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Movie Review: कैसी फिल्म है समलैंगिकता के मुद्दे पर बनी ”शुभ मंगल ज्यादा सावधान”?

फिल्म – शुभ मंगल ज्यादा सावधान निर्माता – आनंद एल राय निर्देशक – हितेश केवल्या कलाकार – आयुष्मान खुराना, जितेंद्र, नीना गुप्ता, गजराज राव, मानवी, पंखुड़ी रेटिंग – तीन उर्मिला कोरीसमलैंगिक रिश्ता हिंदी सिनेमा के लिए अछूता नहीं है. भारत में जब कानूनन इसे सही नहीं माना जाता था और अब जब सुप्रीम कोर्ट ने […]

  • फिल्म – शुभ मंगल ज्यादा सावधान
  • निर्माता – आनंद एल राय
  • निर्देशक – हितेश केवल्या
  • कलाकार – आयुष्मान खुराना, जितेंद्र, नीना गुप्ता, गजराज राव, मानवी, पंखुड़ी
  • रेटिंग – तीन

उर्मिला कोरी
समलैंगिक रिश्ता हिंदी सिनेमा के लिए अछूता नहीं है. भारत में जब कानूनन इसे सही नहीं माना जाता था और अब जब सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक रिश्ते को सही मान लिया है, इस अंतराल में कई फिल्में बनी हैं. फिल्म ‘फायर’ से ‘एक लड़की को देखा…’ तक हिंदी सिनेमा में इस रिश्ते को दिखाया जा चुका है. लेकिन यह पहला मौका होगा जब पॉपुलर ‘ए’ लिस्टर अभिनेता समलैंगिक किरदार को पर्दे पर जी रहा है.

अभिनेता आयुष्मान खुराना के हौसले और हिम्मत की तारीफ करनी होगी. फिल्म के निर्देशक भी बधाई के पात्र हैं, जो उन्होंने समलैंगिकता के विषय को पूरी मारफत के साथ दिखाया है, भले ही फिल्म का ट्रीटमेंट कॉमेडी रखा है.

फिल्म की कहानी की बात करें, तो कार्तिक (आयुष्मान) और अमन (जितेंद्र) ‘एक दूसरे के प्यार में चाहे कुछ भी हो जाए ये साथ ना छूटे’ वाला मामला दोनों का है लेकिन बनारस का मध्यमवर्गीय परिवार कैसे अपने बेटे अमन (जितेंद्र) के समलैंगिक होने और लड़के से ही शादी करने को राजी हो सकता है. अमन के वैज्ञानिक पिता (गजराज राव) को यह बीमारी लगती है. वो सोचते हैं कि अपने बेटे का रिश्ता किसी लड़की से करवा देंगे तो सब ठीक हो जाएगा. क्या अमन के पिता की यह सोच सही है? क्या वे अमन और कार्तिक को अलग कर पाएंगे या अमन के पिता और परिवार की सोच बदलेगी. यही फिल्म की आगे की कहानी है.

फिल्म मनोरंजन के साथ-साथ रिश्तों की अहमियत को समझाती है. यह फिल्म बताती है कि सभी को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार है. यह फिल्म समझौते वाले रिश्ते पर अपने अंदाज में तंज कसती है. फिल्म में कॉमेडी से ज्यादा व्यंग्य है. फिल्म में समलैंगिकता के मुद्दे पर फिल्म बहुत अच्छा टेक है. फिल्म में कॉमेडी और असल मुद्दे के बीच अच्छा संतुलन है इन खूबियों के बावजूद फिल्म की पटकथा और एडिटिंग पर थोड़ा और काम किया जाता, तो यह कालजयी फिल्मों की फेहरिस्त में शामिल हो सकती थी. इससे यह फिल्म चूक गयी है.

अभिनय की बात करें, तो आयुष्मान अपने चिर-परिचित अंदाज में नजर आये हैं. जितेंद्र फिल्म की खोज रहे हैं. उन्होंने अपने किरदार को बखूबी जिया है. कई दृश्यों में वह आयुष्मान पर भारी पड़ते नजर आये हैं. गजराज राव और नीना गुप्ता बधाई हो वाली अपनी ट्यूनिंग को इस फिल्म में भी आगे बढ़ाते दिखी है. चाचा और चाची की जोड़ी में मनु ऋषि और सुनीता का काम भी असरकारक रहा है. मानवी और पंखुड़ी का काम अच्छा रहा है. कुल मिलाकर फिल्म का अभिनय पक्ष शानदार है. फिल्म के संवाद अच्छे बन पड़े हैं, जो आपके होंठों पर हंसी तो कभी आंखों को नम भी कर जाते हैं.

गीत संगीत की बात करें, तो वह कहानी के अनुरूप हैं. यार बिना चैन कहां गीत थिएटर से निकलने के बाद भी याद रह जाता है. फिल्म की सिनेमाटोग्राफी अच्छी है. बनारस कहानी में एक अलग ही रंग भरता है. कुल मिलाकर कुछ खामियों के बावजूद यह फिल्म मनोरंजक और संदेशप्रद कोशिश है, जो पूरे परिवार के साथ देखी जानी चाहिए.

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