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Friday, March 29, 2024

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तापसी पन्नू की फ़िल्म में बड़े एक्टर काम क्यों नहीं करते?

<p>&quot;पिंक, मुल्क, बदला, सांड़ की आँख जैसी फ़िल्मों में सशक्त महिलाओं के किरदार निभाने वालीं तापसी पन्नू युवा अभिनेत्रियों में महिला प्रधान फ़िल्में करने वाली अदाकारा के रूप में पहचान बना रही हैं.</p><p>लेकिन तापसी का कहना है कि महिला प्रधान फ़िल्मों को लेकर अभिनेत्रियों के बीच होड़ कम है क्योंकि फ़िल्म इंडस्ट्री में कई अभिनेत्रियां […]

<p>&quot;पिंक, मुल्क, बदला, सांड़ की आँख जैसी फ़िल्मों में सशक्त महिलाओं के किरदार निभाने वालीं तापसी पन्नू युवा अभिनेत्रियों में महिला प्रधान फ़िल्में करने वाली अदाकारा के रूप में पहचान बना रही हैं.</p><p>लेकिन तापसी का कहना है कि महिला प्रधान फ़िल्मों को लेकर अभिनेत्रियों के बीच होड़ कम है क्योंकि फ़िल्म इंडस्ट्री में कई अभिनेत्रियां फ़िल्मों का भार अपने कंधों पर नहीं लेना चाहती हैं. </p><p>वे कहती हैं, &quot;अगर फ़िल्म फ़्लॉप हुई तो बिल उनके नाम पर फटेगा इसलिए कई अभिनेत्रियां इसे सुरक्षित नहीं मानती हैं.&quot;</p><p>हालाँकि, तापसी को उनके करियर के शुरुआत से ही बड़े स्टार के साथ फ़िल्में नहीं मिलीं, इसलिए उनके पास सिर्फ़ ऐसी फ़िल्में करने का विकल्प रह गया.</p><p>तापसी मानती हैं कि आज भी उनके पास ज़्यादा विकल्प नहीं हैं.</p><p>वे कहती हैं, &quot;मैंने कभी नहीं कहा कि मैं हीरो से छोटे रोल नहीं करूंगी जबकि कई पुरुष अभिनेताओं ने मुझसे कहा है कि वो उन फ़िल्मों का हिस्सा नहीं बनेंगे जिसमे हीरो का रोल महिला किरदार से कम हो. ये संघर्ष मेरी हर फ़िल्म के साथ है क्योंकि मेरी हर फ़िल्म में महिला का किरदार सशक्त होता है और वो पुरुष अभिनेताओं के लिए ख़तरा है.&quot;</p><p>&quot;कई अभिनेताओं ने ये बात ख़ुद मुझसे कही है कि हम वो फ़िल्में नहीं कर सकते जिसमें महिला का किरदार बहुत स्ट्राँग हो और दूसरे किरदारों पर हावी हो जाए.&quot;</p><p>फ़िल्म इंडस्ट्री के दोगलेपन और मिसोजिनिस्ट रवैये पर तापसी को दुख जताती हैं. </p><p>उनका कहना है कि लम्बे अरसे से अभिनेत्रियाँ पुरुष प्रधान फ़िल्मों का हिस्सा बनती आई हैं जिसमें चार गाने और दो सीन होते थे. इसके बावजूद अभिनेत्रियां फ़िल्मों में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाती थीं लेकिन अब जब चीज़ें बदल रही हैं तो अभिनेता घबरा रहे हैं. कई महिला प्रधान फ़िल्में आई है और दर्शको ने उन्हें पसंद भी किया है. पर महिला प्रधान फ़िल्मों में स्टार अभिनेता नज़र नहीं आते हैं. </p><p>तापसी इसे फ़िल्म इंडस्ट्री की कड़वी सच्चाई मानती हैं. </p><p>तापसी का मानना है कि ये स्टार अपने अभिनय को लेकर असुरक्षित हैं या उन्हें लगता है कि महिला प्रधान फ़िल्मों का छोटा हिस्सा बनकर उनके स्टार पावर में कमी आ जाएगी. </p><p>वो दर्शकों को दोष देते हैं कि उनके दर्शक स्टार को ऐसे किरदारों में नहीं अपनाएंगे. </p><p>तापसी नाराज़ होते हुए कहती हैं कि ये सब स्टार महिला पुरुषों के बीच समानता के बारे में बात करते हैं पर महिला प्रधान फ़िल्मों का हिस्सा नहीं बनते. </p><p>तापसी अक्षय कुमार का बहुत आदर करती हैं कि बतौर सुपरस्टार वो मिशन मंगल जैसी महिला प्रधान फ़िल्म का हिस्सा बने जिसमें विद्या बालन का किरदार फ़िल्म में प्रधान था.</p><p>तापसी पन्नू अनुभव सिन्हा की आगामी फ़िल्म &quot;थप्पड़&quot; में नज़र आएगी जिसमें घरेलू हिंसा पर सवाल उठाये गए हैं. </p><p>फ़िल्म 28 फ़रवरी को रिलीज़ होगी.</p><p><strong>ऑस्कर तक</strong><strong> कैसे पहुचें हिंदी </strong><strong>फ़िल्में </strong><strong>- </strong><strong>गुनीत मोंगा </strong></p><p>पीरियड एंड ऑफ़ सेंटेंस के लिए 2018 में अकेडमी अवॉर्ड जीतने वाली निर्माता गुनीत मोंगा की कई फ़िल्में अंतराष्ट्रीय स्तर तक पहुंची हैं और हिंदी फ़िल्मों की छाप छोड़ी है जिसमें द लंचबॉक्स, पेड्ड्लर्स, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर 1 – 2, मसान आदि शामिल हैं.</p><p>लेकिन बतौर महिला निर्माता उनका फ़िल्मी सफ़र आसान नहीं रहा है. </p><p>गुनीत ने बताया कि बतौर महिला निर्माता उनसे सवाल नहीं पूछा गया पर उनकी छोटी उम्र के कारण उनके काम पर सवाल उठाये गए. </p><p>पर शार्ट डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म के लिए ऑस्कर जीतने के बाद उन्हें अब अपनी पहचान बताने की ज़रूरत नहीं पड़ती.</p><p>जहाँ इस साल कोरियन फ़िल्म पैरासाइट ने ऑस्कर जीतकर इतिहास रचा है. वही, हिंदी फ़िल्में ऑस्कर तक पहुँचने में संघर्ष कर रही है. </p><p>अब तक भारत द्वारा भेजी हुई मदर इंडिया और लगान ही ऑस्कर नॉमिनेशन तक पहुँच पाई हैं. </p><p>एक दशक से ज़्यादा से फ़िल्म कारोबार के गणित को समझने वाली गुनीत मोंगा का कहना है कि हिंदी फ़िल्में ऑस्कर में तब पहुँच पाएंगी जब एक अमरीकी डिस्ट्रीब्यूटर किसी हिंदी फ़िल्म का हिस्सा बनेगा. ऑस्कर तक पहुँचने की चाभी वही है. </p><p>वो कहती हैं, &quot;ऑस्कर अमरीकी अवॉर्ड है. आपको ऐसे लोगो की ज़रूरत है जो जानते हों कि फ़िल्म को वहां कैसे पहुँचाया जाए? वहाँ किस तरह से रिलीज़ किया जाये. एक हिंदी फ़िल्म में अमरीकी डिस्ट्रीब्यूटर का होना बहुत महत्वपूर्ण है उसी के बाद हम उम्मीद कर सकते हैं कि हिंदी फ़िल्मों की वहाँ कुछ हलचल हो और सही फ़िल्म का चयन हो. जैसे द लंचबॉक्स में अमरीकी डिस्ट्रीब्यूटर सोनी पिक्चर क्लासिक जुड़ा था वैसे ही पैरासाइट फ़िल्म से मेंनियोन फ़िल्म डिस्ट्रीब्यूटर जुड़ा था और इसलिए ये संभव हुआ.&quot;</p><p>गुनीत मोंगा ने अपने करियर में क़रीब 16 नए निर्देशकों को अपनी कहानी बताने का मौक़ा दिया है. </p><p>उनका कहना है कि नई पीढ़ी की कहानियाँ आज के दौर के साथ प्रासंगिक है इसलिए वो नौजवान निर्देशकों के साथ काम करना पसंद करती हैं. </p><p>अब वो सात नए निर्देशकों को शार्ट फ़िल्म &quot;ज़िन्दगी इनशॉर्ट&quot; के ज़रिये मौक़ा दे रही हैं जिसमें सात कहानियां होंगी. </p><p>इन कहानियों में कई जाने माने नाम जैसे नीना गुप्ता, ताहिरा कश्यप, स्वरूप सम्पत और संजय कपूर शामिल हैं. ये फ़िल्में फ्लिपकार्ट के डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ होंगी.&quot;</p><p><strong>कुछ लोग नाराज़ हैं क्योंकि मैंने नफ़रत, </strong><strong>ग़ुस्सा </strong><strong>और रेप नहीं दिखाया – विधु विनोद चोपड़ा</strong></p><p>फ़िल्म मेकर विधु विनोद चोपड़ा की फ़िल्म शिकारा को रिलीज़ के बाद काफ़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. </p><p>वहीं, काफ़ी लोग फ़िल्म की तारीफ़ भी कर रहे हैं.</p><p>सोशल मीडिया में इस फ़िल्म को लेकर यहाँ तक कहा जा रहा है कि फ़िल्म कश्मीरी पंडितों के निष्कासन के दर्द को ईमानदारी से नहीं दिखा पाई. </p><p>ऐसी तमाम आलोचनाओं का विधु विनोद चोपड़ा ने करारा जवाब दिया है.</p><p>बीबीसी हिंदी से ख़ास बात चीत में चोपड़ा कहते हैं, &quot;शिकारा मेरी अब तक की सबसे मुश्किल फ़िल्मों में से एक है. इसकी वजह इसकी लोकेशन थी. मैं वहाँ डेढ़ साल रहा, मैंने बहुत कुछ देखा. वहाँ शूटिंग करना मुश्किल था लेकिन ये फ़िल्म बनाना मेरे लिए बहुत ज़रूरी था क्योंकि ये फ़िल्म जोड़ना सिखाती है तोड़ना नहीं.&quot;</p><p>&quot;आप सब जानते ही हैं कि जब ये फ़िल्म रिलीज़ हुई तो बहुत लोगों ने कहा कि इस फ़िल्म में नफ़रत बहुत काम दिखाई गई है और नफ़रत दिखाइए, हिंसा दिखाइए, रेप सीन दिखाएं लेकिन मैंने ये फ़िल्म मेरी माँ के लिए बनाई है. मेरी माँ कश्मीर में रहती थी, उनका घर लुट गया और बहुत साल बाद जब वो वहां गई तो उन्होंने बस यही कहा कि सब ठीक हो जाएगा. मेरी माँ सब पड़ोसियों से मिलीं, सबको गले लगाया, उनके अंदर ज़रा सी भी नफ़रत नहीं थी तो मैं उनका बेटा नफ़रत कैसे दिखा सकता था.&quot;</p><p>विधु विनोद चोपड़ा कहते हैं कि मुझे जो बुरा लगता है वो ये है कि आज कल के ज़माने में नफ़रत और ग़ुस्सा बेचकर लोग पैसे कमाते हैं उनको ये समझ नहीं आता कि वो जो बेच रहे हैं वो उससे पैसे तो कमा लेंगे लेकिन देश में कितना ज़हर घोल रहे हैं. मुझे अपनी फ़िल्म से नफ़रत नहीं फैलानी थी और आइडिया भी यही था इसलिए मैंने अपनी फ़िल्म का नाम शिकारा रखा.&quot;</p><p>&quot;मैंने अपनी फ़िल्म का नाम ये तो नहीं रखा ना? खंडित हूँ लेकिन पंडित हूँ , ऐसे लोगों को में क्या कहूं जो कहते है कि मैं दर्द नहीं दिखा पाया. शिकारा का मतलब भी एक ख़ूबसूरत नाव है, जिसमें दो लोग मोहब्बत में हैं और उसके नीचे पानी है नफ़रत का और उस पानी के नीचे रिफ्यूजी हैं ऐसा मेरा पहला पोस्टर था.&quot;</p><p>&quot;मैं बहुत आसान सी बात कह रहा था कि समस्या का समाधान निकालिये? मैंने अपने प्रधानमंत्री को अक्सर कहते सुना है सबका विश्वास सबका विकास तो क्या वो लोग जो लोग मेरी फ़िल्म के विरोध में हैं, वो चाहते हैं कि मैं कहूं सबका विनाश, सबका विनाश, मैं तो ये नहीं कह सकता. नफ़रत वाली फ़िल्में बहुत देखी हैं लेकिन हमने कभी नहीं कहा कि हम नफ़रत बेचेंगे.&quot;</p><figure> <img alt="स्पोर्ट्स विमेन ऑफ़ द ईयर" src="https://c.files.bbci.co.uk/12185/production/_110571147_footerfortextpieces.png" height="281" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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