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कभी विपक्षी गठबंधन का आधार रहनेवाला आज हाशिये पर, राष्ट्रीय स्तर पर अतीत की परछाईं रह गया वामो

कोलकाता : एक समय विपक्षी गठबंधन का आधार रहनेवाला वाममोर्चा अब पहले जैसा मजबूत नहीं रहा है और ऐसा प्रतीत होता है कि वह ‘अतीत की परछाईं’ मात्र रह गया है. ऐसे में राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा से मुकाबला करने के लिए क्षेत्रीय पार्टियां माकपा व वाममोर्चा में शामिल घटक दलों का स्थान लेने लगी […]

कोलकाता : एक समय विपक्षी गठबंधन का आधार रहनेवाला वाममोर्चा अब पहले जैसा मजबूत नहीं रहा है और ऐसा प्रतीत होता है कि वह ‘अतीत की परछाईं’ मात्र रह गया है. ऐसे में राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा से मुकाबला करने के लिए क्षेत्रीय पार्टियां माकपा व वाममोर्चा में शामिल घटक दलों का स्थान लेने लगी हैं.
एक समय गैर-कांग्रेस व गैर-भाजपावाले तीसरे मोर्चे में विभिन्न क्षेत्रीय दलों के बीच वाममोर्चा की अहम भूमिका होती थी, लेकिन अब न तो वह संख्या है और न ही वह प्रभाव है.
राष्ट्रीय राजनीति में समाजवादी पार्टी हमेशा वाम दलों की भरोसेमंद सहयोगी रही है. पार्टी के उपाध्यक्ष किरणमय नंदा का कहना है कि अब वाम दलों की भूमिका महत्वहीन और अप्रासंगिक है.
क्षेत्रीय दल जो कभी वाम दलों की छत्रछाया में (राष्ट्रीय स्तर पर) कार्य करते थे, अब वे प्रमुख राजनीतिक ताकतें बन गये हैं और वाम दलों के पास गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए कोई करिश्माई नेता नहीं है.
उन्होंने कहा कि जब लोकसभा में वाम दलों के 50 से ज्यादा सांसद थे, उस समय माकपा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. वर्ष 1996 में संयुक्त मोर्चा के शासनकाल में और वर्ष 2004 में संप्रग-1 के दौरान माकपा नीत वाममोरचा के लोकसभा में क्रमश: 52 और 61 सदस्य थे.
वर्ष 1989 में वीपी सिंह सरकार के दौरान वाममोर्चा के लोकसभा में 52 सदस्य थे. लेकिन वर्ष 2014 में लोकसभा में उसके सांसदों की संख्या घटकर 11 रह गयी. उसने अपना मुख्य गढ़ पश्चिम बंगाल भी खो दिया.
महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए नहीं है पर्याप्त संख्या बल
माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य हन्नान मोल्ला ने कहा कि अतीत में कई मौकों पर वाममोर्चा ने विपक्षी ताकतों को एकजुट करने में प्रमुख भूमिका निभायी, लेकिन मौजूदा स्थिति में ऐसा करने के लिए संख्या बल नहीं है. हन्नान मोल्ला पार्टी की किसान इकाई अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव भी हैं.
कथित तौर पर उनका कहना है कि इस तथ्य को इनकार नहीं किया जा सकता है कि संसदीय राजनीति में संख्या एक महत्वपूर्ण कारक है. संसद में वाममोर्चा के पास जो ताकत है. उससे दमदार भूमिका निभाना संभव नहीं है. विभिन्न क्षेत्रीय दल अब वह भूमिका निभाने का प्रयास कर रहे हैं.

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