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कोलकाता : केंद्र में गठबंधन की सरकार बनी, तो नेताजी जयंती पर होगा राष्ट्रीय अवकाश होगा – फिरहाद

कोलकाता : राज्य के शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम ने कहा कि केंद्र में अगर गठबंधन की सरकार आती है, तो वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करेंगे. नेताजी भारत के एक सर्वमान्य नेता हैं, जिनका जन्मदिन तो है लेकिन मृत्यु दिन नहीं है. सीएम ममता बनर्जी शुरू से ही […]

कोलकाता : राज्य के शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम ने कहा कि केंद्र में अगर गठबंधन की सरकार आती है, तो वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करेंगे. नेताजी भारत के एक सर्वमान्य नेता हैं, जिनका जन्मदिन तो है लेकिन मृत्यु दिन नहीं है. सीएम ममता बनर्जी शुरू से ही नेताजी की जयंती पर राष्ट्रीय अवकाश की मांग करती आ रही हैं.

इस दिन को वह राष्ट्रीय मान्यता देने की मांग करती रही हैं. ममता बनर्जी की बात को सार्वजनिक मंच से फिरहाद ने दोहराया और कहा कि नेताजी के सम्मान में प्रधानमंत्री अंडमान निकोबार द्वीप का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस करके उन्हें उचित सम्मान दिया.

लेकिन राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने का काम गठबंधन की सरकार सत्ता में आने पर ममता बनर्जी की पहल पर होगा. फिरहाद हकीम खिदिरपुर में नेताजी की जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.

नेताजी की कुर्सी करेगी मार्गदर्शन
कोलकाता. कोलकाता नगर निगम मुख्यालय में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 123वीं जयंती पर झंडोत्तोलन के बाद मेयर फिरहाद हकीम ने संवादाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि नेताजी की जयंती को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करना चाहिए. नेताजी का योगदान निर्विवाद है. भाजपा के नेता, नेताजी के बारे में बहुत बात करते हैं, मगर अपने कार्यकाल में इस दिन को राष्ट्रीय अवकाश घोषित नहीं कर सके. एेसा होता तो यह नेताजी के लिए सम्मान होता मगर केंद्र सरकार उन्हें केवल अपने राजनीतिक फायदे के लिए प्रयोग करती है.
भविष्य में आने वाली केंद्र सरकार निश्चित रूप से नेताजी को महत्व देगी. धर्मनिरपेक्ष, प्रगतिशील भारत का एक सपना है. 22 अगस्त 1930 को कोलकाता नगर निगम के अध्यक्ष को नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रूप में चुना गया था. वह अप्रैल 1931 तक इस पद पर थे. केएमसी भवन के प्रवेश द्वार पर वह जिस कुर्सी पर बैठते थे, वह कुर्सी को लोगों के दर्शन के लिए आज भी मौजूद है.
भावुक होते हुए मेयर ने कहा कि जिस दिन वे पहली बार नेताजी की कुर्सी पर बैठे थे, उनका रोम-रोम पूरी तरह से खड़ा हो गया था. यह सोचकर कि, क्या वे इस कुर्सी पर बैठने के लिए लायक है. उनके आदर्शों के साथ काम करना ही मेयर की पहली चुनौती है.

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