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Friday, March 29, 2024

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सरदार पटेल: राजाओं को ख़त्म किए बिना रजवाड़ों को मिटाने वाले

<figure> <img alt="सरदार पटेल, सरदार वल्लभभाई पटेल, लौह पुरुष, Sardar Vallabhbhai Patel, Sardar Patel" src="https://c.files.bbci.co.uk/11597/production/_110136017_0a7f116a-8732-4ba6-8e81-3d29fbb2f19f.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>ऑल इंडिया रेडियो ने अपने 29 मार्च, 1949 को रात के 9 बजे के बुलेटिन में सूचना दी कि सरदार पटेल को दिल्ली से जयपुर ले जा रहे विमान से संपर्क टूट गया है. </p><p>अपनी […]

<figure> <img alt="सरदार पटेल, सरदार वल्लभभाई पटेल, लौह पुरुष, Sardar Vallabhbhai Patel, Sardar Patel" src="https://c.files.bbci.co.uk/11597/production/_110136017_0a7f116a-8732-4ba6-8e81-3d29fbb2f19f.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>ऑल इंडिया रेडियो ने अपने 29 मार्च, 1949 को रात के 9 बजे के बुलेटिन में सूचना दी कि सरदार पटेल को दिल्ली से जयपुर ले जा रहे विमान से संपर्क टूट गया है. </p><p>अपनी बेटी मणिबेन, जोधपुर के महाराजा और सचिव वी शंकर के साथ सरदार पटेल ने शाम पाँच बजकर 32 मिनट पर दिल्ली के पालम हवाई अड्डे से जयपुर के लिए उड़ान भरी थी.</p><p>क़रीब 158 किलोमीटर की इस यात्रा को तय करने में उन्हें एक घंटे से अधिक समय नहीं लगना था. पायलट फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट भीम राव को निर्देश थे कि वो वल्लभभाई के दिल की हालत को देखते हुए विमान को 3000 फ़ीट से ऊपर न ले जाएं. </p><p>लेकिन क़रीब छह बजे महाराजा जोधपुर ने जिनके पास फ़्लाइंग लाइसेंस था, पटेल का ध्यान खींचा कि विमान के एक इंजन ने काम करना बंद कर दिया है. उसी समय विमान के रेडियो ने भी काम करना बंद कर दिया और विमान बहुत तेज़ी से ऊँचाई खोने लगा.</p><p>सरदार पटेल के सचिव रहे वी शंकर अपनी आत्मकथा ‘रेमिनेंसेज़’ में लिखते हैं, &quot;पटेल के दिल पर क्या बीत रही थी, ये तो मैं नहीं बता सकता, लेकिन ऊपरी तौर पर इसका उन पर कोई असर नहीं पड़ा था और वो शाँत भाव से बैठे हुए थे, जैसे कुछ हो ही न रहा हो. &quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44663023?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">कश्मीर पाकिस्तान को देने को राज़ी थे सरदार पटेल?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-42363426?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">सरदार पटेल के बारे में कितना जानते हैं आप</a></li> </ul><figure> <img alt="सरदार पटेल, सरदार वल्लभभाई पटेल, लौह पुरुष, Sardar Vallabhbhai Patel, Sardar Patel" src="https://c.files.bbci.co.uk/163B7/production/_110136019_7e493e06-92af-4e82-8c3a-f497ce65ecb2.jpg" height="1499" width="976" /> <footer>THE MAN WHO SAVED INDIA</footer> </figure><h3>जयपुर के पास क्रैश लैंडिंग</h3><p>जयपुर से 30 मील उत्तर में पायलट ने विमान को क्रैश लैंड कर उतारने का फ़ैसला किया. यात्रियों को बताया गया कि हो सकता है कि क्रैश लैंडिंग के समय विमान का दरवाज़ा अटक (जैम हो) जाए. इसलिए उन्हें विमान की छत पर बने इमरजेंसी ‘एक्ज़िट’ से जल्द से जल्द बाहर निकलने की सलाह दी गई, क्योंकि आशंका थी कि विमान के क्रैश लैंड करते ही उसके ईंधन में आग लग जाएगी.</p><p>छह बज कर 20 मिनट पर पायलट ने सभी से सीट बेल्ट बाँधने के लिए कहा. पाँच मिनट बाद उसने विमान को ज़मीन पर उतार दिया. विमान में न तो आग लगी और न ही उसका दरवाज़ा जैम हुआ और छत से बाहर निकलने की नौबत ही नहीं आई.</p><figure> <img alt="सरदार पटेल" src="https://c.files.bbci.co.uk/8F37/production/_110136663_515e5439-d458-45cc-93fb-9d781aedf240.jpg" height="351" width="624" /> <footer>PHOTO DIVISION</footer> </figure><h3>गाँव वाले पानी और दूध लाए पटेल के लिए</h3><p>थोड़ी ही देर में पास के गाँव वाले वहाँ पहुंच गए. जब उन्हें पता चला कि विमान में सरदार पटेल हैं तो तुरंत उनके लिए पानी और दूध मंगवाया गया और उनके बैठने के लिए चारपाइयाँ लगवा दी गईं.</p><p>महाराजा जोधपुर और विमान के रेडियो ऑफ़िसर ये ढूंढने निकले कि घटनास्थल के पास सबसे नज़दीक सड़क कौन सी है. तब तक अँधेरा हो चुका था.</p><p>वहाँ सबसे पहले पहुंचने वाले अधिकारी थे केबी लाल. बाद में उन्होंने लिखा, &quot;जब मैं वहाँ पहुंचा तो मैंने देखा कि सरदार विमान से ‘डिसमैंटल’ की गई कुर्सी पर बैठे हुए थे. जब मैंने उनसे कार में बैठने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि पहले मेरे दल के लोगों और महाराजा जोधपुर को कार में बैठाइए.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-46032299?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">सरदार पटेल और मोदी में है कितनी समानता?</a></li> </ul><figure> <img alt="सरदार पटेल, सरदार वल्लभभाई पटेल, लौह पुरुष, Sardar Vallabhbhai Patel, Sardar Patel" src="https://c.files.bbci.co.uk/2F1F/production/_110136021_cdc68079-54f9-4f2c-9ff5-d287637c9017.jpg" height="1069" width="976" /> <footer>PATEL A LIFE</footer> </figure><h3>नेहरू को पटेल के सुरक्षित होने की ख़बर</h3><p>रात क़रीब 11 बजे सरदार पटेल का अमला जयपुर पहुंचा. तब जा कर उनके मेज़बानों की जान में जान आई जो कि तमाम भारतवासियों की तरह समझे हुए थे कि सरदार का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है.</p><p>तब तक जवाहरलाल नेहरू परेशान हो कर अपने कमरे में चहलकदमी करते हुए सरदार पटेल के बारे में ख़बर का इंतज़ार कर रहे थे.</p><p>11 बजे नेहरू के पास जयपुर से ख़बर आई कि सरदार पटेल सुरक्षित है. 31 मार्च को जब पटेल दिल्ली पहुंचे तो पालम हवाई अड्डे पर एक बड़ी भीड़ ने उनका स्वागत किया.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-46010227?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पटेल की गगनचुम्बी मूर्ति के नीचे पानी को क्यों तरस रहे किसान</a></li> </ul><figure> <img alt="आज़ाद भारत की पहली कैबिनेट" src="https://c.files.bbci.co.uk/1007F/production/_110136656_f852c372-e5a3-4203-9789-d6bca8fb4879.jpg" height="549" width="976" /> <footer>PATEL A LIFE</footer> <figcaption>आज़ाद भारत की पहली कैबिनेट. (बाएं से खड़े) एनवी गाडगिल, केसी नियोगी, बीआर अंबेडकर, एसपी मुखर्जी, एनजी अयंगार, जयरामदास, दौलतराम. (बाएं से बैठे) आरए किदवई, बलदेव सिंह, एके आज़ाद, जवाहरलाल नेहरू, भारत के पहले गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी, सरदार पटेल, अमृत कौर, जॉन मथाई और जगजीवन राम</figcaption> </figure><h3>पटेल की उपेक्षा</h3><p>पटेल का क़द 5 फ़ीट 5 इंच था. नेहरू उनसे 3 इंच लंबे थे. पटेल की जीवनी लिखने वाले राजमोहन गांधी भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को उद्धृत करते हुए कहते हैं, &quot;आज भारत जो कुछ भी है, उसमें सरदार पटेल का बहुत योगदान है. लेकिन इसके बावजूद हम उनकी उपेक्षा करते हैं.&quot;</p><p>उसी पुस्तक में राजमोहन गांधी खुद लिखते हैं, &quot;आज़ाद भारत के शासन तंत्र को वैधता प्रदान करने में गाँधी, नेहरू और पटेल की त्रिमूर्ति की बहुत बड़ी भूमिका रही है. लेकिन ये शासन तंत्र भारतीय इतिहास में गांधी और नेहरू के योगदान को तो स्वीकार करता है लेकिन पटेल की तारीफ़ करने में कंजूसी कर जाता है.&quot;</p><p>इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि सुनील खिलनानी की मशहूर किताब ‘द आइडिया ऑफ़ इंडिया’ में नेहरू का ज़िक्र तो 65 बार आता है जबकि पटेल का ज़िक्र सिर्फ़ 8 बार किया गया. इसी तरह रामचंद्र गुहा की पुस्तक ‘इंडिया आफ़्टर गाँधी’ में पटेल के 48 बार ज़िक्र की तुलना में नेहरू का ज़िक्र 4 गुना अधिक यानी 185 बार आया है.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49298190?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">कश्मीर पर नेहरू को विलेन बनाना कितना सही </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-41858319?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">नेहरू-पटेल पर क्या बोली थीं जिन्ना की बेटी</a></li> </ul><figure> <img alt="नेहरू, गांधी और पटेल" src="https://c.files.bbci.co.uk/175AF/production/_110136659_d7b82506-f09a-4818-8411-a8e2fd176298.jpg" height="351" width="624" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>नेहरू, गांधी और पटेल</figcaption> </figure><h3>सरदार और नेहरू की तुलना</h3><p>पटेल के एक और जीवनीकार हिंडोल सेनगुप्ता उनकी जीवनी ‘द मैन हू सेव्ड इंडिया’ में लिखते हैं, &quot;गाँधी की छवि एक असिंहक, चर्खा चलाने वाले और मानवीय भावनाओं से ओतप्रोत शख़्स की रही है. नेहरू शेरवानी के बटन में लाल गुलाब लगाए चाचा नेहरू के रूप में उभरते हैं जिन्हें किसी दूसरे शख़्स की पत्नी से रोमांस करने में कोई गुरेज़ नहीं है. इनकी तुलना में सरदार पटेल के जीवन में कोई रोमांस नहीं है (उनकी पत्नी का बहुत पहले देहांत हो गया था और उनके जीवन में किसी और महिला का ज़िक्र नहीं मिलता). पटेल एक ऐसे शख़्स हैं जो अपने बारे में और अपनी ज़रूरतों के बारे में बहुत कम बताते हैं.&quot;</p><figure> <img alt="सरदार पटेल" src="https://c.files.bbci.co.uk/14E9F/production/_110136658_5825c209-3ce5-4e6e-8c13-243f083bca52.jpg" height="1449" width="976" /> <footer>PATEL A LIFE</footer> </figure><h3>य़थार्थवादी पटेल</h3><p>सरदार के एक और जीवनीकार पीएन चोपड़ा उनकी जीवनी ‘सरदार ऑफ़ इंडिया’ में रूसी प्रधानमंत्री निकोलाई बुलगानिन को कहते बताते हैं, &quot;आप भारतीयों के क्या कहने! आप राजाओं को समाप्त किए बिना रजवाड़ों को समाप्त कर देते हैं.&quot;</p><p>बुलगानिन की नज़र में पटेल की ये उपलब्धि बिस्मार्क के जर्मन एकीकरण की उपलब्धि से बड़ा काम था.</p><p>मशहूर लेखक एच वी हॉडसन लॉर्ड माउंटबेटन को कहते बताते हैं, &quot;मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि अच्छा हुआ नेहरू को नए गृह मंत्रालय का प्रमुख नहीं बनाया गया. अगर ऐसा होता तो सब कुछ बिखर जाता. पटेल ने, जो कि यथार्थवादी है, ये काम कहीं बेहतर ढंग से किया.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-41816182?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">क्या वाकई संघ से हमदर्दी रखते थे सरदार पटेल?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-41244857?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’संविधान पर पुनर्विचार आरएसएस का ‘हिडेन एजेंडा’ है'</a></li> </ul><figure> <img alt="जनरल केएम करियप्पा" src="https://c.files.bbci.co.uk/14B61/production/_110133848_fieldmarshalkodanderamadappacariappa.jpg" height="779" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>फील्ड मार्शल जनरल केएम करियप्पा</figcaption> </figure><h3>पटेल और करियप्पा की मुलाक़ात</h3><p>एक ज़माने में भारतीय थल सेना के उप प्रमुख और असम और जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे एसके सिन्हा अपनी आत्मकथा ‘चेंजिंग इंडिया- स्ट्रेट फ्रॉम हार्ट’ में एक वाक़या बताते हैं, &quot;एक बार जनरल करियप्पा को संदेश मिला कि सरदार पटेल उनसे तुरंत मिलना चाहते हैं. करियप्पा उस समय कश्मीर में थे. वो तुरंत दिल्ली आए और पालम हवाई अड्डे से सीधे पटेल के औरंगज़ेब रोड स्थित निवास पर पहुंचे. मैं भी उनके साथ था.&quot;</p><p>वे कहते हैं, &quot;मैं बरामदे में उनका इंतज़ार करने लगा. करियप्पा पाँच ही मिनट में बाहर आ गए. बाद में उन्होंने मुझे बताया. पटेल ने मुझसे बहुत ही साधारण सवाल पूछा. हमारे हैदराबाद ऑपरेशन के दौरान अगर पाकिस्तान की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया आती है तो क्या आप बिना किसी अतिरिक्त सहायता के उसका सामना कर पाएंगे? करियप्पा ने पूरे विश्वास से सिर्फ़ एक शब्द का जवाब दिया ‘हाँ’ और बैठक ख़त्म हो गई.&quot;</p><p>वे कहते हैं, &quot;दरअसल, उस समय भारतीय सेना के प्रमुख जनरल रॉय बूचर कश्मीर के हालात को देखते हुए हैदराबाद में कार्रवाई करने के पक्ष में नहीं थे. उधर जिन्ना धमकी दे रहे थे कि अगर भारत हैदराबाद में हस्तक्षेप करता है तो सभी मुस्लिम देश उसके ख़िलाफ़ उठ खड़े होंगे. उस बैठक के तुरंत बाद लौह पुरुष ने हैदराबाद में ऐक्शन का हुक्म दिया और एक हफ़्ते के अंदर ही हैदराबाद भारत का अंग बन गया.&quot;</p><figure> <img alt="एसके सिन्हा" src="https://c.files.bbci.co.uk/16C9/production/_110133850_sksinha.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>भारतीय थल सेना के उप प्रमुख और बाद में असम और जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे एसके सिन्हा</figcaption> </figure><h3>मोतीलाल नेहरू की नज़र में ‘हीरो'</h3><p>सरदार पटेल के शासन में रहने के दौरान भारत का क्षेत्रफल पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के बावजूद समुद्रगुप्त (चौथी शताब्दी), अशोक (250 वर्ष ईसापूर्व) और अकबर (16वीं शदाब्दी) के ज़माने के भारत के क्षेत्रफल से अधिक था. पटेल की मत्यु से पहले और बाद में नेहरू छह बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने जबकि सरदार पटेल को सिर्फ़ एक बार 1931 में कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. इस दौरान मौलाना आज़ाद और मदनमोहन मालवीय जैसे नेता दो या उससे अधिक बार कांग्रेस अध्यक्ष बने.</p><p>पटेल की जीवनी में राजमोहन गाँधी लिखते हैं, &quot;1928 में बारदोली के किसान आँदोलन में पटेल की भूमिका के बाद पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू ने गाँधी को पत्र में लिखा, &quot;इसमें कोई संदेह नहीं कि इस समय के हीरो वल्लभभाई हैं. हम उनके लिए कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं कि उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बना दें. अगर किन्हीं कारणों से ऐसा नहीं होता हैं तो जवाहरलाल हमारी दूसरी पसंद होने चाहिए.&quot;</p><figure> <img alt="सरदार पटेल और जवाहरलाल नेहरू" src="https://c.files.bbci.co.uk/8BF9/production/_110133853_a838ef80-560e-4461-998e-cbaa430eab2f.jpg" height="649" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>पटेल बनाम नेहरू</h3><p>राजमोहन गांधी लिखते हैं कि &quot;पटेल बनाम नेहरू वाद-विवाद में नेहरू के पक्ष में दलीलें दी जाती थीं कि पटेल नेहरू से उम्र में 14 साल बड़े थे, वो युवाओं के बीच नेहरू की तुलना में उतने लोकप्रिय नहीं थे और ये भी कि नेहरू का रंग गोरा था और वो देखने में आकर्षक लगते थे जबकि पटेल गुजराती किसान परिवार से आते थे और थोड़े चुपचाप किस्म के बलिष्ठ दिखने वाले शख़्स थे. उनकी खिचड़ी मूछें थीं जिन्हें बाद में उन्होंने मुंडवा दिया था. उनके सिर पर छोटे बाल थे, आँखों में थोड़ी लाली थी और चेहरे पर थोड़ी कठोरता दिखाई देती थी.&quot;</p><p>नेहरू और पटेल ने क़रीब क़रीब एक ही समय विलायत में वकालत पढ़ी थी. लेकिन इस बात के कोई रिकॉर्ड नहीं मिलते कि उस दौरान कभी उनकी कोई मुलाक़ात हुई थी या नहीं.</p><figure> <img alt="सरदार पटेल" src="https://c.files.bbci.co.uk/F4BD/production/_110135626_81dfd6da-e13c-4f4a-ad85-c2e5b9aec3c2.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>पश्चिमी कपड़ों से किया किनारा </h3><p>अपनी मौत के 55 सालों बाद भी नेहरू को उनकी बेहतरीन शेरवानियों और बटनहोल में लगे गुलाब के फूल के कारण जाना जाता है. इसके विपरीत पटेल को अपने लंदन प्रवास के दौरान पश्चिमी कपड़ों से प्यार हो गया था.</p><p>दुर्गा दास अपनी किताब ‘सरदार पटेल्स कॉरेसपॉन्डेंस’ में लिखते हैं कि &quot;पटेल को अपने अंग्रेज़ी कपड़ों से इतना प्रेम था कि अहमदाबाद में अच्छा ड्राई क्लीनर न होने की वजह से वो उन्हें बंबई में ड्राई- क्लीन करवाते थे.&quot;</p><p>बाद में वो गांधी के स्वदेशी आँदोलन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने साधारण भारतीय कपड़े पहनने शुरू कर दिए.</p><figure> <img alt="ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान और जवाहरलाल नेहरू के साथ सरदार पटेल" src="https://c.files.bbci.co.uk/169ED/production/_110135629_6f446cbf-8674-4db4-bcc4-6a6f1cb7417a.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान और जवाहरलाल नेहरू के साथ सरदार पटेल</figcaption> </figure><h3>हमेशा ज़मीन पर पैर</h3><p>ब्रिज के खेल में महारत रखने के बावजूद पटेल एक ग्रामीण परिवेश से आने का आभास देते थे. उनमें एक किसान जैसी ज़िद, रूखा संकोच और दरियादिली थी.</p><p>दुर्गा दास लार्ड माउंटबेटन को कहते हुए बताते हैं, &quot;पटेल के पैर हमेशा ज़मीन पर रहते थे, जबकि नेहरू के पैर हमेशा आसमान में.&quot;</p><p>हिंडोल सेनगुप्ता लिखते हैं, &quot;नेहरू का खेमा अपने नेता को एक विश्व नेता के तौर पर दिखाना पसंद करता है जबकि उनकी नज़र में पटेल एक प्राँतीय या ज़्यादा से ज़्यादा एक मुफ़स्सिल ‘स्ट्रॉन्ग मैन’ हैं जो जो हाथ मरोड़ कर राजनीतिक जीत दर्ज करते हैं. वहीं पटेल के समर्थक नेहरू को अच्छे कपड़े पहनने वाले एक कमज़ोर नेता के रूप में चित्रित करते हैं. उनका दावा है कि नेहरू में मुश्किल राजनीतिक परिस्थितियों को सँभालने का न तो दम था और न ही क्षमता.&quot;</p><p>शायद नेहरू और पटेल की क्षमताओं का सबसे सटीक आकलन राजमोहन गाँधी ने अपनी किताब पटेल में किया हैं, &quot;1947 में अगर पटेल 10 या 20 साल उम्र में छोटे हुए होते तो शायद बहुत अच्छे और संभवत: नेहरू से भी बेहतर प्रधानमंत्री साबित हुए होते. लेकिन 1947 में पटेल नेहरू से उम्र में 14 साल बड़े थे और इतने स्वस्थ नहीं थे कि प्रधानमंत्री के पद के साथ न्याय कर पाते.&quot;</p><p>दुर्गा दास उनकी बेटी मणिबेन को कहते बताते हैं कि &quot;1941 से पटेल को आँतों में तकलीफ़ शुरू हो गई थी. वो आँतों में दर्द की वजह से सुबह साढ़े तीन बजे उठ जाते थे. वो क़रीब एक घंटा टॉयलेट में बिताते थे और फिर अपनी सुबह की सैर पर निकलते थे. मार्च 1948 में उनकी बीमारी के बाद उनके डॉक्टरों ने उनकी सुबह की वॉक पर भी रोक लगा दी थी और लोगों से उनका मिलना-जुलना भी कम कर दिया था.&quot;</p><figure> <img alt="राजमोहन गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/AA85/production/_110135634_263edc1e-56a0-4b87-b86c-6e15a80096b2.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>राजमोहन गांधी</figcaption> </figure><h3>1948 समाप्त होते होते स्वास्थ्य और ख़राब हुआ</h3><p>पटेल के सचिव वी शंकर अपनी आत्मकथा रेमिनेंसेज़ में लिखते हैं कि 1948 समाप्त होते होते पटेल चीज़ों को भूलने लगे थे और उनकी बेटी मणिबेन ने नोट किया था कि वो कुछ ऊँचा भी सुनने लगे थे और थोड़ी देर में ही थक जाते थे.</p><p>21 नवंबर, 1950 को मणिबेन को उनके बिस्तर पर ख़ून के कुछ धब्बे दिखाई दिए. तुरंत उनके साथ रात और दिन रहने वाली नर्सों का इंतज़ाम किया गया. कुछ रातों में उन्हें ऑक्सिजन पर भी रखा गया.</p><figure> <img alt="सरदार पटेल" src="https://c.files.bbci.co.uk/4117/production/_110136661_a684151a-58b5-4895-9c46-843f55273ac6.jpg" height="549" width="976" /> <footer>PHOTO DIVISION</footer> </figure><h3>दिल्ली की सर्दी से बचने के लिए बंबई ले जाया गया</h3><p>पाँच दिसंबर आते आते पटेल को अंदाज़ा हो गया था कि उनका अंत क़रीब है. 6 दिसंबर को राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद उनके पास आकर क़रीब 10 मिनट बैठे लेकिन पटेल इतने बीमार थे कि उनके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला.</p><p>जब बंगाल के मुख्यमंत्री बिधानचंद्र रॉय, जो कि खुद एक अच्छे डॉक्टर थे, उन्हें देखने आए तो पटेल ने उनसे पूछा, &quot;रहना है कि जाना?&quot;</p><p>डाक्टर रॉय ने जवाब दिया, &quot;अगर आपको जाना ही होता तो मैं आपके पास आता ही क्यों?&quot;</p><p>इसके बाद अगले दो दिनों तक सरदार कबीर की पंक्तियाँ &quot;मन लागो मेरो यार फ़कीरी&quot; गुनगुनाते रहे.</p><p>अगले ही दिन डॉक्टरों ने तय किया कि पटेल को मुंबई ले जाया जाए, जहाँ का बेहतर मौसम शायद उनको रास आ जाए.</p><figure> <img alt="सरदार पटेल को शपथ दिलवाते राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद" src="https://c.files.bbci.co.uk/5C65/production/_110135632_dda114f7-9189-41b4-8b5a-0300ce52ec09.jpg" height="649" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>सरदार पटेल को शपथ दिलवाते राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद</figcaption> </figure><h3>अंतयेष्टि में राजेंद्र प्रसाद और नेहरू पहुंचे</h3><p>राजमोहन गांधी अपनी किताब पटेल में लिखते हैं कि 12 दिसंबर, 1950 को सरदार पटेल को वेलिंग्टन हवाईपट्टी ले जाया गया जहाँ भारतीय वायुसेना का डकोटा विमान उन्हें बंबई ले जाने के लिए तैयार खड़ा था.</p><p>विमान की सीढ़ियों के पास राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, पूर्व गवर्नर जनरल सी राजगोपाचारी और उद्योगपति घनश्यामदास बिरला खड़े थे.</p><p>पटेल ने सबसे मुस्करा कर विदा ली. साढ़े चार घंटे की उड़ान के बाद पटेल बंबई के जुहू हवाई अड्डे पर उतरे. हवाईअड्डे पर बंबई के पहले मुख्यमंत्री बी जी खेर और मोरारजी देसाई ने उनका स्वागत किया.</p><p>राज भवन की कार उन्हें बिरला हाउस ले गई. लेकिन उनकी हालत बिगड़ती चली गई.</p><p>15 दिसंबर, 1950 की सुबह तीन बजे पटेल को दिल का दौरा पड़ा और वो बेहोश हो गए. चार घंटो बाद उन्हें थोड़ा होश आया. उन्होंने पानी माँगा. मणिबेन ने उन्हें गंगा जल में शहद मिला कर चमच से पिलाया. 9 बज कर 37 मिनट पर सरदार पटेल ने अंतिम साँस ली.</p><figure> <img alt="सरदार पटेल, सरदार वल्लभभाई पटेल, लौह पुरुष, Sardar Vallabhbhai Patel, Sardar Patel" src="https://c.files.bbci.co.uk/7D3F/production/_110136023_12891ac9-ae17-4df8-9934-6d5d5e826c3c.jpg" height="549" width="976" /> <footer>PATEL- A LIFE</footer> <figcaption>15 दिसंबर 1950 को हुआ था लौह पुरुष सरदार पटेल का निधन</figcaption> </figure><p>दोपहर बाद नेहरू और राज गोपालाचारी दिल्ली से बंबई पहुंचे. नेहरू के न चाहने के वावजूद राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी बंबई पहुंचे.</p><p>बाद में केएम मुंशी ने अपनी किताब ‘पिलग्रिमेज’ में लिखा, &quot;नेहरू का मानना था कि राष्ट्रपति को किसी कैबिनेट मंत्री की अंतयेष्टि में भाग नहीं लेना चाहिए. इससे ग़लत परंपरा शुरू होगी.&quot;</p><p>बहरहाल अंतिम संस्कार के समय राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू और सी राजगोपाचारी तीनों की आँखों में आँसू थे. राजाजी और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने पटेल की चिता के पास भाषण भी दिए. </p><p>राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद बोले, &quot;सरदार के शरीर को अग्नि जला तो रही है, लेकिन उनकी प्रसिद्धि को दुनिया की कोई अग्नि नहीं जला सकती.&quot;</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a 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