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बोले फिरहाद हकीम – लोकतंत्र की हत्या करनेवाले के मुंह से लोकतंत्र की बात बेमानी

कोलकाता : गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए जिनके कार्यकाल में सबसे ज्यादा एनकाउंटर हुआ हो, जिनके प्रधानमंत्री रहते हुए भाजपा शासित राज्यों में सबसे अधिक लोगों को पीट कर हत्या करने का चलन हुआ हो, जिनके राज में किसान वंचित हुए हों वह शख्स कैसे लोकतंत्र की बात कर सकता है. यह बात कोई और […]

कोलकाता : गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए जिनके कार्यकाल में सबसे ज्यादा एनकाउंटर हुआ हो, जिनके प्रधानमंत्री रहते हुए भाजपा शासित राज्यों में सबसे अधिक लोगों को पीट कर हत्या करने का चलन हुआ हो, जिनके राज में किसान वंचित हुए हों वह शख्स कैसे लोकतंत्र की बात कर सकता है. यह बात कोई और नहीं, बल्कि कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम ने अपने पार्षद पद के चुनाव के दौरान प्रचार में यह बात कही है.
उल्लेखनीय है कि वार्ड नंबर 82 में चुनाव होने वाला है. उक्त चुनाव में प्रचार का आज अंतिम दिन था. लिहाजा प्रचार पूरे शबाब पर हैे. सुबह चेतला अग्रणी क्लब के सामने से फिरहाद ने प्रचार शुरू किया. उनके साथ कोलकाता नगर निगम के डेपुटी मेयर अतिन घोष व राज्य के दमकल मंत्री सुजीत बसु भी मौजूद थे.
फिरहाद ने कहा कि राज्य में लोकतंत्र है कि नहीं, इसका उत्तर ममता बनर्जी ने दे दिया है. यहां लोकतंत्र है इसलिए सभी लोग सम्मान के साथ सर उठा कर जी रहे हैं.
उन्होंने कहा कि पिछले 15 सालों से वह इस वार्ड के पार्षद रह चुके हैं. एक बार फिर यहां से चुनाव लड़ते हुए उन्हें अच्छा लग रहा है. लोगों का आशीर्वाद उनको मिल रहा है, क्योंकि वह लोगों को साथ लेकर चलने में यकीन करते हैं.
उल्लेखनीय है कि इस वार्ड से माकपा और कांग्रेस के अलावा भाजपा उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन फिरहाद का मुकाबला मुख्य रूप से भाजपा के उम्मीदवार जीवन सेन से है.
मेयर के खिलाफ दायर याचिका खारिज
कोलकाता. नगर विकास मंत्री फिरहाद हकीम के मेयर बनने के खिलाफ कलकत्ता हाइकोर्ट में याचिका दायर करने वाली माकपा पार्षद बिलकिस बेगम के आवेदन को न्यायाधीश देवांशु बसाक ने खारिज कर दिया.
गौरतलब है कि 1980 के नगर निगम के कानून में संशोधन लाकर श्री हकीम को मेयर बनाया गया था. संशोधित कानून के तहत पार्षद न होने पर मेयर होने की स्थिति में छह महीने के भीतर निगम के किसी भी वार्ड से पार्षद का चुनाव जीतना होगा.
संशोधित कानून को चुनौती देते हुए 75 नंबर वार्ड की पार्षद बिलकिस बेगम ने हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी. उनके वकील विकास रंजन भट्टाचार्य का कहना था कि संविधान के 243 धारा के तहत नगर निगम का मेयर केवल चुने हुए पार्षद ही बन सकते हैं. लेकिन राज्य सरकार ने 1980 के कानून को संशोधित करके उन्हें मेयर बनाया.
यह संविधान के खिलाफ है. इसके अलावा 1980 के कानून में संशोधन करने के लिए राष्ट्रपति की अनुमति सरकार ने नहीं ली है. इसलिए अदालत मेयर चुनाव को स्थगित करे. इस पर राज्य का कहना था कि संविधान के मुताबिक ही निगम के कानून में संशोधन किया गया है. संशोधित कानून संविधान के खिलाफ नहीं है.
इसके अलावा प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री पद पर भी किसी बाहरी व्यक्ति को बनाने पर छह महीने के भीतर चुनाव जीतना पड़ता है. तो यह मेयर पद के लिए क्यों नहीं हो सकता? इस कानून में संशोधन के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी की जरूरत नहीं है.
राज्य का यह भी कहना था कि जिस पार्टी (माकपा) का बहुमत निगम में नहीं है उस पार्टी के पार्षद को इस विषय पर मामला दायर करने का अधिकार नहीं है. याचिकाकर्ता के वोट देने का अधिकार तो बाधित नहीं हो रहा. मामले की सुनवाई के बाद अदालत ने फैसले को स्थगित रखा था. शुक्रवार को अदालत ने याचिका को खारिज किया.

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