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विधानसभा में विपक्ष बहस कराने पर अड़ा, नहीं पास हुआ एसएससी बिल

कोलकाता : ऐसा बहुत कम देखा गया है, जब राज्य सरकार ने बिल पेश करने के बाद विपक्षी पार्टियों की मांग को तवज्जो दिया हो. लेकिन गुरुवार को विधानसभा में एक अलग ही नजारा देखने को मिला. राज्य सरकार ने विपक्षी पार्टियों के विधायकों की मांग को स्वीकार करते हुए पेश किये गये विधेयक को […]

कोलकाता : ऐसा बहुत कम देखा गया है, जब राज्य सरकार ने बिल पेश करने के बाद विपक्षी पार्टियों की मांग को तवज्जो दिया हो. लेकिन गुरुवार को विधानसभा में एक अलग ही नजारा देखने को मिला. राज्य सरकार ने विपक्षी पार्टियों के विधायकों की मांग को स्वीकार करते हुए पेश किये गये विधेयक को पास नहीं कराया और इस पर बहस जारी रखने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.

राज्य सरकार की ओर से गुरुवार को ‘द वेस्ट बंगाल स्टाफ सेलेक्शन कमीशन इ (रिपीलिंग) (रिपीलिंग) बिल 2019 ‘ पेश किया गया, लेकिन विपक्षी विधायकों की आपत्ति के बाद राज्य सरकार बिल को पास कराने से पीछे हट गयी. गुरुवार को विधेयक पास नहीं हुआ. इस विधेयक पर चर्चा करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष ने एक और दिन का समय दिया है. इस पर तीन सितंबर को बहस जारी रहेगी. इस घटना को विपक्ष ने संसदीय प्रक्रिया की जीत करार दिया है.
गौरतलब है कि ग्रुप डी समेत अन्य सरकारी पदों पर नियुक्ति के लिए राज्य सरकार ने वेस्ट बंगाल स्टाफ सेलेक्शन कमीशन एक्ट, 2011 पारित किया था. इसके बाद राज्य सरकार ने वेस्ट बंगाल स्टाफ सेलेक्शन कमीशन (रिपीलिंग) एक्ट, 2017 पारित कर पुराने बिल को रद्द कर दिया था. अब इस बिल को दोबारा लागू करने के लिए गुरुवार को राज्य के संसदीय कार्य मंत्री डॉ पार्थ चटर्जी ने विधानसभा में ‘ द वेस्ट बंगाल स्टाफ सिलेक्शन कमीशन इ (रिपीलिंग) (रिपीलिंग) बिल 2019 ‘ पेश किया. लेकिन माकपा और कांग्रेस के विधायकों ने इसकी कानूनी वैधता को लेकर सवाल खड़े किये.
विधायकों ने इस बिल पर और अधिक चर्चा करने की मांग की और आवश्यकता पड़ने पर इसकी भाषा बदलने की मांग भी रखी.
विधानसभा में बिल पेश होने के बाद इस पर चर्चा के दौरान विपक्ष के नेता अब्दुल मन्नान व कांग्रेस विधायक असित मित्रा, माकपा विधायक प्रदीप साहा ने इसकी कानूनी जटिलताओं का जिक्र किया. नये कानून में लिखा गया है इस कमीशन को शुरू करने को लेकर राज्य सरकार की कोई आर्थिक जिम्मेवारी नहीं है. इसे लेकर विपक्षी पार्टी के विधायकों ने सवाल उठाये.
विपक्ष के नेता अब्दुल मन्नान, माकपा विधायक दल के नेता सुजन चक्रवर्ती व असित मित्रा ने इसमें संशोधन की मांग की. कांग्रेस विधायक असित मित्रा ने कहा कि सरकार मोहम्मद बिन तुगलक की तरह व्यवहार कर रही है. इसे रोक कर नये सिरे से बिल लाने की जरूरत है. परिचर्चा सत्र के बीच विधानसभा अध्यक्ष िबमान बनर्जी ने राज्य के शिक्षा और संसदीय कार्य मंत्री पार्थ चटर्जी को राज्य सरकार का पक्ष रखने के लिए आमंत्रित किया. पार्थ ने कहा कि जब तक विपक्षी विधायकों की आपत्ति को दूर कर इस पर विस्तार से चर्चा नहीं हो जाती है, तब तक बिल को पारित नहीं किया जायेगा.
उसके बाद राज्य सरकार की सहमति से विधानसभा अध्यक्ष ने इस बिल पर आगामी तीन सितंबर को चर्चा करने की अनुमति दी. भाजपा विधायक दल के नेता मनोज तिग्गा ने बाद में संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि इस बिल को पहले ही एक बार संशोधित किया जा चुका है, इसे एक बार फिर संशोधित नहीं किया जा सकता. 2021 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने यह भ्रामक बिल लाया है. विधानसभा से बाहर मीडिया से बात करते हुए अब्दुल मन्नान ने कहा कि लोगों को रोजगार मिलना चाहिए, हम इसके खिलाफ नहीं है, लेकिन प्रक्रिया संविधान के अनुकूल हो. सुजन चक्रवर्ती ने कहा कि 2011 में सरकार ने इस बिल को लाया था.
2017 में बंद कर दिया था और अब 2019 में दोबारा लाया जा रहा है. विपक्ष ने अगर विरोध नहीं किया होता, तो इस त्रुटिपूर्ण बिल को राज्य सरकार जबरन पारित करा लेती.

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