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फिर भी उत्पादन लक्ष्य से पीछे

मत्स्य पालन के लिए तालाब में 10 माह पानी की जरूरत जिला में सिर्फ 06 माह रहता है पानी बोकारो : बोकारो में हर साल औसत 1,291.2 एमएम वर्षा होती है. 1604 सरकारी तालाब व 400 के करीब निजी तालाब हैं. बरसात के मौसम में इन तालाबों में लबालब पानी भर जाता है. इस कारण […]

मत्स्य पालन के लिए तालाब में 10 माह पानी की जरूरत

जिला में सिर्फ 06 माह रहता है पानी
बोकारो : बोकारो में हर साल औसत 1,291.2 एमएम वर्षा होती है. 1604 सरकारी तालाब व 400 के करीब निजी तालाब हैं. बरसात के मौसम में इन तालाबों में लबालब पानी भर जाता है. इस कारण मत्स्य पालन भी होता है. साथ ही तेनुघाट डैम व कोनार डैम में भी बड़ी मात्रा में मछली पालन किया जाता है.
35 समिति व 10 हजार से अधिक लोग मछली पालन करते हैं. बावजूद इसके जिला मछली उत्पादन के लक्ष्य से पीछे रह जाता है. 2018-19 में जिला को 14 हजार मीट्रिक टन मछली उत्पादन का लक्ष्य दिया गया था. लेकिन, उत्पादन 12 हजार मीट्रिक टन ही हुआ.
जिला की जरूरत भी नहीं होती पूरी : 2011 की जनगणना के अनुसार जिला की जनसंख्या 20 लाख 61 हजार 911 है. अनु्रमान के मुताबिक इनमें से 60 फीसदी लोग मांसाहारी हैं. मानक के अनुसार हर दिन 14 ग्राम मछली को खाद्य में शामिल करना जरूरी है. इस हिसाब से बोकारो को प्रति दिन 173200 किलो मछली की जरूरत होगी. यदि साल में मासांहारी लोग 100 दिन (चास, चंदनकियारी, कसमार समेत अन्य क्षेत्र में बंगाली कल्चर की अधिकता होने व सस्ता होने के कारण) ही मछली का सेवन करें, तो साल में 17320000 किलो मछली की जरूरत होगी. लेकिन उत्पादन मात्र 12000000 किलो है. यानी सालाना 53 लाख किलो कम मछली का उत्पादन होता है.

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