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Friday, March 29, 2024

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फर्जी कागजात के सहारे हो रही गाड़ियों की जमानत

बक्सर कोर्ट : गाड़ियों के दुर्घटनाग्रस्त होने पर ड्राइवर एवं गाड़ी दोनों का बेल कराना पड़ता है. गाड़ियों की जमानत के लिए ओनरबुक, ड्राइविंग लाइसेंस एवं बीमा के कागजात की आवश्यकता होती है. वहीं चालक के लिए ड्राइविंग लाइसेंस एवं बेलदार काफी होते हैं. गाड़ी मालिकों के लिए बीमा के कागजात को जमा करना टेढ़ीखीर […]

बक्सर कोर्ट : गाड़ियों के दुर्घटनाग्रस्त होने पर ड्राइवर एवं गाड़ी दोनों का बेल कराना पड़ता है. गाड़ियों की जमानत के लिए ओनरबुक, ड्राइविंग लाइसेंस एवं बीमा के कागजात की आवश्यकता होती है. वहीं चालक के लिए ड्राइविंग लाइसेंस एवं बेलदार काफी होते हैं. गाड़ी मालिकों के लिए बीमा के कागजात को जमा करना टेढ़ीखीर होता है. क्योंकि प्रत्येक वर्ष बस एवं ट्रकों के बीमा कराने में औसतन 25 से 30 हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं. ऐसे में इक्का-दुक्का व्यावसायिक बड़े वाहनों के बीमा के कागजात उपलब्ध करा पाते हैं. दुर्घटना की स्थिति में वाहन मालिकों द्वारा फर्जी बीमा के कागजात के सहारे गाड़ियों की जमानत आसानी से करा ली जाती है.

फर्जीवाड़े का ऐसे चलता है पता : फर्जी दस्तावेजों के सहारे गाड़ी मालिक अपने वाहनों को संबंधित थाने से आसानी से बेल के बाद लेकर चंपत हो जाते हैं. बाद में दुर्घटना में मृतक का परिवार जब मोटर एक्सीडेंट बीमा का लाभ लेने के लिए न्यायालय में पूर्व में जमा किये गये कागजात के आधार पर मुकदमा दाखिल करता है तो न्यायालय द्वारा संबंधित वाहन मालिक एवं बीमा कंपनी को नोटिस किया जाता है, जिसके बाद बीमा कंपनी उक्त मुकदमे में हाजिर होती है तथा बीमा के कागजात की जांच की जाती है. जांच के दौरान बीमा के कागजात के फर्जी होने या सही होने की पुष्टि होती है.
दाखिल हैं दर्जनों फर्जी बीमा के मामले: मोटर दुर्घटना में बीमा का लाभ देने के लिए विशेष ट्रिव्यूनल न्यायालय का गठन नहीं होने के चलते जिला एवं सत्र न्यायाधीश एवं अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश को ऐसे मुकदमों के सुनवाई का अधिकार है. घटना के फौरन बाद ही 50 हजार रुपये की राशि मुहैया कराने का प्रावधान है. बाद में मृतक की उम्र एवं आय के आधार पर राशि का भुगतान होता है. जिला जज के न्यायालय में लंबित मामला 9/2017(कंचन देवी बनाम यदुनाथ यादव वगैरह) ऐसा ही एक फर्जी पाया गया है.
डुमरांव मिशन स्कूल के पास बस के पलटने से दो लोगों की मौत हुई थी, जिसमें पहले परिवाद संख्या 2/2004 किरण देवी बनाम प्रमोद कुमार दाखिल किया गया था. जांच के बाद बीमा के कागजात फर्जी पाये गये जिसके बाद बीमा कंपनी का नाम मुकदमे से हटाकर गाड़ी मालिक के विरुद्ध कार्रवाई की गयी. कुछ वर्ष बाद उसी दुर्घटना में मारे गये एक अन्य व्यक्ति की पत्नी निर्मला देवी ने परिवाद संख्या 20/2004 दाखिल किया. जो अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वितीय सह एमएसीटी के न्यायालय में लंबित है.
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