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हैदराबाद ‘एनकाउंटर’ पर पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज सुदर्शन रेड्डी को संदेह

<figure> <img alt="सांकेतिक तस्वीर" src="https://c.files.bbci.co.uk/F394/production/_110065326_62ad4925-0c20-4bd8-a02a-63010859eb16.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>सांकेतिक तस्वीर</figcaption> </figure><p> हैदराबाद में पिछले दिनों एक पशु चिकित्सक के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में पकड़े गए चार अभियुक्तों की पुलिस कार्रवाई में मारे जाने को लेकर जहाँ देश के एक बड़े तबक़े में पुलिस की तारीफ़ हुई वहीं एक तबक़े ने […]

<figure> <img alt="सांकेतिक तस्वीर" src="https://c.files.bbci.co.uk/F394/production/_110065326_62ad4925-0c20-4bd8-a02a-63010859eb16.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>सांकेतिक तस्वीर</figcaption> </figure><p> हैदराबाद में पिछले दिनों एक पशु चिकित्सक के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में पकड़े गए चार अभियुक्तों की पुलिस कार्रवाई में मारे जाने को लेकर जहाँ देश के एक बड़े तबक़े में पुलिस की तारीफ़ हुई वहीं एक तबक़े ने इस कार्रवाई पर सवाल उठाए. सवाल उठाने वालों में से एक बड़ा नाम <strong>सुप्रीम कोर्ट के</strong><strong> पूर्व न्यायाधीश</strong><strong> सुदर्शन रेड्डी</strong> का भी है. <strong>बीबीसी संवाददाता बाला सतीश</strong> ने उनसे इस मामले में बात की. पढ़िए उन्होंने क्या कहा – </p><p>ये एनकाउंटर कैसे हुआ इसका आकलन नहीं किया जा सकता. लेकिन ये सब जिन परिस्थितियों में ये हुआ, उसे देखकर संदेह पैदा होता है. </p><p>कहा गया कि संदिग्धों ने पुलिस से हथियार छीने और फिर उनपर गोलीबारी की. जिसके बाद पुलिस मुठभेड़ में अभियुक्तों की जान चली गई. </p><p>लेकिन ऐसा नहीं लगता कि पुलिस और संदिग्धों के बीच मुठभेड़ हुई होगी. </p><p>बल्कि जिस तरह से संदिग्धों को मौक़ा-ए-वारदात पर ले जाया गया, उसे देखकर लगता है कि उन्हें सीधे गोली मारी गई.</p><figure> <img alt="सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज सुदर्शन रेड्डी" src="https://c.files.bbci.co.uk/10351/production/_110058366_ba111909-474a-44be-83a4-b1bc1af1070e.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज सुदर्शन रेड्डी</figcaption> </figure><p><strong>'</strong><strong>रेडीमेड </strong><strong>स्क्रिप्ट</strong><strong>'</strong></p><p>तेलुगू बोलने वाले राज्य में पहले भी ऐसे कई मामले सामने आते रहे हैं, जिसमें पुलिस ने ऐसी ही कहानी बताई थी. </p><p>स्क्रिप्ट रेडीमेड है. पुलिस कहती है कि हम उनकी जांच कर रहे थे या हम उन्हें जेल ले जा रहे थे या हम उन्हें कोर्ट से जेल ले जा रहे थे, तब उन्होंने हमारे हथियार छीन लिए और गोलीबारी की जिसमें एक-दो पुलिस वाले घायल हुए. हमारे पास कोई और विकल्प नहीं था और हमने उनपर गोली चला दी.</p><p>ये पुरानी कहानी है और इसमें कुछ नया नहीं है. </p><p>जनता मामले में तुरंत न्याय ज़रूर चाहती थी लेकिन उनकी मांग ये नहीं थी. कुछ लोगों ने ये मांग उठाई ज़रूर थी, लेकिन इसे पूरे समाज की मांग नहीं कहा जा सकता है. अगर पूरा समाज भी ये मांग कर रहा होता तो भी ये नहीं किया जा सकता था.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50703097?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’नाबालिगों से बलात्कार मामलों पर फ़ैसला दो महीने में हो'</a></li> </ul><figure> <img alt="हैदराबाद एनकाउंटर" src="https://c.files.bbci.co.uk/15171/production/_110058368_10452098-601c-43a8-a69c-22c63d8b8c02.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>’जुर्म साबित नहीं हुआ था'</h1><p>मारे गए लोग संदिग्ध थे, दोषी साबित नहीं हुए थे. उनके खिलाफ अब तक चार्जशीट दाखिल नहीं हुई थी. उनका जुर्म साबित होना बाकी था. </p><p>लेकिन जितनी गंभीर ये घटना थी, बलात्कार के बाद जिस तरह से पीड़ित लड़की को मार दिया गया, कोई भी समझदार व्यक्ति मामले में जल्द न्याय दिए जाने की और दोषी साबित हुए लोगों को सज़ा देने की मांग करेगा.</p><p>मीडिया नैरेटिव बना रहा है कि ये न्यायिक व्यवस्था की विफलता है. लेकिन मामला तो अब तक न्यायालय में पहुंचा ही नहीं था. क्या न्यायालय की कोई भी ऐसी भूमिका थी, जिसके आधार पर आप कह सकें कि न्यायिक व्यवस्था अपना काम करने में विफल रही.</p><p>हां, आम तौर पर कहा जाए तो न्यायिक प्रक्रिया धीमी है. कई मामले सालों तक लटके रहते हैं, लेकिन इसकी कई वजहें हैं. इसमें सिर्फ न्याय व्यवस्था की ग़लती नहीं है. लेकिन मैं इस बात पर सहमत हूं कि न्याय मिलने में देरी नहीं होनी चाहिए. </p><p>इसके लिए सभी को इस दिशा में मिलकर काम करना होगा. लेकिन इससे इस बात को सही नहीं ठहराया जा सकता कि राज्य कानून को अपने हाथ में ले ले. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50684905?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">कौन हैं वीसी सज्जनार, जिन पर सवाल उठ रहे हैं</a></li> </ul><figure> <img alt="हैदराबाद एनकाउंटर" src="https://c.files.bbci.co.uk/1CD9/production/_110058370_0617b295-737e-4f09-98e2-81df19a036a2.jpg" height="650" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p><strong>'</strong><strong>अब अभियुक्त ही पीड़ित </strong><strong>हैं</strong><strong>'</strong></p><p>इस मामले में अब अभियुक्त पीड़ित बन चुके हैं. कल तक वो अभियुक्त थे लेकिन अब वो और उनके परिवार पीड़ित हैं. </p><p>भारत का संविधान सभी को समानता, जीने का, स्वतंत्रता का अधिकार देता है और राज्य को उन अधिकारों को प्रभावित नहीं करना चाहिए. </p><p>मानवाधिकार कार्यकर्ता जब भी कोई मांग करते हैं तो वो राज्य के खिलाफ मांग करते हैं, ना कि किसी व्यक्ति के खिलाफ. ज़रूरी नहीं है कि सभी अभियुक्तों के लिए निष्पक्ष मुकदमा चलाए जाने की मांग करना पीड़ित के खिलाफ है.</p><p>निष्पक्ष मुकदमा और जल्द न्याय, एक तरह से मौलिक अधिकार हैं. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50682497?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">हैदराबाद: अभियुक्तों के मारे जाने की पूरी कहानी</a></li> </ul><figure> <img alt="हैदराबाद एनकाउंटर" src="https://c.files.bbci.co.uk/6AF9/production/_110058372_fc80a695-8b23-4f15-ad62-107afafb00df.jpg" height="650" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>सेल्फ डिफेंस</h1><p>सेल्फ डिफेंस के लिए पुलिस के पास कोई अलग अधिकार नहीं है. सेल्फ डिफेंस आम आदमी और पुलिस के लिए एक जैसा है. </p><p>जबतक स्थिति बहुत बुरी ना हो जाए, कि किसी की जान पर ही बन आए, तबतक किसी को मार देना सेल्फ़ डिफेंस नहीं है. </p><p>उदाहरण के लिए कोई आपके घर में ज़बरदस्ती घुस आता है, लेकिन उसके पास कोई हथियार नहीं है. तो आप उसे पकड़ सकते हो, लेकिन गोली नहीं मार सकते. अगर आप उसे मार देते हैं तो ये सेल्फ़ डिफेंस नहीं होगा. </p><p>इस हैदराबाद के मामले में भी जो परिस्थितियां दिख रही हैं, उसके मुताबिक इसे सेल्फ़ डिफेंस नहीं कहा जा सकता. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50694648?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’क्या यही है वो इंसाफ़ जो महिलाएं मांग रही थीं'</a></li> </ul><figure> <img alt="हैदराबाद एनकाउंटर" src="https://c.files.bbci.co.uk/A574/production/_110065324_cd55372d-c8fe-42c0-91b0-ae5a29a287eb.jpg" height="650" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>इस देश में कितने अभियुक्त दोषी साबित होते हैं? इसका अनुपात क्या है? </p><p>कितने मामलों में ये पता चल पाता है कि कोई मामला निष्पक्ष तरह से चलाया गया, जहां अभियोजन पक्ष ने सच को दबाया. जहां असली दोषियों को छोड़ दिया गया और निर्दोष लोगों को सज़ा हुई. </p><p>अगर जनता जो सोचती वही सही होता तो 100 फ़ीसदी मामलों में लोगों को दोषी ठहराया जाता. </p><p>क्यों महात्मा गांधी की हत्या मामले में कुछ अभियुक्त बरी हो गए थे? राजीव गांधी हत्या मामले में कुछ लोग क्यों बरी हो गए थे? </p><p>जॉन एफ कैनेडी हत्या मामले में क्यों कुछ लोग बरी हो गए थे? </p><p>इसलिए ये नहीं मानना चाहिए कि जांच एजेंसियां जो भी कहती हैं वही सही है. </p><p>मीडिया इसे सच मानता है और लोगों को कहता है कि यही सच है. </p><p>लेकिन जज को ये ‘सच’ या राय प्रभावित नहीं कर सकता. जज हर पक्ष को जानकर ही फ़ैसला देता है. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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