस तनाव भरी जिंदगी में हंसाता भी है, जिस तरह से ताश के 52 पत्तों में जोकर की मौजूदगी काफी अहम होती है, उसी तरह से सर्कस में भी जोकर की मौजूदगी बहुत ही अहम और महत्वपूर्ण है. जोकर के बिना सर्कस अधूरा है.
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