29.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

जेएनयू के छात्रों का विरोध प्रदर्शन कितना सही?

<figure> <img alt="जेएनयू" src="https://c.files.bbci.co.uk/14B6C/production/_109744848_gettyimages-1183264398.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>पिछले कई दिनों से दिल्ली स्थित जवाहर लाल यूनिवर्सिटी के छात्र विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. विरोध है बढ़ी फ़ीस का. </p><p>जेएनयू ने फ़ीस को लेकर नए नियम जारी किए हैं जिसके बाद एक सीटर कमरे का मासिक किराया 20 रुपए से बढ़कर 600 रुपए हुआ […]

<figure> <img alt="जेएनयू" src="https://c.files.bbci.co.uk/14B6C/production/_109744848_gettyimages-1183264398.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>पिछले कई दिनों से दिल्ली स्थित जवाहर लाल यूनिवर्सिटी के छात्र विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. विरोध है बढ़ी फ़ीस का. </p><p>जेएनयू ने फ़ीस को लेकर नए नियम जारी किए हैं जिसके बाद एक सीटर कमरे का मासिक किराया 20 रुपए से बढ़कर 600 रुपए हुआ और दो लोगों के लिए कमरे का किराया 10 रुपए से बढ़कर 300 रुपए.</p><p>साथ ही हर महीने 1700 रूपए का सर्विस चार्ज भी लिए जाने का ऐलान हुआ. </p><p>यानी उन नियमों के मुताबिक़ कम से कम 3350 रूपए हर महीने एक छात्र को देना है, इसके अलावा मेस फ़ीस अलग और बिजली, पानी और रख-रखाव का चार्ज अलग. </p><figure> <img alt="जेएनयू" src="https://c.files.bbci.co.uk/16D4/production/_109744850_gettyimages-1183264373.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p><strong>एक छात्र का </strong><strong>ख़र्च </strong><strong>कितना बढ़ा?</strong></p><p>बीबीसी ने जेएनयू में एमफिल कर रहे एक छात्र से बात की जिनके परिवार की कमाई 12 हज़ार से कम होने की वजह से उन्हें 5 हज़ार रूपए स्कॉलरशिप मिलती है. </p><p>उनकी ऐवरेज मेस फ़ीस है तकरीबन 3 हज़ार रूपए महीना. अब इसमें 3350 और जोड़ दीजिए और साथ में बिजली-पानी और रख-रखाव का ख़र्चा. </p><p>तो ये कुल ख़र्चा उनकी स्कॉलरशिप से ज़्यादा हो जाता है. एक छात्र के ख़र्च में इन सबके अलावा किताबें और दूसरी ज़रूरी चीज़ें भी होंगी. हर सेमेस्टर में इस्टेबलिशमेंट चार्ज भी है और कुछ सालाना फ़ीस अलग.</p><p>छात्रों के प्रदर्शन के बाद इसमें बदलाव ये हुआ कि 12000 से कम पारिवारिक कमाई वाले छात्रों के हॉस्टल रूम का ख़र्च आधा यानी 300 और 150 रुपए कर दिया गया. सरकार ने इसे ‘मेजर रोलबैक’ यानी ‘भारी कटौती’ के तौर पर पेश किया. </p><h1>कितने छात्र होंगे प्रभावित?</h1><p>अगर जेएनयू की वेबसाइट पर 2017-18 की आधिकारिक सालाना रिपोर्ट देखें तो उसमें 1556 छात्रों को एडमिशन दिया गया जिनमें से 623 ऐसे छात्र थे जिनके परिवार की मासिक आय 12000 रुपए से कम है. </p><p>यानी 40 फ़ीसदी ऐसे छात्र आए जिनके परिवार की आय 12 हज़ार रुपए से कम है. </p><p>12,0001 रूपए से ज़्यादा कमाई वाले परिवारों से 904 छात्र आए. मतलब ये आय 20 हज़ार रुपए महीना भी हो सकती है और 2 लाख महीना भी. इनमें से 570 बच्चे सरकारी स्कूलों से पढ़ कर आए थे. यानी 36 फ़ीसदी. </p><p>फ़ीस बढ़ोत्तरी के विरोध में जेएनयू का एबीवीपी छात्र संगठन भी शामिल है. हालांकि वे बाकी छात्रों के प्रदर्शन से सहमत नहीं हैं. </p><figure> <img alt="जेएनयू" src="https://c.files.bbci.co.uk/3362/production/_109745131_gettyimages-1183264384.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>जेएनयू पर कितना आर्थिक बोझ?</h1><p>जेएनयू प्रशासन ये कहता है कि कमरों के किराए तीन दशक से नहीं बढ़े थे, बाकी ख़र्च एक दशक से लंबे समय से नहीं बढ़े थे, इसलिए ये कदम ज़रूरी था. </p><p>हालांकि पिछले साल पीटीआई में छपी रिपोर्ट बताती है कि हॉस्टल रूम के अलावा बाक़ी फ़ीस बढ़ी है. </p><p>लेकिन समस्या ये है कि ज़्यादातर केंद्रीय विश्वविद्यालय फंड की कमी से जूझ रहे हैं. छात्रों की फीस से जो कमाई होती है वो कुल खर्च का 2-3 फ़ीसदी ही होता है. </p><p>जैसे जेएनयू की 2017-18 की रिपोर्ट देखी जाए तो छात्रों की फ़ीस से महज़ 10 करोड़ ही आया. </p><p>उस साल यूनिवर्सिटी की कुल कमाई 383 करोड़ थी और खर्च हुआ 556 करोड़ का. यानी 172 करोड़ का गैप है जो कैसे पूरा किया जाएगा इसका सफल मॉडल ये विश्वविद्यालय अपने रिसर्च से नहीं निकाल पाए हैं. </p><p>हालांकि कुछ और खर्चों पर नज़र डाली तो पता चला कि जेएनयू में लाइब्रेरी का खर्च कम कर दिया गया है. लेकिन सिक्योरिटी पर खर्चा 2017-18 में 17.38 करोड़ रुपए रहा जो उससे पिछले साल 9.52 करोड़ रुपए था. </p><p>इस साल केंद्र के बजट से भी जीडीपी का 4.6 फीसदी ही शिक्षा के लिए मिला जबकि जानकार कहते हैं कि ये कम से कम 6 फ़ीसदी होना चाहिए. </p><p>साल 2019-20 के लिए यूजीसी का बजट भी घटा है. ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन का बजट भी घटा है. आआईटी और आईआईएम का बजट भी काफी घटा है. </p><p>लेकिन ये भी सच है कि केंद्रीय बजट का ज़्यादातर हिस्सा इंजीनियरिंग और टेक्निकल संस्थानों में जा रहा है और बाकी संस्थानों को उस बजट का कम हिस्सा मिल रहा है. </p><figure> <img alt="जेएनयू" src="https://c.files.bbci.co.uk/B314/production/_109744854_gettyimages-1183264357.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>क्या जेएनयू इसका हल खोज सकता है?</h1><p>कई आईआईटी संस्थान अपनी कमाई को बढ़ाने का एक प्रयोग अपने यहां कर रहे हैं. </p><p>वे अपने संस्थान से पढ़कर निकले पुराने छात्रों से पैसा जुटा रहे हैं. जैसे आईआईटी बॉम्बे ने 1993 के बैच से 25 करोड़ जुटाए. आईआईटी मद्रास ने 220 करोड़ इसी तरह जुटाए. </p><p>उन्होंने दूसरे देशों में दफ़्तर भी खोले हैं ताकि पुराने छात्रों से संबंध बढ़ाए जा सकें. </p><p>क्या ऐसा ही जेएनयू और बाकी संस्थानों में भी संभव है, ये तो शोध का विषय है. </p><p>लेकिन जेएनयू समेत बाकी विश्वविद्यालयों में खर्च और कमाई के बीच का अंतर कम करने के लिए अगर जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो ये फीस वृद्धि आगे होती ही रहेगी. </p><p>आखिरी सवाल ये है कि क्या सिर्फ फ़ीस वृद्धि से ये अंतर कम हो सकेगा? </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें