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सागरद्वीप : मोक्षनगरी में रोजी-रोटी बनी गो-दान की परंपरा, किराये की गाय से बाबा संग बिटिया भी करा रही गोदान

सागरद्वीप : घर-द्वार की ‘शोभा की बात हो, या पेट की, या फिर सियासत की हो या धर्म-परंपरा की ‘गौ-चर्चा’ के बिना पूरी नहीं होती. गंगासागर मेले में भी ‘गौ माता’ छायी रही. गौरतलब है कि ‘शास्त्रों के अनुसार पुण्य स्नान के बाद सांसारिक भव सागर से मुक्ति गाय की पूंछ पकड़ कर ही संभव […]

सागरद्वीप : घर-द्वार की ‘शोभा की बात हो, या पेट की, या फिर सियासत की हो या धर्म-परंपरा की ‘गौ-चर्चा’ के बिना पूरी नहीं होती. गंगासागर मेले में भी ‘गौ माता’ छायी रही. गौरतलब है कि ‘शास्त्रों के अनुसार पुण्य स्नान के बाद सांसारिक भव सागर से मुक्ति गाय की पूंछ पकड़ कर ही संभव है, जिसके लिए गौ-दान की परंपरा है.
सागर तट पर किराये की गाय से पंडे-पुजारी इस परंपरा का निर्वाह करते नजर आएं. झारखंड के देवघर से आए बमबम मिश्रा बताते हैं कि, ‘हम गंगासागर में 1997-98 से गोदान करा रहे हैं. यह गोदान ही हमारी रोजी-रोटी का जरिया है. चूंकि इतनी दूर से हम गाय नहीं ला सकते.
सो स्थानीय लोगों से रोजाना 1400 रुपये में गाय, और 600-700 रुपये में चैकी किराये पर लेते हैं, फिर मेला प्रशासन से गोदान कराने की अनुमति के रूप में 60 रुपये का पूजा रसीद कटाते हैं. एक गाय से पांच-सात लोगों को गो-दान का संकल्प कराते हैं.
अपने सामर्थ्य के हिसाब से यजमान दान देते हैं. कभी-कभी तो पैसों के अलावा कपड़ा और कुछ गहने भी मिल जाता है. यह हमारे लिए नो प्रॉफिट और नो लॉस वाली रोजी-रोटी है. वहीं बंगाल के सोनारपुर से अपने बाबा के साथ 11वीं क्लास में पढ़ने वाली बिटिया भी गाय दान कराती हुईं घाट पर नजर आयीं.

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