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भारत क्या ख़ुद बनाए हथियारों के दम पर युद्ध जीत सकता है?

<figure> <img alt="2016 में रूस के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास में भारतीय सैनिक" src="https://c.files.bbci.co.uk/17E3E/production/_109245879_41bd2657-87e7-4e74-8777-fb3b62d497ac.jpg" height="681" width="1024" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>2016 में रूस के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास में भारतीय सैनिक</figcaption> </figure><p>भारत के थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा है कि ‘अगला युद्ध स्वदेशी हथियार प्रणालियों व उपकरणों से लड़ा और जीता जाएगा.'</p><p>आर्मी चीफ़ ने कहा कि […]

<figure> <img alt="2016 में रूस के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास में भारतीय सैनिक" src="https://c.files.bbci.co.uk/17E3E/production/_109245879_41bd2657-87e7-4e74-8777-fb3b62d497ac.jpg" height="681" width="1024" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>2016 में रूस के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास में भारतीय सैनिक</figcaption> </figure><p>भारत के थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा है कि ‘अगला युद्ध स्वदेशी हथियार प्रणालियों व उपकरणों से लड़ा और जीता जाएगा.'</p><p>आर्मी चीफ़ ने कहा कि डिफ़ेंस रिसर्च एंड डेवेलपमेंट ऑर्गनाइज़ेशन (डीआरडीओ) ने घरेलू समाधानों की मदद से देश की रक्षा सेवाओं की ज़रूरतों की दिशा मे तेज़ी से प्रगति की है.</p><p>उन्होंने ये बातें डीआरडीओ के निदेशकों की 41वीं कॉन्फ़्रेंस को संबोधित करते हुए कहीं. डीआरडीओ भारत सरकार की एजेंसी है जो सेनाओं के लिए रिसर्च और डेवेलपमेंट का काम करती है.</p><p>डीआरडीओ के पास 52 प्रयोगशालाएं हैं जहां पर एरोनॉटिक्स, नेवल सिस्टम, मिसाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, युद्धसामग्री और लैंड कॉम्बैट इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों पर शोध और विकास कार्य किए जाते हैं.</p><p>सेना प्रमुख ने कहा कि देश का रक्षा उद्योग उभर रहा है और समय आ गया है कि भविष्य के संघर्षों में इस्तेमाल वाले वाले सिस्टम विकसित किए जाएं और ‘नॉन कॉन्टैक्ट वॉरफ़ेयर’ की तैयारी की जाए.</p> <ul> <li><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/05/120506_drdo_missile_defenceshielf_psa?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">डीआरडीओ- भारत में मिसाइल रक्षा कवच तैयार</a></li> <li><a href="http://www.bbc.com/hindi/india/2015/08/150824_ramdev_drdo_deal_trends_pm?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">सोशल मीडिया पर उड़ी डीआरडीओ की खिल्ली</a></li> </ul><p>डीआरडीओ कई तरह के प्लेटफ़ॉर्म, सेंसर, हथियार और सैनिकों के लिए मददगार रहने वाले सिस्टम ख़ुद तैयार करता है. लेकिन इनमें भी कुछ सिस्टम ऐसे हैं, जिन्हें तैयार करने के लिए उसे पुर्ज़े वगैरह आयात करने पड़ते हैं.</p><p>2016 में तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर की ओर से <a href="https://pib.gov.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=137431">राज्यसभा में दी गई लिखित जानकारी</a> के अनुसार, इनमें रडार से लेकर अग्नि, पृथ्वी और ब्रह्मोस मिसाइल तक शामिल हैं.</p><figure> <img alt="डीआरडीओ के आयात किए जाने वाले हिस्सों की सूची" src="https://c.files.bbci.co.uk/34F2/production/_109245531_mo.jpg" height="672" width="648" /> <footer>PIB</footer> <figcaption>DRDO के मुख्य सिस्टमों के आयात किए जाने वाले हिस्सों का प्रतिशत (8 मार्च, 2016 तक)</figcaption> </figure><p>ऐसे में थलसेना प्रमुख का यह कहना कि अगला युद्ध भारत स्वदेशी हथियार प्रणालियों से लड़ेगा और जीतेगा भी, कितना व्यावहारिक है? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए <strong>रक्षा विशेषज्ञ कोमोडोर उदय भास्कर</strong> से बात की बीबीसी संवाददाता आदर्श राठौर ने. पढ़ें उनका नज़रिया उन्हीं के शब्दों में:</p><h3>’डीआरडीओ का मनोबल बढ़ाने की कोशिश'</h3><p>सेनाध्यक्ष की टिप्पणी शायद डीआरडीओ को प्रोत्साहित करके मनोबल बढ़ाने के लिए थी. इस तरह का प्रोत्साहन होना चाहिए. मगर विश्लेषक के तौर पर इस विषय को मैं पिछले 20-25 सालों से समझने की कोशिश कर रहा हूं. मैं कहूंगा कि इस समय भारत के 60 से 70 फ़ीसदी मुख्य प्लैटफ़ॉर्म या इन्वेंटरी (आयुध सामग्री) आयातित है.</p><p>यह तो कहा जा सकता है कि अगले 30-40 साल में डीआरडीओ की भूमिका अहम हो सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मेक इन इंडिया और भारत में ही आरएंडडी पर काफ़ी ज़ोर दे रहे हैं. लेकिन रक्षा का क्षेत्र बहुत जटिल क्षेत्र है.</p><figure> <img alt="धनुष" src="https://c.files.bbci.co.uk/45BE/production/_109245871_aab00874-0cdf-431f-8798-f0ff98963469.jpg" height="464" width="696" /> <footer>Ministry of Defence</footer> <figcaption>धनुष तोप</figcaption> </figure><p>अभी तक डीआरडीओ या भारत की डिफ़ेंस से जुड़ीं पीएसयू जैसे कि शिपयार्ड, एचएएल और ऑर्डिनेंस फ़ैक्टरियां बहुत ख़ास उत्पादन क्षमता हासिल नहीं कर पाई हैं. </p><p>अगले युद्ध की बात की जा रही हो तो उसमें समय महत्वपूर्ण हो जाता है. जैसे मान लीजिए अगला युद्ध (जिसकी बात सेना प्रमुख ने की) अगले साल हो तो उसे स्वदेशी हथियार प्रणालियों और उपकरणों से जीतना बहुत मुश्किल है क्योंकि डीआरडीओ की लिस्ट से ऐसा कुछ सप्लाई नहीं हुआ है.</p><p>हालांकि, यह बात सही है कि डीआरडीओ ने कुछ ऐसे क्षेत्रों में अच्छी सफलता हासिल की है, जैसे कि मिसाइल कार्यक्रम. मगर इसकी निष्पक्ष समीक्षा करनी होगी कि तीनों सेनाओं के लिए वह कैसी हथियार सामग्री तैयार करते हैं और जो परियोजनाएं अभी प्रगति में हैं, उन्हें कैसे पूरा करते हैं.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-49920159?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">मिसाइल जिसके कारण भारत पर लग सकता है अमरीकी प्रतिबंध</a></li> </ul> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/science-47786758?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">नासा भारत के सैटेलाइट मिसाइल परीक्षण को क्यों बता रहा ख़तरनाक </a></li> </ul><figure> <img alt="डीआरडीओ निर्मित आकाश वेपन सिस्टम" src="https://c.files.bbci.co.uk/E1FE/production/_109245875_2a32c302-8bcb-434e-8be9-19071e7e6083.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>डीआरडीओ निर्मित आकाश वेपन सिस्टम</figcaption> </figure><h1>मिसाइल के अलावा और भी हथियार ज़रूरी</h1><p>थलसेनाध्यक्ष जरनल रावत ने वेपन सिस्टम के आधार पर युद्ध जीतने की बात कही है. डीआरडीओ की ओर से तैयार वेपन सिस्टम में ‘आकाश’ वेपन सिस्टम, ‘पृथ्वी’ व ‘ब्रह्मोस’ मिसाइल, मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम ‘पिनाका एमके-1’, टॉरपीडो अडवांस्ड लाइट और हेवीवेट शिप लॉन्च्ड टॉरपीडो ‘वरुणशस्त्र’ शामिल हैं.</p><p>यह बात सही है कि डीआरडीओ ने मिसाइलों के मामले में काफ़ी सफलता हासिल की है. मगर भारत के जिस भी युद्ध की आप कल्पना कर सकते हैं, उसमें सिर्फ़ मिसाइल के आधार पर सफलता हासिल नहीं की जा सकती. </p><figure> <img alt="ब्रह्मोस" src="https://c.files.bbci.co.uk/11F52/production/_109245537_a8d059c7-9a2b-440c-b8e9-c2f01167dbab.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>ब्रह्मोस मिसाइल</figcaption> </figure><p>युद्ध में और भी तरह-तरह के उपकरणों और हथियारों वगैरह की ज़रूरत होती है. उदाहरण के लिए मिसाइल को ही फ़ायर करना है तो आपको एयरक्राफ़्ट या हेलिकॉप्टर की ज़रूरत होगी. </p><p>थल सेना को भी मिसाइल के अलावा तोपों और टैंकों की ज़रूरत होती है. नौसेना की भी भूमिका होती है. तो तीनों सेनाओं की संपूर्ण क्षमता में अभी डीआरडीओ का योगदान बहुत सीमित क्षेत्र में है.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-47729698?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">भारत की स्पेस पावर पाकिस्तान के लिए कितनी ख़तरनाक</a></li> </ul> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-46797741?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">क्या ‘दलालों’ के बिना संभव नहीं हैं भारत के रक्षा सौदे?</a></li> </ul><figure> <img alt="एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल डिफ़ेंस सिस्टम" src="https://c.files.bbci.co.uk/1301E/production/_109245877_7ab0847a-4012-4fc5-983e-49d1ff223cf3.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल डिफ़ेंस सिस्टम</figcaption> </figure><h3>15-20 साल में यह बात संभव</h3><p>मैं नौसेना से हूं इसलिए देखें तो किसी युद्धक जलपोत के सफल घरेलू उत्पादन के तीन लक्षण होते हैं. सबसे पहले कहा जाता है- प्लैटफॉर्म मस्ट फ़्लोट. भारत इस क्षेत्र मे सफल है. हम जहाज़ बनाते हैं, डिज़ाइन करते हैं और वे सफल हैं.</p><p>फिर कहा जाता है- प्लैटफॉर्म मस्ट मूव. यानी उसे चलाने के लिए इंजनों की ज़रूरत होगी. तो इस मामले में भारत उतना सफल नहीं मगर धीरे-धीरे तरक्की कर रहा है. </p><p>तीसरा और सबसे अहम है- ‘प्लैटफॉर्म मस्ट बी एबल टू फ़ाइट’ यानी उसमें लड़ने की क्षमता होनी चाहिए. इसके लिए बंदूकें, मिसाइल, टॉरपीडो और रडार की ज़रूरत होती है.</p><p>हमारे पास अभी भी जितने भी जहाज़ बना रहे हैं, उनके युद्धक हिस्सों का 80 से 90 फ़ीसदी तक हम आयात कर रहे हैं.</p><figure> <img alt="आईएनएस विक्रमादित्य" src="https://c.files.bbci.co.uk/93DE/production/_109245873_f3e922a0-b381-4a92-8be5-56bfe0c046e7.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Indian Navy</footer> </figure><p>इसलिए, डीआरडीओ को प्रोत्साहित करना ज़रूरी है. मगर इसकी ओर से तैयार किए गए उपकरणों के ही आधार पर युद्ध जीतने की बात करनी हो तो समय को ध्यान में रखना ज़रूरी है. </p><p>अगर 15-20 सालों की बात हो रही है तो इसे लेकर हम भी आशावान हैं. मगर दो-तीन साल की बात हो रही है तो इसे संभव करने की दिशा में डीआरडीओ का योगदान काफ़ी सामान्य है.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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