30.1 C
Ranchi
Thursday, March 28, 2024

BREAKING NEWS

Trending Tags:

हरियाणा चुनाव: देवीलाल परिवार की महाभारत की कहानी

<p>हरियाणा के दिग्गज नेता रहे देवी लाल ने देश की आज़ादी के आंदोलन से लेकर देश से उप प्रधानमंत्री पद तक का लंबा सफ़र तय किया था. वो सत्ता में रहे हों या फिर सत्ता से बाहर, कई दशक लंबे अपने सियासी करियर में वो हरियाणा की ग्रामीण जनता के बीच हमेशा ही लोकप्रिय रहे […]

<p>हरियाणा के दिग्गज नेता रहे देवी लाल ने देश की आज़ादी के आंदोलन से लेकर देश से उप प्रधानमंत्री पद तक का लंबा सफ़र तय किया था. वो सत्ता में रहे हों या फिर सत्ता से बाहर, कई दशक लंबे अपने सियासी करियर में वो हरियाणा की ग्रामीण जनता के बीच हमेशा ही लोकप्रिय रहे थे, जो उन्हें प्यार से ताऊ कहा करती थी.</p><p>देवी लाल के देहांत के 18 साल बाद आज उनके सियासी विरासत टुकड़ों में बंट गई है और अलग-अलग राजनीतिक दलों में नज़र आती है. आज जो बीजेपी केंद्र से लेकर हरियाणा तक सत्ता में है, देवी लाल के दौर में वो बीजेपी देवी लाल की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल की जूनियर पार्टनर हुआ करती थी. देवी लाल ने इंडियन नेशनल लोकदल की स्थापना अपने आख़िरी दिनों में की थी. हालांकि, एक वक़्त ऐसा भी था जब बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार में आईएनएलडी बड़े भाई की भूमिका में रहा करती थी. फिर भी बीजेपी के कार्यकर्ता अक्सर आईएनएलडी के नेता ओम प्रकाश चौटाला पर अपने साथ बुरा बर्ताव करने के आरोप लगाया करते थे.</p><p>लेकिन, आज हालत ये है कि पार्टी में फूट के बाद आईएनएलडी आज हरियाणा की सभी 90 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करने की स्थिति में भी नहीं है. आज हरियाणा की सिरसा, रनिया, मेहम और करनाल सीटों पर आईएनएलडी के प्रत्याशी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. चुनावी राजनीति में इन बातों की बहुत अहमियत होती है. सिरसा और रनिया सीटें, सिरसा ज़िले में आती हैं, जो इंडियन नेशनल लोकदल का मुख्यालय कहा जाता है. वहीं, मेहम सीट आईएनएलडी के लिए इसलिए अहम है क्योंकि यहां से ख़ुद देवी लाल तीन बार विधायक चुने गए थे. करनाल सीट की नुमाइंदगी इस वक़्त हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर करते हैं.</p><p>हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के 11 विधायक टूटकर बीजेपी में शामिल हो गए थे. वहीं, चार विधायक पार्टी से अलग होकर बनी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का हिस्सा बन गए थे, जिसकी अगुवाई अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला कर रहे हैं. जबकि आईएनएलडी के दो विधायकों का देहांत हो गया था.</p><p>यानी अब स्थिति ये है कि 2014 में आईएनएलडी के टिकट पर जीते विधायकों में बस ओम प्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय चौटाला और लोहारू के एक विधायक ओपी बरवा ही बचे हैं.</p><p>यानी हरियाणा की राजनीति का मशहूर ‘देवीलाल ब्रांड’, उनके पोतों में बंट गया है. एक की नुमाइंदगी अभय चौटाला की अगुवाई वाला इंडियन नेशनल लोकदल करता है. वहीं, दूसरे गुट के अगुवा ओमप्रकाश चौटाला के दूसरे बेटे अजय चौटाला करते हैं जो जेल में बंद हैं. उनके बेटे दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी बनाई है. </p><h1>देवीलाल की सियासी भूल?</h1><p>ये गुट एक साल से भी कम वक़्त पहले उस समय अस्तित्व में आया था, जब परिवार की लड़ाई खुले में आ गई थी. देवीलाल ने 1989 में प्रधानमंत्री पद के प्रस्ताव को ठुकरा कर वी पी सिंह के लिए रास्ता छोड़ दिया था. कई जानकार इसे एक सियासी भूल मानते हैं. इसके बाद से ही देवीलाल का सियासी पतन शुरू हो गया था, जो 2001 में उनकी मौत तक जारी रहा था. वहीं, सेंटर ऑफ़ हरियाणा स्टडीज़ के पूर्व निदेशक प्रोफ़ेसर एस एस चाहर कहते हैं कि ओप्रकाश चौटाला ने सबसे बड़ी ग़लती अक्टूबर 2018 में गोहाना में हुई रैली में की थी.</p><p>जब उन्होंने अनुशासनहीनता के आरोप में अपने बड़े बेटे अजय चौटाला और उनके दो बेटों-दुष्यंत और दिग्विजय को पार्टी से बाहर कर दिया था. प्रोफ़ेसर चाहर कहते हैं, &quot;इसमें दो राय नहीं कि देवी लाल की लोकप्रियता का कोई मुक़ाबला नहीं था. लेकिन सियासत मिले हुए मौक़ों को भुनाने का नाम है. बहुत से लोग कहते हैं कि 1989 में देवी लाल ने प्रधानमंत्री का पद ठुकरा कर बलिदान दिया था. लेकिन, मेरा मानना है कि ये बहुत राजनितिक अपरिपक्वता भरा फ़ैसला था.’ </p><p>प्रोफ़ेसर चाहर कहते हैं कि उप-प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होने के बाद देवी लाल हरियाणा की सत्ता में अपने जीते जी दोबारा नहीं लौटे. जबकि उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला एक बार साल 2000 से 2005 तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे थे. लेकिन, आज देवी लाल के सियासी वारिस दो-राहे पर खड़े हैं.</p><h1>चौटाला के जेल जाने के बाद </h1><p>अगर हम 2019 के लोकसभा चुनावों को इंडियन नेशनल लोकदल की लोकप्रियता का बैरोमीटर मान लें, तो इस चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल को केवल दो फ़ीसद वोट ही मिले थे. वहीं इससे टूट कर अलग हुई जननायक जनता पार्टी का प्रदर्शन भी अच्छा नहीं रहा था. </p><p>इसी साल जींद में हुए विधानसभा उपचुनाव में जेजेपी ने देवी लाल के पड़पोते दिग्विजय सिंह को उम्मीदवार बनाया था. लेकिन, वो बीजेपी के नए उम्मीदवार कृष्णा मिढ़ा से हार गए थे. मिढ़ा के पिता जींद से इंडियन नेशनल लोकदल के ही विधायक थे. ये सीट उन्हीं के निधन से ख़ाली हुई थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह ने सोनीपत में भूपिंदर सिंह हुड्डा के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा था. लेकिन, उनका प्रदर्शन इतना ख़राब रहा था कि उनकी ज़मानत तक ज़ब्त हो गई थी.</p><p>एक राष्ट्रीय अख़बार के लिए काम करने वाले हरियाणा के पत्रकार धर्मेंदर कंवारी कहते हैं कि चुनावी सियासत में चौटाला परिवार के लिए आगे का रास्ता बहुत अंधकारमय दिखता है. देवी लाल के दौर में यही ख़ानदान सियासी तौर पर बहुत ताक़तवर था. लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि पांच बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले ओम प्रकाश चौटाला आज जेल में हैं.</p><p>ओम प्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला को कभी उनकी विनम्रता और नरमदिली की वजह से देवी लाल का अक़्स कहा जाता था. लेकिन, आज वो भी जेल में हैं. परिवार में फूट से पहले माना जाता था कि इंडियन नेशनल लोकदल हरियाणा में दोबारा सत्ता में लौटेगा. लेकिन, आज पूरी पार्टी बिखरी हुई है. इस पार्टी में आज केवल दो विधायक ही बचे हैं. धर्मेंदर कंवारी कहते हैं कि जननायक जनता पार्टी अभी नई-नई बनी है और अभी उसे वोटरों का भरोसा जीतना बाक़ी है.</p><p>चंडीगढ़ में हिंदुस्तान टाइम्स के असिस्टेंट एडिटर हितेंद्र राव मौजूदा हालात के बारे में कहते हैं कि मुख्यमंत्री बनने के बाद ओम प्रकाश चौटाला ने बड़ी मेहनत की थी. उन्हें पूरे सूबे का दौरा करके राज्य भर में अपनी पार्टी को मज़बूती दी थी. उसका दायरा बढ़ाया था. राव कहते हैं, ‘अपनी शारीरिक अपंगता के बावजूद ओम प्रकाश चौटाला ने जितनी मेहनत की थी वो हैरान करने वाली थी. उनके पोतों को हर चीज़ थाल में सजाकर मिल गई. वो उनके सामने कुछ भी नहीं हैं.'</p><p>हितेंद्र राव कहते हैं कि आज ओम प्रकाश चौटाला के लिए हालात 360 डिग्री बदल गए हैं. राव के मुताबिक़, ‘एक वक़्त था जब पार्टी पूरी तरह से उनकी गिरफ़्त में थी, हुकूमत उनकी मुट्ठी में थी. मुख्यमंत्री के तौर पर एक बार ओम प्रकाश चौटाला ने उस वक़्त हरियाणा के संगठन मंत्री रहे और आज के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को बाहर का रास्ता दिखा दिया था, जब वो गठबंधन के सहयोगियों के साथ बैठक कर रहे थे. ये घटना दिल्ली के हरियाणा भवन के सीएम सुइट में हुई थी. तब खट्टर उनसे गठबंधन के कुछ मसलों पर चर्चा के लिए गए थे.’ </p><p>आज इंडियन नेशनल लोकदल का गठबंधन मायावती की बहुजन समाज पार्टी से भी टूट गया है. वहीं, अंदरूनी उठा-पटक की वजह से बीजेपी, क्षेत्रीय सहयोगियों को भाव देने को तैयार नहीं है.</p><p><strong>देवी </strong><strong>लाल का करिश्मा</strong></p><p>प्रोफ़ेसर चाहर कहते हैं कि यूं तो देवी लाल हरियाणा के सिरसा ज़िले से ताल्लुक़ रखते थे. लेकिन, उनकी सियासी हैसियत तब बढ़ी, जब वो रोहतक ज़िले की मेहम विधानसभा सीट से विधायक चुने गए थे. पहले वो चंडीगढ़ की सत्ता के गलियारों में दाख़िल हुए और फिर उनकी धमक दिल्ली तक पहुंची. लेकिन, देवी लाल ने कभी भी अपनी ज़मीनी पकड़ नहीं गंवाई. राज्य की ग्रामीण जनता से हमेशा उनका संपर्क बना रहा.</p><p>पुराने दिनों को याद कर के चाहर बताते हैं, ‘मुझे अच्छे से याद है कि ऐतिहासिक महम चबूतरा पर देवी लाल को देखने के लिए कई किलोमीटर लंबी लाइन लगा करती थी. जनता, ख़ास तौर से ग्रामीण इलाक़ों के लोग बात करने के उनके गंवई अंदाज़ को बहुत पसंद करते थे. सफ़र के दौरान अक्सर वो बीच में बैठकर लोगों के साथ हुक्का पीने लगते थे. उनसे खेती-किसानी की बात करते थे.'</p><p>किताब ‘पावर पॉलिटिक्स इन हरियाणा’ के लेखक रणबीर एस दहिया कहते हैं कि देवी लाल जब सत्ता में होते थे, तो उन्हें नहीं पता होता था कि क्या करना है, कैसे करना है. वो ग्रामीण जनता के बीच ही ख़ुद को हमेशा सहज महसूस करते थे. </p><p>रोहतक से इंडियन नेशनल लोकदल के पूर्व सांसद कैप्टन इंदर सिंह ने हमें बताया कि एक बार जब ओम प्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने कई बुज़ुर्गों से कहा कि अगर वो संतुष्ट नहीं हैं, तो पार्टी छोड़ दें. इंदर सिंह कहते हैं कि, ‘तब वो बुज़ुर्ग लोग ओम प्रकाश चौटाला से बहुत नाराज़ हो गए थे, क्योंकि चौटाला सीधी-सपाट बात करने के लिए जाने जाते थे. बुज़ुर्गों ने कहा कि वो देवी लाल के सिपाही हैं और उन्हें पार्टी से बाहर निकलने को देवी लाल के सिवा कोई और नहीं कह सकता है.’ इंदर सिंह कहते हैं कि देवी लाल का जनता से ज़बरदस्त जुड़ाव था. बाद के दिनों में ओम प्रकाश चौटाला भी लोगों के बीच कुछ हद तक उसी तरह लोकप्रिय हुए थे.</p><p>इसी लोकप्रियता का नतीजा था कि 2005 में सत्ता से बाहर होने के 13 साल बाद भी इंडियन नेशनल लोकदल की सियासी हैसियत जनता के बीच बनी रही थी. कैप्टन इंदर सिंह कहते हैं कि, ‘समर्थकों ने तब तक इंडियन नेशनल लोकदल का साथ नहीं छोड़ा, जब तक परिवार में एकजुटता बनी रही. जब देवी लाल के सियासी वारिसों की लड़ाई 2018 की गोहाना रैली के दौरान खुल कर सामने आई, तो उसके बाद जनता ने इंडियन नेशनल लोकदल का साथ छोड़ा.'</p><p>बाजेकां के पूर्व सरपंच शिवराम सिंह ने बीबीसी को बताया कि 1974 के रोड़ी उप चुनाव में देवी लाल ने उन्हें एक स्थानीय महंत तारा बाबा के पास भेजा था. शिवराम बताते हैं कि, ‘तारा बाबा ने उनकी बात सुनने के बाद कहा कि देवी लाल को एक महीने तक लाल जांघिया पहनना चाहिए. तभी वो हार का सिलसिला तोड़ सकेंगे. ठीक उसी तरह जैसे हनुमान ने सीता की तलाश में लंका तक पहुंचने के लिए विशाल समंदर लांघा था.’ </p><p>शिव राम कहते हैं कि देवी लाल का वो लाल जांघिया उनकी सफ़ेद धोती के अंदर साफ़ दिखता था. इसलिए लोगों ने उनका ख़ूब मज़ाक भी उड़ाया. लेकिन देवी लाल ने पूरे एक महीने तक, लाल जांघिया पहना.</p><p>इत्तेफ़ाक से उस साल वो चुनाव जीत भी गए. रोहतक ज़िले के करौंथा गांव के किसान मनजीत धनखड़ कहते हैं कि हरियाणा के ग्रामीण वोटरों पर देवी लाल का जादू सिर चढ़ कर बोलता था. मनजीत बताते हैं कि 1980 के दशक के आख़िरी दिनों में देवीलाल एक बार उनके घर आए थे. उसके बाद से उनके दादा ने कभी भी परिवार के किसी सदस्य को देवी लाल के अलावा किसी और को वोट नहीं देने दिया. </p><h1>देवी लाल के ख़ानदान का इतिहास</h1><p>देवी लाल सिहाग के परदादा का नाम तेजा राम था. वो उन्नीसवीं सदी में राजस्थान से हरियाणा के सिरसा ज़िले में आ कर बस गएथे. यहां उन्होंने खेती-बाड़ी शुरू की थी. तेजा राम के तीन बेटे थे-देवा राम, आशाराम और हुकम राम. आशा राम के दो बेटे हुए- थारू राम और लेखराम. लेखराम के दो बेटे थे, देवीलाल औऱ साहब राम. देवीलाल की तीन बहनें भी थीं -धपन देवी, रुक्मणी देवी और परमेश्वरी देवी. मज़े की बात ये है कि देवी लाल से पहले उनके परिवार के हर पुरुष सदस्य के नाम के आगे राम लगा होता था. </p><p>देवी लाल के परिवार में पहले राजनेता उनके भाई साहब राम थे. जो 1938 में हिसार से कांग्रेस के विधायक चुने गए थे. देवीलाल ने भी अपना सियासी करियर 1952 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनने से शुरू किया था. लेकिन, इमरजेंसी के दौरान देवी लाल का कांग्रेस से मोह भंग हो गया. तब वो इंदिरा गांधी के ‘अंधकार युग’ के विरोध में जनता पार्टी में शामिल हो गए. </p><p>देवी लाल की पांच संतानें हुईं. चार बेटे-परताप सिंह, ओम प्रकाश चौटाला, रंजीत सिंह, जगदीश चंदर और एक बेटी-शांति देवी. देवी लाल के बेटों में, प्रताप सिंह 1960 के दशक में विधायक चुने गए थे. रंजीत सिंह सांसद बने और ओमप्रकाश चौटाला ने पांच बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. जगदीश चंदर की मौत युवावस्था में राजनीति में प्रवेश करने से पहले ही हो गई थी. ओमप्रकाश चौटाला के दोनों बेटों ने अपने गांव चौटाला का नाम अपने नाम के आगे जोड़ना शुरू किया. दोनों ही विधायक बने. एक डबवाली से तो दूसरा एलानाबाद से. अजय चौटाला के दोनों बेटे दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला आज इंडियन नेशनल लोकदल से अलग जननायक जनता पार्टी की अगुवाई कर रहे हैं.</p><p>सिरसा में अजय चौटाला का मकान बरनाला रोड पर है. वहीं अभय चौटाला डबवाली रोड पर रहते हैं. दुष्यंत चौटाला 2014 में हिसार सीट से सांसद चुने गए थे. लेकिन, इस साल जींद विधानसभा सीट पर उपचुनाव से सियासी पारी का आग़ाज़ करने वाले दिग्विजय चौटाला चुनावी बाज़ी हार गए थे. यूं तो अभय चौटाला के बेटे करन और अर्जुन राजनीतिक सभाओं में जाते हैं. लेकिन, अब तक चुनाव मैदान में उनके बेटे अर्जुन ही उतरे हैं. </p><p>अर्जुन ने कुरुक्षेत्र से चुनाव लड़ा था. मगर वो हार गए थे. देवी लाल के एक और बेटे रंजीत सिंह सांसद रह चुके हैं. लेकिन, इस बार वो रानिया विधानसभा सीट से अपनी क़िस्मत आज़मा रहे हैं, क्योंकि उन्हें कांग्रेस से टिकट नहीं मिला. </p><p>रंजीत सिंहके बेटे गगनदीप राजनीति में सक्रिय नहीं हैं. रंजीत सिंह भी ख़ुद को देवीलाल का असली वारिस कह कर लोगो के बीच राजनीति को ज़िंदा रखते है. देवी लाल के चौथे बेटे जगदीश चौटाला के एक बेटे आदित्य चौटाला इस वक़्त बीजेपी में हैं और बीजेपी के टिकट पर डबवाली सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. इससे पहले ज़िला परिषद के चुनाव में उन्होंने अपनी भाभी और अभय चौटाला की पत्नी कांता देवी को हराया था. </p><p>देवी लाल के एक और बेटे प्रताप चौटाला के बेटे रवि चौटाला भी राजनीति में सक्रिय हैं. पहले तो उन्होंने ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा था.लेकिन, बाद में परिवार में सुलह हो गई थी.</p><hr /><p><strong>पढ़ें</strong></p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-41380024?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा किंग मेकर?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-40538896?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’जो प्रधानमंत्री होने के बावजूद खेतों में चले जाते थे'</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-40398526?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">वीपी सिंह को आज क्यों और कैसे याद करना चाहिए? </a></li> </ul><hr /><h1>ख़ानदान में फूट की शुरुआत</h1><p>देवी लाल के ख़ानदान में फूट-2005 में सत्ता से बाहर होनेके बाद इंडियन नेशनल लोकदल, दोबारा अपनी सियासी ताक़त बढ़ाने की कोशिश कर रहा था.तभी, ओम प्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय चौटाला के साथ 52 लोगों को टीचर भर्ती घोटाले में आरोपी बनाया गया. ये मामला 1999-2000 का था. तब हरियाणा में 3,206 जूनियर बेसिक टीचर की भर्ती की गई थी. नई दिल्ली की एक अदालत ने जनवरी 2013 में सभी आरोपियों को 10 साल क़ैद की सज़ा सुनाई. साल 2000 से 2005 को इंडियन नेशनल लोकदल का सुनहरा दौरा कहा जाता है. तब ओम प्रकाश चौटाला ने पूरे पांच साल हरियाणा पर राज किया था.</p><p>इस दौरान वो अपने ‘सरकार आप के द्वार’ अभियान के तहत हुकूमत को अवाम के दरवाज़े तक लेकर गए थे. राजनीतिक विश्लेषक किशन स्वरूप गोरखपुरिया बताते हैं कि इस कार्यकाल में चौटाला ने किसानों की भलाई के लिए कई और योजनाएं शुरू की थीं. गोरखपुरिया कहते हैं कि 2005 में इंडियन नेशनल लोकदल सत्ता से बाहर हो गया.</p><p>2009 में भी 31 सीटें जीत कर चौटाला की पार्टी दूसरे नंबर पर ही रही और कांग्रेस ने हरियाणा में दोबारा सरकार बना ली. किशन स्वरूप गोरखपुरिया कहते हैं कि ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे को सज़ा मिलना इंडियन नेशनल लोकदल के लिए बहुत बड़ा झटका था. जो पार्टी अपने काडर और अनुशासन के लिए जानी जाती थी, उसके कार्यकर्ता चौटाला की गरज भरी आवाज़ की कमी महसूस करने लगे. क्योंकि ओमप्रकाश चौटाला एक शानदार वक्ता माने जाते हैं. </p><p>इंडियन नेशनल लोकदल के पूर्व नेता जितेंद्र बलहरा, जो बाद में बीजेपी में शामिल हो गए, वो कहते हैं कि, ‘ओम प्रकाश चौटाला और अजय चौटाला के जेल जाने के बाद अभय चौटाला ही बचे थे, जो देवी लाल की सियासी विरासत को आगे बढ़ा सकते थे. लेकिन, उन्हें भी वक़्त चाहिए था, ताकि वो अपने पिता की तरह पार्टी को एकजुट रख सकें.</p><p> लेकिन तब तक देर हो चुकी थी.’जितेंद्र बलहरा बताते हैं कि इस संकट से उबारने के लिए अजय चौटाला के विदेश में पढ़ रहे बेटों दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला को वापस बुलाया गया, ताकि वो 19 विधायकों वाली पार्टी को चला सकें. कॉमरेड गोरखपुरिया कहते हैं कि इसी के बाद अभय चौटाला की अजय चौटाला के बेटों दुष्यंत और दिग्विजय से तनातनी शुरू हो गई. </p><p>पार्टी की कमान उस वक़्त ओम प्रकाश चौटाला के हाथ में थी, ताकि वो पिता की सियासी विरासत को संभाल सकें. विदेश में पढ़े दुष्यंत को रैलियों में अभय चौटाला के सामने ही दूसरा देवी लाल कहा जाने लगा. फिर आईएनएलडी की युवा शाखा इंडियन नेशनल स्टूडेंट ऑर्गेनाइज़ेशन ने मुख्यमंत्री पद के लिए दुष्यंत चौटाला का नाम उछालना शुरू कर दिया. पार्टी में आख़िरी फूट पिछले साल गोहाना में हुई रैली में उस वक़्त पड़ी, जब अभय चौटाला बोलने के लिए खड़े हुए.</p><p>तब दुष्यंत चौटाला के समर्थकों ने दुष्यंत चौटाला को सीएम उम्मीदवार घोषित करने का शोर मचाना शुरू कर दिया. उस वक़्त मंच पर ओम प्रकाश चौटाला भी मौजूद थे. चौटाला अनुशासनहीनता बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करते. इसीलिए उन्होंने अजय चौटाला के दोनों बेटों यानी अपने पोतों, दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से बाहर निकाल दिया. </p><hr /><p><strong>पढ़ें</strong></p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49881212?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">हरियाणा विधानसभा चुनाव: बबीता, योगेश्वर और संदीप खेलेंगे भाजपा की पारी </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49710170?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">हरियाणा में NRC लागू करेंगे: मनोहर लाल खट्टर</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49986917?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">मनोहर लाल खट्टर: ज़ीरो से हीरो बनने के पांच ख़ास कारण</a></li> </ul><hr /><p>’पॉलिटिक्स ऑफ़ चौधर’ के लेखक सतीश त्यागी कहते हैं कि देवी लाल परिवार के लिए ये फूट कोई नई बात नहीं है. 1989 में देवी लाल ने ओम प्रकाश चौटाला को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी चुना. इसकी वजह चौटाला की संगठनात्मक क्षमता और अच्छी सियासी समझ थी. जबकि उस वक़्त देवी लाल के बड़े बेटे रंजीत सिंह, देवी लाल के राजनीतिक मामले देखा करते थे.</p><p>उस वक़्त तक ओम प्रकाश चौटाला और रंजीत सिंह, दोनों ही भाई देवी लाल के साये तले राजनीति कर रहे थे, और उनका हाथ बंटाया करते थे. लेकिन, जब हालात ऐसे बने कि उन्हें वी पी सिंह की सरकार में उप प्रधानमंत्री का पद लेना पड़ा, तो देवी लाल ने रंजीत सिंह पर ओम प्रकाश चौटाला को तरज़ीह दी. इसी तरह 2018 में जब फ़ैसला लेने की घड़ी आई, तो ओम प्रकाश चौटाला ने अजय चौटाला के बेटों दुष्यंत और दिग्विजय पर अपने छोटे बेटे अभय चौटाला को तरज़ीह दी.</p><h1>अभय की छवि और दुष्यंत का उतावलापन </h1><p>देवी लाल परिवार के दशको तक साथ रहे बुजुर्ग अपना नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, &quot;2013 में ओम प्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय को जेल होने के बाद अभय चौटाला जो की अपनी छवि के कारण विवादों में रहते थे. वो इनेलो को बाँध कर रखने में कामयाब नहीं हो पाए. जो लोग उनको मिल चुके होते थे वो जानते थे वो बात के पक्के थे और झूठ बोलने और सुनने में विश्वास नहीं करते थे. वहीं बाहर के लोगो में उनकी छवि एक रौबदार और धमकाने वाले नेता के रूप में प्रचलित थी. हालांकि, 2013 के बाद उन्होंने अपनी छवि को सुधारने के लिए प्रयास भी किया पर कामयाब नहीं हो सके.&quot; </p><p>वहीं देवी लाल परिवार के खास रहे कुछ बुजुर्ग कहते हैं कि दुष्यंत के पास अपनी राजनीतिक आकांक्षाएं पूरी करने के लिए अभी सारी उम्र पड़ी थी लेकिन उनके उतावलेपन ने खेल बिगाड़ दिया. अभी तक तो दुष्यंत के पास जो भी है वो उनको परिवार की बदौलत प्लेट में सजा-सजाया मिला है&quot;.</p><h1>आईएनएलडी और जेजेपी का भविष्य</h1><p>इस बार के विधानसभा चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी, दोनों ही देवी लाल की समृद्ध सियासी विरासत पर दावेदारी जताते हुए, मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन, पिछले साल पार्टी में हुई फूट की वजह से आज पार्टी के पुराने कार्यकर्ता दोराहे पर खड़े हैं. और समर्थकों का भी देवी लाल के कुनबे से मोह भंग हो चुका है. हरियाणा के जो जाट वोटर देवी लाल के साथ मज़बूती से खड़े रहा करते थे, आज वो उनके साथ नहीं हैं. इंडियन नेशनल लोकदल के इस मज़बूत वोट बैंक में पहले भूपिंदर सिंह हुड्डा ने सेंध लगाई. फिर बीजेपी ने भी आईएनएलडी के वोट बैंक पर हाथ मारा.</p><p>अंबाला कैंट से आईएनएलडी के पूर्व प्रत्याशी सूरज जिंदल कहते हैं कि इस में कोई दो राय नहीं कि पार्टी की फूट से इसके वोट बैंक को करारा झटका लगा है. समर्थक नाराज़ हैं. आईएनएलडी की भलाई के लिए देवी लाल के परिवार को आपस में सहमति बनाकर मिल-जुलकर काम करना चाहिए था.</p><p>बहादुरगढ़ से आईएनएलडी के एक और पूर्व प्रत्याशी रहे तेजा पहलवान कहते हैं कि दोनों ही परिवारों को एक दूसरे को नीचा दिखाने के बजाय आपस में हाथ मिला लेना चाहिए. क्योंकि ये लड़ाई किसी के लिए फ़ायदेमंद नहीं है. तेजा पहलवान कहते हैं कि इंडियन नेशनल लोकदल पिछले 15 साल से सत्ता से बाहर है. इतने लंबे वक़्त तक विपक्ष में रह कर समर्थकों और वोट बैंक को संभाल पाना बहुत मुश्किल होता है.</p><p>दलाल खाप के मुखिया रमेश दलाल ने भी अजय और अभय चौटाला के परिवारों को साथ लाने की कोशिश की थी. इसके लिए उन्होंने चौटाला परिवार के पुराने पारिवारिक मित्र और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की मदद भी ली थी. लेकिन, अजय चौटाला के युवा और महत्वाकांक्षी बेटों ने आईएनएलडी के डूबते जहाज़ पर फिर से सवार होने से साफ़ इनकार कर दिया था.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

You May Like

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

अन्य खबरें