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हावड़ा : रखरखाव के अभाव में बस अड्डों की हालत दयनीय

एक बस अड्डा बनाने में दो लाख से अधिक होता है खर्च पूरे तामझाम के साथ मेयर, मंत्री आैर विधायक करते हैं उद्घाटन कई बस अड्डों‍ पर लाइट का अभाव, तो कहीं कुर्सियां टूटी हुई हावड़ा : शहर में बनाये गये बस अड्डों का उद्घाटन पूरे तामझाम के साथ किया जाता है, लेकिन रख-रखाव आैर […]

  • एक बस अड्डा बनाने में दो लाख से अधिक होता है खर्च
  • पूरे तामझाम के साथ मेयर, मंत्री आैर विधायक करते हैं उद्घाटन
  • कई बस अड्डों‍ पर लाइट का अभाव, तो कहीं कुर्सियां टूटी हुई
हावड़ा : शहर में बनाये गये बस अड्डों का उद्घाटन पूरे तामझाम के साथ किया जाता है, लेकिन रख-रखाव आैर मरम्मत के अभाव में आधे से अधिक बस अड्डों की हालत जर्जर हो चुकी है. बस अड्डों में गंदगी पसरी हुई है. वहां खड़ा होना संभव नहीं है. मजबूरी वश यात्रियों को कुछ दूरी पर जाकर रूकना पड़ता है.
एक बस अड्डा बनाने में दो लाख से अधिक रुपये खर्च होते हैं. काफी धूमधाम के साथ उद्घाटन भी किया जाता है. मेयर से लेकर मंत्री तक उद्घाटन में पहुंचते हैं लेकिन कुछ महीना बीतने के बाद ही बस अड्डा दम तोड़ने लगता है. यात्रियों के लिए लगायी गयी सारी सुविधाएं खत्म होने लगती है. कुर्सियां टूट जाती हैं. सफाई रोज नहीं होने से गंदगी आैर बदबू रहता है. परेशानी यहीं खत्म नहीं हो रही है. बस अड्डों पर रात को कई लोग आकर सो जाते हैं.
बताया जाता है कि ये लोग मानसिक रुप से विकलांग हैं. रात के अंधेरे में यहां शराब आैर अन्य मादक का सेवन किया जाता है. पुलिस की नजर बेशक इनलोगों पर पड़ती है लेकिन पुलिस के लिए समस्या यह भी है कि ऐसे लोगों को आखिर कैसे लॉकअप के अंदर रखा जाये. बेलूड़ से लेकर हावड़ा मैदान तक सैकड़ों बस अड्डे बनाये गये हैं, लेकिन फिलहाल उन बस अड्डों की हालत ठीक नहीं है.
यात्रियों का आरोप है कि नगर निगम के जो प्रतिनिधि बस अड्डो‍ं का उद्घाटन करने पहुंचते हैं, उनकी नजरों से इनकी बदहाली कैसे बच जाती है. मालूम रहे कि पिछले 10 दिसंबर को हावड़ा नगर निगम के बोर्ड की मियाद खत्म हो चुकी है. पूरे काम का जिम्मा निगम आयुक्त बिजन कृष्णा संभाल रहे हैं.
कैसे बनाया जाता है बस अड्डा
शहर में कुछ बस अड्डे सांसद कोटे से बनाया गया है. उन बस अड्डों की भी हालत ठीक नहीं है. बाकी बस अड्डों का निर्माण कार्य विज्ञापन एजेंसी के जरिये होती है. नगर निगम अपने विज्ञापन एजेंसी को बस अड्डा बनाने का ठेका देती है. एक बस अड्डा बनाने में करीब ढाई लाख रुपये का खर्च आता है.
निर्माण कार्य पूरा होने के बाद निगम की विज्ञापन एजेंसी उस बस अड्डे में होर्डिंग आैर बैनर लगवाने के लिए रुपये लेती है. यहीं से विज्ञापन एजेंसी को राजस्व मिलता है, लेकिन एक बार बस अड्डा बन जाने के बाद रख-रखाव आैर मरम्मत पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है आैर नगर निगम भी ध्यान नहीं देती है.
कूचबिहार में स्थानीय प्रशासन की ओर से चार मंजिली एक इमारत बनायी गयी है. ये इमारत उनके लिए हैं, जो मानसिक रूप से विकलांग है‍ं आैर रहने के लिए घर नहीं है. ऐसे लोग सड़क पर नहीं भटके, इसके लिए भव्य बिल्डिंग का निर्माण किया गया है.

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