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किस बात के डर से ट्रंप ईरान पर हमला नहीं कर रहे?: दुनिया जहान

<figure> <img alt="डोनल्ड ट्रंप" src="https://c.files.bbci.co.uk/00B4/production/_110508100_gettyimages-1183819206.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>3 जनवरी के तड़के बग़दाद हवाई अड्डे के बाहर एक ड्रोन हमला हुआ. मीडिया की शुरुआती रिपोर्टों में इसे किसी बड़ी कार्रवाई से जोड़कर नहीं देखा जा रहा था. लेकिन जब यह सच सामने आया कि मरने वालों में ईरान के शीर्ष कमांडरों में से […]

<figure> <img alt="डोनल्ड ट्रंप" src="https://c.files.bbci.co.uk/00B4/production/_110508100_gettyimages-1183819206.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>3 जनवरी के तड़के बग़दाद हवाई अड्डे के बाहर एक ड्रोन हमला हुआ. मीडिया की शुरुआती रिपोर्टों में इसे किसी बड़ी कार्रवाई से जोड़कर नहीं देखा जा रहा था. लेकिन जब यह सच सामने आया कि मरने वालों में ईरान के शीर्ष कमांडरों में से एक क़ासिम सुलेमानी हैं तो उसने पूरे मध्य पूर्व में चर्चाएं तेज़ कर दीं.</p><p>इसके बाद अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने ट्वीट करके साफ़ किया कि अमरीकी कार्रवाई में क़ासिम सुलेमानी मारे गए हैं जिसे अमरीका ‘आतकंवादी’ मानता था. इस कार्रवाई में ईरान समर्थित मिलिशिया कताइब हिज़बुल्लाह के कमांडर अबू महदी अल-मुहांदिस भी मारे गए थे.</p><p>सुलेमानी ईरान के अल-क़ुद्स फ़ोर्स के प्रमुख थे. ईरान का यह सुरक्षाबल देश के बाहर अपनी कार्रवाइयों के लिए जाना जाता है. इसको अमरीका ने आतंकी संगठन घोषित किया हुआ था.</p><p>इस कार्रवाई के बाद ईरान और अमरीका में तनाव अपने शीर्ष स्तर पर पहुंच गया और वो इराक़ में अमरीका के सैन्य बेस पर कई मिसाइल हमले कर चुका है लेकिन इन हमलों में अब तक कोई भी अमरीकी जवान नहीं मारा गया है. </p><figure> <img alt="सुलेमानी का फोटो" src="https://c.files.bbci.co.uk/14BEA/production/_110507948_39cf4efa-1e17-4a6f-b06e-cacff44a9d62.jpg" height="849" width="624" /> <footer>EPA</footer> <figcaption>क़ासिम सुलेमानी को आतंकी मानता था अमरीका</figcaption> </figure><p>मिसाइल हमलों के बाद अमरीका ने कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की. अमरीका के कार्रवाई न करने को कई चीज़ों से जोड़कर देखा गया इनमें से सबसे बड़ी वजह इस साल होने वाले आम चुनावों को बताया जा रहा है.</p><p>विशेषज्ञों का मानना है कि चुनावी साल में अमरीका युद्ध में नहीं जाना चाहेगा वहीं ईरान अगर युद्ध करता है तो उसकी अर्थव्यवस्था तबाह हो जाएगी. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या ईरान अमरीकी चुनावों को प्रभावित कर सकता है. </p><p>इस पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फ़ॉर कनाडा, अमरीका एंड लैटिन अमरीकन स्टडीज़ में प्रोफ़ेसर चिंतामणि महापात्रा कहते हैं कि अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव के मुद्दे भी बाकी देशों के चुनावों की तरह ही होते हैं, देश की आर्थिक, सामाजिक स्थिति और विदेश नीति बहुत बड़ा असर डालती हैं.</p><p>प्रोफ़ेसर चिंतामणि महापात्रा कहते हैं, &quot;2020 के राष्ट्रपति चुनावों में ट्रंप प्रशासन को आर्थिक नीति, रोज़गार और महंगाई का मुद्दा फ़ायदा देंगे. दूसरी तरफ़ सामाजिक मुद्दे भी हैं. सामाजिक स्थिरता और अल्पसंख्यकों की स्थिति कैसी है, नस्लवाद का मुद्दा कितना हावी है. यह सब भी चुनावों पर असर डालते हैं.&quot;</p><figure> <img alt="अमरीकी कार्रवाई के बाद सुलेमानी की कार" src="https://c.files.bbci.co.uk/1752/production/_110507950_8c19660c-7f35-43bb-9213-03c0604bce7b.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> <figcaption>अमरीकी कार्रवाई के बाद सुलेमानी की कार</figcaption> </figure><h1>युद्ध से ट्रंप को मिलेगा लाभ?</h1><p>अमरीका का इतिहास देखा जाए तो राष्ट्रपति चुनावों के दौरान युद्ध या किसी बड़ी कार्रवाई का फ़ायदा तत्कालीन राष्ट्रपतियों को मिलता रहा है. </p><p>अलक़ायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के मारे जाने का लाभ तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा को मिला. अफ़ग़ानिस्तान में घुसने पर जॉर्ज बुश जूनियर को अपने दूसरे कार्यकाल में लाभ मिला. उनके अफ़ग़ानिस्तान में जाने पर यह संदेश गया कि वो बहुत मज़बूत नेता हैं.</p><p>द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जिस तरह से फ्रेंकलिन डी. रुज़वेल्ट ने युद्ध लड़ा उसकी वजह से वो लगातार तीन बार अमरीका के राष्ट्रपति बने. </p><p>ईरान के साथ युद्ध करने से क्या डोनल्ड ट्रंप को चुनावों में लाभ मिलेगा? इस सवाल पर प्रोफ़ेसर चिंतामणि महापात्रा कहते हैं कि विदेश और रक्षा नीति का अधिक असर चुनावों पर नहीं होता लेकिन अगर चुनावों के समय में कोई लड़ाई छिड़ गई है और उसमें अमरीकी सैनिक शामिल हैं तो प्रेसिडेंशियल डिबेट में यह मुद्दा निकलकर आ जाएगा और आतंकवाद के ख़िलाफ़ अमरीका की लड़ाई में लोगों का समर्थन मिलता है.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-51062533?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">सुलेमानी की हत्या आईएस के लिए अच्छी ख़बर क्यों है</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-51035191?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">सुलेमानी को मार ईरान को फ़ायदा तो नहीं पहुंचा गए ट्रंप?</a></li> </ul><p>वो कहते हैं, &quot;ईरान पर अमरीका के हमले से राष्ट्रपति ट्रंप को कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि इस मुद्दे पर अमरीका में ही राजनीतिक विभाजन शुरू हो गया है. डेमोक्रेटिक पार्टी ने ट्रंप की नीति का खंडन किया है और हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव में ग़ैर-बाध्यकारी प्रस्ताव लाया गया है जिसका उद्देश्य राष्ट्रपति की युद्ध शक्तियों पर अंकुश लगाना और लड़ाई शुरू करने से पहले कांग्रेस की अनुमति ली जाए.&quot;</p><p>&quot;मगर अमरीका की आम जनता में यह भय ज़रूर है कि क़ासिम सुलेमानी के मारे जाने के बाद ईरान की क्या कार्रवाई होगी. वहीं, दूसरी ओर यूरोपीय संघ के जर्मनी, फ़्रांस देशों को देखें तो वो ट्रंप की ईरान नीति का समर्थन नहीं करते हैं. वो चाहते हैं कि ईरान के साथ परमाणु समझौता बना रहे. इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो जो मतदाता राजनीतिक रूप से जागरुक हैं और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को समझते हैं वो ट्रंप के ख़िलाफ़ ही जाएंगे.&quot;</p><figure> <img alt="डोनल्ड ट्रंप" src="https://c.files.bbci.co.uk/10DD8/production/_110508096_gettyimages-1192555404.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p><strong>ईरान से डरे हुए हैं ट्रंप</strong><strong>?</strong></p><p>क़ासिम सुलेमानी के मारे जाने के बाद ईरान ने इराक़ में अमरीकी एयरबेस पर कई बार हमले किए हैं लेकिन अमरीका ने उस पर कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की है. </p><p>पेंटागन से आई रिपोर्टों में कहा गया कि जनरल सुलेमानी को मारने का फ़ैसला ऑन द स्पॉट लिया गया. डोनल्ड ट्रंप मध्य पूर्व में युद्ध के ख़िलाफ़ रहे हैं. 2015-16 के अपने चुनाव प्रचार के दौरान वो कह चुके हैं कि जंग लड़ने से पैसा बर्बाद होगा.</p><p>अमरीका की डेलावेयर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर मुक़्तदर ख़ान कहते हैं कि जनरल सुलेमानी को मारने के बाद एक लाभ डोनल्ड ट्रंप को यह हुआ है कि उनके ख़िलाफ़ महाभियोग के मामले को टीवी कवरेज नहीं मिल रही है. </p><p>वो कहते हैं, &quot;अब टीवी का ध्यान सिर्फ़ ईरान पर है. इसके साथ ही रिपब्लिकन पार्टी में डोनल्ड ट्रंप को लेकर स्वीकृति 95 फ़ीसदी हो गई है. वहीं, यूक्रेनी विमान को मार गिराने के बाद ईरान में विरोध प्रदर्शन तेज़ हो गया है. इसके कारण ईरान अमरीका के साथ नया समझौता करने के लिए मजबूर हो सकता है. पिछले परमाणु समझौते से भी मज़बूत समझौता इस बार हो जाता है तो यह अमरीका के लिए एक जीत की तरह होगा.&quot;</p><figure> <img alt="ईरान के रेवोल्यूशनरी गार्ड के जवान" src="https://c.files.bbci.co.uk/15BF8/production/_110508098_gettyimages-1037635166.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>ईरान के रेवोल्यूशनरी गार्ड के जवान</figcaption> </figure><p>&quot;अगर यह समझौता भी नहीं होता है तो इसका लाभ ट्रंप चुनाव प्रचार में लेने की कोशिश करेंगे. वो कहेंगे कि ओबामा ने लादेन को मारा था लेकिन उन्होंने सुलेमानी और बग़दादी दोनों को मारा है. जो वर्ग सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित है, उसको कहने के लिए ट्रंप के पास बहुत कुछ है.&quot;</p><p>वहीं, प्रोफ़ेसर महापात्रा कहते हैं कि ईरान की तरह अमरीका भी युद्ध नहीं चाहता है क्योंकि उससे उसे चुनावों में लाभ नहीं मिलेगा. </p><p>वो कहते हैं, &quot;अगर ईरान की कार्रवाई में कोई अमरीकी सैनिक मारा जाता तो उस पर कार्रवाई का दबाव बढ़ जाता और इसका असर अमरीका की राजनीति में भी आता कि ट्रंप की वजह से उनके सैनिक मारे गए इसलिए ट्रंप को डर है कि ईरान परिस्थितियों को न बिगाड़े जिससे चुनावों पर असर न पड़े.&quot;</p><p>अमरीका की इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में जंग अभी भी जारी है. अमरीका का मानना था कि इराक़ में उसकी जंग चार-पांच हफ़्ते में ख़त्म हो जाएगी लेकिन 17 साल में इसमें एक अनुमान के मुताबिक़ अमरीका के ढाई ट्रिलियन डॉलर ख़र्च हो चुके हैं. साथ ही अमरीका का क़र्ज़ 21 ट्रिलियन डॉलर है, उस पर क़र्ज़ ज़रूर है लेकिन अमरीका की आर्थिक स्थिति काफ़ी अच्छी है. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-51017898?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">क़ासिम सुलेमानी के मारे जाने पर क्या बोला सऊदी अरब</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-51010558?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">सुलेमानी को अमरीका ने कैसे ड्रोन चलाकर मारा</a></li> </ul><p>प्रोफ़ेसर मुक़्तर खान कहते हैं कि ईरान के साथ केवल 25 फ़ीसदी अमरीकी युद्ध चाहते हैं जबकि 75 फ़ीसदी चाहते हैं कि इस मुद्दे को कूटनीति या आर्थिक प्रतिबंधों से सुलझाया जाना चाहिए. </p><p>वो कहते हैं, &quot;पैसे ख़र्च होने के अलावा दूसरी ओर अमरीका का डर यह है कि युद्ध होता है तो ईरान वापस हमला करेगा और सऊदी अरब या यूएई पर हमला कर सकता है. उनके तेल के कुओं को तबाह कर सकता है. इस वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था ठप्प हो जाएगी. अमरीका के पास एक साल का तेल है जबकि जापान और यूरोपीय देशों के पास एक सप्ताह का ही तेल है. अगर तेल का निर्यात रुक जाएगा तो इससे कई अर्थव्यवस्थाएं तबाह हो जाएंगी.&quot;</p><p>&quot;इसके साथ ही ईरान के पास हिज़बुल्ला जैसे कई मिलिशिया बल हैं जो ईरान को मज़बूती दे सकते हैं. इसको इस मिसाल से समझा जा सकता है कि अगर इन मिलिशिया सेना का कोई आत्मघाती हमलावर किसी दूतावास में ख़ुद को उड़ा लेता है तो उससे ईरान पर कोई आंच नहीं आएगी और उसे लाभ भी होगा.&quot;</p><figure> <img alt="मतदान केंद्र" src="https://c.files.bbci.co.uk/6572/production/_110507952_9a3baf61-7723-4303-9c18-865488154d91.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>चुनावी मैदान में कितने मज़बूत ट्रंप?</h1><p>रिपब्लिकन समर्थकों के ट्रंप अभी भी दुलारे बने हुए हैं और वो उन्हें फिर से चुनावी मैदान में देखना चाहते हैं. दूसरी ओर अन्य लोकतांत्रिक देशों की तुलना में अमरीका में मतदान प्रतिशत बहुत कम होता है.</p><p>प्रोफ़ेसर मुक़्तदर ख़ान कहते हैं कि ट्रंप का 43-45 फ़ीसदी वोट हिलने का नाम नहीं ले रहा है, वहीं विपक्ष 53 फ़ीसदी पर टिका हुआ है, देश में जितने लोग वोट डाल सकते हैं उसमें से सिर्फ़ 60 फ़ीसदी लोग मतदान के लिए पंजीकृत हैं. पंजीकृत मतदाताओं में से सिर्फ़ 60 फ़ीसदी लोग वोट डालते हैं. इनके आधे वोट मिले तो एक व्यक्ति अमरीकी राष्ट्रपति बन सकता है. </p><p>वो कहते हैं, &quot;ट्रंप का चुनाव परिणाम मतदान प्रतिशत पर निर्भर करता है. डेमोक्रेट्स अगर ऐसा उम्मीदवार ढूंढ लेते हैं जो लोगों को मतदान कराने के लिए प्रेरित करे तो ट्रंप हार जाएंगे. ऐतिहासिक रूप से कंज़र्वेटिव या रिपब्लिकन बड़े ईमानदार मतदाता होते हैं जो लगातार मतदान करते हैं लेकिन डेमोक्रेटिक मतदाता लगातार वोट नहीं करते हैं.&quot;</p><p>वहीं, दूसरी ओर महाभियोग का मामला भी ट्रंप को चुनावों में ख़ास नुक़सान नहीं पहुंचाता दिख रहा है. डोनल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग का मामला सीनेट में गिरना तय है क्योंकि वहां रिपब्लिकन बहुमत हैं और वो ट्रंप के साथ मज़बूती से खड़े हैं. सीनेट में अगर ट्रंप हारते हैं तो उन्हें सीट छोड़नी होगी लेकिन ऐसा होना मुश्किल है. </p><p>मुक़्तदर ख़ान महाभियोग की प्रक्रिया को उदारवादी डेमोक्रेट्स नेताओं की एक पहल बताते हैं.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-51006864?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">जनरल क़ासिम सुलेमानी: अंतिम संस्कार में उमड़ी भारी भीड़</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-51029790?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">ईरान ने इराक़ में अमरीकी सेना पर दागी मिसाइलें, बताया सुलेमानी की मौत का जवाब</a></li> </ul><figure> <img alt="नैंसी पेलोसी" src="https://c.files.bbci.co.uk/B392/production/_110507954_gettyimages-1193609919.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव की स्पीकर और डेमोक्रेटिक नेता नैंसी पेलोसी</figcaption> </figure><p>वो कहते हैं, &quot;52-55 फ़ीसदी अमरीकी ट्रंप से नफ़रत करते हैं और शायद ही इतनी नफ़रत किसी और नेता से की गई हो. इन्हीं लोगों को मतदान के लिए प्रेरित करने के लिए डेमोक्रेट्स यह कर रहे हैं. अगर डेमोक्रेट्स महाभियोग पर आगे नहीं बढ़ते तो यह मतदाता प्रेरित नहीं होते. ट्रंप भी अपने मतदाताओं को प्रेरित करते रहते हैं.&quot; </p><p>ट्रंप को कितनी तगड़ी टक्कर मिलेगी यह डेमोक्रेट उम्मीदवार पर भी तय करेगा कि वो किस तरह से अपनी नीतियों को जनता तक ले जाता है. दूसरी ओर अभी यह भी साफ़ नहीं है कि रिपब्लिकन पार्टी कि ओर से कोई नेता ट्रंप को चुनौती देगा या नहीं.</p><p>ट्रंप को चुनौती देने के लिए कोई आगे नहीं आता है तो वो वर्तमान राष्ट्रपति होते हुए अपने आप ही रिपब्लिकन के उम्मीदवार बन जाएंगे. लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ बहुत लंबी है और लगभग एक साल तक चलने वाली चुनावी प्रक्रिया में पल-पल मुद्दे और परिस्थितियां बदलती रहती हैं. </p><p><strong>(</strong><strong>बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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