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विधवा मां के लिए आत्मनिर्भर योग्य वर खोजता बेटा

<figure> <img alt="गौरव अधिकारी अपनी मां के साथ" src="https://c.files.bbci.co.uk/14F66/production/_109626858_gauravwithmother-1.jpg" height="649" width="976" /> <footer>GAURAV ADHIKARI</footer> </figure><p>&quot;मुझे अपनी विधवा मां डोला अधिकारी के लिए एक योग्य वर चाहिए. मैं रोज़गार के सिलसिले में ज़्यादातर समय घर से बाहर रहता हूं. ऐसे में मेरी मां घर में अकेली पड़ जाती हैं. मुझे लगता है कि एकाकी जीवन गुजारने […]

<figure> <img alt="गौरव अधिकारी अपनी मां के साथ" src="https://c.files.bbci.co.uk/14F66/production/_109626858_gauravwithmother-1.jpg" height="649" width="976" /> <footer>GAURAV ADHIKARI</footer> </figure><p>&quot;मुझे अपनी विधवा मां डोला अधिकारी के लिए एक योग्य वर चाहिए. मैं रोज़गार के सिलसिले में ज़्यादातर समय घर से बाहर रहता हूं. ऐसे में मेरी मां घर में अकेली पड़ जाती हैं. मुझे लगता है कि एकाकी जीवन गुजारने की बजाय सबको बेहतर तरीके से जीने का अधिकार है.&quot;</p><p>पश्चिम बंगाल के हुगली ज़िले में फ्रेंच कॉलोनी रहा चंदननगर अक्सर जगद्धात्री पूजा और बिजली के कारीगरों की वजह से सुर्खियों में रहता है.</p><p>लेकिन इस बार वो इलाके के एक युवक गौरव अधिकारी के फ़ेसबुक पर लिखे इस पोस्ट के कारण सुर्खियों में है.</p><p>इसी महीने आस्था नामक एक युवती ने भी अपनी मां के लिए 50 साल के एक सुंदर व्यक्ति की तलाश में एक ट्वीट किया था. वो ट्वीट काफी वायरल हुआ था.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/magazine-46274428?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’पापा मां को धोखा दे रहे थे और मैं उन्हें बता न सका'</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-46272718?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">मां-बाप की दूसरी शादी बच्चों को कैसी लगती है</a></li> </ul><figure> <img alt="चंदन नगर" src="https://c.files.bbci.co.uk/1ACE/production/_109626860_chandannagar-1.jpg" height="549" width="976" /> <footer>GAURAV ADHIKARI</footer> </figure><p>आस्था ने कहा था कि वह अपनी मां के लिए जो आदमी तलाश रही हैं उसे जीवन में काफी स्थापित और शाकाहारी होना चाहिए. इसके अलावा वो शराब नहीं पीता हो.</p><p>पांच साल पहले गौरव के पिता का निधन हो गया था. उसके बाद उनकी 45 वर्षीया मां घर में अकेले ही रहती हैं. लेकिन आखिर उन्होंने फ़ेसबुक पर ऐसी पोस्ट क्यों लिखी?</p><p>गौरव बताते हैं, &quot;मेरे पिता कुल्टी में नौकरी करते थे. वर्ष 2014 में उनके निधन के बाद मां अकेले पड़ गई हैं. मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान हूं. मैं सुबह सात बजे ही नौकरी पर निकल जाता हूं और लौटने में रात हो जाती है. पूरे दिन मां अकेले ही रहती हैं. मुझे महसूस हुआ कि हर आदमी को साथी या मित्र की जरूरत है.&quot;</p><p>क्या आपने इस पोस्ट को लिखने से पहले अपनी मां से बात की थी?</p><p>गौरव ने बताया, &quot;मैंने मां से बात की थी. मां मेरे बारे में सोच रही हैं. लेकिन मुझे भी उनके बारे में सोचना है. एक संतान के तौर पर मैं चाहता हूं कि मां के जीवन के बाकी दिन बेहतर तरीके से गुजरें.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-49642841?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">जीवनसाथी की मौत के बाद भूख का अत्याचार क्यों?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-37453561?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">ज़मीन पर खाना खाती महिला और ‘ज़मींदोज़ व्यवस्था'</a></li> </ul><figure> <img alt="चंदननगर" src="https://c.files.bbci.co.uk/7366/production/_109624592_chandannagar-2.jpg" height="549" width="976" /> <footer>GAURAV ADHIKARI</footer> </figure><h3>क्या लिखा था गौरव ने? </h3><p>गौरव ने आखिर अपने फेसबुक पोस्ट में क्या लिखा है? उन्होंने लिखा है, &quot;मेरी मां डोला अधिकारी हैं. मेरे पिता का निधन पांच साल पहले हो गया था. नौकरी की वजह से मैं अधिकतर घर से बाहर रहता हूं. इससे मां अकेली पड़ जाती हैं. मेरी मां को किताबें पढ़ना और गाने सुनना पसंद हैं. लेकिन मैं अपनी मां के लिए एक साथी चाहता हूं. मुझे लगता है कि पुस्तकें और गीत कभी किसी साथी की जगह नहीं ले सकते. एकाकी जीवन गुजारने की बजाय बेहतर तरीके से जीना ज़रूरी है. मैं आने वाले दिनों में और व्यस्त हो जाऊंगा. शादी होगी, घर-परिवार होगा. लेकिन मेरी मां? हमलोगों को रुपये-पैसे, जमीन या संपत्ति का कोई लालच नहीं हैं. लेकिन भावी वर को आत्मनिर्भर होना होगा. उसे मेरी मां को ठीक से रखना होगा. मां की खुशी में ही मेरी खुशी है. इसके लिए हो सकता है कि कई लोग मेरी खिल्ली उड़ाएं या किसी को लग सकता है कि मेरा दिमाग ख़राब हो गया है. ऐसे लोग मुझ पर हंस सकते हैं. लेकिन उससे मेरा फैसला नहीं बदलेगा. मैं अपनी मां को एक नया जीवन देना चाहता हूं. चाहता हूं कि उनको एक नया साथी और मित्र मिले.&quot;</p><p><a href="https://www.facebook.com/photo.php?fbid=2340941579538596&amp;set=a.1408008782831885&amp;type=1&amp;theater">https://www.facebook.com/photo.php?fbid=2340941579538596&amp;set=a.1408008782831885&amp;type=1&amp;theater</a></p><figure> <img alt="गौरव अधिकार" src="https://c.files.bbci.co.uk/C186/production/_109624594_gauravadhikari-1.jpg" height="649" width="976" /> <footer>GAURAV ADHIKARI</footer> </figure><h3>उनकी इस पोस्ट पर कैसी प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं? </h3><p>गौरव बताते हैं, &quot;इस पोस्ट के बाद कई लोगों ने फोन कर विवाह की इच्छा जताई है. इनमें डाक्टर और मैरीन इंजीनियर से लेकर शिक्षक तक शामिल हैं. उनमें से किसी योग्य पात्र को तलाश कर मां का दूसरा विवाह कराना ही फिलहाल मेरा प्रमुख लक्ष्य है.&quot; </p><p>लेकिन क्या समाज के लोग इस पोस्ट के लिए आपका मजाक नहीं उड़ा रहे हैं? </p><p>गौरव का कहना है कि &quot;पीठ पीछे तो लोग लाख तरह की बातें करते हैं. लेकिन अब तक सामने किसी ने कुछ नहीं कहा है. वह कहते हैं, मैंने महज प्रचार पाने के लिए यह पोस्ट नहीं लिखी है. बहुत से युवक-युवतियां मेरी तरह अपने मां-बाप के बारे में जरूर सोचते होंगे. लेकिन समाज के डर से वह लोग आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाते.&quot; </p><p>गौरव को उम्मीद है कि उनकी इस पहल से ऐसे दूसरे लोग भी आगे आएंगे.</p><p>गौरव जिस बऊबाजार इलाके में रहते हैं उसी मोहल्ले के शुभमय दत्त कहते हैं, &quot;ये एक अच्छी पहल है. कई लोग कम उम्र में ही पति या पत्नी के निधन से अकेले पड़ जाते हैं. रोजी-रोटी की व्यस्तता की वजह से संतान भी उनका वैसा ध्यान नहीं रख पाती. ऐसे में जीवन की दूसरी पारी की शुरुआत का विचार बुरा नहीं है.&quot; </p><p>एक सामाजिक संगठन मानविक वेलफेयर सोसायटी के सदस्य सोमेन भट्टाचार्य कहते हैं, &quot;ये पहल सराहनीय है. लोग तो कुछ न कुछ कहेंगे ही. लेकिन अपनी मां के भविष्य के बारे में एक पुत्र की यह चिंता समाज की बदलती मानसिकता का संकेत है.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-41223190?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">वो औरतें परिवार के साथ क्यों नहीं खातीं?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-46552974?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">#100WOMEN खाना पकाने से बदल गया ‘एक हिंसक व्यक्ति’</a></li> </ul><figure> <img alt="गौरव अधिकारी" src="https://c.files.bbci.co.uk/10146/production/_109626856_gauravadhikari-3.jpg" height="549" width="976" /> <footer>GAURAV ADHIKARI</footer> </figure><h3>नई नहीं परंपरा</h3><p>पश्चिम बंगाल में विधवा विवाह की परंपरा नई नहीं हैं. विधावाओं के पुनिर्विवाह के लिए समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने सबसे पहले आवाज उठाई थी. </p><p>इस साल उनकी दो सौवीं जयंती मनाई जा रही है. उनके प्रयासों की वजह से ही 16 जुलाई, 1856 को देश में विधवा विवाह को कानूनी तौर पर मान्यता मिली थी.</p><p>खुद विद्यासागर ने अपने पुत्र का विवाह भी एक विधवा से ही किया था. इस अधिनियम से पहले तक हिंदू समाज में ऊंची जाति की विधवा महिलाओं को दोबारा शादी की इजाजत नहीं थी.</p><p>अपने इस प्रयास के दौरान विद्यासागर को काफी सामाजिक विरोध झेलना पड़ा था.</p><p>कट्टरपंथियों ने उनको जान से मारने तक की धमकियां दी थीं. लेकिन वह पीछे नहीं हटे. आखिर में उनका प्रयास रंग लाया.</p><p>लेकिन विडंबना यह है कि ईश्वर चंद्र विद्सागर के प्रयासों से विधवा विवाह को कानूनी मान्यता मिलने के बावजूद पश्चिम बंगाल में विधवाओं के पुनर्विवाह की परंपरा धीरे-धीरे खत्म हो गई. बनारस से वृंदावन तक तमाम आश्रमों में बंगाल की विधवाओं की बढ़ती तादाद इस बात की पुष्टि करती है.</p><p>राष्ट्रीय महिला आयोग ने कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट में पेश अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि सीपीएम की अगुवाई वाली सरकार के शासनकाल के दौरान बंगाल में विधवाओं की हालत देश में सबसे बदतर है. उसी दौर में राज्य की विधवाओं के बनारस और वृंदावन जाने का सिलसिला तेज हुआ.</p><p>नाटिंघम विश्वविद्यालय के स्कूल आफ इकोनामिक्स के इंद्रनील दासगुप्ता के साथ विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 की नाकामी पर शोध करने वाले कोलकाता स्थित भारतीय सांख्यिकी संस्थान के दिगंत मुखर्जी कहते हैं, &quot;ईश्वर चंद्र विद्यासागर की अगुवाई में चले सामाजिक आंदोलन के दबाव में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उक्त अधिनियम को पारित जरूर कर दिया था. लेकिन आगे चल कर समाज में इसका खास असर देखने को नहीं मिला. विधवाओं को समाज में अछूत ही माना जाता रहा.&quot;</p><p>वह कहते हैं कि एकल परिवारो के मौजूदा दौर में विधवाओं की हालत औऱ बदतर हुई है. यही वजह है कि बनारस औऱ वृंदावन के विधवाश्रमों में बंगाल की विधवाओं की तादाद साल-दर-साल बढ़ती जा रही है.</p><h3>ये भी पढ़ें:</h3> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/vert-fut-44344084?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">कोई साथ हो तो हम इसलिए खाते हैं ज़्यादा खाना</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-49890186?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">वो इमाम जिन्होंने नस्लवाद के ख़िलाफ़ लड़ते हुए दम तोड़ा</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-44478515?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">नस्लवाद के ख़िलाफ़ बोलने वाले आइंस्टीन भी ‘नस्लवादी’ थे</a></li> </ul><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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