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सेना में महिलाएं: सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला ‘सच्ची समानता’ ला सकेगा

<p>भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने पुरुषों की तरह महिलाओं को सेना में ‘कमांड पोस्ट’ देने पर अहम फ़ैसला सुनाया है. सोमवार को अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट के फ़ैसले को बरक़रार रखते हुए कहा है कि महिलाएं भी पुरुषों की तरह सेना में कमांड पोस्ट संभाल सकती हैं.</p><p>अदालत ने कहा कि सेना की सभी महिला अधिकारियों […]

<p>भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने पुरुषों की तरह महिलाओं को सेना में ‘कमांड पोस्ट’ देने पर अहम फ़ैसला सुनाया है. सोमवार को अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट के फ़ैसले को बरक़रार रखते हुए कहा है कि महिलाएं भी पुरुषों की तरह सेना में कमांड पोस्ट संभाल सकती हैं.</p><p>अदालत ने कहा कि सेना की सभी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन मिले, चाहे वो कितने भी समय से कार्यरत हों. अदालत ने इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के साल 2010 के फ़ैसले को बरक़रार रखा है.</p><p><strong><em>कमांड पोस्ट से मतलब है कि किसी सैन्य टुकड़ी की कमान संभालना यानी उस टुकड़ी का नेतृत्व करना.</em></strong></p><p><a href="https://twitter.com/ANI/status/1229273938401755136">https://twitter.com/ANI/status/1229273938401755136</a></p><p>इस मामले पर अपना फ़ैसला देते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी ने कहा कि-</p> <ul> <li>समाजिक धारणाओं के आधार पर महिलाओं को समान मौक़े न मिलना परेशान करने वाला और अस्वीकार्य है.</li> <li>महिला सैन्य अधिकारियों को परमानेंट कमीशन न देना सरकार के पूर्वाग्रह को दिखाता है.</li> <li>केंद्र सरकार को महिलाओं के बारे में मानसिकता बदलनी होगी और सेना में समानता लानी होगी.</li> <li>महिलाओं का कमांड पोस्ट पर प्रतिबंध अतार्किक है और समानता के ख़िलाफ़ है.</li> </ul><p>फ़ैसला सुनाते हुए जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘समानता का अधिकार एक तार्किक अधिकार है.’ </p><p>सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में स्पष्ट किया कि अगर महिलाओं की क्षमता और उपलब्धियों पर शक किया जाता है तो ये महिलाओं के साथ-साथ सेना का भी अपमान है.</p><p>याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को प्रगतिशील बताते हुए इस पर ख़ुशी जताई है. </p><p>फ़ैसला आने के बाद सुप्रीम कोर्ट परिसर में मौजूद महिला सैन्य अधिकारियों ने कहा कि यह फ़ैसला बेहद ख़ुशी वाला है. उन्होंने कहा कि यह फ़ैसला गौरवांवित करने वाला और ऐतिहासिक है. </p><p>परिसर में मौजूद एक महिला सैन्य अधिकारी ने मीडिया के सवालों का जवाब देते हए कहा, &quot;हमारा ऑर्गेनाइज़ेशन सबसे बेहतरीन है और इसीलिए हम इसमें रहना चाहते हैं.&quot;</p><p>उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से सिर्फ़ आर्मी की महिलाएं ही ऊपर नहीं उठेंगी. उनके अनुसार इससे देश के हर तबक़े की महिला आगे बढ़ेगी और ये हर औरत के लिए है. </p><p>हालांकि उन्होंने ये ज़रूर माना कि किसी को सिर्फ़ यूंही कमांडिंग पोज़िशन नहीं दी जा सकती और इसके लिए ट्रेनिंग बेहद ज़रूरी है.</p><p>भारतीय सेना की लेफ़्टिनेंट कर्नल सीमा सिंह ने पत्रकारों से कहा, &quot;आप किसी को ऐसे ही कमांडिंग पोज़िशन तो नहीं दे सकते हैं. उसके लिए ट्रेंनिंग की ज़रूरत है. आप उसके लिए ट्रेंनिंग कराइए और जो उन मापदंडों पर खरा उतरे, उसे विकल्प दें.&quot;</p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2013/03/130305_gallery_royal_artillery_women_soldier_vd?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">तस्वीरें युद्ध के मोर्चे पर ये महिला सैनिक..-</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-39455418?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">नॉर्वे की कड़क, जांबाज़ महिला सैनिक</a></p><p>उन्होंने स्पष्ट किया कि 25 फ़रवरी 2019 का जो ऑर्डर कोर्ट ने दिया था वो हर महिला सैन्य अधिकारी पर लागू होगा. </p><p>इससे पूर्व सरकार की दलीलों पर जवाब देते हुए याचिकाकर्ताओं की वकील मीनाक्षी लेखी और ऐश्वर्या भाटी ने कहा था कि कई महिलाओं ने विपरीत परिस्थितियों में असाधारण प्रदर्शन किया है.</p><p>एक ओर जहां यह लैंगिक समानता का मुद्दा है वहीं याचिकाकर्ताओं की वकीलों का कहना था कि यह सिर्फ़ लैंगिक समानता नहीं बल्कि समान अवसरों का भी मुद्दा है.</p><figure> <img alt="सैन्य अधिकारी" src="https://c.files.bbci.co.uk/0B57/production/_110930920_5916d632-c550-446f-997a-bfd626a7a774.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>दिये थे उदाहरण भी</h1><p>सुप्रीम कोर्ट में दलील के दौरान उन्होंने फ़्लाइट कंट्रोलर मिंटी अग्रवाल का उदाहरण दिया था. यह वही विंग कमांडर थीं जिन्होंने पाकिस्तान में बंधक बनाए गए विंग कमांडर अभिनंदन को गाइड किया था.</p><p>इसके अलावा उन्होंने मिताली मधुमिता का भी उदाहरण दिया था, जिन्हें उनकी बहादुरी के लिए सेना मेडल से नवाज़ा गया था. दलीलों में दिव्या अजीत कुमार, भारतीय वायुसेना की गुंजन सक्सेना का नाम भी लिया गया.</p><h1>क्या थी सरकार की दलील?</h1><p>केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले को चुनौती दी थी.</p><p><strong>सरकार की दलीलें…</strong></p> <ul> <li>महिलाओं को सेना में ‘कमांड पोस्ट’ नहीं दी जा सकती क्योंकि अपनी शारीरिक क्षमता की सीमाओं और घरेलू दायित्वों की वजह से वो सैन्य सेवाओं की चुनौतियों और ख़तरों का सामना नहीं कर पाएंगी.</li> <li>महिलाएं गर्भावस्था की वजह से लंबे वक़्त तक काम से दूर रहती हैं. </li> <li>वो मां होती हैं, परिवार और बच्चों के प्रति उनकी कई ज़िम्मेदारियां होती हैं. इसलिए औरतों के लिए ये एक बड़ी चुनौती होगी.</li> <li>महिलाओं को सीधी लड़ाई में नहीं उतारा जाना चाहिए क्योंकि अगर उन्हें युद्ध बंदी बना लिया गया तो ‘ये उस व्यक्ति, संस्था और पूरी सरकार के लिए शारीरिक और मानसिक तौर पर बहुत तनावपूर्ण होगा’.</li> <li>पुरुष सैन्य अधिकारी महिलाओं को अपने समकक्ष स्वीकार नहीं कर पाएंगे क्योंकि सेना में ज़्यादातर पुरुष ग्रामीण इलाक़ों से आते हैं.</li> </ul><p>सरकार की इन दलीलों पर फ़ैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 14 साल से अधिक की सेवा के लिए महिलाओं को स्थायी कमीशन देने से इनकार करना न्याय का मज़ाक़ उड़ाने जैसा है. </p><p>सुप्रीम कोर्ट ने जारी निर्देशों को लागू करने के लिए तीन महीने का समय दिया है. </p><p><strong>फ़ैसला आने से पहले की</strong><strong> स्थिति?</strong></p><p>ऐसा नहीं है कि भारतीय सेना में महिलाएं बिल्कुल नहीं है. लेकिन अभी तक उन्हें कॉम्बैट भूमिका नहीं मिली है. भारतीय सेना में कॉम्बैट सपोर्ट सर्विसेज में कुछ हद तक महिलाएं कमांड करती हैं लेकिन उन्हें स्वतंत्र रूप से कमांड नहीं दी गई है.</p><p>सेना में महिलाओं को आर्मी एजुकेशन कोर और न्यायाधीश महाधिवक्ता विभाग में ही स्थायी कमीशन देती है. सेना में अधिकतर महिलाओं की भर्ती शॉर्ट सरविस कमीशन के तहत होती है और उनका कार्यकाल अधिकतम 14 साल का होता है. हालांकि वायुसेना में महिलाएं लड़ाकू पायलट की भूमिका में प्रवेश पा चुकी हैं. </p><p>स्थायी कमीशन का अर्थ है कि उक्त अधिकारी तब तक पद पर बना रहेगा जब तक वह सेवानिवृत्त ना हो जाए. </p><figure> <img alt="सैन्य अधिकारी" src="https://c.files.bbci.co.uk/5977/production/_110930922_a6bcd7ff-310b-4c20-abcd-fb2eff60886e.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>दुनिया के दूसरे देशों में क्या है स्थिति?</h1><p>एक ओर जहां भारत में महिलाओं को सेना में ‘सच्ची समानता’ देने पर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फ़ैसला दिया है वहीं दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां महिलाएं सेना में कमांडिंग पोज़ीशन में हैं.</p><p>अगर इतिहास की बात करें तो दूसरे विश्व युद्ध में सैनिकों की कमी हुई तो बहुत से देशों ने औरतों को सेना में शामिल किया लेकिन सिर्फ़ सोवियत संघ ने उन्हें युद्ध करने भेजा.</p><p>हालांकि विघटन के बाद के रूस में औरतों को युद्ध में लड़ने की इजाज़त नहीं है.</p><p>दुनियाभर में 1980 के दशक तक औरतें प्रशासनिक और सहायक भूमिकाओं में रहीं.</p><p>बड़ा बदलाव 21सवीं सदी की शुरुआत में आया जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और शांति में औरतों की समान भूमिका पर प्रस्ताव पारित किया.</p><p>ये वही व़क्त था जब अमरीका के न्यूयॉर्क में 11 सितंबर 2001 को चरमपंथी हमला हुआ जिसके बाद अमरीका और ब्रिटेन ने अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ में सेना भेजी.</p><p>इन सेनाओं में औरतों की ख़ास टुकड़ियां थीं जिन्हें ‘फ़ीमेल एंगेजमेंट टीम’ कहा जाता था.</p><p>अमरीका और ब्रिटेन में औपचारिक रूप से औरतों को युद्ध में शामिल होने की इजाज़त नहीं थी. पर जंग की ज़रूरतें ऐसी थीं कि उनकी टीमें शामिल भी हुईं और क़रीब 150 औरतों की युद्ध में जान भी गई.</p><p>अमरीका में ये औपचारिक इजाज़त 2013 में दी गई.</p><p>इसके बाद साल 2016 में ब्रिटेन ने भी रोक हटा दी और औरतों को युद्ध में लड़ने की इजाज़त दी. </p><p>इस फ़ैसले तक पहुंचने के लिए ब्रिटेन ने उन देशों का सर्वे किया जहां औरतों को ‘क्लोज़ कॉम्बैट’ यानी ‘ज़मीनी युद्ध’ में शामिल होने की इजाज़त है.</p><p>सर्वे मुश्किल था क्योंकि अलग-अलग देशों ने औरतों को अलग तरीक़ों से शामिल किया है. कहीं उनकी अलग टुकड़ियां हैं और कहीं वो मर्दों के साथ एक ही बटालियन में हैं.</p><p>सर्वे में पाया गया कि अफ़ग़ानिस्तान की जंग ने सिर्फ़ अमरीका और ब्रिटेन की औरतों के लिए ही दरवाज़े नहीं खोले, बल्कि गठबंधन देशों, कनाडा, जर्मनी, पोलैंड, स्वीडन और ऑस्ट्रेलिया ने भी तब पहली बार औरतों को युद्ध में भेजा.</p><p>इनमें से कई देशों में औरतों को युद्ध में शामिल होने की औपचारिक इजाज़त उनके युद्ध में हिस्सा लेने के बाद ही दी गई.</p><p>मसलन ऑस्ट्रेलिया में रक्षा मंत्री स्टीफ़न स्मिथ ने सेना में कुछ ‘यौन शोषण के मामले’ सामने आने के बाद साल 2011 में किया.</p><p>छोटे देश होने के बावजूद बड़ी सेनाएं रखने वाले इसराइल और उत्तर कोरिया में भी औरतों को युद्ध में शामिल होने की इजाज़त है.</p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-41166796?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">कैसे मिली औरतों को जंग लड़ने की इजाज़त?</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-42485795?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">कौन थीं किम जोंग-उन की लड़ाकू दादी?</a></p><p>फिर कुछ ऐसे देश हैं, जहां युद्ध में औरतों को हिस्सेदारी देने की असल वजह उदारवादी सोच है. दुनिया में मर्द और औरतों की बराबरी के मामले में सबसे आगे आनेवाले स्कैनडिनेवियन देश, नॉर्वे, फ़िनलैंड और स्वीडन में ये इजाज़त है.</p><p>साल 2018 में नैटो में शामिल स्लोवेनिया एकमात्र ऐसा देश बना जिसने एक महिला को देश के सेना प्रमुख के रूप में नियुक्त किया.</p><p>फ्रांस में महिलाएं पनडुब्बियों और दंगा-नियंत्रण दल को छोड़कर फ्रांसिसी सेना में सेवा दे सकती हैं.</p><figure> <img alt="सैन्य अधिकारी" src="https://c.files.bbci.co.uk/A797/production/_110930924_686c1f80-c31a-489a-b9e9-65a9c076ca17.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>फ़ैसले का स्वागत लेकिन कुछ सवाल भी हैं</h1><p>एक ओर जहां सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आर्मी के संदर्भ में समानता के हक़ में फ़ैसला सुना दिया है वहीं नेवी में क्या नीति होनी चाहिए, इस पर फ़ैसला मंगलवार को आ सकता है. </p><p>बीबीसी से बात करते हुए कमांडर प्रसन्ना ने कहा, &quot;हम इस फ़ैसले से बहुत ख़ुश हैं. आज आर्मी के लिए फ़ैसला आ गया है और कल नेवी के फ़ैसला आ सकता है.&quot;</p><p>वो उम्मीद कर रही हैं कि जिस तरह आज आर्मी की महिलाओं के लिए ख़ुशख़बरी आई है, कल उनके लिए भी एक अच्छा दिन होगा.</p><p>अपनी बात रखते हुए वो कहती हैं, &quot;हम न्याय प्रणाली को बहुत धन्यवाद करते हैं. यह सच है कि औरतों के लिए सेना में होना आसान नहीं लेकिन फिर भी औरतें सेना में शामिल होना चाहती हैं.&quot;</p><p>वो कहती हैं, ”आप ख़ुद सोचिए, हम औरतों की ज्वाइनिंग, पुरुष साथियों के साथ होती है. ट्रेनिंग भी वैसी मिलती है लेकिन जब पोस्टिंग की बात आती है तो…”</p><p>प्रसन्ना आगे कहती हैं कि इस फ़ैसले ने उम्मीद दी है. वो मानती हैं कि इस फ़ैसले के बाद दूसरी कई महिलाओं को प्रोत्साहन मिलेगा जो सेना में आना चाहती हैं.</p><p>लेकिन सेना से रिटायर लेफ़्टिनेंट जनरल राज कादयान का तर्क कुछ अलग है.</p><p>वो कहते हैं, &quot;मैं सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का सम्मान करता हूं लेकिन आपको ये मानना होगा कि समाज में महिलाओं और पुरुषों में समानता नहीं है और अब आर्मी में इस समानता को थोपना…सही नहीं है.&quot;</p><p>वो कहते हैं कि आर्मी अनुशासनप्रिय होती है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है तो निश्चित तौर पर उसका पालन किया जाएगा लेकिन आर्मी को प्रयोगशाला बनाना कितना सही है, जबकि आप समाज में ही उस बात को लागू नहीं कर पा रहे हैं.</p><p>उनके मुताबिक़ &quot;इससे देश की सुरक्षा को ख़तरा हो सकता है. वो मानते हैं कि महिलाओं को पर्मानेंट कमीशनिंग देना सही है लेकिन कमांड असाइनमेंट देने के पक्ष में मैं नहीं हूं.&quot;</p><p>वो कहते हैं, &quot;मैं ये नहीं कह रहा हूं कि महिलाएं हिम्मती नहीं हैं लेकिन समाज में अभी भी वो बराबरी पर नहीं हैं.&quot;</p><figure> <img alt="सैन्य अधिकारी" src="https://c.files.bbci.co.uk/F5B7/production/_110930926_4d55b21a-6998-4307-9d15-2885d7de62b0.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p><strong>तो क्या ये अच्छी बात नहीं कि इसकी शुरुआत आर्मी से हो</strong><strong>?</strong></p><p>इस सवाल के जवाब में कादयान कहते हैं, ”मैं ये सुनिश्चित तौर पर नहीं कह सकता कि आर्मी में उनके कमांड पोज़ीशन लेने से फ़ायदा होगा या नहीं होगा लेकिन जो लोग बाहर हैं, जिन्होंने वर्दी नहीं पहनी है वो भी इस पर कोई फ़ैसला नहीं दे सकते हैं.” </p><p>वो कहते हैं, &quot;बाहर वाले लोग नहीं समझते हैं. उन्होंने नारा बना दिया है, महिलाओं के लिए समानता. आप ख़ुद बताएं महिलाओं के प्रवेश तो सिर्फ़ एक स्तर पर ही है ना… इसका प्रैक्टिकली क्या नुक़सान हो सकता है वो बाहर के लोग नहीं जान सकते. वो सिर्फ़ वही जान सकते हैं जो सेना में रहे हों.&quot;</p><p>वो महिलाओं की सेना में भर्ती को वेस्टर्न कॉन्सेप्ट बताते हैं. </p><p>हालांकि पिछले साल ही अप्रैल में सेना ने महिलाओं की जवान के रूप में नियुक्ति शुरू कर दी थी और इसके मद्देनज़र उनका ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन भी शुरू कर दिया था.</p><p>इससे पहले महिलाएं सिर्फ़ अधिकारी के तौर पर सेना में आती थीं मगर पिछले साल अप्रैल से सेना पुलिस में महिलाओं की जवान के तौर पर भर्ती की प्रक्रिया शुरू की गई.</p><p>सेना का लक्ष्य मिलिट्री पुलिस कैडर में महिलाओं की संख्या 20 प्रतिशत करना है.</p><p>अभी 14 लाख सशस्त्र बलों के 65,000 अधिकारियों के कैडर में देखें तो थल सेना में 1500, वायुसेना में 1600 और नौसेना में 500 ही महिलाएं हैं.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a 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