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Friday, March 29, 2024

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कर्नाटक उपचुनावः बीजेपी को बड़ी जीत हासिल क्यों हुई

<figure> <img alt="येदियुरप्पा" src="https://c.files.bbci.co.uk/184A7/production/_110059499_126ebd99-ab90-4f36-81cb-bca8536d3514.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>कर्नाटक में हुए उपचुनावों के नतीजे यह संकेत दे रहे हैं कि राज्य में अब भाजपा की स्थिर सरकार होगी और अगर ऐसा हो पाया है तो बीएस येदियुरप्पा और उनकी लोकप्रियता इसकी वजह हैं.</p><p>उपचुनावों में बीजेपी ने 15 में से 12 सीटों पर जीत हासिल […]

<figure> <img alt="येदियुरप्पा" src="https://c.files.bbci.co.uk/184A7/production/_110059499_126ebd99-ab90-4f36-81cb-bca8536d3514.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>कर्नाटक में हुए उपचुनावों के नतीजे यह संकेत दे रहे हैं कि राज्य में अब भाजपा की स्थिर सरकार होगी और अगर ऐसा हो पाया है तो बीएस येदियुरप्पा और उनकी लोकप्रियता इसकी वजह हैं.</p><p>उपचुनावों में बीजेपी ने 15 में से 12 सीटों पर जीत हासिल की है, जबकि कांग्रेस को सिर्फ़ दो सीटों पर संतोष करना पड़ा है.</p><p>एक सीट पर बीजेपी के बाग़ी उम्मीदवार को जीत मिली जबकि जनता दल सेक्यूलर को कोई सीट नहीं मिली.</p><p>दलबदल विरोध कानून के तहत कभी अयोग्य ठहराए गए भाजपा के दर्जन भर उम्मीदवारों ने 8 से लेकर 54 हज़ार मतों के अंतर से जीत दर्ज की है.</p><p>विधानसभा में अब भाजपा विधायकों की संख्या 105 से बढ़कर 117 हो गई है. अगर सहयोगियों की बात करें तो बीजेपी के पास अब सदन में 222 विधायकों का समर्थन हासिल है.</p><p>दो सीटों पर अभी उपचुनाव होने बाकी हैं, क्योंकि इनका केस अभी अदालत में चल रहा है.</p><p>कांग्रेस ने एक सीट करीब 14 हज़ार, वहीं दूसरी सीट करीब 40 हज़ार वोटों के अंतर से जीती है. उपचुनावों में करारी हार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कांग्रेस विधायक दल के नेता और नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफ़ा दे दिया है.</p><p>वहीं दिनेश गुंडुराव ने भी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष से इस्तीफ़ा दे दिया है. </p><p><a href="https://twitter.com/siddaramaiah/status/1203986682069966848">https://twitter.com/siddaramaiah/status/1203986682069966848</a></p><p>कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष बीएल शंकर ने बीबीसी से कहा, &quot;एक तरह से यह येदियुरप्पा का चुनाव था. लोग चाहते थे कि वो मुख्यमंत्री बने रहें. चुनाव का आधार जाति, धर्म और धन था.&quot;</p><p>शंकर यह मानते हैं कि &quot;कांग्रेस और जेडीएस रणनीति को लेकर भ्रमित थे. कांग्रेस कहती थी कि 9 दिसंबर को राज्य में एक नई सरकार होगी और जेडीएस कहती थी कि वह मध्यावधि में चुनाव नहीं चाहती है. और मतगणना से ठीक पहले इस बात की चर्चा हो रही थी कि दोनों दल गठबंधन सरकार बनाना चाह रहे थे.&quot;</p><figure> <img alt="सिद्धारमैया" src="https://c.files.bbci.co.uk/AC68/production/_110063144_e0dcef3a-bc54-4851-87e7-9cbf689fb144.jpg" height="351" width="624" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>इन सभी के बीच बीजेपी का उभार दक्षिण कर्नाटक के मांड्या ज़िले में देखने को मिला, जहां राज्य की अन्य प्रमुख उच्च जाति वोक्कालिगा का प्रभुत्व है.</p><p>वोक्कालिगा परांपरिक रूप से जेडीएस और कांग्रेस को वोट करते आए हैं. इस बार भाजपा ने केआर पटेल (मांड्या ज़िला) और चिकबल्लापुर के निर्वाचन क्षेत्रों में मज़बूत बढ़त हासिल की.</p><p>कांग्रेस के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, &quot;ये ऐसे निर्वाचन क्षेत्र हैं जहां भाजपा को मतदान केंद्रों के पास टेबल लगाने के लिए कार्यकर्ता तक नहीं मिलते थे.&quot;</p><p>चिकबल्लापुर में भाजपा उम्मीदवार ने 34,801 मतों के अंतर से जीत हासिल की है, वहीं केआर पटेल में यह अंतर नौ हज़ार वोटों का रहा है.</p><p><a href="https://twitter.com/BJP4Karnataka/status/1203960314032603136">https://twitter.com/BJP4Karnataka/status/1203960314032603136</a></p><p>कर्नाटक में साल 2018 में विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसमें भाजपा को 105 सीटें मिली थीं. यह बहुमत के आंकड़े से महज़ सात पायदान नीचे थी.</p><p>भाजपा को सरकार बनाने से रोकने के लिए जेडीएस और कांग्रेस साथ आई और सरकार का गठन किया. विधायकों की संख्या ज़्यादा होने के बावजूद कांग्रेस ने मुख्यमंत्री का पद जेडीएस को दिया, लेकिन यह सरकार चल नहीं पाई.</p><p>राजनीतिक जोड़ घटाव के बीच कांग्रेस और जेडीएस के 17 विधायकों ने इस्तीफ़ा दे दिया और फिर भाजपा की सरकार अस्तित्व में आई.</p><figure> <img alt="मोदी के साथ येदियुरप्पा" src="https://c.files.bbci.co.uk/926D/production/_110058473_35240559-aeb9-47cc-9c16-ed8546dbc8e1.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>उपचुनावों में इस जीत के बाद येदियुरप्पा का कद अब पार्टी के भीतर और बढ़ गया है और उन्हें मार्गदर्शक मंडल की श्रेणी में भेजने की कोशिशों को ज़बरदस्त झटका लगा है.</p><p>वो अभी 76 साल के हैं और नई भाजपा के मानदंडों के अनुसार उन्हें पिछले साल ही मार्गदर्शन मंडल में शामिल हो जाना चाहिए था, लेकिन कर्नाटक में भाजपा के पास उनके अलावा कोई और ऐसा नेता नहीं है जो राज्यव्यापी समर्थन की कमान संभाल सके.</p><p>राजनीतिक विश्लेषक और जैन यूनिवर्सिटी के उपकुलपति डॉ. संदीप शास्त्री कहते हैं, &quot;मुझे नहीं लगता है कि केंद्रीय नेतृत्व येदियुरप्पा को हटाने के लिए कुछ भी करेगा, ख़ासकर महाराष्ट्र के खराब अनुभवों के बाद. जब तक वो खुद गलतियां नहीं करते, उन्हें कम से कम कुछ समय के लिए ही सही, हटाया नहीं जाएगा.&quot;</p><p>लेकिन डॉ. शास्त्री यह भी कहते हैं कि उपचुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी को फायदा मिलता है. &quot;मतदाताओं को लगा कि भाजपा को वोट देने से स्थिरता आएगी. येदियुरप्पा की व्यक्तिगत लोकप्रियता भी एक प्रमुख कारण रही है.&quot;</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a 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