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कोलकाता : खाने लायक नहीं रहीं गंगा नदी की मछलियां

कोलकाता : जहां एक ओर पूरी दुनिया में इस समय टेन इयर चैलेंज चल रहा है. लोग अपने 10 साल पुराने फोटो को वर्तमान के फोटो के साथ खूब शेयर कर रहे हैं. लाेग अपनी खूबसूरती व खूबियों को साझा कर रहे हैं. इन 10 वर्षों में कई स्थानों पर कई सकारात्मक बदलाव भी आये […]

कोलकाता : जहां एक ओर पूरी दुनिया में इस समय टेन इयर चैलेंज चल रहा है. लोग अपने 10 साल पुराने फोटो को वर्तमान के फोटो के साथ खूब शेयर कर रहे हैं. लाेग अपनी खूबसूरती व खूबियों को साझा कर रहे हैं. इन 10 वर्षों में कई स्थानों पर कई सकारात्मक बदलाव भी आये हैं, लेकिन भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी ‘गंगा’ की हालत बद से बदतर हो गयी है.

पिछले 10 वर्षों में गंगा नदी और भी मैली हो गयी है. हालांकि, इस नदी की सफाई के लिए कई बार पहल की गयी, लेकिन अभी तक इसकी सफाई नहीं हो पायी. एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऋषिकेश से लेकर कोलकाता तक गंगा के किनारे परमाणु बिजली घर और कई तरह के रासायनिक खाद के कारखाने हैं. इनसे भी भारी मात्रा में गंगा प्रदूषित हो रही है.

गंगा की जल धारा में विषाक्त भारी धातुएं जैसे कैडमियम, आर्सेनिक, क्रोमियम, लेड, मरकरी, आयरन, निकिल, जिंक तथा घातक कीटनाशकों से मछलियां भी नहीं बच सकी हैं.
वैज्ञानिक अध्ययनों में साबित हो गया है कि गंगा नदी की मछलियों में भारी धातुओं व कीटनाशकों की मौजूदगी के कारण खाने लायक नहीं रह गयी हैं. वहीं, प्रदूषित नदी के जल से मछलियों की संख्या में भी लगातार कमी होती जा रही है. इन विषाक्त मछलियों की तादाद गंगा के मुख्य प्रदूषित हिस्सों कानपुर, वाराणसी, इलाहाबाद और कोलकाता में सबसे ज्यादा पायी गयी है.
अंतरराष्ट्रीय जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित एनबीआरआइ के वैज्ञानिक डॉ संजय द्विवेदी, डॉ सीमा मिश्रा और डॉ आरडी त्रिपाठी के गंगा जल प्रदूषण पर शोध पत्र में गंगा की मछलियों से जुड़ी विषाक्तता के तमाम वैज्ञानिक पहलुओं और उनसे मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले खतरों की पड़ताल की गयी है.
भारी धातुओं और कीटनाशकों की अनदेखी
90 के दशक में ही गंगा, गोमती जैसी नदियों में कीटनाशकों की भारी मात्रा में मौजूदगी की पुष्टि की गयी थी. वैज्ञानिकों ने बीते डेढ़ दशकों में किये गये अध्ययनों में पाया है कि गंगा में भारी मात्रा में कीटनाशक और विषाक्त भारी धातु मौजूद हैं. हैरानी यह है कि 1986 से आरंभ गंगा एक्शन प्लान से लेकर राष्ट्रीय क्लीन गंगा मिशन में कीटनाशकों व भारी धातुओं की विषाक्तता की पड़ताल को शामिल नहीं किया गया है. सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर, आइसीएआर के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डॉ कुलदीप कुमार ने बताया कि कीटनाशक व भारी धातुओं का गंगा की मछलियों में मिलना कतई अप्रत्याशित नहीं है
. मछलियां जैसे पानी में रहेंगी उन पर असर भी वैसा ही होगा. चूंकि बड़ी आबादी भोजन के लिए इस पर निर्भर है तो जाहिर है कि उनकी सेहत भी दांव पर है. भारी धातुओं का स्रोत, उद्योगों से उत्सर्जित होनेवाला उत्प्रवाह व सीवेज है. इसे रोका जाना जरूरी है.
कीटनाशकों से मछलियों की जैव विविधता हो रही प्रभावित
शोध के अनुसार भारी धातुओं और कीटनाशकों से मछलियों की जैव विविधता के साथ उनकी सेहत भी प्रभावित हो रही है. डॉ. द्विवेदी बताते हैं कि बीते 10-15 वर्षों में किये गये विभिन्न अध्ययनों से पुष्टि हुई है कि जहरीली भारी धातु और कीटनाशक मछलियों के यकृत, गुर्दे, मांसपेशियां, त्वचा सहित विभिन्न अंगों को विषाक्त कर रहे हैं जिससे मछलियों का जीवन खतरे में होने के साथ उसके सेवन से इंसानी सेहत भी दांव पर है.
ऐसी मछलियों के सेवन से मनुष्यों में कैंसर व अन्य घातक बीमारियों के बढ़ने का खतरा रहता है. राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआइ) के निदेशक प्रो एसके बारिक ने गंगा पर और गहन अध्ययन की योजना बनायी है. अध्ययन में गंगा में मछलियों की लगभग 135 प्रजातियां जैसे रोहू, कतला, मृगल, हिलसा, थिलेपिया, टेंगरा, पड़हन सहित तमाम विदेशी किस्मों को सीधे फूड चेन में शामिल होने से बड़ी मात्रा में व्यवसायिक प्रयोग में लाया जाता है. वहीं, स्थानीय स्तर पर यह मछलियां लोगों की कमाई का जरिया बनी हुई है.

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