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दिलीप साहब भी जिनके अभिनय के सामने घबरा जाते थे, जानें कौन है व‍ह एक्टर

हिंदी सिनेमा के 60-70 के दशक में सूदखोर महाजन, बेईमान मुनीम और लाला जैसे पात्रों की भूमिका के लिए निर्देशकों के जेहन में केवल एक ही नाम होता था- कन्हैया लाल. फिल्म मदर इंडिया, गंगा जमना, उपकार, दुश्मन, अपना देश, गोपी, धरती कहे पुकार के और हम पांच आदि फिल्मों में उनके अभिनय को खूब […]

हिंदी सिनेमा के 60-70 के दशक में सूदखोर महाजन, बेईमान मुनीम और लाला जैसे पात्रों की भूमिका के लिए निर्देशकों के जेहन में केवल एक ही नाम होता था- कन्हैया लाल.

फिल्म मदर इंडिया, गंगा जमना, उपकार, दुश्मन, अपना देश, गोपी, धरती कहे पुकार के और हम पांच आदि फिल्मों में उनके अभिनय को खूब सराहा गया. शुरू से नाट्य लेखन व थिएटर से जुड़ाव उन्हें बनारस से खींचकर पहले कलकत्ता और फिर बंबई ले गया. मुंबई में अपना लिखा नाटक ‘पंद्रह अगस्त के बाद’ का मंचन किया. ‘एक ही रास्ता’(1939) में बांके के रोल में उन्हें अभिनय का अवसर मिला. फिर दो फिल्मों ‘भोले भाले’ और ‘सर्विस लिमिटेड’ में काम मिला और वह चरित्र अभिनेता के तौर पर पहचाने जाने लगे.

एक बार सुनील दत्त ने कहा था- मैं तो कैमरे के पीछे खड़े होकर उनकी परफॉरमेंस देखा करता था. उन्हें जरा भी एहसास नहीं था कि वे कैमरे के सामने क्या चमत्कार कर जाते हैं. फिल्म गंगा जमना में साथ काम कर चुके दिलीप साहब ने कहा था- मैं उनकी प्रस्तुति से बहुत घबराता था. उनका सामना करना बहुत मुश्किल होता था.

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